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ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग

Lokesh Pal July 15, 2024 01:49 132 0

संदर्भ 

वैज्ञानिकों के एक समूह ने संभावित तकनीकी हस्तक्षेपों का आकलन करने के लिए ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग (Glacial Geoengineering) पर एक श्वेत पत्र जारी किया है, जो विनाशकारी समुद्र स्तर वृद्धि परिदृश्यों से निपटने में मदद कर सकता है। 

संबंधित तथ्य 

  • हाल ही में यह श्वेत पत्र शिकागो विश्वविद्यालय और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित दो जियोइंजीनियरिंग (Geoengineering) सम्मेलनों का परिणाम है, जो शिकागो विश्वविद्यालय में नवगठित जलवायु प्रणाली इंजीनियरिंग (Climate Systems Engineering) पहल द्वारा प्रेरित है। 
  • उद्देश्य: इस पत्र का उद्देश्य उन प्रौद्योगिकियों के लाभ, जोखिम और प्रशासन को समझना है, जो संचित ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को कम कर सकती हैं। 
  • अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्र: रिपोर्ट में भविष्य के लिए अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई है, जिसमें यह निर्धारित करना भी शामिल है कि कौन-सी प्राकृतिक प्रक्रियाएँ हिम चादर के क्षय को सीमित कर सकती हैं और कौन से मानवीय हस्तक्षेप उन प्रक्रियाओं को बढ़ा सकते हैं। 

प्रस्तावित ‘ग्लेशियर जियो-इंजीनियरिंग हस्तक्षेप’ 

  • फाइबर आधारित कर्टेन: इनमें बर्फ की शेल्फ के तल के चारों ओर समुद्र तल से जुड़े बर्म (Berms) या फाइबर आधारित ‘कर्टेन’ होते हैं, जो बर्फ की शेल्फ के नीचे संचरण करते गर्म समुद्री जल के संपर्क में आने से बर्फ की शेल्फ को बचाते हैं। 
    • मॉडलिंग अध्ययनों से पता चलता है कि मामूली कर्टेन इन ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के स्तर में वृद्धि को 10 गुना तक धीमा कर सकते हैं, क्योंकि वे अंटार्कटिका के थ्वाइट्स (Thwaites) और पाइन (Pine) द्वीप ग्लेशियरों के क्षय में अवरोध उत्पन्न करेंगे। 
    • उदाहरण के लिए, अंटार्कटिका में थ्वाइट्स ग्लेशियर में बदलाव लाने के लिए मात्र 50 मील के समुद्री संस्तर जाल और कर्टेन की आवश्यकता हो सकती है। 
  • ग्लेशियर तल में छेद करना: इस संभावित हस्तक्षेप में ग्लेशियर तल में छेद करना शामिल है (या तो ग्लेशियर को प्रभावित करने से पहले बर्फ के नीचे से जल को निकालने के लिए अथवा ग्लेशियर तल को कृत्रिम रूप से जमाने की कोशिश करने के लिए) ताकि बर्फ की चादर से पिघले जल को समुद्र में ले जाने वाली धाराओं के प्रवाह को धीमा किया जा सके।
    • परिकल्पना: पिघले जल की मात्रा कम करने से बर्फ की धारा जम जाएगी और पिघलना रुक जाएगा। 

जियो इंजीनियरिंग हस्तक्षेप की आवश्यकता

  • टिपिंग पॉइंट : दुनिया भर में प्रत्येक प्रमुख ग्लेशियर प्रणाली में परिवर्तन हुए हैं और जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन जारी रहेगा, ये विशाल बर्फ की चादरें पिघलती जाएँगी, जिससे वैश्विक समुद्र का स्तर बढ़ेगा।
    • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (Sixth Assessment Report- AR6) में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 1986-2005 की तुलना में वर्ष 2100 तक वैश्विक समुद्र स्तर 0.43 मीटर से 0.84 मीटर के बीच बढ़ सकता है। 
  • जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों से बचाना: जियो इंजीनियरिंग तकनीकें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए अपनाई जाने वाली शमन रणनीतियों में से एक हैं। अनुसंधान को वित्तपोषित करने और तकनीक विकसित करने जैसी प्रारंभिक कार्रवाई आवश्यक है, ताकि जब तात्कालिक संकट के समय त्वरित निर्णय न लिए जाएँ। 

कमियाँ

  • स्थानीय पारिस्थितिकी में परिवर्तन (Changing local Ecology): कर्टेन लगाने से गर्म जल पास की बर्फ की शेल्फ की ओर चला जाएगा, जिससे उनकी स्थिरता कम हो जाएगी, तथा स्थानीय पारिस्थितिकी में भी अनिश्चित तरीके से परिवर्तन आएगा। 
  • मूल प्रजातियों के जीवन में व्यवधान (Disruption of Indigenous lives): इस तकनीकी से स्थानीय समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर रहने वाली प्रजातियों का जीवन बाधित होगा, जिनमें कई देशज समुदाय भी शामिल हैं। 
  • जलवायु कार्रवाई से ध्यान भटकाना: जियो इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियों को तत्काल जलवायु कार्रवाई से ‘खतरनाक ध्यान भटकाने वाली’ तकनीक माना जाता है क्योंकि वे आवश्यक तात्कालिक कार्रवाई से ध्यान हटाकर भविष्य की तारीख की ओर उन्मुख कर सकती हैं। इन प्रौद्योगिकियों को वैश्विक स्तर पर निष्पक्ष रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और ये जोखिम लेकर आती हैं। 
  • भारी प्रौद्योगिकी गहनता (Heavy Technology Intensive): यद्यपि ड्रिलिंग पद्धति पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कम हानिकारक हो सकती है, लेकिन यह बहुत प्रभावी नहीं हो सकती है क्योंकि इसके लिए कठोर परिस्थितियों में बहुत अधिक इंजीनियरिंग की आवश्यकता होगी। 
  • प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करना (Ensuring Effective collaboration): ऐसे किसी भी हस्तक्षेप को विश्व भर के देशों से इनपुट लेकर संचालित करने की आवश्यकता होगी, जिसमें सभी हितधारकों, विशेष रूप से द्वीपीय राष्ट्रों के बीच मजबूत भागीदारी की आवश्यकता होगी। 
  • संभावित परिणाम की प्रभावशीलता: वैश्विक समुद्री स्तर को प्रभावित करने वाली अधिकांश बर्फ आर्कटिक और अंटार्कटिका के कुछ क्षेत्रों में केंद्रित है, जिससे ऐसे हस्तक्षेपों की संभावना एवं प्रभावशीलता पर संदेह उत्पन्न होता है। 
  • हिमनदीय हस्तक्षेपों के बारे में वैज्ञानिक एवं आर्थिक समझ सीमित है, विशेष रूप से अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में बर्फ की धाराओं और ग्लेशियरों से जुड़े बड़े पैमाने पर हिम चादर के क्षय (विशेष रूप से समुद्री हिम चादर की अस्थिरता के कारण) के संबंध में।

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