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कीमतों को स्थिर रखने के लिए आवश्यक खाद्य वस्तुओं का बफर स्टॉक बनाना

Lokesh Pal July 11, 2024 02:40 140 0

संदर्भ

सरकार को खाद्य कीमतों की बढ़ती अस्थिरता और अप्रत्याशितता की स्थिति से निपटने  के लिए चावल और गेहूँ के अतिरिक्त दलहन, तिलहन, चीनी, स्किम्ड मिल्क पाउडर (Skimmed Milk Powder- SMP) और प्रमुख सब्जियों सहित आवश्यक खाद्य पदार्थों का बफर स्टॉक रखने पर विचार करना चाहिए।

खाद्य सुरक्षा एवं उसके आयाम

  • खाद्य सुरक्षा: वर्ष 1996 के विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन के अनुसार, जब सभी लोगों को, हर समय, पर्याप्त सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक शारीरिक तथा आर्थिक पहुँच प्राप्त होती है, जो सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन के लिए उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं व खाद्य प्राथमिकताओं को पूर्ण करता है।
  • खाद्य सुरक्षा के चार आयाम
    • भोजन की भौतिक उपलब्धता: खाद्य उत्पादन, स्टॉक स्तर और शुद्ध व्यापार द्वारा निर्धारित की जाती है।
    • भोजन तक आर्थिक और भौतिक पहुँच: घरेलू स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आय, व्यय, बाजार और कीमतों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • खाद्य उपयोग: कुशल देखभाल, भोजन पद्धतियों, विविध आहार और उचित भोजन तैयारी के माध्यम से पोषक तत्त्वों का कुशल उपयोग।
    • समय के साथ स्थिरता: मौसम, राजनीतिक अस्थिरता या आर्थिक चुनौतियों जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भोजन तक लगातार पहुँच।

बफर स्टॉक (Buffer Stock)

  • बफर स्टॉक: बफर स्टॉक किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए आवश्यक वस्तुओं या कमोडिटी का अतिरिक्त स्टॉक होता है।
  • बफर स्टॉक की अवधारणा को पहली बार चौथी पंचवर्षीय योजना (वर्ष 1969-74) के दौरान पेश किया गया था।
  • परिचालन तंत्र: सरकारें बफर स्टॉक योजना का प्रयोग करती हैं, जहाँ वे अधिशेष के समय वस्तुओं और सामानों को खरीदती हैं और फिर आर्थिक कमी के समय उन वस्तुओं को बेचती हैं।
    • वस्तुओं की कमी के समय कीमतें बढ़ जाती हैं, लेकिन यदि बफर स्टॉक से भंडार जारी कर दिया जाए तो वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ जाने के कारण कीमतों में पुनः सुधार आने लगता हैं।
  • बफर स्टॉक बनाए रखने का उद्देश्य
    • मूल्य स्थिरीकरण: वस्तुओं और कमोडिटी की कीमतों को स्थिर रखना।
    • आर्थिक स्थिरता: वस्तुओं की कमी के परिणामस्वरूप होने वाले आर्थिक परिवर्तनों को रोकना।
      • इसका उद्देश्य कीमतें निर्धारित करना या बाजार को प्रतिस्थापित करना नहीं है।
  • उत्तरदायी निकाय: भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीद, भंडारण तथा वितरण के लिए जिम्मेदार है।

बफर स्टॉक मानदंड

  • बफर स्टॉक मानदंड: बफर मानदंड खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा को संदर्भित करते हैं, जिसे केंद्र को सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य कल्याणकारी पहलों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए प्रत्येक तिमाही के प्रारंभ में केंद्रीय पूल में बनाए रखना होता है।
  • बफर स्टॉक मानदंड का निर्धारण: आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए तिमाही आधार पर न्यूनतम बफर मानदंड निर्धारित करती है।
  • वर्ष 2023 तक बफर स्टॉक की स्थिति: 1 अप्रैल, 2023 तक, केंद्रीय पूल में लगभग 113 LMT गेहूँ और 237 LMT चावल होने का अनुमान है, जो गेहूँ के लिए 75 LMT और चावल के लिए 136 LMT के बफर मानदंडों से अधिक होगा (PIB डेटा)।
    • केंद्रीय पूल में परिचालन स्टॉक और रणनीतिक भंडार शामिल हैं।
      • परिचालन स्टॉक लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System- TPDS) के तहत मासिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए हैं।
      • रणनीतिक भंडार/खाद्य सुरक्षा स्टॉक भविष्य की खरीद में किसी भी कमी को पूर्ण करने के लिए हैं।

