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भारत में चिकित्सा नैतिकता

Lokesh Pal July 06, 2024 03:12 161 0

संदर्भ

भारत में चिकित्सा नैतिकता (Medical Ethics) के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए जो प्राथमिक उपाय किए जाने चाहिए थे, वे कार्य नहीं कर रहे हैं। 

भारत में चिकित्सा नैतिकता के दुरुपयोग का अवलोकन (Overview of Abuse of Medical Ethics in India) 

  • 10 जनवरी, 2021 को रशीदा बी (भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ का प्रतिनिधित्व करते हुए), नवाब खान (भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा का प्रतिनिधित्व करते हुए), रचना ढींगरा (भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉरमेशन एंड एक्शन का प्रतिनिधित्व करते हुए) और नौशीन खान (डॉव कार्बाइड के खिलाफ बच्चों का प्रतिनिधित्व करते हुए) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को एक पत्र लिखा था। 
  • क्लिनिकल परीक्षणों पर आरोप: पत्र में, उन्होंने मध्य प्रदेश के भोपाल में पीपुल्स अस्पताल द्वारा भारत बायोटेक (Bharat Biotech) के कोवैक्सिन (एक कोविड-19 वैक्सीन) के नैदानिक ​​परीक्षण के संचालन में अनियमितताओं एवं नैतिक उल्लंघन का आरोप लगाया। 
  • नैतिकता दिशा-निर्देशों का उल्लंघन: पत्र में आगे नैतिक दिशा-निर्देशों के घोर उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, जिनमें शामिल हैं:
    • सूचित सहमति प्रक्रियाओं का उल्लंघन।
    • अध्ययन प्रतिभागियों में संवेदनशील आबादी का नामांकन।
    • प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्टिंग न करना। 
    • अध्ययन प्रतिभागियों की निगरानी और अनुवर्ती कार्रवाई का अभाव आदि।

चिकित्सा नैतिकता (Medical Ethics) के बारे में

चिकित्सा नैतिकता चिकित्सा में सदाचार का अनुशासित अध्ययन (Disciplined Study of Morality in Medicine) है, जिसका उद्देश्य चिकित्सा नैतिकता में सुधार करना है। 

  • प्राथमिक लक्ष्य: चिकित्सकों के अपने रोगियों के प्रति नैतिक दायित्वों की पहचान करके चिकित्सीय नैतिकता में सुधार लाना।

  • चिकित्सा नैतिकता के चार स्तंभ हैं:-
    • परोपकार (अच्छा कार्य करना)
    • अहितकर कार्य (किसी को नुकसान न पहुँचाना)
    • स्वायत्तता (रोगी को स्वतंत्र रूप से चुनने की स्वतंत्रता देना, जहाँ वे सक्षम हों)
    • न्याय (निष्पक्षता सुनिश्चित करना)
  • नैतिकता के स्रोत
    • लागू कानून
    • स्वशासन की राजनीतिक विरासत
    • विश्व धर्म
    • नृजातीय और सांस्कृतिक परंपराएँ
    • परिवार
    • व्यक्तिगत अनुभव
    • चिकित्सा की परंपराएँ एवं प्रथाएँ
  • नैतिक सिद्धांतों का अनुप्रयोग: नैतिक सिद्धांतों को इस बारे में निर्णय लेने के लिए तैयार किया गया है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए तथा ऐसे निर्णयों के आधार पर हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए।

धर्मनिरपेक्ष चिकित्सा नैतिकता (Secular Medical Ethics)

  • उद्भव (Emergence): यह शब्द अठारहवीं शताब्दी के यूरोपीय और अमेरिकी प्रबोधन काल के दौरान उभरा।
  • विशेषताएँ
    • पवित्र ग्रंथों के माध्यम से रहस्योद्घाटन का कोई संदर्भ नहीं।
    • तर्कपूर्ण प्रवचन, नैतिक विश्लेषण और तर्क पर आधारित।
    • धार्मिक मान्यताओं के प्रति आंतरिक रूप से शत्रुतापूर्ण नहीं।
  • प्रकृति
    • पारराष्ट्रीय, पारसांस्कृतिक, और पारधार्मिक।
    • मूलतः, वैश्विक चिकित्सा नैतिकता।

