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नीति-समर्थित सेवाओं द्वारा आर्थिक विकास

Lokesh Pal June 27, 2024 02:43 117 0

संदर्भ

विनिर्माण आधारित विकास रोजगार सृजन एवं समृद्धि के लिए पारंपरिक मॉडल रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में, कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सेवा क्षेत्र विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ा है। 

  • विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की भविष्य की नौकरियों की रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, वर्ष 2025 तक ऑटोमेशन के कारण 85 मिलियन नौकरियाँ खत्म हो सकती हैं, लेकिन 97 मिलियन नई भूमिकाएँ, मुख्य रूप से डेटा विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे उभरते व्यवसायों में, सृजित हो सकती हैं। 

आर्थिक विकास के बारे में

आर्थिक विकास का नागरिकों पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। आर्थिक विकास में वृद्धि का मतलब है सरकार के लिए अधिक राजस्व, जिसका उपयोग सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए किया जा सकता है।

  • संक्षेप में: आर्थिक विकास ऐसे कार्यक्रम, नीतियाँ या गतिविधियाँ हैं, जिनका उद्देश्य नागरिकों के आर्थिक कल्याण और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • आर्थिक विकास रणनीतियाँ: यद्यपि आर्थिक विकास प्राथमिकताएँ अलग-अलग होती हैं, आर्थिक विकास रणनीतियाँ अक्सर समान, सकारात्मक परिणामों पर केंद्रित होती हैं, जैसे:
    • अधिक नौकरियाँ और अधिक विविधतापूर्ण नौकरियाँ उत्पन्न करना।
    • व्यवसाय को बनाए रखना और नए व्यवसाय शुरू करना।
    • जीवन की बेहतर गुणवत्ता।
    • अधिक स्थानीय उत्पाद बनाना और बेचना।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector in India)

विनिर्माण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न और बड़ा हिस्सा है। इसमें अयस्क, लकड़ी और खाद्य पदार्थों जैसे कच्चे माल को संसाधित और परिष्कृत करके तैयार उत्पादों जैसे धातु के सामान, फर्नीचर और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में बदलना शामिल है। इन कच्चे माल को किसी अधिक उपयोगी चीज में बदलना मूल्यवर्द्धन (Value Addition) है।

  • योगदान: भारत में विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 16-17% का योगदान देता है।
    • इसमें 27.3 मिलियन से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।
    • भारत, दुनिया में तीसरा सबसे अधिक माँग वाला विनिर्माण गंतव्य है और इसमें वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सामान निर्यात करने की क्षमता है।
  • उपलब्धि: वित्त वर्ष 2023 के दौरान विनिर्माण निर्यात में 6.03% की वृद्धि के साथ 447.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अब तक का सबसे अधिक वार्षिक निर्यात दर्ज किया गया है, जो पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 2022) के 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड निर्यात को पार कर गया है।
    • वर्ष 2030 तक भारतीय मध्यम वर्ग की वैश्विक खपत में 17% हिस्सेदारी के साथ दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी होने की उम्मीद है।
  • लक्ष्य: भारत का लक्ष्य कई कार्यक्रमों एवं नीतियों के क्रियान्वयन के माध्यम से मेक इन इंडिया के लक्ष्य के अनुरूप वर्ष 2025 तक अर्थव्यवस्था के उत्पादन में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को 25% तक बढ़ाना है।

विनिर्माण क्षेत्र में विकासशील देशों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

विनिर्माण क्षेत्र को सामाजिक और आर्थिक विकास की रीढ़ माना जाता है। हालाँकि, इसे निम्नलिखित विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है:

