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आपातकाल: भारतीय लोकतंत्र का अंधकार युग

Lokesh Pal July 01, 2024 04:40 165 0

संदर्भ

इस वर्ष आपातकाल की 50वीं वर्षगाँठ है, जो वर्ष 1975 से वर्ष 1977 तक 21 महीने की असाधारण अवधि है, जिसमें नागरिक स्वतंत्रता का निलंबन, प्रेस की स्वतंत्रता में बाधा, सामूहिक गिरफ्तारियाँ, चुनावों का रद्द होना और डिक्री द्वारा शासन (Rule by Decree) देखा गया।

आपातकाल (Emergency)

  • परिभाषा: राजनीतिक प्रणालियों के दायरे में आपातकालीन प्रावधान वे विशेष विशेषाधिकार हैं, जिनका प्रयोग सरकार या राष्ट्रपति असाधारण परिस्थितियों में कर सकते हैं, जैसे- युद्ध, उग्रवाद, आतंकवादी हमले या राष्ट्र के लिए अन्य गंभीर खतरे, पर्यावरणीय आपदाएँ, गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाएँ, महामारी या इसी तरह की स्थितियाँ, जो बड़ी संख्या में जीवन को खतरे में डालती हैं।
  • भारतीय संविधान में आपातकाल के प्रकार: संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल निर्धारित किए गए हैं-
    • राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency): राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जा सकती है।
    • संवैधानिक आपातकाल/राष्ट्रपति शासन (Constitutional Emergency/President’s Rule): यदि कोई राज्य, केंद्र के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है या संवैधानिक मशीनरी की कोई विफलता होती है, तो ऐसे राज्य पर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
      • हालाँकि, संविधान इस स्थिति के लिए ‘आपातकाल’ शब्द का उपयोग नहीं करता है।
    • वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency): भारतीय संविधान का अनुच्छेद-360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल घोषित करने का अधिकार देता है यदि वह संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसके कारण भारत या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या ऋण को खतरा है।
  • आपातकाल के घटक (Components of Emergency) 
    • मौलिक अधिकारों में कटौती: अनुच्छेद-19(1)(A) के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित मौलिक अधिकारों में कटौती की गई, जिसके कारण प्रेस पर सेंसरशिप लागू हो गई।
    • नागरिक स्वतंत्रता का निलंबन।
    • प्रेस की स्वतंत्रता का हनन।
    • बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ, चुनावों को रद्द करना और डिक्री द्वारा शासन (Rule by Decree)।

भारत में मार्शल लॉ और आपातकाल के बीच अंतर (Difference between Martial Law and Emergency in India)

  • मार्शल लॉ तब लगाया जाता है, जब सिविल अधिकारी नियंत्रण खो देते हैं और सैन्य अधिकारी शासन सँभाल लेते हैं। इसमें आम तौर पर सामान्य कानून को निलंबित कर दिया जाता है और सैन्य न्यायालय, सिविल न्यायालयों की जगह ले सकते हैं।
    • भारतीय संविधान में मार्शल लॉ के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है। 
    • यह वास्तव में कानून एवं व्यवस्था के बिगड़ने से उत्पन्न स्थिति है।
    • मार्शल लॉ लागू करने से सभी नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता को निलंबित किया जा सकता है, साथ ही सैन्य अधिकार नागरिक नियंत्रण पर प्रभावी हो सकता है।
  • युद्ध, बाह्य आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह या वित्तीय संकट की स्थिति में विशिष्ट संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद-352, 356 और अनुच्छेद-360) के तहत आपातकाल की घोषणा की जाती है, जिससे केंद्र सरकार को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
    • आपातकाल के प्रावधानों को प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और आवश्यकताओं के साथ संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
    • आपातकाल के दौरान कुछ मौलिक अधिकार (जैसे- अनुच्छेद 19) निलंबित किए जा सकते हैं, लेकिन संविधान और नागरिक सरकार पर कोई प्रभाव नही पड़ता है।

