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भारत-रूस के मध्य भागीदारी के निहितार्थ

Lokesh Pal July 08, 2024 05:15 112 0

संदर्भ:

अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान द्विपक्षीय यात्रा के लिए रूस को अपनी पहली पसंद बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उस परंपरा को तोड़ दिया है जिसके अनुसार भारतीय प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल की पहली एकल यात्रा पर पड़ोसी देशों की यात्रा करते हैं, जो भारत-रूस साझेदारी के महत्व को दर्शाता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: द्विपक्षीय मुद्दे पर चर्चा, रूस  यूक्रेन युद्ध , पीएम मोदी की यात्रा आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पीएम मोदी की यात्रा का महत्व, समस्याएँ, रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान आर्थिक प्रभाव, रूस यूक्रेन युद्ध: का भारत पर प्रभाव, मजबूत भू-राजनीतिक संदेश आदि।

प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का महत्त्व :

  • यूक्रेन युद्ध के बाद पहली यात्रा: 22वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक यूक्रेन युद्ध  के बाद मोदी-पुतिन की पहली मुलाकात है।
  • 21वें शिखर सम्मेलन का आयोजन दिसंबर 2021 में दिल्ली में किया गया था, इसका आयोजन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन पर “विशेष अभियान” शुरू करने से ठीक पहले किया गया था। 
  • उज्बेकिस्तान में SCO शिखर सम्मेलन: इस दौरान, दोनों नेताओं की उज्बेकिस्तान में SCO शिखर सम्मेलन में सिर्फ एक बार मुलाकात हुई है
    • प्रधानमंत्री मोदी ने इस बाद का जिक्र किया था कि यह “युद्ध का युग” नहीं है।

द्विपक्षीय मुद्दे पर चर्चा:

भारत-रूस संबंधों में मुख्य समस्याएँ:

  • रूस की चीन पर बढ़ती निर्भरता : LAC पर तनाव को  देखते हुए रूस की चीन पर बढ़ती निर्भरता भी भारत के लिए चिंता का विषय है।
  • रक्षा आपूर्ति पर प्रभाव:  रक्षा आपूर्ति और मशीनों के कलपुर्जों के आयात पर असर पड़ सकता है।
  • पश्चिम से प्रतिबंध: 
    • भुगतान संबंधी मुद्दे: रुपए में भुगतान लेने वाले रूसी निर्यातक वोस्ट्रो खातों में स्थानीय मुद्रा का  उपयोग करने में अनिच्छुक हैं क्योंकि अमेरिकी डॉलर सबसे पसंदीदा मुद्रा बनी हुई है।
    • रूसी सेना में भारतीयों की भर्ती का मुद्दा है

रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान आर्थिक प्रभाव:

  • खाद्य और ऊर्जा बाजारों में वैश्विक मुद्रास्फीति: युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया है, विशेष रूप से गेंहूँ , तेल और गैस के लिए, जिसकी वजह से वैश्विक मुद्रास्फीति और आपूर्ति श्रृंखला के क्षेत्र में  चुनौतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
  • प्रतिबंध और आर्थिक व्यवधान: रूस के विरुद्ध प्रतिबंध और यूक्रेन के बुनियादी ढाँचे को हुए नुकसान ने वैश्विक आर्थिक स्थिरता को और अधिक प्रभावित किया है।
  • यूक्रेन को नुकसान: यूक्रेन का आर्थिक उत्पादन वर्तमान में युद्ध-पूर्व स्तर के निचले पायदान  पर है। संघर्ष के पहले वर्ष के दौरान, देश को सकल घरेलू उत्पाद का 30-35% का नुकसान हुआ, जिसके  कारण  यूक्रेन को आर्थिक  मंदी का सामना करना पड़ा।
    • 2023 में इसके सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 0.5% की वृद्धि का अनुमान है।
    • विश्व बैंक के अनुसार, यूक्रेन में गरीबी 2022 में जनसंख्या के 5.5% से बढ़कर 24.2% हो गई है, जिससे 7.1 मिलियन से अधिक लोग गरीबी में चले गए हैं।
  • खाद्य सुरक्षा: यूक्रेन और रूस वैश्विक स्तर पर कृषि और खाद्यान्न के सबसे बड़े उत्पादक देश थे। इन देशों के मध्य युद्ध ने वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को जन्म दिया है।
  • रूस को हानि : पिछले वर्ष रूस की अर्थव्यवस्था में 1.2% की गिरावट दर्ज की गई और रूसी सेंट्रल बैंक का €300 बिलियन का भंडार यूरोपीय संघ तथा अन्य G7 देशों में अवरुद्ध हो गया।
    • 1,500 से अधिक प्रतिबंधित व्यक्तियों और संस्थाओं की लगभग €20 बिलियन की संपत्ति जब्त कर ली गई है।