  • ऑटोमेशन में वृद्धि: विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार ने मुख्य रूप से कौशल आधारित श्रम को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे अपेक्षाकृत कम शिक्षा वाले श्रमिकों की माँग कम हो गई है।
    • ऑटोमेशन, रोबोट और 3D प्रिंटिंग जैसी नई प्रौद्योगिकियाँ सीधे तौर पर श्रम के स्थान पर भौतिक पूँजी का उपयोग करती हैं।
  • कौशल की बढ़ती माँग
    • जैसे-जैसे विनिर्माण प्रक्रियाओं में ऑटोमेशन का प्रसार हो रहा है, विनिर्माण श्रमिकों से अपेक्षित कौशल विकसित हो रहे हैं। शारीरिक श्रम और दोहराव वाले कार्यों की आवश्यकता वाली नौकरियाँ कम होती जा रही हैं।
  • वैश्विक गुणवत्ता प्रतिस्पर्द्धा (Global Quality Competition): विकासशील देशों की फर्मों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं द्वारा निर्धारित सटीक गुणवत्ता मानकों के अनुसार उत्पादन करने की आवश्यकता है, जो अकुशल श्रम को प्रभावित करते हैं और जिन्हें आसानी से भौतिक पूँजी और कुशल श्रम के लिए प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
    • जबकि विकासशील देशों की कंपनियों को अधिक श्रम-प्रधान तकनीकों का उपयोग करने का प्रोत्साहन मिलता है, वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए ऐसी उत्पादन तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता होती है, जो अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में प्रयुक्त तकनीकों से महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न न हों।
  • सीमित वृद्धि: विनिर्माण में बढ़ती कौशल और पूँजी-तीव्रता का अर्थ है कि विकासशील देशों में विनिर्माण के औपचारिक क्षेत्रों ने महत्त्वपूर्ण मात्रा में श्रम को अवशोषित करने की क्षमता खो दी है।
    • वे प्रभावी रूप से ‘एन्क्लेव क्षेत्र’ बन गए हैं, जो खनन से बहुत अलग नहीं हैं, जिनमें विकास की संभावनाएँ सीमित हैं और शेष अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष पर बहुत कम सकारात्मक प्रभाव हैं।

नीति-समर्थित सेवा क्षेत्र पर ध्यान देने की आवश्यकता

सेवा क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देश की आर्थिक वृद्धि और सकल घरेलू उत्पाद में प्रमुख योगदान देता है तथा वर्तमान परिदृश्य में नीति-समर्थित सेवा क्षेत्र समय की माँग है।

  • कारण: श्रम-अवशोषित सेवाओं में उत्पादकता बढ़ाना वृद्धि और समानता दोनों के कारणों से एक आवश्यक प्राथमिकता बन गई है। चूँकि अधिकांश नौकरियाँ सेवा क्षेत्र से संबंधित होंगी, इसलिए इन नौकरियों को आय वृद्धि का समर्थन करने के लिए पर्याप्त उत्पादक होना चाहिए।
  • कार्रवाई का पालन: पहले से ही ‘सेवाओं के लिए औद्योगिक नीतियों’ के बारे में अभ्यास की एक नींव मौजूद है, जिस पर भविष्य के प्रयास आधारित हो सकते हैं।
  • चुनौतियाँ: पहेली यह है कि श्रम अवशोषित सेवाओं में उत्पादकता कैसे बढ़ाई जाए, इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं है।
    • हालाँकि कुछ सेवाएँ, जैसे बैंकिंग, इन्फोटेक और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) उत्पादकता की दृष्टि से गतिशील एवं व्यापार योग्य हैं, लेकिन वे उन्हीं कारणों से श्रम अवशोषित नहीं कर पाएंगी (कौशल-प्रधान सेवाएँ) जिस कारण से विनिर्माण नहीं कर पाते हैं। 
    • चुनौती यह है कि खुदरा, देखभाल और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक सेवाओं जैसी श्रम अवशोषित सेवाओं में उत्पादकता बढ़ाई जाए, जिसमें सीमित सफलता मिली है, क्योंकि ऐसी सेवाएँ कभी भी उत्पादक विकास नीतियों का स्पष्ट लक्ष्य नहीं रही हैं।

भारत में सेवा क्षेत्र

सेवा क्षेत्र स्वास्थ्य सेवा से लेकर वित्त तक सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करता है, जो लोगों के जीवन में मूल्य जोड़ता है और राष्ट्र की समग्र संपदा में योगदान देता है।

