100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

संवैधानिक नैतिकता

Lokesh Pal June 20, 2024 05:27 211 0

संदर्भ

भारत सरकार की हालिया कार्रवाइयों ने भारतीय संविधान में निहित संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांतों के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

भारत सरकार द्वारा हाल ही में उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदम

  • कल्याणकारी योजनाओं पर पूर्व-निवारक कार्रवाई
    • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि: प्रधानमंत्री ने नई सरकार के गठन के तहत मंत्रियों के विभागों के आवंटन से पहले, किसान कल्याण योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की 20,000 करोड़ रुपये की 17वीं किस्त को मंजूरी दी।
      • ऐसी योजना केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन होगी तथा इसका कार्य वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग द्वारा विनियमित किया जाएगा।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना
      • विभागों के आवंटन के बिना कैबिनेट की कार्रवाई: पहली कैबिनेट, जो विभागों के आवंटन के बिना, ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घरों के निर्माण के लिए तीन करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण और शहरी परिवारों को सहायता प्रदान करने’ का निर्णय भी लिया।

भारत में संसदीय लोकतंत्र को अपनाना

  • संसदीय लोकतंत्र को अपनाना: बी. आर. अंबेडकर और उनके साथी संविधान निर्माताओं ने शासन में उत्तरदायित्व के लिए राष्ट्रपति प्रणाली की अपेक्षा संसदीय प्रणाली को चुना।
  • अपनाने का कारण
    • उत्तरदायित्व: संसदीय कार्यपालिका संसद में बहुमत पर अधिक निर्भर होने के कारण अधिक उत्तरदायी बन जाती है।
      • हालाँकि, गैर-संसदीय कार्यपालिका संसद से स्वतंत्र होने के कारण विधायिका के प्रति कम उत्तरदायी होती है।
    • जवाबदेही: यह आशा की गई कि कार्यपालिका की जिम्मेदारियों का मूल्यांकन दैनिक और आवधिक दोनों प्रकार से किया जाएगा।
      • दैनिक मूल्यांकन: यह संसद सदस्यों द्वारा किया जाता है-
        • प्रश्न 
        • समाधान 
        • अविश्वास मत 
        • स्थगन प्रस्ताव 
        • संबोधनों पर बहस
      • आवधिक मूल्यांकन: यह प्रत्येक पाँच वर्ष में मतदाताओं द्वारा किया जाता है। इस प्रकार, संविधान निर्माताओं ने ‘अधिक स्थिरता के बजाय अधिक जिम्मेदारी’ को प्राथमिकता दी।

  • कार्यकाल का विस्तार
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और प्रधान सचिव: नई सरकार के गठन के बाद कैबिनेट कमेटी का पुनर्गठन किए बिना कार्यकाल बढ़ाया गया।
    • यह पुरानी ‘कैबिनेट की नियुक्ति समिति’ के संदर्भ में किया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री और गृह मंत्री शामिल हैं।
  • सत्ता और मंत्रिमंडल की कार्यप्रणाली में बदलाव: हाल के समय में भारत सरकार की कार्यप्रणाली में मंत्रिमंडल प्रणाली और राष्ट्रपति तथा संसद के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व की पूर्ण उपेक्षा दिखती है।
    • प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत में शक्तियों का असाधारण संचय हो रहा है, जो ‘अधिक जिम्मेदारी’ के संवैधानिक आधार को नष्ट कर रहा है।
  • व्यावसायिक नियम: वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक रूप से, भारत सरकार (कार्य का आवंटन) नियम, PMO को केवल कार्य (प्रधानमंत्री को सचिव स्तरीय सहायता प्रदान करना) आवंटित करते हैं।
    • इसके विपरीत, वे यह प्रावधान करते हैं कि  ‘भारत सरकार का व्यवसाय इन नियमों की प्रथम अनुसूची में निर्दिष्ट मंत्रालयों, विभागों, सचिवालयों और कार्यालयों में किया जाएगा’।
  • कैबिनेट सचिवालय: विषयों का वितरण दूसरी अनुसूची में दिया गया है। यहाँ तक ​​कि कैबिनेट सचिवालय का कार्य केवल ‘कैबिनेट और कैबिनेट समितियों को सचिव स्तरीय सहायता’ प्रदान करना और ‘कार्य के नियम’ लागू करना है।
    • प्रभाव: ये कार्य संवैधानिक सिद्धांतों और जवाबदेही से महत्त्वपूर्ण विचलन दर्शाते हैं।

संवैधानिक नैतिकता क्या है?

