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भारत का डीप ड्रिलिंग मिशन

Lokesh Pal July 12, 2024 03:46 167 0

संदर्भ

बोरहोल जियोफिजिक्स रिसर्च लेबोरेटरी (Borehole Geophysics Research Laboratory- BGRL) का महाराष्ट्र के कोयना में 3 किलोमीटर की गहराई तक पायलट बोरहोल (Borehole) पूरा हो गया है। 

  • वर्ष 1962 में शिवाजी सागर झील (Shivaji Sagar Lake) या कोयना बाँध (Koyna Dam) के अवरुद्ध हो जाने के बाद से इस क्षेत्र में लगातार भूकंप आते रहे हैं। 

वैज्ञानिक गहन ड्रिलिंग (Scientific Deep Drilling) के बारे में

पृथ्वी विज्ञान में प्रगति के लिए वैज्ञानिक गहन ड्रिलिंग एक अपरिहार्य उपकरण है।

  • संक्षेप में: यह पृथ्वी की सतह के गहरे भागों का निरीक्षण एवं विश्लेषण करने के लिए रणनीतिक रूप से बोरहोल खोदने का उद्यम है। 
  • आवश्यकता: यह भूकंपों का अध्ययन करने के अवसर एवं पहुँच प्रदान करता है तथा पृथ्वी के इतिहास, चट्टान के प्रकार, ऊर्जा संसाधनों, जीवन रूपों, जलवायु परिवर्तन पैटर्न, जीवन के विकास आदि के बारे में समझ का विस्तार करता है।
    • इसके अलावा, भूकंप, कई सतही घटनाएँ (जल और वायु की संरचना, उनकी उपलब्धता, तथा जलवायु-प्रभावित घटनाओं के साथ परिणामी अंतर्क्रियाएँ) पृथ्वी की पर्पटी के नीचे होने वाली घटनाओं से संबंधित हैं। 

डीप ड्रिलिंग मिशन का महत्त्व 

इसके कई महत्त्व हैं, जिसके लिए अमेरिका, रूस और जर्मनी जैसे कई देशों ने 1990 के दशक में इस तरह की वैज्ञानिक परियोजनाएँ संचालित कीं। हाल ही में, वर्ष 2023 में, चीन द्वारा अपना स्वयं का एक डीप-ड्रिलिंग मिशन शुरू करने की खबरें आई थीं। 

  • भूकंप के बारे में समझ को व्यापक बनाना: वैज्ञानिक गहन ड्रिलिंग सबसे विश्वसनीय विधि बनी हुई है, क्योंकि वे प्रत्यक्ष, यथास्थान प्रयोगों एवं अवलोकनों का केंद्र हो सकती हैं तथा क्षेत्र की भ्रंश रेखाओं एवं भूकंप व्यवहार (न्यूक्लिएशन, रप्चर और अरेस्ट) की रणनीतिक निगरानी कर सकती हैं। 
    • यह भूकंप के बारे में समझ को व्यापक बनाने तथा इससे प्राप्त ज्ञान को वैज्ञानिक और सार्वजनिक हित में उपयोग करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
    • वैज्ञानिक रूप से बहुत गहराई तक किए गए बोरहोल को नीचे की ओर देखने वाले दूरबीनों के रूप में देखा जा सकता है, जो सेंसरों से युक्त होने पर भू-वैज्ञानिक वेधशालाओं के रूप में कार्य करते हैं।
  • ज्ञान और समझ का विस्तार: यह पृथ्वी की पर्पटी का संगठन, संरचना और प्रक्रियाओं की संरचना का सटीक, मौलिक और विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण ज्ञान भी प्रदान करता है और पृथ्वी की सतह के अध्ययन पर आधारित मॉडलों की पुष्टि या अस्वीकृति में सहायता करता है।
    • यह भारत में भू-खतरों और भू-संसाधनों से संबंधित सामाजिक समस्याओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।
  • आत्मनिर्भर होने का अवसर: वैज्ञानिक गहन ड्रिलिंग में निवेश करने से वैज्ञानिक जानकारी और तकनीकी नवाचार को बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है, विशेष रूप से भूकंप विज्ञान (भूकंप का अध्ययन) में। 
    • यह ड्रिलिंग, अवलोकन, डेटा विश्लेषण, सेंसर आदि के लिए उपकरणों और टूल्स के विकास को भी बढ़ावा दे सकता है, यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर भारत के पास आत्मनिर्भर होने का अवसर है।

डीप ड्रिलिंग मिशन की चुनौतियाँ

वैज्ञानिक गहरी ड्रिलिंग भी सबसे चुनौतीपूर्ण विधि है:

  • यह श्रम और पूँजी-प्रधान है। 
  • पृथ्वी का आंतरिक भाग भी एक गर्म, अँधेरा, उच्च दबाव वाला क्षेत्र है, जो लंबे एवं निरंतर संचालन में बाधा डालता हैI