रूस-यूक्रेन युद्ध: का भारत पर प्रभाव: 

  • खाद्यान्न, ईंधन और उर्वरकों की कमी:  भारत रूस से  रक्षा आपूर्ति और कलपुर्जों के आयात पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंतित है।
    • हालाँकि “मेक इन इंडिया” के प्रयास में प्रगति हुई है (रूसी असॉल्ट राइफलें और भारत-रूस ब्रह्मोस मिसाइल), लेकिन आपूर्ति की विश्वसनीयता और भुगतान के मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता है।
  • भारत के साथ संबंध: भारतीय नीति निर्माताओं ने पश्चिम और रूस के साथ संबंधों को संतुलित करने में कूटनीतिक संतुलन को बनाए रखा है। वे रूस की निंदा करने वाले समूह में शामिल नहीं हुए, जिसका यूक्रेन से भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकालने में लाभ हुआ। 
  • रूसी कच्चे तेल तक पहुँच: राष्ट्रीय हित को उजागर करने वाले भारत के व्यावहारिक रुख ने रूसी कच्चे तेल की उपलब्धता सुनिश्चित की और मूल्य को नियंत्रित करने में मदद की। 
  • इंडो-पैसिफिक और क्वाड में बढ़ती रूचि: इंडो-पैसिफिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की दिशा में तेजी से बदलाव हुआ है। इसने भारत को “नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर” बनने की रणनीतिक स्थिति में ला दिया है।
  • चीन-रूस संबंधों को मजबूत करना: रूस-चीन के मध्य घनिष्ठ होते संबंध भारतीय कूटनीति के लिए नई चुनौती बन गई हैं।

 पश्चिम द्वारा रूस को अलग-थलग करने के बीच भारत का संतुलनकारी कदम:

  • पश्चिम द्वारा रूस को अलग-थलग करना: यह वाशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति बिडेन द्वारा आयोजित NATO शिखर सम्मेलन के विपरीत है, जिसका उद्देश्य नाटो, यूक्रेन और हिंद-प्रशांत के नेताओं के साथ रूस के अलगाव को उजागर करना है। 
  • भारत को संतुलित करने का प्रयास: जहाँ बिडेन पश्चिमी एकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं मोदी ने G-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेकर, यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से मुलाकात करके और रूस के साथ भारत के पारंपरिक संबंधों को बनाए रखकर संबंधों को संतुलित किया है।
    • यह संतुलन संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा करने से भारत के इनकार और SCO, ब्रिक्स तथा G-20 जैसे समूहों के माध्यम से रूस के साथ निरंतर जुड़ाव से देखा जा सकता है।

निष्कर्ष:

प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा इस बात पर किन्द्रित है कि भारत किस प्रकार अपने बहुध्रुवीय और गुटनिरपेक्ष रुख का लाभ वार्ता और कूटनीति को बढ़ावा देने के लिए करता है, जो संभवतः रूस-यूक्रेन संघर्ष को हल करने में योगदान देगा

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