चिकित्सा आचार संहिता का अवलोकन

भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के अनुसार, सामान्यतः डॉक्टरों के प्रमुख कर्तव्य एवं जिम्मेदारियाँ नीचे दी गई हैं:- 

कर्तव्य

विवरण

1. अच्छी चिकित्सा पद्धति बनाए रखना

चिकित्सकों को मानव गरिमा का सम्मान करना चाहिए, कौशल में निरंतर सुधार करना चाहिए, ज्ञान साझा करना चाहिए, वैज्ञानिक तरीकों का पालन करना चाहिए, चिकित्सा समितियों में शामिल होना चाहिए और सतत् शिक्षा कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए।

2. दवाओं के जेनेरिक नामों का उपयोग

चिकित्सकों को जेनेरिक नामों से दवाएँ लिखनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका उपयोग तर्कसंगत हो।

3. रोगी की देखभाल में उच्चतम गुणवत्ता आश्वासन

चिकित्सकों को अयोग्य व्यक्तियों को इस पेशे में शामिल होने से रोकना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जहाँ पेशेवर कौशल की आवश्यकता हो, वहाँ केवल पंजीकृत परिचारक ही उनकी प्रैक्टिस में सहायता करें।

4. अनैतिक आचरण का खुलासा

एक चिकित्सक को बिना किसी भय या पक्षपात के, पेशे के सदस्यों की ओर से अक्षम या भ्रष्ट, बेईमान अथवा अनैतिक आचरण को उजागर करना चाहिए।

5. कानूनी प्रतिबंधों का उल्लंघन

चिकित्सकों को चिकित्सा कानूनों का पालन करना चाहिए, स्वच्छता नियमों को लागू करने में सहायता करनी चाहिए तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य संरक्षण के लिए विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी अधिनियमों और विनियमों का अनुपालन करना चाहिए।

चिकित्सा नैतिकता की आवश्यकता

चिकित्सा नैतिकता स्वास्थ्य सेवा में विभिन्न कारणों से आवश्यक है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि चिकित्सा पद्धति उच्च नैतिक मानकों का पालन करती है। चिकित्सा नैतिकता की आवश्यकता पर प्रकाश डालने वाले मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • उपकार और अहितकरता सुनिश्चित करना: चिकित्सा नैतिकता यह सुनिश्चित करती है कि ये मूल सिद्धांत चिकित्सा पद्धति का मार्गदर्शन करें, रोगी के कल्याण को बढ़ावा दें और हानि को रोकें।
    • उपकार (Beneficence): चिकित्सकों का नैतिक दायित्व है कि वे मरीजों के सर्वोत्तम हित में कार्य करें।
    • अहितकरता (Non-Maleficence): चिकित्सकों को मरीजों को नुकसान पहुँचाने से बचना चाहिए।
    • उदाहरण: एक चिकित्सक निर्धारित दवा के संभावित दुष्प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार करता है तथा प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं से बचने के लिए यथासंभव सुरक्षित विकल्प का चयन करता है।
  • रोगी की स्वायत्तता का सम्मान: चिकित्सा नैतिकता सूचित सहमति के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि मरीज अपने उपचार विकल्पों और संभावित जोखिमों एवं लाभों के बारे में पूरी तरह से अवगत हों।
    • उदाहरण: शल्य चिकित्सा प्रक्रिया से पहले, चिकित्सक रोगी को जोखिम, लाभ और विकल्पों के बारे में विस्तार से बताता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि वे इसे समझें और बिना किसी दबाव के ऑपरेशन के लिए सहमति दें।
  • न्याय सुनिश्चित करना: चिकित्सा नैतिकता स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और उपचार में असमानताओं को दूर करने में मदद करती है तथा चिकित्सा पद्धति में समानता एवं निष्पक्षता को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण: एक चिकित्सक सामुदायिक स्वास्थ्य क्लिनिक में कार्य करके कम आय वाले रोगियों की सहायता करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें बेहतर वित्तीय साधन वाले लोगों के समान ही गुणवत्तापूर्ण देखभाल मिले।
  • व्यावसायिक अखंडता को कायम रखना: चिकित्सा नैतिकता आचरण के उच्च मानकों को बनाए रखती है, पेशे की अखंडता की रक्षा करती है और सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण: यदि किसी डॉक्टर को पता चलता है कि उसका कोई सहकर्मी मरीज के रिकॉर्ड में हेराफेरी कर रहा है, तो वह पेशे के नैतिक मानकों को कायम रखते हुए, संबंधित अधिकारियों को इस कदाचार की रिपोर्ट करेगा।
  • नैतिक चरित्र के उच्च मानक को बढ़ावा देना: चिकित्सा नैतिकता उन मूल्यों को स्थापित करती है, जो चिकित्सकों के नैतिक चरित्र को बनाए रखते हैं तथा उन्हें ईमानदारी एवं जिम्मेदारी के साथ कार्य करने का मार्गदर्शन देते हैं।
    • उदाहरण: एक चिकित्सक वंचित आबादी को मुफ्त चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिए अपना समय स्वेच्छा से देता है तथा नैतिक सिद्धांतों एवं सामाजिक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है।

