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Lokesh Pal
July 03, 2024 03:18
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एम. के. रंजीतसिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय, जलवायु परिवर्तन के बारे में अधिक व्यवस्थित ढंग से सोचने एवं शासन लागू करने का एक अवसर प्रदान करता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने IUCN की रेड लिस्ट में शामिल दो गंभीर रूप से संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों [ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard- GIB) और लेसर फ्लोरिकन (Lesser Florican)] के संरक्षण के संबंध में एम. के. रंजीत सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में अपना निर्णय दिया।
इसमें ऐतिहासिक रूप से कहा गया है कि लोगों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-21 द्वारा मान्यता प्राप्त जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त रहने का अधिकार है।
यह निर्णय जलवायु संबंधी मुकदमेबाजी के लिए द्वार खोलता है, नागरिकों को सरकार से यह माँग करने का अधिकार देता है कि इस अधिकार की रक्षा की जाए। लेकिन, यह निम्नलिखित चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है:
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने के लिए निम्नलिखित दो दृष्टिकोण अपनाए जा सकते हैं:
ये महत्त्वपूर्ण लाभ हैं और भारत के लिए जलवायु कानून पर विचार करने के अच्छे कारण हैं। लेकिन साथ ही, यह भी जरूरी है कि भारतीय जलवायु कानून दूसरे देशों की नकल न करके भारतीय संदर्भ के अनुरूप हो अधिनियमित किए जाने चाहिए।
इन सभी क्षेत्रों को कवर करने वाला एकल, सर्वव्यापी कानून बनाना व्यवहार्य नहीं है, विशेष रूप से मौजूदा कानूनी ढाँचे के मद्देनजर, जो इनमें से अधिकांश मुद्दों पर कानून बनाता है।
निम्नलिखित बिंदु भारत के लिए अनुकूलित जलवायु कानून के लिए सिद्धांतों का एक सेट प्रदान करते हैं, जो रंजीत सिंह निर्णय के वादे को आगे बढ़ाने और पूरा करने के लिए एक आधार प्रदान करता है।
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News Source: The Hindu
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