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कोरियाई युद्ध और आज की भू-राजनीतिक परिदृश्य पर इसका प्रभाव

Lokesh Pal July 02, 2024 04:09 153 0

संदर्भ

कोरियाई युद्ध, जो 25 जून, 1950 को शुरू हुआ, 20वीं सदी के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि इसने पूर्वी एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया एवं वैश्विक मामलों को प्रभावित किया।

  • विश्लेषकों का मानना है कि ‘युद्ध कभी भी औपचारिक रूप से समाप्त नहीं हुआ है’ इसे कभी-कभी ‘फॉरगॉटेन वार’ (Forgotten War) भी कहा जाता है।
  • यह शांति संधि के बजाय 27 जुलाई, 1953 को एक युद्धविराम समझौते के साथ बंद हुआ किंतु उत्तर एवं दक्षिण कोरिया तकनीकी रूप से अभी भी युद्धरत स्थिति में बने हुए हैं।

कोरियाई शासकों का इतिहास

कोरियाई युद्ध शुरू होने से पहले इस संपूर्ण कोरिया क्षेत्र पर कई राजवंशों ने शासन किया एवं कुछ ने पूरे क्षेत्र को एकीकृत करने का प्रयास किया:-

  • 7वीं शताब्दी में सिल्ला राजवंश (Silla dynasty)।
  • कोरिया वर्ष 1910 से 1945 तक जापानी औपनिवेशिक शासन के अधीन रहा। 
    • इसका अंत द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के साथ हुआ। 
    • विभाजन: हालाँकि, कोरिया की जापान से स्वतंत्रता के तुरंत बाद इसका विभाजन हुआ।
      • मित्र देशों की सेनाएँ (जिसमें अमेरिका, USSR, UK, फ्रांस एवं अन्य शामिल हैं) कोरिया को दो क्षेत्रों में अस्थायी रूप से विभाजित करने पर सहमत हुईं: 
      • उत्तर का क्षेत्र सोवियत संघ द्वारा नियंत्रित। 
      • दक्षिण का क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा नियंत्रित।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद

  • उत्तर कोरियाई क्षेत्र में: सोवियत संघ ने पूर्व गुरिल्ला सेनानी एवं सोवियत प्रशिक्षित नेता किम इल-सुंग (Kim Il-sung) के नेतृत्व में एक कम्युनिस्ट शासन स्थापित करने में मदद की। 
  • दक्षिण कोरियाई क्षेत्र में: संयुक्त राज्य अमेरिका ने सिनगमैन री (Syngman Rhee) के नेतृत्व में एक पूँजीवादी राज्य के निर्माण का समर्थन किया, जो एक कम्युनिस्ट विरोधी नेता थे, जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में निर्वासन में कई वर्ष बिताए थे।
  • 38वीं समानांतर रेखा: अमेरिकी अधिकारियों ने निर्णय लिया कि 38वीं समानांतर रेखा को विभाजन रेखा माना जाएगा।
  • वर्ष 1948 तक: दो अलग-अलग सरकारें आधिकारिक तौर पर स्थापित हो गईं: 
    • डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (Democratic People’s Republic of Korea) (उत्तर कोरिया)।
    • कोरिया गणराज्य (Republic of Korea) (दक्षिण कोरिया)।
  • दोनों ने पूरे प्रायद्वीप पर वैधता का दावा किया।

कोरियाई युद्ध के कारण

  • कोरिया का विभाजन: द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कोरिया के विभाजन ने क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा दिया, जिसमें USSR ने उत्तर का समर्थन किया एवं अमेरिका ने दक्षिण का समर्थन किया।
  • वैचारिक मतभेद: उत्तर कोरिया के साम्यवाद और दक्षिण कोरिया के पूँजीवाद के बीच तीव्र विरोधाभास ने क्षेत्रीय तनाव को जन्म दिया।
  • भू-राजनीतिक हित: पूर्वी एशिया में कोरियाई प्रायद्वीप के रणनीतिक महत्त्व ने वैश्विक शक्तियों के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व की महत्त्वाकांक्षा को जगाया।
  • छद्म युद्ध: इस युद्ध ने दीर्घकालिक शीतयुद्ध की एक पृष्ठभूमि के रूप में कार्य किया, जो अमेरिका एवं सोवियत संघ रूस (USSR) के बीच वैचारिक लड़ाई को दर्शाता है।

कोरियाई युद्ध की घटनाएँ

  • उत्तर कोरियाई आक्रमण (1950): उत्तर कोरिया द्वारा सोवियत समर्थित आक्रमण का उद्देश्य प्रायद्वीप को एक साम्यवादी सरकार के तहत एकजुट करना था।
  • संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप: संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले अमेरिका के नेतृत्व में एक बहुराष्ट्रीय शक्ति ने दक्षिण कोरिया का समर्थन किया।
  • चीनी हस्तक्षेप (1950): इस युद्ध में चीन के प्रवेश ने संघर्ष को बढ़ा दिया एवं परिणामस्वरूप लंबे समय तक गतिरोध बना रहा।
  • वर्ष 1953 का युद्धविराम समझौता (Armistice Agreement): इस युद्ध की समाप्ति एक युद्धविराम के साथ हुई, जिसने 38वीं समानांतर रेखा के साथ एक विसैन्यीकृत क्षेत्र स्थापित किया; हालाँकि, कोई औपचारिक शांति संधि स्थापित नहीं की गई थी।

