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मिनरल नैनोपार्टिकल्स

Lokesh Pal July 10, 2024 05:11 164 0

संदर्भ 

हाल ही में IIT मद्रास एवं जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज, बंगलूरू ने जल की सूक्ष्म बूँदों से खनिजों को नैनोपार्टिकल्स में विखंडित कर दिया। 

खनिज विखंडन पर प्रयोग

  • प्रयोग सेटअप: IIT मद्रास ने क्वार्ट्ज (सिलिका), रूबी एवं फ्यूज्ड एल्यूमिना के क्रिस्टल पर इस परिकल्पना का परीक्षण किया।
  • विधि: जल में खनिज सूक्ष्म कणों पर कुछ हजार वोल्ट का प्रयोग किया गया, जिससे सूक्ष्म बूँदों का एक धुंध बन गया, जिसके परिणामस्वरूप खनिज, जल की बूँदों के विभिन्न आकारों में नैनो कणों में टूट गया।
  • जल की बूँदों के विभिन्न आकार
    • आकार में विविधता: जल की बूँदें, वर्षा की बूँदों जितनी बड़ी या एरोसोल कणों जितनी छोटी हो सकती हैं।
    • सूक्ष्म बूँदें: ये नग्न आँखों के लिए अदृश्य होती हैं, ये एक सामान्य वर्षा की बूँद के हजारवें आकार के बराबर होती हैं।

नैनोपार्टिकल्स (Nanoparticles) के बारे में

  • आकार: नैनोपार्टिकल्स का आकार 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है।
  • गुण: उनके गुण आकृति, आकार, सतह की विशेषताओं एवं आंतरिक संरचना पर निर्भर करते हैं।
  • रूप: एरोसोल (वायु में ठोस या तरल पदार्थ), सस्पेंशन (तरल में ठोस) या इमल्शन (तरल में तरल) के रूप में मौजूद हो सकते हैं।

नैनोपार्टिकल्स का निर्माण

  • प्राकृतिक निर्माण: कटाव एवं अपक्षय जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है।
  • मानवीय गतिविधियाँ: खाना पकाने, विनिर्माण, परिवहन एवं अन्य औद्योगिक तथा घरेलू गतिविधियों के माध्यम से उत्पन्न होती हैं।
  • विनिर्माण दृष्टिकोण
    • ऊपर से नीचे: बड़े कणों को नैनो संरचनाओं में तोड़ना।
    • नीचे से ऊपर: परमाणुओं या अणुओं को नैनो संरचनाओं में संयोजित करना।

जल सूक्ष्म बूँदों की उत्केंद्रिता

जल की सूक्ष्म बूंदों के संदर्भ में उत्केंद्रता से तात्पर्य इन बूँदों के आकार के पूर्णतः गोलाकार न होने से है अर्थात इसकी गोलाकार आकार में कुछ विचलन होता है। जब जल की बूँदें पूरी तरह से गोल नहीं होती हैं, तो उनमें उत्केंद्रिता की स्थिति पाई जाती है, जो इस अनियमितता को मापती है।

सतह बनाम ‘बल्क वाटर’ अभिक्रियाएँ

  • सतही जल के अणु: जल की सतह पर मौजूद अणु थोक जल की तुलना में अधिक आसानी से रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग ले सकते हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें अभी भी कुछ ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • माइक्रो ड्रॉपलेट्स: माइक्रो ड्रॉपलेट्स में जल के अणु एक साथ निकटता से संबद्ध होते हैं एवं अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता के बिना रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेने के लिए अधिक प्रभावी होते हैं।
  • सूक्ष्म बूँदों में रासायनिक अभिक्रियाएँ
    • तीव्र अभिक्रियाएँ: सूक्ष्म बूँदें ‘बल्क वाटर’ की तुलना में दस लाख गुना अधिक तेजी से रासायनिक अभिक्रियाओं में संलग्न हो सकती हैं।
    • आवेश के वाहक: माइक्रो ड्रॉपलेट्स विद्युत आवेश के प्रभावी वाहक हैं।
    • समुद्र तट का उदाहरण: समुद्र तट पर, स्प्रे से सूक्ष्म बूँदें लवण आयन ले जा सकती हैं एवं मनुष्य की त्वचा पर जमा हो सकती हैं।

आवेशित सूक्ष्म बूँदों का निर्माण

  • वाष्पीकरण प्रभाव: जब बड़ी बूँदें वाष्पित हो जाती हैं एवं सिकुड़ जाती हैं, तो शेष जल के अणु कमजोर हाइड्रोजन बंध बनाते हैं। इसके परिणामस्वरूप नकारात्मक रूप से आवेशित किए गए हाइड्रॉक्सिल आयन (OH-) तथा मुक्त प्रोटॉन (H+) का निर्माण हो सकता है।
  • बल्क वाटर: बल्क वाटर में, आसपास के अणुओं के कारण प्रोटॉन ज्यादा गति नहीं कर पाते हैं।
  • सूक्ष्म बूँदें: सूक्ष्म बूँदों में, प्रोटॉन आसानी से सतह तक पहुँच जाते हैं, जिससे यह अधिक अम्लीय एवं रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए अनुकूल हो जाता है।

खनिज विखंडन के संभावित कारण

  • प्रोटॉन निस्पंदन (Proton Infiltration): मुक्त प्रोटॉन क्रिस्टल परतों में निस्पंदित होकर उन्हें भीतर से विखंडित कर सकते थे।
  • विद्युत क्षेत्र (Electric Fields): आवेशित सतहों ने संभवतः आवश्यक ऊर्जा प्रदान की होगी।
  • पृष्ठ तनाव (Surface Tension): आकर्षक पृष्ठ तनाव एवं प्रतिकारक आवेशों के बीच संतुलन के कारण शॉकवेव्स उत्पन्न हो सकती हैं, जो सूक्ष्म बूँदों को विखंडित कर देती हैं।

निहितार्थ एवं भविष्य में अनुसंधान

सूक्ष्मकणों से नैनो कणों का निर्माण जीवन की उत्पत्ति, कृषि, जल एवं भोजन जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित है।

  • प्रोटो-कोशिकाएँ (Proto-Cells): निष्कर्ष प्रोटो-कोशिकाओं के अध्ययन के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं, जिन्हें आधुनिक कोशिकाओं का अग्रदूत माना जाता है।
  • कृषि (Agriculture): सूक्ष्म कणों से बने नैनोकण मिट्टी की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं एवं कृषि को लाभ पहुँचा सकते हैं, विशेषकर मरुस्थलीय क्षेत्रों में।
    • सिलिका अवशोषण (Silica Absorption): सिलिका, जो रेत का आधा हिस्सा बनाती है, पौधों द्वारा नैनो कणों के रूप में अवशोषित की जाती है, जिससे उन्हें लंबा बढ़ने में मदद मिलती है। चावल की फसलों में आमतौर पर सिलिका का स्तर अधिक होता है।
  • वायुमंडलीय प्रक्रियाएँ (Atmospheric Processes): सूक्ष्म बूँदों की वर्षा के लिए खनिजों के साथ प्रतिक्रिया करने एवं नैनो कणों का निर्माण करने की क्षमता, जो वायुमंडलीय रसायन विज्ञान को प्रभावित करती है।

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