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नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में भारत दूसरे स्थान पर

Lokesh Pal June 17, 2024 03:34 202 0

संदर्भ

अर्थ सिस्टम साइंस डेटा (Earth System Science Data) में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। 

संबंधित तथ्य

  • भारत में इन उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों का उपयोग है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • उत्सर्जन में वृद्धि 
    • ऐतिहासिक वृद्धि: पिछले चार दशकों में मानवीय गतिविधियों से N2O उत्सर्जन में 40% की वृद्धि हुई है।
    • हालिया वृद्धि: वर्ष 2020 एवं 2022 के बीच N2O उत्सर्जन की वृद्धि दर वर्ष 1980 के बाद से किसी भी अवधि की तुलना में अधिक थी।

वैश्विक उत्सर्जन सांख्यिकी

  • वर्ष 2020 में शीर्ष उत्सर्जक: मानवजनित N2O उत्सर्जन की मात्रा के हिसाब से शीर्ष पाँच देश चीन (16.7%), भारत (10.9%), संयुक्त राज्य अमेरिका (5.7%), ब्राजील (5.3%), एवं रूस (4.6%) थे।
  • उत्सर्जन के स्रोत
    • कृषि योगदान: नाइट्रोजन उर्वरकों एवं पशु खाद का उपयोग करने वाली कृषि पद्धतियाँ पिछले दशक में कुल मानवजनित N2O उत्सर्जन का 74% हिस्सा थीं।
    • जलीय कृषि: जलीय कृषि से उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है, विशेष रूप से चीन में, हालाँकि यह भूमि आधारित रासायनिक उर्वरकों से होने वाले उत्सर्जन का केवल 10वाँ हिस्सा है।
  • समग्र प्रभाव: मानव गतिविधियों से होने वाला N2O उत्सर्जन ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावी विकिरण बल में 6.4% का योगदान देता है, जो वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग में लगभग 0.1°C जोड़ता है।

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन के बारे में

  • नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
  • इसे अक्सर लाॅफिंग गैस कहा जाता है, 
    • यह एक रंगहीन, गैर-ज्वलनशील गैस है, जिसमें हल्की मीठी गंध एवं स्वाद होता है। 
  • अनुप्रयोग: व्यापक रूप से बेहोश करने की क्रिया एवं दर्द से राहत के लिए तथा इसके आनंददायक प्रभावों के लिए मनोरंजक रूप से भी उपयोग किया जाता है।
  • कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2)और मेथेन (CH4) के बाद यह तीसरी सबसे अधिक सांद्रित ग्रीनहाउस गैस है।

नाइट्रस ऑक्साइड से पर्यावरणीय हानि

  • ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse Effect)
    • दीर्घ वायुमंडलीय जीवनकाल (Atmospheric Lifetime): N2O लगभग 114 वर्षों तक वायुमंडल में रहती है, जिससे लंबे समय तक जलवायु पर प्रभाव पड़ता है।
      • हीट ट्रैपिंग (Heat Trapping): यह वातावरण में ऊष्मा को संकेंद्रित रखता है, जो ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • ओजोन क्षरण (Ozone Depletion)
    • ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (Ozone-Depleting Substance): N2O ओजोन क्षरण में योगदान देने वाला एक प्रमुख पदार्थ है।
  • समतापमंडलीय विघटन (Stratospheric Breakdown): जब N2O समतापमंडल में पहुँचता है, तो यह विघटित हो जाता है एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) छोड़ता है।
  • उत्प्रेरित ओजोन विनाश (Catalytic Ozone Destruction): उत्सर्जित NOx ओजोन अणुओं के विनाश को उत्प्रेरित करता है, जिससे ओजोन परत पतली हो जाती है।
  • मृदा एवं जल प्रदूषण
    • उर्वरक अपवाह: नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से अपवाह एवं जल निकायों में निक्षालन होता है।
      • जल प्रदूषण: इससे जल प्रदूषण होता है एवं हानिकारक शैवाल की वृद्धि होती है।
        • मृत क्षेत्र: उर्वरकों से होने वाला प्रदूषण जलीय प्रणालियों में मृत क्षेत्रों के निर्माण की ओर भी ले जाता है, जहाँ समुद्री जीवन के लिए ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है।

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