कोरियाई युद्ध की विरासत

  • विभाजन का स्थायित्व: समय के साथ, शीतयुद्ध की प्रतिद्वंद्विता एवं अधिकार करने वाली शक्तियों के प्रभाव ने विभाजन को स्थायी बना दिया। 
    • वर्तमान में सीमा पर झड़पों से बचने के लिए 38वीं समानांतर रेखा के साथ एक बफर जोन स्थापित किया गया है, जिसे डिमिलिटराइज्ड जोन (Demilitarised Zone- DMZ) कहा जाता है। 
    • गतिरोध: युद्ध के गतिरोध ने 38वीं समानांतर रेखा के रूप में विभाजन को प्रभावी बना दिया, जिससे कोरियाई प्रायद्वीप पर भयावह यथास्थिति कायम हो गई।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा: इसका क्षेत्रीय सुरक्षा पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है, जिससे कोरियाई प्रायद्वीप के सैन्यीकरण एवं दोनों कोरियाई क्षेत्र के बीच तथा उत्तर कोरिया एवं पश्चिमी शक्तियों के बीच तनाव में वृद्धि हुई है।
  • शीतयुद्ध की गतिशीलता: इस संघर्ष ने विशेष रूप से अमेरिका एवं चीन के बीच शीतयुद्ध के तनाव को रेखांकित किया तथा इस क्षेत्र में हथियारों की होड़ को बढ़ावा दिया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका एवं दक्षिण कोरिया के बीच गठबंधन मजबूत हुआ: संयुक्त राज्य अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में अमेरिकी सैनिकों को तैनात करके एक स्थायी सैन्य उपस्थिति स्थापित की एवं किसी भी बाहरी आक्रमण के खिलाफ दक्षिण कोरिया की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
    • आर्थिक विकास: इसने आर्थिक सहायता भी प्रदान की जो दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास की आधारशिला रही है।
  • चीन का प्रवेश: युद्ध में चीन के प्रवेश ने साम्यवादी शासनों का समर्थन करने की उसकी प्रतिबद्धता एवं क्षेत्र में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं का सामना करने के उद्देश्य को प्रदर्शित किया। 
    • चीन, उत्तर कोरिया का प्रमुख आर्थिक एवं कूटनीतिक सहयोगी है। 
    • संयुक्त राष्ट्र में उत्तर कोरिया के लिए चीन का समर्थन एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद आर्थिक सहायता प्रदान करने में उसकी भूमिका उनके संबंधों की स्थायी प्रकृति को उजागर करती है।

कोरियाई युद्ध में भारत की क्या भूमिका है?

  • कूटनीति: भारत सभी प्रमुख हितधारकों (अमेरिका, USSR एवं चीन) के साथ कोरियाई प्रायद्वीप में शांति वार्ता में सक्रिय रूप से शामिल था।
    • वर्ष 1952 में: कोरिया पर भारतीय प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में सर्वसम्मत गैर-सोवियत समर्थन से अपनाया गया।
    • वर्ष 1953 में: भारत ने माना कि सोवियत संघ के बिना कोई भी समझौता असफल होगा
  • भारत आम सहमति बनाने में सफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप ‘युद्धविराम समझौता’ हुआ।
  • तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (Neutral Nations Repatriation Commission- NNRC): युद्धविराम समझौते की अनुवर्ती कार्रवाइयों में से एक तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (NNRC) की स्थापना की गई थी।
    • NNRC को दोनों पक्षों के 20,000 से अधिक युद्धबंदियों पर फैसला करना था। 
    • भारत को NNRC का अध्यक्ष चुना गया।
    • NNRC का कार्यकाल वर्ष 1954 की शुरुआत में समाप्त हो गया एवं कठिन स्थिरीकरण अभियानों को सफलतापूर्वक निष्पादित करने के लिए भारतीय सेनाओं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा की गई।
  • युद्ध बंदियों को शरण: अपने कार्य के अंत में, NNRC के पास 80 से अधिक युद्ध बंदी बचे थे, जो दोनों में से किसी भी कोरियाई क्षेत्र में नहीं जाना चाहते थे।
  • भारत ने 60वीं पैराशूट फील्ड एम्बुलेंस (60th Parachute Field Ambulance) भी भेजी, जिसने वर्ष 1950 एवं 1954 के बीच 2,00,000 से अधिक लोगों को चिकित्सा सहायता उपलब्ध करने का उत्कृष्ट कार्य किया।

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