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सिंधु जल संधि

Lokesh Pal June 26, 2024 02:42 151 0

संदर्भ

हाल ही में पाँच सदस्यीय पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty- IWT) के तहत शामिल नदियों पर स्थापित विद्युत परियोजनाओं का निरीक्षण करने के लिए जम्मू के किश्तवाड़ में राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (National Hydroelectric Power Corporation- NHPC) मुख्यालय आया था। 

  • वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद यह पहली ऐसी यात्रा है।

पाकल दुल (द्रंगधुरान) जलविद्युत परियोजना [Pakal Dul (Drangdhuran) Hydroelectric Project]

  • यह जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी की मुख्य दाहिनी सहायक नदी मरुसुदर (Marusudar) पर प्रस्तावित जलाशय आधारित योजना है। 
  • पाकिस्तान, जो चिनाब नदी के निचले हिस्से पर निर्भर है, इस बाँध को सिंधु जल संधि का उल्लंघन मानता है।

रतले जलविद्युत परियोजना (Rattle Hydroelectric Power Project) 

  • पाकिस्तान ने बार-बार इसकी संरचना को लेकर चिंता जताई है और जोर देकर कहा है कि भारत इस परियोजना के जलाशय का उपयोग कृत्रिम जल संकट पैदा करने या पाकिस्तान में बाढ़ का कारण बनने के लिए करेगा।

संबंधित तथ्य 

  • पाकिस्तान और विश्व बैंक के तटस्थ विशेषज्ञों को सिंधु जल संधि के तहत दो जलविद्युत परियोजनाओं का निरीक्षण करने के लिए भेजा गया है।
  1. द्राबशल्ला (Drabshalla) में 850 मेगावाट (MW) रतले पनबिजली परियोजना (Rattle Hydroelectric Power Project) स्थल
  2. मरुसुदर (Marusudar) नदी पर 1,000 मेगावाट पाकल दुल परियोजना (Pakal Dul Project)
  • ये दोनों परियोजनाएँ चिनाब नदी की सहायक नदी पर हैं।

सिंधु जल संधि के तहत विवाद समाधान तंत्र (Dispute Resolution Mechanism Under Indus Water Treaty)

  • संधि का अनुच्छेद-9: इसमें विवाद समाधान प्रक्रिया को रेखांकित करते हुए इसे तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है: प्रश्न, मतभेद और विवाद।
    • चरण 1: इसके अंतर्गत, दोनों पक्षों द्वारा उठाए गए “प्रश्नों” को स्थायी आयोग में हल किया जा सकता है या अंतरसरकारी स्तर पर भी उठाया जा सकता है।

भारत की पाकिस्तान की कोशिश पर आपत्ति

  • किशनगंगा (Kishanganga) और रतले जलविद्युत परियोजनाओं (Ratle Hydro-Electric Projects) से संबंधित समान मुद्दों पर अवैध रूप से गठित मध्यस्थता न्यायालय द्वारा समानांतर कार्यवाही की गई। 

    • चरण 2: जल बँटवारे पर देशों के बीच अनसुलझे प्रश्नों या “मतभेदों” जैसे कि तकनीकी मतभेदों के मामले में, कोई भी पक्ष निर्णय लेने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert- NE) नियुक्त करने के लिए विश्व बैंक से संपर्क कर सकता है।
    • चरण 3: और अंततः, यदि कोई भी पक्ष NE के निर्णय से संतुष्ट नहीं है या संधि की व्याख्या और सीमा में “विवाद” के मामले में, मामलों को मध्यस्थता न्यायालय में भेजा जा सकता है।

किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं (HEPs) पर विवाद का इतिहास

पाकिस्तान की माँग

  • वर्ष 2015 में: पाकिस्तान ने अपनी तकनीकी आपत्तियों की समीक्षा के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया।
  • वर्ष 2016 में: पाकिस्तान ने एकतरफा तौर पर इस अनुरोध को वापस ले लिया और संधि के विवाद समाधान प्रावधानों के तहत मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना की माँग करते हुए विश्व बैंक से संपर्क किया।

भारत की माँग

  • भारत ने एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए एक अलग आवेदन प्रस्तुत किया।
  • भारत ने तर्क दिया कि मध्यस्थता न्यायालय के लिए पाकिस्तान के अनुरोध ने विवाद समाधान के लिए संधि की स्थापित श्रेणीबद्ध प्रणाली को दरकिनार कर दिया।
  • वर्ष 2022 में: विश्व बैंक ने मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration) के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ और एक अध्यक्ष दोनों की नियुक्ति के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।

सिंधु नदी प्रणाली के बारे में

  • सिंधु नदी प्रणाली में तीन पूर्वी नदियाँ (सतलुज, व्यास और रावी) और तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) शामिल हैं। 
  • इसमें पश्चिम से काबुल की सहायक नदी भी शामिल है, जो भारत से गुजरे बिना अफगानिस्तान से सीधे पाकिस्तान में बहती है।
  • इस बेसिन पर मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान का अधिग्रहण है, जबकि चीन और अफगानिस्तान का भी इसमें थोड़ा हिस्सा है।
  • भारत में सिंधु बेसिन जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अवस्थित है।