बफर स्टॉक रखरखाव के कारण

  • खाद्यान्न की कमी वाले क्षेत्रों में खाद्यान्नों का वितरण: बफर स्टॉक बनाने का उद्देश्य प्रतिकूल परिस्थितियों या आपदाओं के दौरान खाद्यान्न की कमी वाले क्षेत्रों में तथा समाज के गरीब वर्गों के बीच बाजार मूल्य (जिसे निर्गम मूल्य भी कहा जाता है) से कम कीमत पर खाद्यान्न वितरित करना है।
  • जलवायु परिवर्तन
    • कमजोर मानसून और सूखे की लंबी अवधि के दौरान।
    • अतिवृष्टि के दौरान।
    • शीत ऋतु की अल्प अवधि एवं तीव्र उष्ण वायुराशियाँ।
    • फसलों की खराब पैदावार: प्रतिकूल जलवायु प्रभावों के कारण मध्य भारत में रबी दलहन, टमाटर, आलू और गेहूँ की पैदावार खराब हो जाती है।
  • मूल्य अस्थिरता: जलवायु परिवर्तन, युद्ध या महामारी के कारण खाद्यान्न आपूर्ति में परिवर्तन से मूल्य में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होती है।
    • खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ती अस्थिरता और अप्रत्याशितता मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण है।
    • मूल्य वृद्धि के प्रतिउत्तर में कृषक उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि करते  हैं, जिससे कीमतों में भारी गिरावट आती है।
      • उदाहरण: पिछले बर्ष डेयरियों ने गाय के दूध के लिए 37-38 रुपये प्रति लीटर का भुगतान किया था। स्किम्ड मिल्क पाउडर (Skimmed Milk Powder- SMP) की घटती कीमतों (315-320 रुपये प्रति किलोग्राम से 200-210 रुपये प्रति किलोग्राम) के कारण मौजूदा कीमतें 26-27 रुपये प्रति लीटर तक गिर गई हैं।
  • खाद्यान्न कमी और मुद्रास्फीति पर अंकुश: बफर स्टॉक बनाए रखने से कीमतों को स्थिर करके खाद्यान्न की कमी को रोकने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है।
    • जब कम कीमतें उत्पादन को हतोत्साहित करती हैं, तो गंभीर मूल्य वृद्धि और मुद्रास्फीति से बचने के लिए एवं आपूर्ति माँग को पूरा करने के लिए बफर स्टॉक जारी किया जा सकता है।
    • इससे आवश्यक खाद्य पदार्थों की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित होती है, जिससे उपभोक्ताओं और उत्पादकों दोनों को लाभ होता है।
  • कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखना: बफर स्टॉक इसलिए भी आवश्यक है, ताकि सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Anna Yojana- PMGKAY) की आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके।

आवश्यक खाद्य पदार्थों का बफर स्टॉक बनाने के लाभ

  • खरीद और वितरण: अधिशेष वर्षों के दौरान किसानों/प्रसंस्करणकर्ताओं से खरीद करना एवं फसल अनुपलब्धता के दौरान विक्रय करना।
  • मूल्य में उतार-चढ़ाव को संतुलित करना: अत्यधिक मूल्य उतार-चढ़ाव को स्थिर करने में मदद करता है।
  • कम राजकोषीय लागत: स्टॉक की गई वस्तुएँ, जैसे आलू, प्याज और टमाटर (जिन्हें फ्लेक्स, पेस्ट और प्यूरी जैसे निर्जलित रूपों में संगृहीत किया जा सकता है), की कमी/मुद्रास्फीति अवधि के दौरान बाजार मूल्य पर निपटान किया जाता है।
    • ऐतिहासिक सफलता: सरकार द्वारा संचित स्टॉक से गेहूँ और चना की खुले बाजार में बिक्री से पहले भी अनाज तथा दलहनों की मुद्रास्फीति को कम करने में मदद मिली है।
  • प्रतिगामी उपायों की आवश्यकता समाप्त: यह निर्यात पर प्रतिबंध लगाने या निजी व्यापारियों और प्रसंस्करणकर्ताओं पर स्टॉक सीमा लगाने जैसे किसान विरोधी उपायों की आवश्यकता को कम करता है।