  • संक्षेप में: सेवा क्षेत्र को तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector) के नाम से भी जाना जाता है।
    • यह अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्रों में से एक है, अन्य दो प्राथमिक क्षेत्र (जिसमें कृषि, वानिकी, खनन और मत्स्यपालन शामिल हैं) और द्वितीयक क्षेत्र (जिसमें विनिर्माण एवं निर्माण शामिल हैं) हैं।

  • इसमें शामिल हैं: भारत का सेवा क्षेत्र विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को कवर करता है जैसे- व्यापार, होटल और रेस्तराँ, परिवहन, भंडारण और संचार, वित्तपोषण, बीमा, रियल एस्टेट, व्यावसायिक सेवाएँ, समुदाय, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाएँ और निर्माण से जुड़ी सेवाएँ।
  • विकास एवं प्रगति: 1990 के दशक के सुधार भारत में सेवा क्षेत्र के विस्तार से जुड़े रहे हैं।
    • 1980 के दशक के मध्य में सेवा क्षेत्र का विस्तार होना शुरू हुआ, लेकिन 1990 के दशक में इसमें तेजी आई, जब भारत ने भुगतान संतुलन के गंभीर मुद्दे के जवाब में आर्थिक सुधारों की एक शृंखला शुरू की।
  • क्षेत्राधिकार
    • संघ सूची: दूरसंचार, डाक, प्रसारण, वित्तीय सेवाएँ (बीमा और बैंकिंग सहित), राष्ट्रीय राजमार्ग, खनन सेवाएँ।
    • राज्य सूची: स्वास्थ्य सेवा और संबंधित सेवाएँ, रियल एस्टेट सेवाएँ, खुदरा व्यापार, कृषि, शिकार और वानिकी से संबंधित सेवाएँ।
    • समवर्ती सूची: पेशेवर सेवाएँ, शिक्षा, मुद्रण और प्रकाशन, विद्युत।
  • योगदान: भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 50% से अधिक है। 
    • सेवा क्षेत्र 2022 में 5-7% वार्षिक वृद्धि के साथ सबसे अधिक रोजगार सृजनकर्ता के रूप में उभरा है।
    • अग्रिम अनुमानों के अनुसार वित्त वर्ष 24 (अप्रैल-सितंबर) में कुल सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added- GVA) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 57% थी।
    • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI)  प्रवाह में सेवा श्रेणी पहले स्थान पर रही।
    • भारत का सेवा निर्यात 163.94 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि आयात 88.89 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा (अप्रैल-सितंबर 2023-24)। वर्ष 2023-24 (अप्रैल-सितंबर) के लिए सेवा व्यापार अधिशेष 75.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।

  • भविष्य की संभावनाएँ
    • आगामी क्षेत्रों से भारत में सेवा क्षेत्र के तीव्र विस्तार में योगदान मिलने की उम्मीद है:
    • वर्ष 2025 तक, स्वास्थ्य सेवा उद्योग के 372 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2025 तक, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • वर्ष 2023 के अंत तक, भारत के IT और व्यावसायिक सेवा क्षेत्र के 8% की वृद्धि के साथ 14.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2035 तक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से भारत की वार्षिक वृद्धि दर में 1.3% की वृद्धि होने की उम्मीद है।

सेवा क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम

सेवा क्षेत्र में वृद्धि हासिल करने के लिए भारत द्वारा निम्नलिखित पहल की गई हैं:

  • सेवाओं में चैंपियन क्षेत्रों के लिए कार्य योजना: 12 पहचाने गए चैंपियन सेवा क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana- PMJDY): 9 नवंबर, 2022 तक PMJDY योजना के तहत खोले गए बैंक खातों की संख्या 47.39 करोड़ तक पहुँच गई और जन धन बैंक खातों में कुल जमा राशि 1.76 लाख करोड़ रुपये (21.59 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हो गई।

