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अंतिम महाद्वीप के रुप में अंटार्कटिक और पर्यटन विनियमन

Lokesh Pal June 18, 2024 05:30 138 0

संदर्भ:

हाल ही में केरल के कोच्चि में आयोजित 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक (एटीसीएम-46) में अंटार्कटिक पर्यटन और उसके सफल संचालन के लिए एक विनियामक ढाँचा तैयार करने संबंधी मुद्दों पर प्रकाश डाला गया और साथ ही इस विषय पर बल दिया गया कि क्या अंतिम महाद्वीप के रुप में अंटार्कटिक को एक प्राचीन जंगल ही बने रहना चाहिए!

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ अंटार्कटिका टूर ऑपरेटर्स (IAATO), अंटार्कटिक संधि, मैड्रिड प्रोटोकॉल आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: अंटार्कटिक में बढ़ता पर्यटन, अंटार्कटिक में पर्यटन विनियमन आदि।

अंतिम महाद्वीप को एक प्राचीन जंगल ही रहना चाहिए:

  • यद्यपि बैठक में एक विनियामक ढाँचा तैयार करने का प्रयास किया गया, परन्तु अंततः कोई निश्चित समाधान नहीं निकल सका।
  • यह अंतरराष्ट्रीय सहमति से संचालित एक ऐसे क्षेत्र में पर्यटन प्रबंधन की जटिल चुनौतियों को दर्शाता है, जहाँ पर्यावरण तेजी से बदल रहा है।
  • 1990 के दशक की शुरुआत से, अंटार्कटिक पर्यटन में पर्यटकों की संख्या में नाटकीय ढंग से वृद्धि दर्ज की गई है, जो वर्ष 2022-23 के दौरान तकरीबन कुछ हज़ार से बढ़कर 1,00,000 से अधिक हो गई है।
  • इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ अंटार्कटिका टूर ऑपरेटर्स (IAATO) का अनुमान है कि वर्ष 2023-2024 में पर्यटकों की संख्या तकरीबन 1,18,089 हो जाएगी।
  • अंटार्कटिक जाने वाले पर्यटकों में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन का योगदान 40% से अधिक है।
    • इस वृद्धि का श्रेय साहसिक यात्रा में बढ़ती वैश्विक रुचि तथा अंटार्कटिका के अद्वितीय परिदृश्यों और वन्य जीवन का अनुभव करने की इच्छा को दिया जाता है।
    • पर्यटक आमतौर पर छोटे से मध्यम आकार के जहाजों पर बहु-दिवसीय अभियान पर निकलते हैं, जबकि कुछ लोग बड़े क्रूज या फ्लाई-सेल संचालन का विकल्प चुनते हैं।
    • गतिविधियों में वन्यजीव अवलोकन और फोटोग्राफी से लेकर पर्वतारोहण और स्कीइंग तक शामिल हैं।
  • अंटार्कटिक पर्यटन, शैक्षिक और आर्थिक लाभ प्रदान करता है, लेकिन साथ ही महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताएँ भी उत्पन्न करता है।
  • बढ़ती मानवीय उपस्थिति से वन्य जीवन बाधित होता है। वहां के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है, तथा आक्रामक प्रजातियों के आने का खतरा बढ़ जाता है।
  • जहाज यातायात से स्वच्छ जल प्रदूषित होता है, तथा पर्यटन से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
  • जलवायु परिवर्तन पर्यटन के लिए नए क्षेत्रों को खोलकर इन मुद्दों को और बढ़ा देता है साथ ही इससे पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान, जिम्मेदार पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण के मध्य संतुलन सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

नियामक ढाँचे में खामियाँ:

  • अंटार्कटिक पर्यटन के लिए वर्तमान प्रशासनिक ढाँचा खंडित है तथा इसमें स्पष्ट विनियमन का अभाव है।
  • अंटार्कटिक संधि, जिसे वर्ष 1961 में लागू किया गया था, शांतिपूर्ण उपयोग और वैज्ञानिक अनुसंधान को प्राथमिकता देती है।
  • यद्यपि मैड्रिड प्रोटोकॉल व्यापक पर्यावरणीय दिशानिर्देश प्रदान करता है, परंतु इसमें विशिष्ट पर्यटन विनियमों का अभाव है।
  • इसके दिन-प्रतिदिन के प्रबंधन की जिम्मेदारी मुख्यतः IAATO की है। जो एक स्व-नियामक उद्योग निकाय है।
  • अनेक पर्यावरणीय विशेषज्ञों का मानना ​​है कि बढ़ते पर्यावरणीय दबावों से निपटने के लिए IAATO के दिशानिर्देश अपर्याप्त हैं।
  • एटीसीएम अंटार्कटिक मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक प्राथमिक मंच है।
  • एक व्यापक पर्यटन विनियामक ढाँचे की आवश्यकता को पहचानने के बावजूद, एटीसीएम-46 आम सहमति तक पहुँचने में विफल रहा।
  • निर्णय लेने के लिए सभी परामर्शदात्री दलों की सर्वसम्मति की आवश्यकता होती है, जिससे अक्सर कार्रवाई धीमी हो जाती है और राष्ट्रीय हितों को प्रगति में बाधा उत्पन्न करने का मौका मिलता है।
  • जबकि कुछ देश सख्त विनियमनों पर जोर देते हैं, अन्य आर्थिक लाभों को प्राथमिकता देते हैं या अंटार्कटिक सिद्धांतों की अलग तरह से व्याख्या करते हैं।
  • वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में अंटार्कटिक शासन पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग को और जटिल बनाता है।

सीमाओं के बावजूद, ATCM-46 की प्रगतिशील भूमिका 

  • बैठक में पर्यटन और गैर-सरकारी गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक “व्यापक, लचीला और गतिशील” ढाँचा विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • अगले वर्ष एक नवगठित कार्य समूह इस प्रयास का नेतृत्व करेगा। यह अंटार्कटिका की चुनौतियों से निपटने के लिए नई प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • अंटार्कटिका में पर्यटन पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए कड़े उपायों की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान प्रशासनिक ढाँचे में खामियाँ हैं।
  • अंटार्कटिक संधि प्रणाली और मैड्रिड प्रोटोकॉल व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करते हैं, लेकिन दैनिक प्रबंधन IAATO द्वारा किए गए स्व-नियमन पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिसके बारे में अनेक पर्यावरणीय विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह वन्यजीवों और पारिस्थितिकी प्रणालियों की सुरक्षा के लिए अपर्याप्त है।
  • यद्यपि पर्यटन विनियमन के इर्द-गिर्द चर्चाओं के विकास पर एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य भी मूल्यवान है।
  • पर्यटन विनियमन पर चर्चा 1960 के दशक से एटीसीएम बैठकों में बहस का विषय रही है।
  • 1991 में प्रस्तावित पर्यटन अनुबंध पर आम सहमति नहीं बन पाई, जिसके कारण वर्तमान में IAATO के स्व-नियमन पर निर्भरता बनी हुई है।

निष्कर्ष: 

निष्कर्षस्वरुप अंटार्कटिका के बढ़ते पर्यटन को अपने संवेदनशील पर्यावरण की रक्षा के लिए मजबूत विनियामक उपायों की आवश्यकता है, जिसके लिए IAATO के स्व-नियमन से बढ़कर एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कड़े निरीक्षण की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

प्रश्न: आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिका के ग्लेशियरों के पिघलने से पृथ्वी पर मौसम के पैटर्न और मानवीय गतिविधियों पर किस तरह से अलग-अलग प्रभाव पड़ता है? समझाइए। (15 अंक, 250 शब्द) (2021)
प्रश्न: भारत आर्कटिक क्षेत्र के संसाधनों में गहरी दिलचस्पी क्यों ले रहा है? (10 अंक, 150 शब्द) (2018)

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