बफर स्टॉक के प्रबंधन से जुड़े मुद्दे

  • क्षतिग्रस्त स्टॉक: CAG रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2006-07 से वर्ष 2011-12 तक FCI द्वारा पहले आओ-पहले पाओ के सिद्धांत का पालन न करने के कारण 121.93 करोड़ रुपये मूल्य का 1.06 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न क्षतिग्रस्त हो गया।
  • परिचालन संबंधी लापरवाही और राजकोषीय अनुशासन का अभाव: FCI ने इसी अवधि में 376 करोड़ रुपये का अतिरिक्त अवांछित व्यय किया, जो राजकोषीय अनुशासन और परिचालन संबंधी लापरवाही का संकेत है।
  • बढ़ती परिचालन लागत: मंडी शुल्क, FCI में बढ़ोतरी, बोनस और प्रशासनिक व्यय भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) के खाद्यान्न प्रबंधन की आर्थिक लागत को बढ़ा देते हैं।
    • लागत, खरीद मूल्य से लगभग 40% अधिक है, जिससे समग्र दक्षता प्रभावित होती है।
  • कीट संक्रमण एवं क्षति: खराब भंडारण स्थितियों के कारण, कीटों के संक्रमण से बड़ी मात्रा में अनाज नष्ट हो जाता है।
    • वर्ष 2019 में, FCI ने कीटों के कारण लगभग 62,000 मीट्रिक टन गेहूँ के नुकसान की सूचना दी थी।
  • गुणवत्ता में गिरावट: कृषि लागत और मूल्य आयोग (Agricultural Costs and Prices- CACP) की रिपोर्ट में लंबे समय तक भंडारण के कारण अनाज में पोषण गुणवत्ता में गिरावट की ओर इशारा किया गया है, जिससे बाजार मूल्य और उपभोक्ता स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है।
  • भ्रष्टाचार और हेराफेरी: वर्ष 2012 के बिहार खाद्यान्न घोटाले जैसे उदाहरणों से बफर स्टॉक की हेराफेरी और भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशीलता की जानकारी मिलती है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ और जलवायु परिवर्तन: अप्रत्याशित बाढ़ जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने बफर स्टॉक की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, जैसा कि वर्ष 2018 केरल बाढ़ में देखा गया था, जिसने संगृहीत अनाज को भारी नुकसान पहुँचाया था।