चिकित्सा क्षेत्र में शामिल नैतिक मुद्दे

चिकित्सा क्षेत्र में नैतिक मुद्दे बहुआयामी हैं और स्वास्थ्य सेवा अभ्यास के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं। नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिए इन मुद्दों को समझना महत्त्वपूर्ण है। यहाँ प्रमुख नैतिक चुनौतियाँ दी गई हैं:

  • नैतिकता दिशा-निर्देशों का उल्लंघन: संभावित चिकित्सीय एजेंटों का विकास अक्सर नैतिक दिशा-निर्देशों के व्यक्तिपरक और कभी-कभी वस्तुपरक उल्लंघन के कारण जटिल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में आचार संहिता संबंधी दिशा-निर्देशों के घोर उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
  • सूचित सहमति का उल्लंघन: हमारे देश में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि जब मरीजों को नैदानिक ​​अध्ययनों में नामांकित किया जाता है तो सूचित सहमति का ऐतिहासिक और बार-बार उल्लंघन होता है।
  • आचार समितियों के कामकाज का अभाव: अत्याचार न हो यह सुनिश्चित करने का कार्य संस्थागत नैतिकता समिति पर है। हालाँकि ऐसी समितियाँ कागजों एवं नियमों में मौजूद हैं, लेकिन उनका कार्य एवं प्रभावशीलता बहुत कम है।
    • उदाहरण के लिए, गायत्री सबरवाल एट. अल. द्वारा एक प्रकाशन (2022) ने क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री-इंडिया (Clinical Trials Registry India- CTRI) में पंजीकृत 1,359 चरण II या III के इंटरवेंशनल अध्ययनों का मूल्यांकन किया और हमारी नैतिकता समितियों के कार्य करने के तरीके में 30 से अधिक समस्याओं की पहचान की। 
      • इनमें बिना किसी नैतिकता समिति के नैदानिक ​​परीक्षण तथा कार्यात्मक नैतिकता समितियों की तुलना में अधिक साइटों वाले परीक्षण शामिल हैं।
    • इस विश्लेषण से यह बात सरल रूप से सामने आती है कि चिकित्सा नैतिकता के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए जो प्राथमिक उपाय किए जाने चाहिए थे, वे हमारे देश में कार्य नहीं कर रहे हैं।
  • गैर-दुर्भावनापूर्ण व्यवहार सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ: चिकित्सा नैतिकता में अहितकरता सुनिश्चित करने में उल्लेखनीय चुनौतियाँ हैं, जिनमें नुकसान से बचना, उपचार जोखिमों को संतुलित करना, चिकित्सा त्रुटियों को दूर करना और विकसित हो रही चिकित्सा पद्धतियों एवं प्रौद्योगिकियों के बीच रोगी सुरक्षा बनाए रखना शामिल है।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय औषधि नियामक, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने वैक्सीन के चरण III अध्ययन के लिए कैंडीडेट भर्ती के पूरा होने से पहले ही ‘क्लिनिकल ट्रायल मोड के तहत कोवैक्सिन के प्रतिबंधित उपयोग’ (Restricted Use of Covaxin under Clinical Trial Mode) के लिए वैक्सीन कैंडीडेट को मंजूरी दे दी थी।
      • ‘क्लिनिकल ट्रायल मोड के तहत कोवैक्सिन के प्रतिबंधित उपयोग’  एक ऐसा कथन एवं प्रक्रिया जिसका भारत के औषधि नियामक ढाँचे, औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम एवं इसके साथ आने वाले औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 2019 में कोई उल्लेख नहीं है।
  • मजबूत व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानूनों का अभाव: संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत, भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो उन लोगों को संरक्षण प्रदान करता हो, जो गलत कार्यों को सार्वजनिक रूप से उजागर करने के लिए बड़ा व्यक्तिगत जोखिम उठाते हैं।
