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चरम गरीबी का मापन

Lokesh Pal July 06, 2024 04:35 184 0

संदर्भ

हाल ही में ‘राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क’ (National Indicator Framework- NIF), 2024 में, भारत सरकार ने घोषणा की कि वह ‘चरम गरीबी’ को मापने के लिए एक राष्ट्रीय संकेतक तैयार कर रही है।

गरीबी (Poverty) के बारे में

  • परिचय: विश्व बैंक के अनुसार, ‘गरीबी का तात्पर्य कल्याण (भलाई) में कमी से है और इसमें कई आयाम शामिल हैं। इसमें कम आय एवं गरिमा के साथ जीवित रहने के लिए आवश्यक बुनियादी वस्तुओं एवं सेवाओं को प्राप्त करने में असमर्थता शामिल है। 
    • गरीबी में स्वास्थ्य एवं शिक्षा का निम्न स्तर, स्वच्छ जल तथा स्वच्छता की खराब पहुँच, अपर्याप्त शारीरिक सुरक्षा, कम प्रतिनिधित्व एवं किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपर्याप्त क्षमता तथा अवसर भी शामिल हैं।
  • चरम गरीबी (Extreme poverty): इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा सामाजिक विकास के लिए विश्व शिखर सम्मेलन की वर्ष 1995 की रिपोर्ट में “एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया था जिसमें भोजन, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता सुविधाएँ, स्वास्थ्य,जानकारी, आश्रय, शिक्षा एवं बुनियादी मानव आवश्यकताओं की गंभीर कमी शामिल है।” यह न केवल आय पर बल्कि सेवाओं तक पहुँच पर भी निर्भर करता है।

राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (National Indicator Framework- NIF) के बारे में 

  • राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क: NIF, सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) पर भारत की प्रगति की निगरानी करता है, जिसमें वर्ष 2030 तक चरम गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य शामिल है।
  • तैयार किया गया: केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation- MoSPI) ने संबंधित मंत्रालयों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों तथा अन्य हितधारकों के सहयोग से SDG-NIF विकसित किया है।
    • यह वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर SDGs पर प्रगति की निगरानी करने में सक्षम बनाती है।
  • उद्देश्य: फ्रेमवर्क व्यक्तिगत SDGs के साथ-साथ क्रॉस-कटिंग विषयों एवं लक्ष्यों पर प्रगति को ट्रैक करने में सक्षम बनाता है, जिससे सतत् विकास के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।
    • यह राष्ट्रीय विकास योजनाओं, नीतियों एवं बजट को SDGs के साथ संरेखित करने, सतत् विकास के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
    • इसके अतिरिक्त, यह प्रगति पर नजर रखने एवं SDGs संकेतकों पर जानकारी तक सार्वजनिक पहुँच की सुविधा प्रदान करने के लिए एक सामान्य फ्रेमवर्क प्रदान करके पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देता है।

राष्ट्रीय संकेतक की आवश्यकता

  • अद्यतन आधिकारिक गरीबी रेखा का अभाव: भारत की आधिकारिक गरीबी रेखा वर्ष 2009 की सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट पर आधारित है। डी. टी. लकड़ावाला (1993) एवं सी. रंगराजन (2014) के नेतृत्व वाली समितियों ने भी गरीबी रेखा निर्धारित करने के लिए मानदंड प्रस्तावित किए हैं। हालाँकि, सी. रंगराजन समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने नहीं अपनाया।
  • वैश्विक संकेतकों में विसंगतियाँ: IMF के अनुसार, वर्ष 2021 में 1% से भी कम भारतीय चरम गरीबी में रहते थे, जबकि विश्व बैंक ने उसी वर्ष के लिए यह आँकड़ा 12.92% होने का अनुमान लगाया था।
  • नीति निर्माण एवं प्रगति की निगरानी: गरीबी-विरोधी कार्यक्रमों को डिजाइन करने, लागू करने तथा निगरानी करने के लिए सटीक गरीबी अनुमान महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत में गरीबी का अनुमान

  • वी. एम. दांडेकर एवं एन. रथ (N. Rath): वर्ष 1971 में वी. एम. दांडेकर एवं एन. रथ  द्वारा किया गया अध्ययन भारत में गरीबी का अग्रणी व्यवस्थित मूल्यांकन था।
    • इसने वर्ष 1960-61 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey- NSS) डेटा का उपयोग किया एवं व्यय स्तर के आधार पर गरीबी रेखा निर्धारित करने का तर्क दिया, जो ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रति दिन 2250 कैलोरी प्रदान कर सकता है।
  • वाई. के. अलघ समिति: अलघ समिति ने वर्ष 1979 में पोषण संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा तैयार की गई।
    • इसमें सुझाव दिया गया कि वर्ष 1973-74 के मूल्य स्तर के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी (49.1 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह की दर से) होनी चाहिए, जबकि शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी (56.7 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह की दर से) होनी चाहिए।
  • लकड़ावाला समिति: वर्ष 1993 में लकड़ावाला समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए:-
    • पहले से स्थापित कैलोरी खपत पर आधार उपभोग व्यय गणना करना। 
    • राज्य-विशिष्ट गरीबी रेखाएँ विकसित करना एवं शहरी क्षेत्रों के लिए औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index of Industrial Workers- CPI-IW) तथा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कृषि श्रम के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index of Agricultural Labour- CPI-AL) का उपयोग करके उन्हें अद्यतन करना।
  • संशोधित गरीबी रेखा मानदंड: शहरों में 1,000 रुपये या उससे कम (प्रतिदिन 33 रुपये या उससे कम) एवं गाँवों में 816 रुपये या उससे कम (प्रतिदिन 27 रुपये या उससे कम) मासिक खर्च पर जीवन यापन करने वाले व्यक्ति को गरीब के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • रंगराजन समिति ने इस सीमा को बढ़ा दिया एवं ग्रामीण भारत के लिए गरीबी रेखा के रूप में 32 रुपये तथा शहरी भारत के लिए 47 रुपये की आय सीमा निर्धारित की।

भारत में गरीबी का मापन

  • गरीबी रेखा का निर्धारण: आधिकारिक गरीबी रेखा का निर्धारण रुपये में उपभोग व्यय के आधार पर किया जाता है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office) प्रत्येक पाँच वर्ष में उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Consumption Expenditure Surveys- CES) आयोजित करता है।
  • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (National Multidimensional Poverty Index- NMPI): नीति आयोग ने राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (NMPI) प्रस्तुत किया, जो वर्ष 2015-16 में गरीबी में 24.85% से घटकर वर्ष 2019-21 में 14.96% होने का संकेत देता है।

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