भारत का डीप ड्रिलिंग मिशन

  • महाराष्ट्र के कराड में स्थित BGRL भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत एक विशेष संस्थान है, जिसे भारत के एकमात्र वैज्ञानिक गहन ड्रिलिंग कार्यक्रम को क्रियान्वित करने का दायित्व सौंपा गया है। 
  • उद्देश्य: पृथ्वी की सतह को 6 किलोमीटर की गहराई तक ड्रिल करना तथा वैज्ञानिक अवलोकन एवं विश्लेषण करना, जिससे महाराष्ट्र के कोयना-वारना क्षेत्र में सक्रिय फॉल्ट जोन में जलाशय-प्रेरित भूकंपों की समझ को बढ़ाने में मदद मिल सके।
  • कोयना में ड्रिलिंग तकनीक: कोयना पायलट बोरहोल लगभग 0.45 मीटर चौड़ा (सतह पर) और लगभग 3 किमी. गहरा है। दो सुस्थापित तकनीकों का मिश्रण जिसे ‘मड रोटरी ड्रिलिंग’ और ‘पर्क्यूशन ड्रिलिंग’ (जिसे ‘एयर हैमरिंग’ भी कहते हैं) कहते हैं।

‘मड रोटरी ड्रिलिंग’ (Mud Rotary Drilling) के बारे में

  • इसमें शामिल है:- 
    • स्टील से बनी एक घूमने वाली ड्रिलिंग रॉड, जो नीचे की ओर हीरे से जड़े ड्रिल बिट से जुड़ी होती है।
    • एक कुंडलाकार (रिंग के आकार का) स्थान ड्रिलिंग रॉड और बोरहोल की दीवार को अलग करता है।
  • क्रियाविधि
    • जैसे ही यह चट्टानों को काटता है और भूपर्पटी में प्रवेश करता है, यह घर्षण के कारण बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न करता है, इसलिए ड्रिल बिट को ठंडा करने के लिए एक शीतलन तरल या ड्रिलिंग मिट्टी को ड्रिलिंग रॉड के माध्यम से बोरहोल में प्रवाहित किया जाता है।
    • शीतलक और स्नेहक के रूप में कार्य करने के अलावा ड्रिलिंग मड, बोरहोल से मलबे या चट्टान के टुकड़ों को बाहर निकालने में भी मदद करता है।
    • ड्रिलिंग रॉड के माध्यम से ऊपर से पंप किए गए ड्रिलिंग मड के दबाव के कारण मलबा कुंडलाकार रिंग स्थान से बाहर निकल जाता है।
      • बोरहोल जितना गहरा होगा, मलबे को कुंडलाकार स्थान से बाहर लाने के लिए उतने ही अधिक दबाव की आवश्यकता होगी।

‘एयर हैमरिंग’ (Air Hammering) के बारे में

  • यह ड्रिलिंग रॉड के माध्यम से अत्यधिक संपीडित हवा (ड्रिलिंग मड के स्थान पर) को धकेलता है, जिससे बोरहोल गहरा हो जाता है और कटिंग बाहर निकल जाती है।

प्रत्येक तकनीक का उपयोग करने का निर्णय

  • इस तरह के निर्णय गतिशील होते हैं और इसके लिए सावधानीपूर्वक योजना और ड्रिलिंग कौशल की आवश्यकता होती है। यह साइट की आवश्यकताओं पर आधारित होता है, जैसे कि चट्टान का प्रकार, अत्यधिक खंडित चट्टान की उपस्थिति, जल प्रवाह क्षेत्र और कोर नमूने एकत्र करने की आवश्यकता, आदि।
    • मड रोटरी तकनीक (Mud Rotary Technique): इसका प्रयोग कोर का एक नमूना प्राप्त करने के लिए किया जाता है, क्योंकि यह मड रोटरी तकनीक लंबे, संबद्ध-विखंडित बेलनाकार कोर को कैप्चर की अनुमति देती है।
    • एयर-हैमरिंग तकनीक (Air-Hammering Technique): इसका उपयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है, जहाँ टीम ने चट्टान के टुकड़े एकत्र किए थे, जिनका उपयोग वैज्ञानिक चट्टान के गुणों के विभिन्न अध्ययनों के लिए करते हैं।