  • भारत के संदर्भ में, संवैधानिक नैतिकता को डॉ. बी. आर. अंबेडकर द्वारा संविधान और उसके सिद्धांतों के प्रति सम्मान और पालन के रूप में वर्णित किया गया है।
    • संवैधानिक नैतिकता शब्द का प्रयोग पहली बार ब्रिटिश इतिहासकार जॉर्ज ग्रोटे ने अपनी 12 खंडों वाली कृति, ए हिस्ट्री ऑफ ग्रीस (A History of Greece) में किया था।
    • इसका अर्थ है संविधान का पालन केवल शब्दों में नहीं, बल्कि भावना में करना तथा न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे जैसे मूल्यों को बनाए रखना, जिनका संविधान समर्थन करता है।
      • राज्य की विवेकाधीन शक्ति और गैर-भेदभाव का सिद्धांत संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा से निकटता से जुड़े हुए हैं।
  • स्तंभ: इसमें निम्नलिखित स्तंभ शामिल हैं
    • न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता और गरिमा जैसे मूल मूल्य
    • कानून का शासन
    • लोकतांत्रिक सिद्धांत,
    • मौलिक अधिकार
    • शक्तियों का पृथक्करण
    • नियंत्रण और संतुलन
    • संवैधानिक व्याख्या
    • सार्वजनिक सेवा में पारदर्शिता, जवाबदेही और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए नैतिक शासन
  • संवैधानिक प्रावधान: यद्यपि संवैधानिक नैतिकता शब्द का प्रयोग भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं किया गया है, फिर भी यह इसके कई खंडों में गहराई से अंतर्निहित है:
    • प्रस्तावना: यह उन सिद्धांतों को रेखांकित करती है, जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सहित हमारे लोकतंत्र को रेखांकित करते हैं।
    • मौलिक अधिकार: यह राज्य शक्ति के मनमाने उपयोग के विरुद्ध व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इन अधिकारों को लागू करने की अनुमति देता है।
    • निदेशक सिद्धांत: वे गांधीवादी, समाजवादी और उदार बौद्धिक दर्शन से प्रेरित होकर, संविधान निर्माताओं द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए राज्य को दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
    • मौलिक कर्तव्य: अपने अधिकारों के साथ-साथ, नागरिकों की राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियाँ भी हैं।
    • नियंत्रण और संतुलन: इसमें विधायी और कार्यकारी कार्यों की न्यायिक समीक्षा, कार्यपालिका की विधायी निगरानी आदि शामिल हैं।
    • अन्य: विधि का शासन, शक्तियों का पृथक्करण और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांत, ये सभी संवैधानिक नैतिकता के सार को बनाए रखते हैं, लोकतंत्र की रक्षा करते हैं और सुशासन को बढ़ावा देते हैं।
      • संवैधानिक नैतिकता सुनिश्चित करने के लिए: अनुच्छेद-77 में प्रावधान है कि राष्ट्रपति भारत सरकार के कार्य के अधिक सुविधाजनक संचालन के लिए तथा मंत्रियों के बीच उक्त कार्य के आवंटन  के लिए नियम बनाएँगे।
      • भारतीय संविधान लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कायम रखता है तथा संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
      • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-74 के अनुसार, राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगी, जो अपने कार्यों के निर्वहन में राष्ट्रपति की सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक निर्णयों में इस बात पर बल दिया है कि संवैधानिक नैतिकता में व्यक्तिगत गरिमा को बनाए रखना, सुशासन को बढ़ावा देना और सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकना शामिल है।
    • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): इस ऐतिहासिक निर्णय में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ‘मूल संरचना सिद्धांत’ निर्धारित किया, जो मानता है कि संसद संविधान के मूल ढाँचे में संशोधन नहीं कर सकती है।
      • न्यायालय ने संवैधानिक नैतिकता को मूल ढाँचे का एक अनिवार्य घटक माना तथा संविधान में निहित मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा की।
    • एस. पी. गुप्ता केस (प्रथम न्यायाधीश केस), 1982: सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक उल्लंघन को संवैधानिक नैतिकता का गंभीर उल्लंघन करार दिया।
    • मनोज नरूला बनाम भारत संघ, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “संवैधानिक नैतिकता का अर्थ है संविधान के मानदंडों के आगे झुकना और इस तरह से कार्य नहीं करना जो मनमाने तरीके से कार्य करने या कानून के शासन का उल्लंघन करने वाला हो।
    • कृष्णमूर्ति केस, 2015: सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सुशासन के लिए संवैधानिक नैतिकता आवश्यक है।
    • भारत संघ बनाम दिल्ली सरकार मामला: यह निर्णय दिया गया कि उच्च पदस्थ अधिकारियों को संवैधानिक नैतिकता का पालन करना चाहिए तथा प्राधिकार के मनमाने प्रयोग को रोकने के लिए संविधान में उल्लिखित आदर्शों को कायम रखना चाहिए।
      • दिल्ली सरकार मामले, 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक नैतिकता की तुलना ‘द्वितीय बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत’ से की, तथा मनमाने प्राधिकार पर अंकुश लगाने में इसकी भूमिका पर बल दिया।
    • नवतेज सिंह जौहर एवं अन्य बनाम भारत संघ मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धारा 377 LGBTQI समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करती है और संविधान के अनुच्छेद-14, 19 और 21 में निहित व्यक्तिगत गरिमा के मौलिक मूल्यों का उल्लंघन करती है।
    • न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में: सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ प्रतिबंधों के साथ ‘आधार’ की संवैधानिक वैधता की पुष्टि की तथा कार्यपालिका द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में न्यायालयों की भूमिका को रेखांकित किया।
      • न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी मामले (2018) में, न्यायालय ने संविधान का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून या कार्यकारी कार्रवाई को रद्द करके संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के अपने कर्तव्य को दोहराया।

संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण

  • भारत: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक मानते हुए उसे रद्द कर दिया, क्योंकि यह मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता था।
    • नाज फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार, 2009: दिल्ली उच्च न्यायालय ने संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत का हवाला देते हुए वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। 
      • न्यायालय ने कहा कि समलैंगिकता को अपराध घोषित करना संविधान में निहित समानता (अनुच्छेद-14), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-19) और जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद-21) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
      • न्यायालय ने समावेशिता, बहुलता और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए संवैधानिक नैतिकता की आवश्यकता पर बल दिया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय का समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का निर्णय, जिसने संविधान में निहित समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को बरकरार रखा।
  • दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीकी सत्य और सुलह आयोग (South African Truth and Reconciliation Commission), जिसकी स्थापना रंगभेद-पश्चात् समाज में जवाबदेही, सुलह और उपचार को बढ़ावा देकर संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने के लिए की गई थी।

संवैधानिक नैतिकता का महत्त्व

  • संतुलन बनाए रखना: संवैधानिक नैतिकता देश के कानूनों का सम्मान करने और व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता को बनाए रखने के बीच संतुलन बनाती है।
  • संविधान की रीढ़: संवैधानिक नैतिकता संविधान की रीढ़ है, जो इसकी व्याख्या और अनुप्रयोग के लिए एक कम्पास के रूप में कार्य करती है।
  • लोकतंत्र के लिए आवश्यक: संवैधानिक नैतिकता को कायम रखना एक लोकतांत्रिक समाज के कामकाज के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि कानून का शासन कायम रहे और नागरिकों के अधिकार एवं स्वतंत्रता सुरक्षित रहें।

