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शत्रु एजेंट अध्यादेश

Lokesh Pal June 27, 2024 02:51 160 0

संदर्भ

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (DGP) ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की सहायता करने वालों पर जाँच एजेंसियों द्वारा शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 (Enemy Agents Ordinance, 2005) के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए। 

  • यह कानून गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम [Unlawful Activities (Prevention) Act- UAPA)] से अधिक कठोर है और इसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है। 

जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश की पृष्ठभूमि

  • उत्पत्ति: इसे पहली बार वर्ष 1917 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डोगरा महाराजा द्वारा लागू किया गया था और इसे ‘अध्यादेश’ कहा गया क्योंकि डोगरा शासन के दौरान बनाए गए कानूनों को ‘अध्यादेश’ कहा जाता था।
  • वर्ष 1947 में विभाजन के बाद: अध्यादेश को तत्कालीन राज्य में कानून के रूप में शामिल किया गया और इसमें संशोधन भी किया गया।
  • शत्रु एजेंट अध्यादेश 2005: इसे जम्मू और कश्मीर संविधान अधिनियम 1996 की धारा 5 के तहत प्रख्यापित किया गया था।
  • वर्ष 2019 में: जब संविधान के अनुच्छेद-370 को निरस्त किया गया, तो जम्मू-कश्मीर के कानूनी ढाँचे में भी कई बदलाव हुए।
    • जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में राज्य के उन कानूनों को सूचीबद्ध किया गया था, जो जारी रहेंगे जबकि कई अन्य को निरस्त कर दिया गया और उनके स्थान पर भारतीय कानून लागू कर दिए गए।
    • उदाहरण के लिए, शत्रु एजेंट अध्यादेश और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम जैसे सुरक्षा कानून तो बने रहे, लेकिन रणबीर दंड संहिता को भारतीय दंड संहिता से प्रतिस्थापित कर दिया गया।

जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश के मुख्य प्रावधान

  • अध्यादेश के तहत मुकदमे: शत्रु एजेंट अध्यादेश के तहत मुकदमे का संचालन एक विशेष न्यायाधीश द्वारा किया जाता है, जिसे ‘सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से’ नियुक्त किया जाता है।
    • अध्यादेश के तहत, अभियुक्त अपने बचाव के लिए तब तक वकील नहीं रख सकता जब तक कि न्यायालय की अनुमति न हो।
  • फैसले के खिलाफ अपील: फैसले के खिलाफ अपील का कोई प्रावधान नहीं है।
    • विशेष न्यायाधीश के निर्णय की समीक्षा केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से (सरकार द्वारा) चुने गए व्यक्ति द्वारा की जा सकती है और उस व्यक्ति का निर्णय अंतिम होगा।
  • अध्यादेश पर रोक: अध्यादेश इसके तहत सुनवाई किए गए मामले के किसी भी प्रकटीकरण या प्रकाशन पर भी रोक लगाता है।
    • कोई भी व्यक्ति जो सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी कार्यवाही के संबंध में या इस अध्यादेश के तहत किसी व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही के संबंध में कोई जानकारी प्रकट अथवा प्रकाशित करेगा, उसे दो वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकेगा।

शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 में परिभाषित शब्द

  • ‘शत्रु’ (Enemy): इसका तात्पर्य किसी भी ऐसे व्यक्ति से है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में कानून द्वारा स्थापित सरकार को ध्वस्त करने के लिए बाहर से आए हमलावरों द्वारा हाल ही में किए गए अभियान में भाग ले रहा है या सहायता कर रहा है।
  • शत्रु एजेंट (Enemy Agent): इसका अर्थ है ऐसा व्यक्ति, जो शत्रु सशस्त्र बल के सदस्य के रूप में कार्य नहीं करता है तथा जो शत्रु द्वारा नियोजित है या उसके लिए कार्य करता है अथवा उससे प्राप्त निर्देशों पर कार्य करता है।
  • शत्रु की सहायता करने पर जुर्माना (Penalty for aiding the enemy): अध्यादेश के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को दुश्मन का एजेंट माना जाएगा या जो दुश्मन की सहायता करने, भारतीय सैन्य अथवा हवाई अभियानों में बाधा डालने, जीवन को खतरे में डालने या आगजनी करने की साजिश रचेगा, उसे मृत्युदंड, आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक के कठोर कारावास के साथ-साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

शत्रु एजेंट अध्यादेश से जुड़ी चुनौतियाँ

  • मौलिक अधिकारों में कटौती: इसके प्रावधानों से किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है।

भारत का संविधान गिरफ्तार होने पर व्यक्तियों को निम्नलिखित मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है:

  • अनुच्छेद-22 
    • व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों से अवगत कराया जाना चाहिए।
    • गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • वकील से परामर्श करने का अधिकार।
  • निष्पक्ष, न्यायसंगत और शीघ्र सुनवाई का अधिकार अनुच्छेद-14 और 21 के तहत प्रदान किया गया है, जैसा कि हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (Hussainara Khatoon v. State of Bihar) के मामले में निर्धारित किया गया है।
  • अनुच्छेद-39A के तहत निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार दिया गया है।

    • यह संविधान के समानता के अधिकार (अनुच्छेद-14), स्वतंत्र भाषण (अनुच्छेद-19) और जीवन के अधिकार (अनुच्छेद-21) का उल्लंघन है।
  • नागरिक स्वतंत्रता पर प्रभाव: UAPA नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकता है, जिसमें निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार भी शामिल है।
    • उदाहरण के लिए, भीमा कोरेगाँव में अंतर-जातीय हिंसा के बाद पाँच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर रोमिला थापर बनाम भारत संघ मामले में (Romila Thapar v. Union of India case), उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य अटकलों के आधार पर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं कर सकता है। 
  • निर्दोष साबित होने तक दोषी: न्यायिक प्रक्रिया के अंत में जब तक अभियुक्त को दोषी साबित नहीं कर दिया जाता, तब तक उसे निर्दोष माना जाना अधिकांश आपराधिक न्याय प्रणालियों का आधार है।
    • शत्रु एजेंट अध्यादेश 2005 व्यक्तियों से यह अधिकार छीन लेता है, क्योंकि किसी मुकदमे या न्यायिक जाँच के अभाव में भी कानून किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने की अनुमति देता है।
  • इकबालिया बयान की स्वीकार्यता: अधिनियम पुलिस अधिकारियों के समक्ष किए गए इकबालिया बयान को कुछ परिस्थितियों में स्वीकार्य होने की अनुमति देता है, जिससे जबरदस्ती इकबालिया बयान लिया जा सकता है और निष्पक्षता तथा उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों को कमजोर किया जा सकता है।

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