  • आपातकाल लागू करने के निहितार्थ
    • संघीय ढाँचे में परिवर्तन: आपातकाल की घोषणा संघीय ढाँचे को वास्तविक रूप से एकात्मक ढाँचे में बदल देती है।
    • राज्य सरकारों पर केंद्रीय नियंत्रण: इस अवधि के दौरान संघ, राज्य सरकारों को कोई भी निर्देश देने का अधिकार प्राप्त करता है, जिससे उन्हें निलंबित किए बिना केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में लाया जा सकता है।
    • लोकसभा की अवधि का विस्तार: संसद एक बार में लोकसभा के पाँच वर्ष के कार्यकाल को आगे एक वर्ष के लिए और बढ़ा सकती है।
    • राज्य विषयों पर विधायी शक्तियाँ: संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
    • संघ की कार्यकारी शक्तियों का विस्तार: संसद संघ की कार्यकारी शक्तियों को राज्यों तक बढ़ा सकती है और राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
    • वित्तीय प्रावधानों में संशोधन: राष्ट्रपति, संसदीय अनुमोदन के साथ, संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के आवंटन के बारे में संवैधानिक प्रावधानों को संशोधित कर सकते हैं।
  • आपातकाल लगाने के पीछे कानूनी और संवैधानिक मंजूरी (Legal and Constitutional sanction behind the imposition of Emergency) 
    • अनुच्छेद-352 के प्रावधान
      • संविधान के अनुच्छेद-352 के तहत, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सलाह पर आपातकाल की उद्घोषणा जारी कर सकते हैं।
      • यदि भारत या देश के किसी भी हिस्से की सुरक्षा को ‘युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह’ से खतरा हो तो आपातकाल घोषित किया जा सकता है।
    • वर्ष 1975 की आपातकालीन घोषणा का आधार
      • वर्ष 1975 में, सरकार ने सशस्त्र विद्रोह के बजाय आपातकाल की घोषणा करने के लिए ‘आंतरिक अशांति’ को आधार बनाया।
      • सरकार के प्रेस नोट में संकेत दिया गया कि कुछ व्यक्ति पुलिस और सशस्त्र बलों को अपने कर्तव्यों का पालन न करने के लिए उकसा रहे थे।
      • यह जयप्रकाश नारायण द्वारा पुलिस को दिए गए उस आह्वान का स्पष्ट संदर्भ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे ऐसे आदेशों का पालन न करें जिन्हें ‘अनैतिक’ माना गया हो।
  • ‘आंतरिक अशांति’ के कारण आपातकाल का अनोखा उदाहरण
    • वर्ष 1975 में आपातकाल की घोषणा एकमात्र उदाहरण थी, जहाँ इसे ‘आंतरिक अशांति’ के कारण घोषित किया गया था।
    • आपातकाल की पहले की घोषणाएँ: वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान आपातकाल, और वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान आपातकाल।
      • दोनों ही मामलों में युद्ध के आधार पर घोषणा की गई थी।

राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा का निरसन (Revocation of Proclamation Of National Emergency)

  • राष्ट्रपति द्वारा रद्द किया गया: आपातकाल की उद्घोषणा को राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय उद्घोषणा द्वारा रद्द कर किया जा सकता है। 
    • ऐसी उद्घोषणा के लिए संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है। 
  • लोकसभा प्रस्ताव पारित : इसके अलावा, यदि लोकसभा इसकी निरंतरता को अस्वीकार करने वाला प्रस्ताव पारित करती है, तो राष्ट्रपति को एक उद्घोषणा को रद्द करना होगा। यह सुरक्षा उपाय वर्ष 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा पेश किया गया था।
    • वर्ष 1978 का 44वाँ संशोधन अधिनियम: जहाँ लोकसभा के कुल सदस्यों का दसवाँ हिस्सा अध्यक्ष को (या यदि सदन सत्र में नहीं है तो राष्ट्रपति को) लिखित सूचना देता है, वहाँ उद्घोषणा को जारी रखने को अस्वीकार करने वाले प्रस्ताव पर विचार करने के उद्देश्य से 14 दिनों के भीतर सदन की एक विशेष बैठक आयोजित की जानी चाहिए
    • आवश्यकताएँ: अस्वीकृति का प्रस्ताव केवल लोकसभा द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है तथा इसे केवल साधारण बहुमत द्वारा ही अपनाया जाना चाहिए।