संवैधानिक नैतिकता के लिए चुनौतियाँ

  • निर्माण की आवश्यकता: बी. आर. अंबेडकर के शब्दों में के अनुसार, “संवैधानिक नैतिकता कोई स्वाभाविक भावना नहीं है, इसको लगातार बनाए रखना होगा। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे लोगों को अभी भी इसे सीखना बाकी है। 
  • संवैधानिक तानाशाही: बी. आर. अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि धर्म में भक्ति आत्मा के मुक्ति का मार्ग हो सकता है, लेकिन राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन का निश्चित रास्ता है। जो आखिकार तानाशाही पर खत्म होता है।
    • वर्तमान में संवैधानिक तानाशाही जैसी कार्यप्रणाली बनी हुई है, जिसका संविधान निर्माता सख्त विरोध करते थे।
  • स्पष्टता का अभाव: संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि किस सीमा तक व्यक्तियों को संविधान में उल्लिखित नैतिक सिद्धांतों को बनाए रखने और अपने दायित्वों के प्रति अधिक नैतिक व्यवहार करने के लिए सिखाया जा सकता है?
    • कुछ मामलों में, उदाहरण के लिए सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म वाली महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर, कौन सी गैर-भेदभावपूर्ण या संतुलित रणनीति अपनाई जानी चाहिए?
  • पक्षपात के आरोप: विपक्ष पर दबाव बनाने के लिए पुलिस या जाँच एजेंसियों के कई कथित दुरुपयोग हुए हैं। 
  • लोकतंत्र पर प्रभाव: संसदीय लोकतंत्र में संवैधानिक नैतिकता की धारणा को प्रभावित करने वाली पूर्ण शक्ति का उपयोग हो सकता है।
  • न्यायिक अतिरेक: यदि इस सिद्धांत का उपयोग बिना किसी सीमा या प्रतिबंध के किया जाता है, तो इससे न्यायिक अतिरेक हो सकता है, जो शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है।
  • चयनात्मक अनुप्रयोग: ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ संवैधानिक नैतिकता को कुछ समूहों या मुद्दों पर चुनिंदा रूप से लागू किया गया है, जिससे निष्पक्षता के सिद्धांत और कानून के शासन को कमजोर किया गया है।

संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने के तरीके

  • संविधान में निहित न्याय, समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों को बनाए रखें और इन मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाली नीतियों को बढ़ावा देना।
  • नागरिकों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को बनाए रखना और सुनिश्चित करना कि वे किसी भी उल्लंघन से सुरक्षित हैं।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करना और सुनिश्चित करना कि यह पारदर्शी, सहभागी और जवाबदेह हो।
  • नागरिकों को संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना।
  • नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने और अपने निर्वाचितों को जवाबदेह ठहराने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • संवैधानिक नैतिकता के समग्र अर्थ को परिभाषित करना इसे एक मानक बना सकता है, विशेषकर ऐसे मामलों में जहाँ व्यक्तियों के अधिकार और स्वतंत्रता धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं के विरुद्ध हैं।
    • न्यायपालिका और प्रेस जैसी मजबूत एवं स्वतंत्र संस्थाओं को संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
  • एक सहकारी वातावरण को बढ़ावा देने का समय आ गया है, जहाँ विपक्ष प्रभावी रूप से सरकारी कार्यों की जाँच कर सकता है, रचनात्मक विकल्प प्रस्तावित कर सकता है और विविध सामाजिक हितों का प्रतिनिधित्व कर सकता है, जिससे एक अधिक पारदर्शी और जवाबदेह सरकार को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष

संवैधानिक नैतिकता, हालाँकि संविधान के पाठ में स्पष्ट रूप से नहीं बताई गई है, एक अंतर्निहित दार्शनिक अवधारणा है, जो संविधान के संचालन और व्याख्या को नियंत्रित करती है। यह संविधान की भावना और लोकाचार को मूर्त रूप देती है, इसके मूल सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करती है, व्यक्तिगत अधिकारों, सरकारी प्राधिकरण और सामाजिक न्याय की खोज के बीच संतुलन बनाए रखती है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.