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यूनेस्को ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2050 तक पृथ्वी की 90% भूमि का निम्नीकरण हो सकता है

Lokesh Pal July 05, 2024 04:35 176 0

संदर्भ

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) ने एक सख्त चेतावनी जारी की, जिसमें कहा गया कि वर्ष 2050 तक पृथ्वी की 90 प्रतिशत भूमि की सतह का निम्नीकरण हो सकता है।

  • मृदा पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन: मोरक्को के अगाडिर (Agadir) में आयोजित मृदा पर यूनेस्को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बेहतर मृदा संरक्षण के लिए एक कार्य योजना विकसित करना एवं शिक्षा तथा प्रशिक्षण के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना शामिल था।

भूमि निम्नीकरण की वर्तमान स्थिति

  • मरुस्थलीकरण के विश्व एटलस (World Atlas of Desertification) के अनुसार: 75% मृदा का पहले से ही निम्नीकरण हो चुका है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव वैश्विक स्तर पर 3.2 बिलियन लोगों पर पड़ रहा है।
  • अधिक निम्नीकरण: यदि वर्तमान प्रथाएँ अनियंत्रित जारी रहीं, तो निम्नीकरण की दर वर्ष 2050 तक 90% मृदा को प्रभावित कर सकती है।

भारत ने निम्नीकरण के कारण 30 मिलियन हेक्टेयर से अधिक उपजाऊ भूमि खो दी है:

  • वर्ष 2015-2019 से: यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) के आँकड़ों के अनुसार, भारत की कुल दर्ज की गई भूमि में से 30.51 मिलियन हेक्टेयर भूमि का निम्नीकरण हो गया था। 
    • इसका मतलब है कि वर्ष 2019 तक देश की 9.45 प्रतिशत भूमि का निम्नीकरण हो चुका था। 
    • वर्ष 2015 में यह 4.42 फीसदी थी।
  • इसी अवधि के दौरान देश की 18.39 प्रतिशत आबादी भूमि निम्नीकरण से संबंधित थी। 
  • वर्ष 2015-2018 (रिपोर्टिंग चक्र वर्ष) तक देश के 854.4 मिलियन लोग सूखे की चपेट में थे।

भूमि निम्नीकरण एवं मरुस्थलीकरण के प्रभाव

  • कृषि उत्पादकता का नुकसान: खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) का अनुमान है कि मृदा के निम्नीकरण से वैश्विक फसल की पैदावार लगभग 33% कम हो जाती है, जिससे खाद्य की कमी तथा गरीबी में योगदान होता है।
  • वैश्विक खाद्य सुरक्षा: वैश्विक खाद्य सुरक्षा एवं दुनिया भर में कम-से-कम 3.2 बिलियन लोगों कल्याण से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) की उपलब्धि के लिए एक बड़ा खतरा उत्पन्न करता है।
  • स्वास्थ्य एवं पर्यावरण: यह जल की गुणवत्ता, ऊर्जा क्षेत्र, शहरी बुनियादी ढाँचे तथा पृथ्वी के परिदृश्य सहित पर्यावरण एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।  
    • उदाहरण के लिए, वायु एवं जल से विस्थापित मिट्टी के कणों से जुड़ी तलछट से ऑफ-साइट मृदा तथा जल प्रदूषण हो सकता है।
    • मृदा में जल का प्रवेश, भंडारण एवं निकासी, जिसके परिणामस्वरूप जल भराव तथा जल की कमी होती है। 
  • भूमि निम्नीकरण कुछ समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है: विशेष रूप से देशज लोगों एवं स्थानीय समुदायों, तथा उनके पारंपरिक ज्ञान एवं प्रबंधन प्रणालियों को नष्ट कर देता है।
    • इससे स्थान की भावना एवं भूमि से आध्यात्मिक संबंध की हानि भी होती है।
  • प्रवासन: मरुस्थलीकरण एवं भूमि निम्नीकरण के परिणामस्वरूप होने वाला प्रवासन जलवायु-प्रेरित प्रवासन, संघर्ष तथा हिंसा के साथ सहक्रियात्मक रूप से कार्य करता है, जिससे अगले कई दशकों में विस्थापन में तेजी से वृद्धि होगी।

भूमि क्षरण एवं मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए सरकारी उपाय

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana) का वाटरशेड विकास घटक (Watershed Development Component- WDC): यह अपने विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से भूमि के पुनर्स्थापन में योगदान देता है, जिसमें जल संचयन संरचनाओं का निर्माण, संरक्षण सिंचाई के तहत लाया गया क्षेत्र, वृक्षारोपण (वनीकरण / बागवानी आदि) के तहत लाया गया क्षेत्र शामिल है।
  • वर्ष 2030 तक भूमि निम्नीकरण तटस्थता की स्थिति: भारत वर्ष 2030 तक भूमि निम्नीकरण तटस्थता की स्थिति प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। 
    • राष्ट्रीय वनीकरण एवं पारिस्थितिकी विकास बोर्ड (National Afforestation & Eco Development Board- NAEB), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय लोगों की भागीदारी के माध्यम से नष्ट हुए वनों तथा आसपास के क्षेत्रों के पुनर्जनन के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना ‘राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम’ (National Afforestation Programme- NAP) लागू कर रहा है। 
  • मरुस्थलीकरण एवं भूमि निम्नीकरण एटलस: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (Space Applications Centre- SAC) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • भारत में अनुमानित भूमि निम्नीकरण एवं मरुस्थलीकरण: वर्ष 2018-19 में 97.84 मिलियन हेक्टेयर।
    • पुनर्स्थापना योजना में सहायता के लिए निम्नीकृत भूमि पर राज्य-वार जानकारी प्रदान करता है।
  • विजुअलाइजेशन के लिए ऑनलाइन पोर्टल: अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC), अहमदाबाद के सहयोग से विकसित किया गया।
    • निम्नीकृत भूमि क्षेत्रों एवं निम्नीकरण का कारण बनने वाली प्रक्रियाओं के दृश्य की अनुमति देता है।
  • ICFRE देहरादून में उत्कृष्टता केंद्र: भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (Indian Council for Forestry Research and Education- ICFRE), देहरादून में कल्पना की गई।
    • ज्ञान साझा करने एवं सर्वोत्तम प्रथाओं के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।

भूमि क्षरण पर UNESCO की वैश्विक पहल

  • विश्व मृदा स्वास्थ्य सूचकांक (World Soil Health Index
    • यह सूचकांक विभिन्न क्षेत्रों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों में मिट्टी की गुणवत्ता का आकलन तथा तुलना करने के लिए एक मानकीकृत उपाय होगा। 
  • यूनेस्को एक पायलट पहल शुरू करेगा: लगभग दस प्राकृतिक स्थलों में मृदा एवं परिदृश्य के स्थायी प्रबंधन के लिए, जिसे वह अपने बायोस्फीयर रिजर्व कार्यक्रम (Biosphere Reserves programme) के तहत संरक्षित करने में मदद करता है। 
    • लक्ष्य दुगना होगा।
    • इन साइटों पर लागू प्रबंधन विधियों की प्रभावशीलता का आकलन करना।
    • यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना कि इनमें से सर्वोत्तम तरीकों को दुनिया के अन्य क्षेत्रों में प्रभावी किया जा सके।

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