    • मौजूदा कानून, जिसका दायरा शुरू में लोक सेवकों तक ही सीमित था, को वर्ष 2015 में और आसान कर दिया गया, जिससे यह एक अनुपयुक्त कानून बन गया।
  • अनुसंधान नैतिकता: जीवनरक्षक औषधियों के विकास में अक्सर रोगी के लिए जोखिम और उससे होने वाले संभावित लाभ के बीच संतुलन बनाना शामिल होता है।
    • अधिकतर मामलों में, सूचित निर्णय लेने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं होता है, जो प्रत्यक्ष नहीं होता है और इसके लिए विशेष ज्ञान एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। इसके लिए बेहतर सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रक्रिया में नैतिकता के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन न हो।
    • उदाहरण के लिए, ‘क्लिनिकल परीक्षण मोड में आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण’ (Emergency use authorization in clinical trial mode) जैसी बातें बनाना और इसे उचित ठहराने के लिए कड़ी मेहनत करना हमारे हाल के अतीत में चिकित्सा नैतिकता के घोर उल्लंघन के ज्वलंत उदाहरण हैं।
  • जीवन के अंत में देखभाल: इच्छामृत्यु और उपशामक देखभाल सहित असाध्य रूप से बीमार रोगियों के उपचार एवं देखभाल के बारे में निर्णय लेने का मुद्दा।
    • उदाहरण: विभिन्न न्यायक्षेत्रों में चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या की वैधता और नैतिकता पर बहस।
  • हितों का टकराव: चिकित्सा नैतिकता में हितों का टकराव वित्तीय या व्यक्तिगत हितों से उत्पन्न होता है, जो निष्पक्ष चिकित्सा निर्णय लेने को प्रभावित करते हैं, रोगी देखभाल और अनुसंधान अखंडता से समझौता करते हैं।
    • उदाहरण: स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ फार्मास्यूटिकल उद्योग के संबंध, नुस्खा पद्धतियों को प्रभावित कर रहे हैं।
  • असमान पहुँच: स्वास्थ्य सेवाओं तक उचित पहुँच का अभाव तथा सामाजिक-आर्थिक स्थिति, नस्ल या भूगोल के आधार पर स्वास्थ्य परिणामों में असमानताएँ।
    • उदाहरण: हाशिए पर या वंचित आबादी को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में नैतिक चुनौतियाँ।

भारत में चिकित्सा पद्धति को विनियमित करने वाले प्रमुख कानून

  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940
  • फार्मेसी अधिनियम, 1948
  • मादक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985
  • गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971
  • मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994
  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
  • प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण परीक्षण अधिनियम, 1994
  • औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954
  • विकलांग व्यक्ति (समान अवसर एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995
  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन एवं हैंडलिंग) नियम, 1998

आगे की राह 

चिकित्सा क्षेत्र में नैतिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक व्यापक और सक्रिय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। निम्नलिखित रणनीतियाँ स्वास्थ्य सेवा में नैतिक प्रथाओं को बढ़ाने के लिए आगे का राह बताती हैं:

  • नैतिकता संबंधी दिशा-निर्देशों और प्रवर्तन को मजबूत बनाना: नैदानिक ​​परीक्षणों में नैतिक दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए सख्त प्रवर्तन तंत्र लागू करना।
    • अध्ययनों की प्रभावी निगरानी के लिए स्पष्ट अधिदेश और संसाधनों के साथ संस्थागत नैतिकता समितियों को मजबूत बनाना।
  • पारदर्शिता और सूचित सहमति को बढ़ावा देना: विशेष रूप से कमजोर आबादी के लिए संपूर्ण एवं पारदर्शी सूचित सहमति प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं एवं शोधकर्ताओं को नैतिक आचरण और रोगी अधिकारों के महत्त्व पर शिक्षित करना।
  • औषधि विनियामक ढाँचे को अद्यतन करना: खामियों और अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए विनियामक ढाँचे को संशोधित करना तथा ‘क्लिनिकल परीक्षण मोड के तहत प्रतिबंधित उपयोग’ (Restricted Use under Clinical Trial Mode) जैसे शब्दों पर स्पष्टता सुनिश्चित करना। 
    • औषधि अनुमोदन प्रक्रियाओं में विश्वसनीयता एवं भरोसा बढ़ाने के लिए विनियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना।
  • अनुसंधान नैतिकता के लिए समर्थन: नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिए नैदानिक ​​अनुसंधान में शामिल पेशेवरों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में निवेश करना।
    • दवा विकास में जोखिम मूल्यांकन और लाभ विश्लेषण के लिए व्यापक दिशा-निर्देश स्थापित करना।
  • विधायी सुधार: प्रतिशोध के भय के बिना नैतिक उल्लंघनों की रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के लिए मजबूत मुखबिर संरक्षण कानूनों की सिफारिश करना।
    • सार्वजनिक सेवकों के अलावा स्वास्थ्य सेवा और अनुसंधान से जुड़े सभी व्यक्तियों को भी सुरक्षा प्रदान की जाए।
  • आचार समिति की कार्यकुशलता (Ethics Committee Efficiency) बढ़ाना: आचार समिति की कार्यप्रणाली में पहचानी गई कमियों, जैसे अपर्याप्त निरीक्षण और अपर्याप्त संसाधनों को दूर करना।
    • स्थिरता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए सभी नैतिक समितियों में प्रथाओं और प्रक्रियाओं को मानकीकृत करना।
  • नैतिक अनुसंधान आचरण (Ethical Research Conduct): अनुसंधान निष्कर्षों और डेटा रिपोर्टिंग में सत्यनिष्ठा के महत्त्व पर जोर देना।
    • शिक्षा, मार्गदर्शन और सहकर्मी समीक्षा के माध्यम से शोधकर्ताओं के बीच नैतिक आचरण की संस्कृति को बढ़ावा देना।
  • जीवन के अंतिम चरण में देखभाल में नैतिक निर्णय लेना: इच्छामृत्यु और उपशामक देखभाल सहित जीवन के अंतिम चरण की देखभाल के निर्णयों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने हेतु सार्वजनिक संवाद एवं विधायी समीक्षा में भाग लेना।
    • सुनिश्चित करना कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को जीवन के अंतिम परिदृश्यों में नैतिक विचारों एवं रोगी की स्वायत्तता पर प्रशिक्षण मिले।
  • हितों के टकराव को कम करना: स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और शोधकर्ताओं के बीच हितों के टकराव को प्रबंधित करने के लिए सख्त नीतियाँ लागू करना।
    • स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और दवा कंपनियों के बीच वित्तीय संबंधों में पारदर्शिता बढ़ाना।
  • स्वास्थ्य देखभाल समानता पहल (Healthcare Equity Initiatives): सामाजिक-आर्थिक स्थिति, नस्ल और भूगोल के आधार पर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में असमानताओं को कम करने के लिए रणनीति विकसित करना।
    • ऐसी नीतियों की सिफारिश करना, जो हाशिए पर पड़े और वंचित लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों को प्राथमिकता देना।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद का कथन “मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है” चिकित्सा नैतिकता में मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य कर सकता है, जो दयालु, निस्वार्थ देखभाल के कर्तव्य पर प्रकाश डालता है, तथा स्वास्थ्य सेवा में मानवीय गरिमा और नैतिक जिम्मेदारी के प्रति सम्मान पर बल देता है।

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