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अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना

Lokesh Pal July 05, 2024 04:16 143 0

संदर्भ

हाल ही में सरकार ने अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कुल परियोजना लागत के 36 प्रतिशत को कवर करने वाली व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (Viability Gap Funding- VGF) को मंजूरी दी है। 

  • केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) और केंद्रीय विद्युत मंत्रालय संपूर्ण विद्युत निकासी अवसंरचना की लागत और निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। 

राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति, 2015 (National Offshore Wind Energy Policy 2015)

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य देश में अपतटीय पवन ऊर्जा के विस्तार को प्रोत्साहित करना है।
    • इस नीति ने अपतटीय पवन ऊर्जा विकास के लिए एक नियामक संरचना स्थापित की, जो समुद्र तट से 200 समुद्री मील तक फैली हुई है और देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone- EEZ) को शामिल करती है। 
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)

भारत में पवन ऊर्जा

  • भारत की स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता दुनिया में चौथी सबसे बड़ी है।
  • पवन ऊर्जा क्षमता मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में फैली हुई है।
  • वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत की कुल स्थापित उपयोगिता विद्युत उत्पादन क्षमता में पवन ऊर्जा का हिस्सा लगभग 10% है, जो कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 4.43% है।
  • देश की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता में गुजरात की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा (लगभग 24%) है और उसके बाद तमिलनाडु (लगभग 23%) का स्थान है।

बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निजी भागीदारी के लिए वित्तीय सहायता योजना (व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण योजना- Viability Gap Funding Scheme) 

  • व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण योजना (Viability Gap Funding Scheme)
    • यह PPP के माध्यम से शुरू की गई आर्थिक रूप से वांछनीय लेकिन व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य अवसंरचना परियोजनाओं को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के उद्देश्य से, एकमुश्त या स्थगित अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
    • प्रशासन: आर्थिक मामलों का विभाग, वित्त मंत्रालय
    • उद्देश्य: यह वित्तपोषण उन क्षेत्रों में निजी निवेश को आकर्षित करता है, जहाँ परियोजनाएँ अन्यथा उच्च प्रारंभिक लागत या लंबी निर्माण अवधि के कारण वित्तीय रूप से अव्यावहारिक होती हैं। इन दोनों ही तथ्यों की प्रामाणिकता पवन ऊर्जा प्रतिष्ठानों में देखी जा सकती है।
  • व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण से अपतटीय पवन ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा
    • VGF योजना वर्ष 2015 में अधिसूचित राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति के कार्यान्वयन की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसका उद्देश्य भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में मौजूद विशाल अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता का दोहन करना है।
    • लाभ: सरकार से मिलने वाले VGF समर्थन से अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं से प्राप्त विद्युत की लागत कम हो जाएगी तथा उन्हें डिस्कॉम्स (DISCOMs) द्वारा क्रय के लिए व्यवहार्य बनाया जा सकेगा।

केस स्टडी: चीन ने भी यही किया

  • चीन, जो वर्ष 2010 में विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी की कमी के कारण अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाएँ स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहा था, ने भी इसी तरह का कदम उठाया था।
  • वर्ष 2017 में: इसने डेवलपर्स को परियोजना लागत के 48 प्रतिशत तक की सब्सिडी के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान की, जिससे वर्ष 2014 और 2018 के बीच लगभग 4.1 गीगावाट की क्षमता वृद्धि हुई।
  • वर्तमान में: चीन 30 प्रतिशत वैश्विक हिस्सेदारी के साथ इस क्षेत्र में अग्रणी है।

इस पहल के प्रत्याशित लाभ

प्रत्याशित लाभ निम्नलिखित हैं:

  • स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy): 1 गीगावाट अपतटीय पवन परियोजनाओं से प्रतिवर्ष लगभग 3.72 बिलियन यूनिट नवीकरणीय विद्युत उत्पन्न होने की उम्मीद है।
    • स्वच्छ ऊर्जा के इस महत्त्वपूर्ण उत्पादन से प्रति वर्ष 2.98 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी आएगी, जो 25 वर्ष की अवधि तक कायम रहेगी।
  • भारत की महासागर आधारित आर्थिक गतिविधियाँ (ब्लू इकॉनोमी): इससे अपतटीय पवन ऊर्जा के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित होने का अनुमान है, जिससे 4,500 अरब रुपये के अनुमानित निवेश से प्रारंभिक 37 गीगावाट का विकास संभव हो सकेगा।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: उन्नत बंदरगाह सुविधाएँ भारी और बड़े आकार के उपकरणों के कुशल परिवहन और स्थापना को सुनिश्चित करेंगी, जो अपतटीय परियोजनाओं के सुचारू निष्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण है। 
    • इसे बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा समर्थित किया जाएगा।
  • आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा (Economic growth and energy security): इस बुनियादी ढाँचे के विकास से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलने, निवेश आकर्षित होने और स्वदेशी विनिर्माण क्षमताओं के विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे आर्थिक विकास और ऊर्जा सुरक्षा में योगदान मिलेगा।
  • भूमि अधिग्रहण में कोई बाधा नहीं:  यह भूमि की अपर्याप्तता के मुद्दे को हल करता है और भौतिक बाधाओं से अप्रभावित रहता है, जो भूमि पर पवन प्रवाह को बाधित कर सकते हैं, जिससे पवन ऊर्जा क्षेत्र के सामने वर्तमान में आने वाली कुछ चुनौतियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

