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राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौता

Lokesh Pal July 11, 2024 01:22 119 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत को राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) समझौते पर हस्ताक्षर करने की मंजूरी दे दी है। 

  • गौरतलब है कि भारत सरकार का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) देश में BBNJ समझौते के क्रियान्वयन का नेतृत्व करेगा। 
  • पिछले वर्ष हुई इस संधि का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना तथा समुद्री जल में जैव विविधता और अन्य समुद्री संसाधनों का संरक्षण एवं सतत् उपयोग करना है। 

राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (BBNJ) समझौते या ‘हाई सी ट्रीटी’ (High Seas Treaty) के बारे में

  • यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के तहत एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। यह पूर्वोपाय सिद्धांत (Precautionary Principle) पर आधारित एक समावेशी, एकीकृत, पारिस्थितिकी तंत्र-केंद्रित दृष्टिकोण का पालन करती है और पारंपरिक ज्ञान एवं सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देती है। 
  • उद्देश्य: उच्च समुद्र (हाई सी) में समुद्री जैव विविधता के दीर्घकालिक संरक्षण पर बढ़ती चिंताओं का समाधान करना। 
  • स्वीकृति: इस समझौते को 19 जून, 2023 को न्यूयॉर्क में 5वें राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जैव विविधता (BBNJ) अंतर-सरकारी सम्मेलन में सर्वसम्मति से अपनाया गया था। 
    • यह सितंबर 2023 से शुरू होकर दो वर्षों के लिए हस्ताक्षर हेतु खुला है।
  • BBNJ का सचिवालय: ब्रुसेल्स (Brussels)।
  • हस्ताक्षरकर्ता: जून 2024 तक, 91 देशों ने BBNJ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और आठ पक्षकारों ने इसकी पुष्टि की है। 
    • 60वें अनुसमर्थन, स्वीकृति, अनुमोदन या पंजीकरण के 120 दिन बाद लागू होने पर यह एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि होगी।
    • यह समझौता 20 सितंबर, 2025 को हस्ताक्षर के लिए बंद हो जाएगा। इसका अर्थ यह है कि देशों ने इस संधि पर आबद्ध होने के लिए अपनी सहमति दे दी है और समय सीमा के बाद, देश इस पर हस्ताक्षर तो नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी संधि में शामिल हो सकते हैं, जिसकी कानूनी स्थिति अनुसमर्थन के समान ही है।
  • समझौते का आधार: BBNJ समझौता, यदि लागू हो जाता है, तो UNCLOS के अंतर्गत तीसरा कार्यान्वयन समझौता होगा, इसके साथ ही इसके सहयोगी कार्यान्वयन समझौते भी होंगे: 
    • 1994 भाग XI कार्यान्वयन समझौता (जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों की खोज और निष्कर्षण से संबंधित है।) 
    • वर्ष 1995 का संयुक्त राष्ट्र मत्स्य स्टॉक समझौता (UN Fish Stocks Agreement) (जो स्ट्रैडलिंग और अत्यधिक प्रवासी मछली स्टॉक के संरक्षण एवं प्रबंधन को संबोधित करता है)। 
  • उद्देश्य
    • समुद्री पारिस्थितिकी का संरक्षण और सुरक्षा। 
    • समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा। 
    • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित रूप से प्रदूषित या नुकसान पहुँचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिए अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments- EIA) के  अभ्यास को अपनाना। 
      • EIA को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। यदि उच्च समुद्र (हाई सी) में कोई पर्यावरण प्रभाव आकलन की उम्मीद है तो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर की गतिविधियों के लिए भी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) किया जाना चाहिए। 
    • विकासशील देशों को क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण। 
      • इससे उन्हें महासागरों के लाभों का पूरा उपयोग करने में मदद मिलेगी, साथ ही उनके संरक्षण में भी योगदान मिलेगा। 
  • संधि की मुख्य विशेषताएँ
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments): यह अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में प्रस्तावित गतिविधियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन करने की आवश्यकताओं को प्रस्तुत करता है। 
    • लाभ साझाकरण दिशा-निर्देश (Benefit Sharing Guidelines): संधि अंतरराष्ट्रीय जल में वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा एकत्रित ‘समुद्री आनुवंशिक संसाधनों’ (Marine Genetic Resources-MGR) के लाभों को साझा करने के सिद्धांत भी स्थापित करती है। 
    • UNCLOS के तहत वार्ता: इस संधि पर वर्ष 1982 के UNCLOS के तहत वार्ता की गई थी, जो समुद्री संसाधनों के संबंध में देशों के अधिकारों को नियंत्रित करता है। 
    • जैव विविधता संरक्षण (Biodiversity Conservation): यह जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता को मान्यता देता है। 
      • ‘हाई सी ट्रीटी’ में दुनिया के 30% महासागरों की रक्षा करने और समुद्री संरक्षण के लिए धन बढ़ाने का प्रस्ताव है। 
  • अधिदेश
    • प्रभावी तंत्र स्थापित करना: अंतरराष्ट्रीय सहयोग और समन्वय के माध्यम से समुद्री जैव विविधता के सतत् उपयोग के लिए प्रभावी तंत्र स्थापित करना। 
    • निष्पक्ष एवं न्यायसंगत बँटवारा सुनिश्चित करना (Ensure Fair and Equitable Sharing:): पक्षकार खुले समुद्र से प्राप्त समुद्री संसाधनों पर संप्रभुता का दावा या प्रयोग नहीं कर सकते हैं तथा लाभों का निष्पक्ष एवं न्यायसंगत बँटवारा सुनिश्चित करना। 
    • समुद्री पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने में मदद करता है: क्षेत्र आधारित प्रबंधन उपकरणों के माध्यम से पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करने के लिए नियम स्थापित करता है। 
    • सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति: इससे कई सतत् विकास लक्ष्यों, विशेषकर सतत् विकास लक्ष्य 14 (जल के नीचे जीवन) को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी। 