सिंधु जल संधि के बारे में

  • सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty- IWT) पर वर्ष 1960 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
  • यह संधि सिंधु नदी प्रणाली पर भारत-पाकिस्तान के बीच सहयोग के लिए एक तंत्र स्थापित करती है।
  • भारत और पाकिस्तान के बीच 9 वर्ष की बातचीत के बाद वर्ष 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें विश्व बैंक की मदद भी ली गई थी, जो एक हस्ताक्षरकर्ता भी है।

सिंधु जल संधि के प्रमुख प्रावधान

  • जल आवंटन
    • तीन ‘पश्चिमी नदियाँ’ (सिंधु, झेलम और चिनाब) पाकिस्तान को मिलीं और तीन ‘पूर्वी नदियाँ’ (सतलुज, रावी और ब्यास) भारत को मिलीं।
    • हालाँकि, भारत को पश्चिमी नदियों के जल का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए करने की अनुमति है: घरेलू उपयोग, गैर-उपभोग्य उपयोग, निर्दिष्ट कृषि उपयोग, जल-विद्युत उत्पादन।
  • स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना (Establishment of Permanent Indus Commission): इसने एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) की स्थापना की, जो नदियों पर सूचना के आदान-प्रदान, निरंतर सहयोग और संघर्षों के समाधान के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता था।
  • पश्चिमी नदियों पर भारत का भंडारण अधिकार (India’s Storage Right Over Western Rivers): भारत को पश्चिमी नदियों पर न्यूनतम भंडारण स्तर रखने की अनुमति है, जिसका अर्थ है कि वह संरक्षण और बाढ़ संबंधी भंडारण उद्देश्यों के लिए 3.75 MAF तक जल संगृहीत कर सकता है।
  • निकास प्रावधान: सिंधु जल संधि में एकतरफा निकास प्रावधान नहीं है तथा यह तब तक लागू रहेगा जब तक कि दोनों देश किसी अन्य पारस्परिक रूप से सहमत समझौते का अनुसमर्थन नहीं कर देते।
  • इसमें 10 वर्ष की संक्रमण अवधि की अनुमति दी गई, जिसके दौरान भारत पूर्वी नदियों से पाकिस्तान को जल की आपूर्ति करने के लिए बाध्य था।
    • इस अवधि के दौरान पाकिस्तान को झेलम, चिनाब और सिंधु के जल के उपयोग के लिए आवश्यक नहर प्रणाली का निर्माण करना था, जैसा कि संधि के तहत उसे आवंटित किया गया था।

चुनौतियाँ

  • जल की बढ़ती माँग: पर्यवेक्षकों के अनुसार, सिंधु जल संधि, जल की बढ़ती माँग के कारण दोनों देशों के बीच असंतोष का स्रोत बन गई।
  • नदी बेसिन विवादित क्षेत्र में स्थित है: पश्चिमी नदियाँ जम्मू और कश्मीर के विवादित क्षेत्र से होकर बहती हैं।
  • आतंकवाद: वर्ष 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी सैन्य शिविर पर हमले के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था ‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।’ 
  • ग्लोबल वार्मिंग: ग्लोबल वार्मिंग का असर जल की उपलब्धता पर पड़ रहा है और इससे ‘अधिकार बनाम आवश्यकता’ की बहस और कठिन होती जा रही है। क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन IRB4 में स्थित नदियों में प्रवाह को कम कर रहा है।
  • IWT के निरस्तीकरण से भारत के लिए विश्वसनीयता का संकट: IWT के एकतरफा निरस्तीकरण से निश्चित रूप से विश्वसनीयता पर असर पड़ेगा और इस तरह भविष्य की वार्ताओं पर भी असर पड़ेगा।

आगे की राह

  • संवाद और सहयोग: भारत और पाकिस्तान को नियमित रूप से संवाद करना चाहिए और सूचनाओं के आदान-प्रदान से विश्वास बढ़ाने तथा मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने में मदद मिल सकती है।
  • विवाद समाधान तंत्र: दोनों देशों को संधि में उल्लिखित मौजूदा विवाद समाधान तंत्रों का उपयोग करना चाहिए, जैसे कि स्थायी सिंधु आयोग।
  • तकनीकी विशेषज्ञता: जल प्रबंधन पेशेवरों और विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का उपयोग साझा जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में सहायता कर सकता है।
  • पर्यावरणीय महत्त्व: भारत और पाकिस्तान दोनों को नदी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण तथा पुनर्स्थापन सहित स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं पर विचार करना चाहिए।
  • विश्वास-निर्माण उपाय: पारदर्शिता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए जल प्रबंधन अधिकारियों के बीच संयुक्त पहल, सूचना-साझाकरण तथा दौरे जैसे विश्वास-निर्माण उपायों को लागू करना।

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