  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-linked Incentive- PLI) योजना: अक्टूबर 2021 में, सरकार ने भारत में दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक PLI योजना शुरू की।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप (Mahatma Gandhi National Fellowship- MGNF): अक्टूबर 2021 में, सरकार ने छात्रों को सशक्त बनाने और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए MGNF के दूसरे चरण की शुरुआत की। 
  • पीएम आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (PM Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission): इसे अगले चार से पाँच वर्षों में पूरे भारत में महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क को मजबूत करने के लिए अक्टूबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
  • 100% एफडीआई: बीमा कंपनियों के लिए FDI सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी गई है और बीमा मध्यवर्ती कंपनियों के लिए 100% कर दी गई है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana- PMKVY) का तीसरा चरण: इसे नए युग और कोविड से संबंधित कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जनवरी 2021 में लॉन्च किया गया था।
  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (National Digital Health Mission- NDHM): इसे वर्ष 2020 में प्रत्येक भारतीय को एक अद्वितीय स्वास्थ्य आईडी प्रदान करने और देश में सभी के लिए इसे आसानी से सुलभ बनाकर स्वास्थ्य सेवा उद्योग में क्रांति लाने के लिए लॉन्च किया गया था।
    • अगले 10 वर्षों में, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य ब्लूप्रिंट (National Digital Health Blueprint) भारत में स्वास्थ्य सेवा उद्योग के लिए 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का वृद्धिशील आर्थिक मूल्य प्राप्त कर सकता है। 
  • राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन (National Broadband Mission): भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक सभी गाँवों में ब्रॉडबैंड की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन शुरू किया है।
  • IGNITE कार्यक्रम: इसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए दिसंबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
    • ‘IGnITE’ का लक्ष्य जर्मन डुअल वोकेशनल एजुकेशनल ट्रेनिंग (Dual Vocational Educational Training- DVET) मॉडल के आधार पर उच्च प्रशिक्षित तकनीशियनों को तैयार करना है। वर्ष 2024 तक, इस कार्यक्रम का लक्ष्य लगभग 40,000 कर्मचारियों को कौशल प्रदान करना है। 
      • जर्मनी की दोहरी व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली को व्यावहारिक प्रशिक्षण और उद्योग एवं शैक्षिक संस्थानों के बीच घनिष्ठ सहयोग पर जोर देने के लिए दुनिया भर में अत्यधिक सम्मान प्राप्त है।
  • भारत के वाणिज्यिक सेवा निर्यात को बढ़ाने, वैश्विक सेवा बाजार में हिस्सेदारी को 3.3% से बढ़ाने तथा सकल घरेलू उत्पाद में कई गुना वृद्धि करने के लिए सरकार इस दिशा में भी महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही है।
  • पीएम गति शक्ति: मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना के लिए राष्ट्रीय मास्टर प्लान।
  • भारतमाला परियोजना (Bharatmala Project): पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी में सुधार करना।
  • स्टार्ट-अप इंडिया (Start-up India): भारत में स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करना।

आगे की राह 

विकासशील देशों में सबसे अधिक रोजगार सृजित करने वाली सेवाओं में उत्पादक रोजगार के विस्तार हेतु चार रणनीतियाँ इस प्रकार हैं:

  • बड़ी एवं उत्पादक कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करना 
    • विस्तार को प्रोत्साहित करना: बड़ी, उत्पादक फर्मों को सीधे या स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से रोजगार का विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • लक्षित फर्म: बड़े खुदरा विक्रेताओं, राइड-शेयरिंग सेवाओं जैसे प्लेटफॉर्म या यहाँ तक कि विनिर्माण निर्यातकों (सेवा प्रदाताओं के साथ अपस्ट्रीम लिंकेज बनाने की क्षमता के साथ) को शामिल करना।
  • लघु उद्यमों पर ध्यान देना
    • क्षमताओं में वृद्धि: अगली रणनीति में छोटे उद्यमों (जो अधिकांश विकासशील देशों में फर्मों का बड़ा हिस्सा हैं) पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है और इसका उद्देश्य विशिष्ट सार्वजनिक इनपुट के प्रावधान के माध्यम से उनकी उत्पादक क्षमताओं को बढ़ाना है।
      • ये इनपुट प्रबंधन प्रशिक्षण, ऋण या अनुदान, अनुकूलित श्रमिक कौशल, विशिष्ट बुनियादी ढाँचे या प्रौद्योगिकी सहायता हो सकते हैं।
    • आवश्यकता आधारित नीति दृष्टिकोण: सूक्ष्म उद्यमों और स्व-स्वामित्व वाली कंपनियों से लेकर मध्यम आकार की कंपनियों तक, ऐसी फर्मों की विविधता को देखते हुए, इस क्षेत्र में नीतियों के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो उनकी अलग-अलग आवश्यकताओं को अहमियत दे सके।
      • इसके अलावा, इसमें शामिल संख्याओं को देखते हुए, नीतियों में अक्सर सबसे अधिक आशाजनक फर्मों के बीच चयन के लिए एक उपयुक्त तंत्र की भी आवश्यकता होती है, क्योंकि अधिकांश के गतिशील और सफल होने की संभावना नहीं होती है।
  • डिजिटल उपकरणों और नई प्रौद्योगिकियों के प्रावधान पर ध्यान केंद्रित करना 
    • कम-कुशल श्रमिकों की सहायता करना: श्रमिकों या फर्मों को सीधे डिजिटल उपकरण या अन्य प्रकार की नई प्रौद्योगिकियों के प्रावधान पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो कम-कुशल श्रमिकों की सहायता करते हैं।
    • कार्य सीमा का विस्तार करना: इसका उद्देश्य कम शिक्षित श्रमिकों को पारंपरिक रूप से अधिक कुशल पेशेवरों के लिए आरक्षित (कुछ) कार्य करने में सक्षम बनाना और उनके द्वारा किए जा सकने वाले कार्यों की सीमा को बढ़ाना है।
  • मानव संसाधन का पुन: स्वरूपण
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण: यह रणनीति कम शिक्षित श्रमिकों पर भी ध्यान केंद्रित करती है और व्यावसायिक प्रशिक्षण को ‘रैप-अराउंड’ सेवाओं के साथ जोड़ती है, जो नौकरी चाहने वालों के लिए उनकी रोजगार क्षमता, प्रतिधारण और अंततः पदोन्नति को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त सहायता कार्यक्रमों की एक शृंखला है।
    • नियोक्ता सहयोग: प्रोजेक्ट क्वेस्ट (Project Quest), एक अमेरिकी आधारित पहल, और अन्य समान क्षेत्रीय कार्यबल विकास योजनाओं के बाद तैयार किए गए ये प्रशिक्षण कार्यक्रम आम तौर पर नियोक्ताओं के साथ मिलकर कार्य करते हैं, ताकि उनकी जरूरतों को समझा जा सके और रोजगार की संभावना को अधिकतम करने के लिए उनके मानव-संसाधन प्रथाओं को नया रूप दिया जा सके।

निष्कर्ष

विनिर्माण क्षेत्र में ऑटोमेशन के बढ़ने के साथ, जबकि जॉब विस्थापन एक गंभीर चिंता का विषय है, सेवा-उन्मुख विकास रणनीति में वास्तविक सफलता के लिए अधिक महत्त्वाकांक्षा, निरंतर प्रयोग और बहुत व्यापक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की आवश्यकता होगी।

वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की ओर भारत का कदम और सेवा क्षेत्र की भूमिका

  • भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और इसकी क्षमताएँ वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने की भारत की क्षमता का संकेत देती हैं।
  • अर्थव्यवस्था की मौजूदा संरचना और उभरती गतिशीलता हमें कृषि और संबद्ध गतिविधियों से 1 ट्रिलियन डॉलर, विनिर्माण से 1 ट्रिलियन और सेवाओं से 3 ट्रिलियन डॉलर हासिल करने का लक्ष्य प्रदान करती है।

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