भारत के लिए BBNJ समझौते के लाभ

यह ऐतिहासिक निर्णय राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 

  • सामरिक उपस्थिति में वृद्धि (Enhance Strategic Presence:): BBNJ समझौता भारत को अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone- EEZ) से परे के क्षेत्रों में अपनी सामरिक उपस्थिति बढ़ाने की अनुमति देता है, जो बहुत आशाजनक है। 
  • समुद्री संरक्षण प्रयासों और सहयोग को मजबूत करना (Strengthen Marine Conservation Efforts and Collaborations): साझा मौद्रिक लाभों के अलावा, यह समुद्री संरक्षण प्रयासों तथा सहयोग को और मजबूत करेगा, वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास के लिए नए रास्ते खोलेगा, नमूनों, अनुक्रमों व सूचना तक पहुँच, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि को बढ़ावा देगा। 
    • यह यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण कदम है कि महासागर स्वस्थ और टिकाऊ बने रहें। 

उच्च सागर (हाई सी) के बारे में

  • परिभाषा: उच्च सागर, वर्ष 1958 के जिनेवा कन्वेंशन में परिभाषित तटीय देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्रों से 200 समुद्री मील से परे के क्षेत्र हैं। 

  • संदर्भित: ये किसी भी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र हैं, जिसके कारण संधि को BBNJ पर समझौते के रूप में भी जाना जाता है। उच्च सागर संधि (हाई सी ट्रीटी) की तुलना अक्सर इसके महत्त्व और संभावित प्रभाव में जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते से की जाती है। 
    • इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर समझौता कहा जाता है।  
  • सदस्य: 91 देश पहले ही इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जबकि उनमें से आठ ने इसका अनुसमर्थन भी कर दिया है। 
    • अन्य अधिकांश देशों की तरह भारत भी लगभग 20 वर्षों की वार्ता में शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष संधि को अंतिम रूप दिया गया। 
  • सामान्य हित: राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे ये क्षेत्र वैश्विक सामान्य महासागर हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैध उद्देश्यों जैसे नेविगेशन, ओवरफ्लाइट, पनडुब्बी केबल और पाइपलाइन बिछाने आदि के लिए सभी के लिए खुले हैं। 
  • विस्तार: उच्च समुद्र, महासागरीय सतह का 64% तथा पृथ्वी का लगभग 43% भाग घेरे हुए  हैं। 
  • संरक्षित स्थिति: वैश्विक महासागर के दो-तिहाई से अधिक भाग को कवर करने के बावजूद, केवल 1.44% उच्च सागर ही संरक्षित है। 
  • उच्च सागर का महत्त्व
    • उच्च सागर का महत्त्व एवं विस्तार: उच्च समुद्र विश्व के महासागर क्षेत्र का 60% से अधिक हिस्सा है और पृथ्वी की सतह के लगभग आधे हिस्से को कवर करता है, जो उन्हें समुद्री जीवन का केंद्र बनाता है। 
    • उच्च सागरों की जैव विविधता (Biodiversity of the High Seas): वे लगभग 2.7 लाख ज्ञात प्रजातियों का घर हैं, जिनमें से कई की खोज अभी भी की जानी है। 
    • जलवायु को नियंत्रित करना: उच्च समुद्र कार्बन के अवशोषण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और सौर विकिरण को संगृहीत करने और दुनिया भर में गर्मी वितरित करके ग्रह स्थिरता में एक मौलिक भूमिका निभाकर जलवायु को नियंत्रित करते हैं। 
    • उच्च सागर पर मानवजनित दबाव (Anthropogenic Pressures on the High Seas): इसमें समुद्र तल पर खनन, ध्वनि प्रदूषण, रासायनिक रिसाव और आग, अनुपचारित अपशिष्ट (एंटीबायोटिक सहित) का निपटान, अत्यधिक मछली पकड़ना, आक्रामक प्रजातियों का प्रवेश और तटीय प्रदूषण शामिल हैं। 
  • चुनौती: चूँकि इस क्षेत्र पर किसी का अधिकार नहीं हैं, इसलिए उच्च समुद्र भी किसी की जिम्मेदारी नहीं है। परिणामस्वरूप, इनमें से कई क्षेत्र संसाधनों के अत्यधिक दोहन, जैव विविधता की हानि, प्लास्टिक के डंपिंग सहित प्रदूषण, महासागर अम्लीकरण और कई अन्य समस्याओं से ग्रस्त हैं। 
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 में लगभग 17 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में फेंका गया और आने वाले वर्षों में इसमें वृद्धि होने की ही आशंका है। 