अपतटीय पवनें (Offshore Wind)

  • यह समुद्र में बहने वाली हवाओं से प्राप्त ऊर्जा है, जिसे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है और तटवर्ती विद्युत नेटवर्क में आपूर्ति की जाती है।
  • MNRE ने वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने का लक्ष्य रखा है।
  • भारत में संभावनाएँ: भारत के पास तीन तरफ से जल से घिरा लगभग 7,600 किलोमीटर का समुद्र तट है और इसमें अपतटीय पवन ऊर्जा के दोहन की अच्छी संभावनाएँ हैं।

तटीय (Onshore) की अपेक्षा अपतटीय (Offshore) को प्राथमिकता क्यों दी जाए?

  • तटीय पवन ऊर्जा: यह वह ऊर्जा है, जो भूमि पर स्थित पवन टर्बाइनों द्वारा उत्पन्न की जाती है, जो हवा की प्राकृतिक गति से संचालित होती है।
  • कम अवरोध: समुद्र में किसी भी अवरोध की अनुपस्थिति में पवन ऊर्जा की बेहतर गुणवत्ता और विद्युत ऊर्जा में इसके रूपांतरण की सुविधा मिलती है।
  • आकार में बड़ा: अपतटीय पवन टर्बाइन का आकार (प्रति टर्बाइन 5 से 10 मेगावाट की रेंज में) 2-3 मेगावाट के तटीय पवन टर्बाइन के आकार से बहुत बड़ा होता है।
  • उच्चतर दक्षता: अपतटीय टर्बाइन के लिए प्रति मेगावाट लागत अधिक है, क्योंकि समुद्री वातावरण में मजबूत संरचनाओं और नींव की आवश्यकता होती है, पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के बाद इन टर्बाइन की उच्च दक्षता के कारण वांछनीय टैरिफ प्राप्त किया जा सकता है।

प्रत्याशित चुनौतियाँ और आगे की राह

प्रत्याशित चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं

  • वित्तीय चुनौतियाँ (Financial Challenges): क्या VGF राशि स्वतंत्र विद्युत उत्पादकों (Independent Power  Producers- IPPs) के लिए राज्य डिस्कॉम्स को प्रतिस्पर्द्धी दरों पर अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पन्न करने और बेचने के लिए पर्याप्त होगी। 
    • विद्युत क्रय समझौता (Power Purchase Agreement- PPA) टैरिफ एक महत्त्वपूर्ण कारक है: कार्यान्वयन में अतिरिक्त सहायता के बिना वर्तमान दरें लागत को पूरी तरह से कवर नहीं कर पाएँगी। 
    • वित्तीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए: अपतटीय पवन टर्बाइन जनरेटर (Offshore Wind Turbine Generators- WTGs), सबमरीन केबल और नींव पर सीमा शुल्क माफ करने पर विचार किया जा रहा है, क्योंकि भारत में इन घटकों की आपूर्ति शृंखला वर्तमान में अच्छी तरह से स्थापित नहीं है। 
  • विनियामक चुनौतियाँ: सहायता उपायों को डिस्कॉम से विद्युत खरीद के जोखिमों को हल करने में प्रत्यक्ष होना चाहिए और अपतटीय पवन पर विभिन्न पर्यावरणीय मानकों को परिभाषित करना चाहिए, जो भारत के पवन ऊर्जा मूल्य शृंखला विकास को मजबूत करेगा।
  • आवागमन प्रतिबंधित करना: अपतटीय गतिविधियों का विकास भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र विनियामक नियमों के दायरे में आता है, जो अन्वेषण और निष्कर्षण को नियंत्रित करते हैं। 
    • वर्तमान नियम आवागमन को प्रतिबंधित करते हैं, जिससे निर्माण एवं स्थापनाओं की लागत-प्रभावशीलता बढ़ सकती है। जैसे कि बड़े टर्बाइन, ऑफ-शोर प्लेटफॉर्म आदि के निर्माण के लिए विशेष समुद्री जहाज।
  • संस्थागत क्षमता निर्माण: राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान को मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
  • विभागों के बीच समन्वय: गुजरात और तमिलनाडु में कार्यालय समुद्री, मत्स्यपालन और पर्यावरण विभागों से जुड़े होंगे, ताकि प्रत्येक परियोजना के EIA, विकास और अन्य वैधानिक प्रक्रिया को बिना किसी भीड़-भाड़ आधारित बाधाओं के सुचारू रूप से मार्गदर्शन, प्रक्रिया, समन्वय और अनुमोदन में मदद मिल सके।

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