भारत में आपातकाल के बारे में

  • परिचय: वर्ष 1975 से 1977 तक की 21 महीने की अवधि को आपातकाल कहा जाता है, जिसके दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के आंतरिक खतरों का हवाला देते हुए संविधान में विशेष प्रावधानों का इस्तेमाल करके पूरे देश में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी थी।
  • घोषणा: राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-352 के तहत प्रचलित ‘आंतरिक अशांति’ के कारण आधिकारिक तौर पर घोषित किया गया।
  • आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक प्रभावी रहा।

आपातकालीन अवधि के दौरान कानूनी परिवर्तन (Legal Changes during the Emergency Period)

  • संसदीय कानून (Parliamentary Legislation) 
    • संविधान (38वाँ संशोधन) अधिनियम: संसद द्वारा पारित, इस अधिनियम ने आपातकाल की न्यायिक समीक्षा पर रोक लगा दी, न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित कर दिया।
    • संविधान (39वाँ संशोधन) अधिनियम: प्रधानमंत्री के चुनाव को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने से बचाने के लिए अधिनियमित किया गया, जिससे कार्यकारी प्राधिकार को मजबूत किया गया।
    • संविधान (42वाँ संशोधन) अधिनियम: एक व्यापक संशोधन प्रस्तुत किया गया।
      •  चुनाव याचिकाओं पर न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को हटा दिया गया।
      • राज्य के विषयों पर संघ के अधिकार का विस्तार किया गया, जिससे शासन का केंद्रीकरण हुआ।
      • न्यायिक समीक्षा के बिना संविधान में संशोधन करने के लिए संसद को अप्रतिबंधित शक्ति प्रदान की गई।
      • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों को लागू करने वाले कानूनों को न्यायिक जाँच से संरक्षित किया गया।
  • ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला, 1976 (ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla, 1976)
    • बिना मुकदमे के हिरासत को कानूनी बना दिया गया: एक ऐतिहासिक मामले में, उच्चतम न्यायालय ने पाँच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले में निर्णय दिया कि आपातकाल के दौरान बिना मुकदमे के हिरासत को कानूनी बना दिया गया था।
    • न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना एकमात्र असहमत न्यायाधीश थे, जिन्होंने बहुमत के फैसले का विरोध किया और नागरिक स्वतंत्रता को कायम रखा।

आपातकाल से हुई क्षति को दूर करने के लिए जनता सरकार द्वारा किए गए प्रयास

  • 42वाँ संशोधन अधिनियम निरस्तीकरण: जनता सरकार ने विवादास्पद 42वें संशोधन अधिनियम 1976 के कई प्रावधानों को पलट दिया।
  • आपातकालीन प्रावधान: इसने आपातकाल के प्रावधान को समाप्त तो नहीं किया, लेकिन भविष्य में इसे लागू करना बेहद मुश्किल बना दिया।
  • ‘आंतरिक अशांति’ के आधार को हटाना: आपातकाल के बाद जनता सरकार द्वारा अधिनियमित संविधान (44वाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 ने ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर आपातकाल की घोषणा करने के प्रावधान को हटा दिया। इसका मतलब है कि अब युद्ध और बाहरी आक्रमण के अलावा केवल सशस्त्र विद्रोह ही एक आधार होगा।
    • हालाँकि, 44वें संशोधन ने 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में शामिल किए गए शब्दों ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ को अपरिवर्तित छोड़ दिया।
  • न्यायिक समीक्षा का पुनर्स्थापन: न्यायपालिका की निगरानी भूमिका को पुनर्स्थापित करते हुए आपातकाल की घोषणा की न्यायिक समीक्षा को पुनर्स्थापित किया गया।
  • संसदीय जवाबदेही (Parliamentary Accountability)
    • यह अनिवार्य किया गया कि आपातकाल की प्रत्येक घोषणा को एक माह के भीतर संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाना चाहिए।
    • जब तक इसे दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत) से अनुमोदित नहीं किया जाता है तो यह घोषणा निरस्त मानी जाएगी।
  • शाह आयोग (Shah Commision) 
    • उद्देश्य: शाह आयोग का गठन जनता सरकार द्वारा आपातकाल लागू करने और इसके प्रतिकूल प्रभावों पर रिपोर्ट देने के लिए किया गया था।

निष्कर्ष 

  • आयोग ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि आपातकाल लगाने हेतु लिए गए निर्णय एकतरफा थे और इससे नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

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