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के बारे में 

  • अपनाना: संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) को वर्ष 1982 में अपनाया गया।
    • यह संधि 16 नवम्बर, 1994 को लागू हुई।
  • अधिदेश: यह विश्व के महासागरों और समुद्रों में कानून एवं व्यवस्था की एक व्यापक व्यवस्था स्थापित करता है तथा महासागरों और उनके संसाधनों के सभी उपयोगों को नियंत्रित करने वाले नियम स्थापित करता है। 
  • भूमिका
    • यह महासागरों में स्थित देशों के अधिकारों एवं कर्तव्यों, महासागरीय क्षेत्रों की सीमा जिस पर देश संप्रभुता का दावा कर सकते हैं, तथा समुद्री संसाधनों की कानूनी स्थिति को परिभाषित करता है। 
    • इसमें महासागरों में नेविगेशन, वैज्ञानिक अनुसंधान एवं गहरे समुद्र में खनन सहित अनेक गतिविधियों के लिए सामान्य नियमों का एक सेट भी निर्दिष्ट किया गया। 
  • सदस्य: वर्तमान तक 160 से अधिक देशों ने UNCLOS का अनुसमर्थन किया है। 
  • महत्त्व: विश्व के महासागरों के उपयोग में व्यवस्था, समता और निष्पक्षता बनाए रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह समुद्रों के पर्यावरण संरक्षण और समुद्री सीमाओं, समुद्री संसाधनों पर अधिकार और विवाद समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्र तल पर खनन और संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण की स्थापना करता है।

अनुसमर्थन (Ratification) के बारे में

अनुसमर्थन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोई देश किसी अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से कानूनी रूप से आबद्ध होने के लिए सहमत होता है। 

  • हस्ताक्षर करने में भिन्नता (Different from Signing): हस्ताक्षर करने से यह संकेत मिलता है कि कोई देश संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से सहमत है और उसका पालन करने को तैयार है। लेकिन जब तक वह इसकी पुष्टि नहीं कर देता, जिसके लिए प्रक्रिया प्रत्येक देश में अलग-अलग होती है, तब तक वह उस कानून का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। 
  • शामिल प्रक्रिया: जिन देशों में संसद जैसी विधायी संस्थाएँ हैं, वहाँ अनुसमर्थन के लिए आमतौर पर विधायिका की सहमति की आवश्यकता होती है। 
    • अन्य देशों में, इसे केवल कार्यकारी अनुमोदन या पंजीकरण की आवश्यकता हो सकती है। 
  • यह संभव है कि कोई देश किसी संधि पर हस्ताक्षर तो कर दे, लेकिन उसका अनुसमर्थन न करे। 
    • उस स्थिति में, उसे संधि का पक्षकार नहीं माना जाता। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पेरिस समझौते के पूर्ववर्ती क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए, लेकिन उसने इसका अनुसमर्थन नहीं किया, क्योंकि इसकी विधायिका के ऊपरी सदन, सीनेट ने इसे अपनी स्वीकृति नहीं दी थी।

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