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Lokesh Pal
June 28, 2024 01:35
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हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने नेरूर सत्गुरु सदाशिव ब्रह्मेन्द्राल (Nerur Sathguru Sadasiva Brahmendral) के जीव समाधि दिवस (Jeeva Samathi day) की पूर्व संध्या पर उनके अंतिम विश्राम स्थल पर “अन्नदानम्” (निःशुल्क भोजन प्रदान करना) और “अंगप्रदक्षिणम्” (परिक्रमा) को पुनः शुरू करने की अनुमति दी।
‘अंगप्रदक्षिणम्’ शब्द दो संस्कृत शब्दों ‘अंग’ अर्थात् शरीर और ‘प्रदक्षिणम्’ अर्थात परिक्रमा से मिलकर बना है।
मदुरै पीठ ने कहा कि एक व्यक्ति को अंगप्रदक्षिणम् करने का पूरा अधिकार है, जो एक अनुष्ठान है जिसमें व्यक्ति भोजन करने के बाद अन्य भक्तों द्वारा छोड़े गए केले के पत्तों पर लोट लगाता है।
मदुरै पीठ के हालिया फैसले की विशेषज्ञों द्वारा निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है:
भारत में मानवीय गरिमा बनाम धार्मिक आचरण का मुद्दा नया नहीं है। कुछ समय पहले के उदाहरण इस प्रकार हैं:
मानव गरिमा और धार्मिक प्रथाओं का मुद्दा विभिन्न नैतिक दुविधाओं को जन्म देता है, जिनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है:
प्रथागत और धार्मिक प्रथाओं में मानव गरिमा को ठेस पहुँचाने के मुद्दे का सामना करने के लिए निम्नलिखित कार्यवाहियाँ सुझाई गई हैं:
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