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बिटुमेन

Lokesh Pal June 21, 2024 03:44 169 0

संदर्भ

भारत बायोमास या कृषि अपशिष्ट से प्राप्त जैव-कोलतार का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने की योजना बना रहा है।

संबंधित तथ्य 

  • उद्देश्य: आयातित कोलतार पर देश की निर्भरता को कम करना।
    • इसका लक्ष्य आगामी दशक के भीतर इन आयातों को बायो-बिटुमेन से बदलना है। 
  • केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (Central Road Research Institute- CRRI) एवं भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून, जैव-कोलतार का उपयोग करके निर्मित 1 किमी. सड़क खंड पर एक पायलट अध्ययन शुरू करने के लिए प्रयासरत हैं।

केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (Central Road Research Institute- CRRI)

  • यह एक अग्रणी राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। 
  • स्थापना: वर्ष 1952
  • यह नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह विभिन्न सड़क एवं रनवे बुनियादी ढाँचे में अनुसंधान और विकास करने पर केंद्रित है। 

बायो-बिटुमेन के बारे में

  • बायो-बिटुमेन पारंपरिक जीवाश्म ईंधन-आधारित बिटुमेन का एक स्थायी विकल्प है।
    • यह पेट्रोलियम मुक्त है। 
  • इसे जैव-डामर (Bio-Asphalt) के नाम से भी जाना जाता है। 
  • इसका निर्माण जैविक सामग्री जैसे बायो-चारकोल, बायो-ऑयल एवं इसी तरह के पदार्थों से किया जाता है।
  • इसका उपयोग या तो बिटुमेन की पूर्ति के लिए या बाइंडर मिश्रण में बिटुमेन की मात्रा को कम करने के लिए किया जा सकता है।

बायो-बिटुमेन कैसे बनता है? 

  • यह एक प्रकार के डामर मिश्रण है, जो विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों से प्राप्त लिग्निन से बनाया जाता है।
    • लिग्निन पौधों की कोशिका भित्ति में पाए जाने वाले प्राकृतिक बायोपॉलिमर हैं। 
      • यह संरचनात्मक सहायता प्रदान करता है एवं विकास में सहायता करता है। 
  • उत्पादन प्रक्रिया: बायो-बिटुमेन को ऑक्सीजन के बिना अपशिष्ट मिश्रण को लगभग 500°C तक गर्म करने की आवश्यकता होती है।
    • इस प्रक्रिया को पायरोलिसिस के नाम से जाना जाता है।
      • यह चारकोल एवं बायो-चारकोल उत्पादन के समान है।
        • इसका उपयोग जैव ईंधन निर्माण में किया जाता है। 

लाभ

जैव-आधारित बिटुमेन का उपयोग करने से कई लाभ मिलते हैं:-

  • आयात में कमी: यह आयातित कोलतार पर निर्भरता को कम करने में मदद करता है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: जैविक अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करके पराली जलाने जैसे मुद्दों का समाधान करता है।
  • आर्थिक लाभ: विदेशी मुद्रा की पर्याप्त बचत होती है।
  • जैव-अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: निर्माण में नवीकरणीय एवं टिकाऊ संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करके जैव-अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।

बिटुमेन के बारे में

  • बिटुमेन एक काला पदार्थ है, जो मुख्यतः कच्चे तेल से प्राप्त होता है। 
  • इसमें जटिल हाइड्रोकार्बन होते हैं एवं इसमें कैल्शियम, लोहा, सल्फर तथा ऑक्सीजन जैसे तत्त्व भी शामिल होते हैं। 
  • बिटुमेन वॉटरप्रूफ एवं चिपकने वाले गुण प्रदान करने की अपनी क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। 
    • ये गुण इसे निर्माण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सामग्री बनाता है।

भारत में बिटुमेन की वर्तमान स्थिति 

  • माँग में वृद्धि: सड़क निर्माण गतिविधियों में वृद्धि के कारण भारत की बिटुमेन खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • पिछले पाँच वित्तीय वर्षों में, वार्षिक औसत खपत वर्ष 2014-15 एवं 2018-19 के बीच दर्ज 5.94 मिलियन टन से बढ़कर 7.7 मिलियन टन हो गई है।
  • आयात निर्भरता: भारत वर्तमान में अपनी वार्षिक बिटुमेन आवश्यकता का लगभग आधा आयात करता है।
    • आयात: वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने 3.21 मिलियन टन कोलतार का आयात किया।
    • घरेलू उत्पादन: इसी अवधि के दौरान, भारत ने स्थानीय स्तर पर 5.24 मिलियन टन बिटुमेन का उत्पादन किया।

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