हाइब्रिड तकनीक की चुनौतियाँ

हाइब्रिड तकनीक में कई चुनौतियाँ हैं।

  • हुक लोड क्षमता (Hook Load Capacity): बोरहोल के गहरे होने और नई ड्रिलिंग रॉड तथा स्टील केसिंग पाइप के जुड़ने के साथ रिग के हुक पर भार बढ़ता रहता है। साथ ही गहराई बढ़ने के साथ, ड्रिल कटिंग को उठाने के लिए आवश्यक संपीडित वायु दबाव कई गुना बढ़ जाता है।
    • उदाहरण: कोयना में परिचालन के लिए, ऑपरेटरों ने 100 टन की हुक लोड क्षमता और 3 किमी की गहराई तक आवरण युक्त एक रिग उपकरण तैनात किया।
  • जटिलताएँ: जब बोरहोल की गहराई 3 किमी. से अधिक हो जाती है और 6 किमी. तक फैल जाती है, तो संपूर्ण रिग उपकरण को तेजी से बढ़ी हुई क्षमता के साथ अद्यतन करना होगा।
    • ऑपरेटरों को अधिक बार फॉल्ट लाइनों और फ्रैक्चर जोन का सामना करना पड़ेगा, जिनके माध्यम से जल बोरहोल में प्रवेश कर सकता है और ड्रिलिंग कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • विशेष उपकरण की आवश्यकता: शीर्ष से वांछित झुकाव पर बोरहोल को चलाने के लिए, ऊर्ध्वाधर नियंत्रित क्रियाओं का उपयोग करने के लिए ड्रिल मोटर्स, इमेजिंग टूल और मॉनिटरिंग डिवाइस जैसे विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिन्हें प्रत्येक मिनट ‘ट्यून’ किया जा सकता है।
    • इस प्रकार, गहरी ड्रिलिंग की योजना और क्रियान्वयन गतिशील है और इसे सावधानीपूर्वक तथा त्रुटिरहित होना चाहिए।
  • मानव संसाधन: इस प्रक्रिया में 24/7 ऑन-साइट कार्य हेतु अत्यधिक कुशल एवं प्रशिक्षित तकनीकी कार्मिकों की आवश्यकता होती है।
    • 3 किमी. बोरहोल के लिए, 24/7 ड्रिलिंग कम-से-कम 6-8 महीने तक चलेगी।
    • 6 किमी. बोरहोल के लिए, 24/7 ड्रिलिंग कम-से-कम 12-14 महीने तक चलेगी।

अब तक की उपलब्धियाँ

पायलट ड्रिलिंग मिशन सफल रहा और इससे महत्त्वपूर्ण नई जानकारियाँ प्राप्त हुईं:

  • क्षेत्र की प्रकृति: इसमें बताया गया कि कोयना क्षेत्र अत्यधिक तनावग्रस्त है, इसलिए तनाव के कारण होने वाली छोटी-सी गड़बड़ी भी चट्टान को क्षतिग्रस्त कर सकती है तथा संभावित रूप से क्षेत्र में बार-बार छोटे-तीव्रता वाले भूकंपों को जन्म दे सकती है।

  • 3 किमी. नीचे तक जल की उपस्थिति: यह पाया गया कि यह तूफानी या वर्षा आधारित है, जिसका अर्थ है कि इसमें गहरा रिसाव और परिसंचरण संभव है।
  • जलाशय से उत्पन्न भूकंप तंत्र के बारे में नई जानकारी: इसमें 1.2 किलोमीटर मोटी तथा 65 मिलियन वर्ष पुरानी डेक्कन ट्रैप लावा प्रवाह तथा उसके नीचे 2,500-2,700 मिलियन वर्ष पुरानी ग्रेनाइटिक बेसमेंट चट्टानें पाई गईं। 
  • चट्टानों से संबंधित जानकारी: 3 किमी. की गहराई से लिए गए कोर नमूनों और स्थितियों से चट्टानों के भौतिक और यांत्रिक गुणों, निर्माण तरल पदार्थों और गैसों की रासायनिक तथा समस्थानिक संरचना, तापमान और तनाव व्यवस्थाओं, तथा गहराई पर फ्रैक्चर अभिविन्यासों के बारे में अब तक अज्ञात जानकारी प्राप्त हुई है।
  • डेटा का सत्यापन: ध्वनिक और सूक्ष्म-प्रतिरोधकता तकनीकों का उपयोग करके बोरहोल दीवार के उच्च-रिजॉल्यूशन चित्रों को प्राप्त करने से दुनिया भर के वैज्ञानिकों को अन्य कोर से निकाले गए डेटा को मान्य या पुष्ट करने का अवसर मिलता है।
    • कोयना की टीम ने चट्टानों के ‘इन-सीटू स्ट्रेस रिजीम’ को मापने के लिए हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग प्रयोग भी किए। विभिन्न डेटासेट को एकीकृत करके और उन्नत विश्लेषण का उपयोग करके, टीम दबे हुए भ्रंश क्षेत्रों का पता लगाने और उनके गुणों का अध्ययन करने में भी सक्षम थी।

निष्कर्ष

कोयना डेटा और नमूने नए प्रयोगों को भी सुगम बनाएँगे तथा भारत के लिए वैज्ञानिक डीप-ड्रिलिंग में एक मजबूत आधार स्थापित करेंगे। इसके सबक भविष्य के डीप-ड्रिलिंग प्रयोगों के साथ-साथ कई तरीकों से अकादमिक ज्ञान का विस्तार करेंगे।

  • मॉडलिंग प्रयोगों से पता चला है कि 6 किमी. पर अपेक्षित तापमान 110-130 डिग्री सेल्सियस हो सकता है। इसलिए, ड्रिलिंग उपकरण, डाउनहोल डेटा अधिग्रहण प्रणाली और गहराई पर दीर्घकालिक प्लेसमेंट के लिए सेंसर को तदनुसार डिजाइन करने की आवश्यकता है।

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