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न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी गारंटी की आवश्यकता

Lokesh Pal July 03, 2024 05:00 130 0

संदर्भ:

14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में हाल ही में की गई वृद्धि ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की माँग कर रहे आंदोनकारी किसानों और किसानों की आय दोगुनी करने के सरकारी वादों की उम्मीद रखने वालों को निराश किया है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), कृषि मूल्य आयोग (APC), एमएस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एमएसपी को वैध बनाने के संभावित निहितार्थ, किसानों की चिंताओं को दूर करने का दृष्टिकोण आदि।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी गारंटी की आवश्यकता :

  • कीमतों में घोषित वृद्धि को इसलिए खारिज किया जा रहा है क्योंकि इसमें विभिन्न कृषि इनपुटों की कीमतों में आई मुद्रास्फीति को ध्यान में नहीं रखा गया है, जिसका किसानों को सामना करना पड़ रहा है।
  • एमएसपी में नाममात्र की वृद्धि किसानों की उचित मुआवजा प्राप्त करने की क्षमता को सीमित कर देती है, क्योंकि यह इनपुट लागत में वृद्धि को आनुपातिक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती है।
  • धान के एमएसपी में 2,183 रुपये प्रति क्विंटल से 2,300 रुपये की वृद्धि, जो कि मात्र 117 रुपये का अंतर है, लगभग 5 प्रतिशत की नगण्य वृद्धि को दर्शाता है।
  • यह लाखों धान उत्पादकों के लिए अनुचित प्रतीत होता है, क्योंकि पिछले वर्ष उनकी इनपुट लागत में 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई थी। 
  • एमएसपी की घोषणा किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में उठाया गया एक कदम न होकर एक नियमित मौसमी मूल्य संशोधन अधिक प्रतीत होता है, जैसा कि अगस्त 2017 में सरकार की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी।
  • किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में हुई प्रगति का कोई प्रभावी मापन नहीं है, तथा सरकार एमएसपी को वैध बनाने में सतर्कता बरत रही है, क्योंकि उसे डर है कि इससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है तथा कृषि निर्यात कम प्रतिस्पर्धी हो सकता है।
  • एमएसपी व्यवस्था की स्थापना 1965 में कृषि मूल्य आयोग (APC) की स्थापना के साथ बाजार हस्तक्षेप के रूप में की गई थी ताकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सके और किसानों को बाजार मूल्य में तेज गिरावट से बचाया जा सके।
  • बाजार समर्थकों की आपत्तियों के बावजूद, एमएसपी मुक्त बाजार के सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं है; इसके बजाय, यह बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को न्यूनतम करने में मदद करता है।
  • किसानों के लिए वर्तमान पारिश्रमिक एमएस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के अनुरूप नहीं है, जिसमें उत्पादन की कुल इनपुट लागत में 50 प्रतिशत (सी2 फार्मूला) शामिल करते हुए लागत गणना का सुझाव दिया गया था।
  • इस सूत्र (सी2 फार्मूला) में भुगतान की गई लागत, पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य, स्वामित्व वाली पूंजीगत परिसंपत्तियों पर ब्याज, पट्टे पर दी गई भूमि का किराया तथा स्वामित्व वाली भूमि का किराया मूल्य शामिल होता है।
  • 2018 के बजट में सरकार द्वारा एमएसपी प्लस 50 प्रतिशत की घोषणा किसानों के प्रति ईमानदार प्रतिबद्धता की बजाय एक नाटकीय प्रतिबद्धता प्रतीत हुई।
  • बढ़ती उत्पादन लागत, मिट्टी की उर्वरता की हानि के कारण स्थिर पैदावार, भूजल स्तर में गिरावट और सरकार के कॉर्पोरेट-केंद्रित दृष्टिकोण के कारण भारत में खेती लगातार लाभहीन होती जा रही है।
  • जब उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि और किसानों द्वारा प्राप्त की जाने वाली राशि के बीच चयन करना होता है, तो सरकारें कृषि-उत्पाद प्रसंस्करण में लगे लाभ कमाने वाले निगमों के हितों को प्राथमिकता देती हैं, जो पहले से ही अपने उत्पादों पर वैध एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) का लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
  • जबकि बिचौलिए (Intermediaries) अक्सर कृषि और अंतिम उपभोक्ता की कीमतों के बीच के अंतर के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का दावा करते हैं अतः स्पष्ट है कि कॉर्पोरेट-केंद्रित दृष्टिकोण ने किसानों की आय को काफी प्रभावित किया है।

निजी नियोक्ताओं की गतिविधियाँ  एवं सरकार के दायित्व:

  • यदि किसानों को अपनी उपज एमएसपी से नीचे बेचने के लिए मजबूर किया जाता है तो उन्हें सीधा मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए।
  • सरकार को एमएसपी और किसानों को मिलने वाले मूल्य के बीच के अंतर की प्रतिपूर्ति करनी चाहिए।
  • अंत में, एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी पेश की जानी चाहिए और इसे उचित और लाभकारी मूल्य के रूप में लागू किया जाना चाहिए, जिसमें श्रम लागत, व्यय, उर्वरक, सिंचाई और पट्टे पर दी गई भूमि के मामले में कार्यशील पूँजी और भूमि किराये पर दिए गए ब्याज को शामिल किया जाना चाहिए।
  • किसान या उसके परिवार के किसी अन्य व्यक्ति, जो कृषि कार्य में योगदान देता है, के श्रम की लागत को भी उत्पादन लागत में शामिल किया जाना चाहिए।
  • अतः देश को एक समग्र राष्ट्रीय कृषि नीति की आवश्यकता है, जिसमें प्रत्येक अनाज के साथ-साथ सब्जियों और फलों की एफआरपी पर प्रभावी और कुशल खरीद नीति शामिल हो।
  • पाँच ‘C’ – जल और मृदा संरक्षण, जलवायु परिवर्तन प्रतिरोध, खेती, उपभोग और वाणिज्यिक व्यवहार्यता (Conservation of water and soil, Climate change resistance, Cultivation, Consumption, and Commercial viability) देश भर के किसानों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष:

कृषि अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए बढ़ती लागत को ध्यान में रखते हुए, किसानों को उचित मुआवजा मुहैया करने हेतु कानूनी एमएसपी गारंटी आवश्यक है, और इसमें टिकाऊ कृषि के लिए व्यापक एफआरपी को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

 प्रश्न : भारत के कृषि क्षेत्र, खाद्य मुद्रास्फीति और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिबद्धताओं पर एमएसपी को वैध बनाने के संभावित प्रभावों की आलोचनात्मक जांच करें। कृषि अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए किसानों की चिंताओं को दूर करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण का सुझाव दें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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