बफर स्टॉक के प्रबंधन को अनुकूलित करने के उपाय

  • भंडारण अनुकूलन (Storage Optimisation)
    • विकेंद्रीकृत खरीद: शांता कुमार समिति की अनुशंसाओं के अनुसार- अधिशेष उपज वाले राज्य सीधे केंद्रीय पूल में योगदान कर सकते हैं, जिससे FCI पर पारगमन समय और भंडारण दबाव कम हो सकता है।
    • निजी क्षेत्र को शामिल करना: सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (Central Warehousing Corporation- CWC) और स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (State Warehousing Corporation- SWC) के साथ स्टॉकिंग संचालन में निजी उद्यमी गारंटी (Private Entrepreneur Guarantee- PEG) योजना और निजी संस्थाओं को शामिल करने से बेहतर बुनियादी ढाँचे और कम ओवरहेड लागत के साथ भंडारण को अनुकूलित किया जा सकता है।
    • परक्राम्य गोदाम रसीद (Negotiable Warehouse Receipt- NWR) प्रणाली:  NWR प्रणाली को बढ़ावा देने से किसानों को प्रमाणित गोदामों में उपज का भंडारण करने की सुविधा मिलती है, जिससे व्यवस्थित भंडारण में वृद्धि होती है और FCI गोदामों पर दबाव कम होता है।
  • कुशल भंडारण प्रबंधन
    • पारदर्शी परिसमापन नीति: अनाज की बर्बादी को रोकने के लिए स्वचालित अधिशेष स्टॉक परिसमापन लागू करना। अधिशेष को खुले बाजार में बेचा जा सकता है या खाद्यान्न की बर्बादी को रोकने के लिए निर्यात किया जा सकता है।
    • उन्नत अवसंरचना: खराब स्थितियों के कारण वर्तमान हानि प्रतिशत को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करने के लिए बेहतर वेंटिलेशन, नमी नियंत्रण और रोडेंट-प्रूफिंग के साथ भंडारण सुविधाओं को उन्नत किया जाना चाहिए।
    • मजबूत निगरानी प्रणालियाँ: अनाज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए वास्तविक समय की निगरानी के लिए सेंसर और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things- IoT) उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है तथा पर्यावरण में होने वाले उन परिवर्तनों के बारे में चेतावनी देना, जिनसे बर्बादी हो सकती है।
      • नियमित जाँच और गतिशील रखरखाव प्रथाओं से खराबी के जोखिम का पहले ही पता चल जाता है, जिससे समय रहते हस्तक्षेप करके बर्बादी को कम किया जा सकता है।
  • कुशल एवं प्रभावी वितरण
    • अंतिम-मील वितरण को आउटसोर्स करना: दूरदराज के क्षेत्रों में कुशल खाद्य सहायता वितरण सुनिश्चित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों (Self-help groups- SHG) और किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations- FPO) की सहायता लेना।
    • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): सब्सिडी को सुव्यवस्थित करने, लीकेज को कम करने और लक्षित लाभार्थियों को लाभ की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए DBT प्रणाली  लागू करना।
    • FCI की भूमिका का पुनर्गठन: FCI को आवश्यकता आधारित खरीद पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, विशेष रूप से पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे खरीद बुनियादी ढाँचे की कमी वाले राज्यों से, जिससे अधिशेष वाले क्षेत्रों से कमी वाले क्षेत्रों में कुशल अनाज वितरण की सुविधा मिल सके।

कृषक उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organisation- FPO)

  • किसान उत्पादक संगठन: किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organizations- FPO) स्वैच्छिक संगठन हैं, जिनका नियंत्रण कृषक सदस्यों द्वारा किया जाता है।
  • सदस्यता: लिंग, सामाजिक, नस्लीय, राजनीतिक या धार्मिक कारकों के आधार पर भेदभाव किए बिना, सदस्यता सभी के लिए खुली है।
    • FPO सदस्यों, प्रतिनिधियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India-FCI)

  • भारतीय खाद्य निगम (FCI): भारतीय खाद्य निगम (FCI) एक वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना वर्ष  1965 में खाद्य निगम अधिनियम,1964 के तहत की गई थी।
  • संबंधित मंत्रालय: यह खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP)

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य: न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) एक सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य है, जिस पर वह किसानों से सीधे फसल खरीदती है, यह सुनिश्चित करती है कि बाजार में उतार-चढ़ाव की परवाह किए बिना उन्हें अपनी फसल के लिए न्यूनतम लाभ प्राप्त हो सके।
    • इसका उद्देश्य किसानों को संकटपूर्ण विक्रय और मूल्य अस्थिरता से बचाना है।
  • अनुशंसित: MSP की सिफारिश कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices- CACP) द्वारा की जाती है, जो उत्पादन लागत, माँग और आपूर्ति, बाजार मूल्य प्रवृत्तियों तथा अंतर-फसल मूल्य समता जैसे कारकों पर विचार करता है।
    • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन CACP की स्थापना जनवरी 1965 में हुई थी।
  • अनुमोदन: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA), MSP के स्तर पर अंतिम निर्णय लेती है।

निष्कर्ष

  • बफर स्टॉकिंग खाद्य कीमतों में अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है, ठीक उसी तरह, जैसे RBI का विदेशी मुद्रा भंडार मुद्रा बाजार को स्थिर करता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती कीमतों में अस्थिरता, जिससे न तो उपभोक्ताओं को लाभ होता है और न ही उत्पादकों को, खाद्य बफर नीति की आवश्यकता को और अधिक बल देती है।

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