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भारत पर फ्राँसीसी क्रांति का प्रभाव

Lokesh Pal July 16, 2024 02:47 118 0

संदर्भ

फ्राँसीसी राष्ट्रीय दिवस (French National Day), जिसे बास्तील दिवस (Bastille Day) के रूप में भी जाना जाता है, प्रत्येक वर्ष 14 जुलाई को 1789 ईसवी में पेरिस की बास्तील जेल पर हमले की वर्षगाँठ पर मनाया जाता है। 

  • पिछले वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री ने फ्राँस में ‘बास्तील दिवस समारोह’ में भाग लिया था।

फ्राँसीसी क्रांति (French Revolution) के बारे में

  • फ्राँसीसी क्रांति ने फ्राँसीसी राजतंत्र और पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था के पतन को चिह्नित किया, जिसने निरंकुशता के अंत एवं धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक शासन के उदय का संकेत दिया। 
  • समय सीमा: फ्राँसीसी क्रांति 1789 ईसवी से 1799 ईसवी तक फ्राँस में क्रांतिकारी सामाजिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल का काल था।
  • विशिष्टता: देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के साथ-साथ गहन सांस्कृतिक एवं बौद्धिक परिवर्तन भी हुए। 

फ्राँसीसी क्रांति के प्रभाव

इस क्रांति का न केवल फ्राँस पर बल्कि शेष यूरोप एवं विश्व पर भी गहरा प्रभाव पड़ा तथा इसने स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र के लिए अन्य आंदोलनों को भी प्रेरित किया। 

  • राजशाही का अंत: फ्राँसीसी क्रांति ने सदियों पुरानी निरंकुश राजशाही (Absolute Monarchy), सामंती कानूनों (Feudal Laws) और सामाजिक असमानता (Social Inequality) को समाप्त कर दिया। 
  • आधुनिक आदर्शों का परिचय: पहली बार ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व’ (Liberty, Equality and Fraternity) जैसे विचार प्रस्तुत किए गए। 
  • समाजवाद और साम्यवाद का विकास: इसने अप्रत्यक्ष रूप से समाजवाद और साम्यवाद के विकास के लिए आधार तैयार किया, क्योंकि इसके लिए एक बौद्धिक और सामाजिक वातावरण उपलब्ध कराया गया, जिसमें इन विचारधाराओं का प्रचार प्रसार हो सका।
  • राष्ट्रवाद की प्रबल भावना को बढ़ावा दिया: लोगों की सामूहिक इच्छा पर जोर देकर और आत्मनिर्णय की अवधारणा (Concept of Self-determination) को बढ़ावा देकर राष्ट्रवाद की प्रबल भावना को बढ़ावा दिया। 
  • अन्य क्रांतिकारी आंदोलनों के लिए प्रेरणा: इस क्रांति ने पूरे यूरोप में हलचल मचा दी, क्रांतिकारी आंदोलनों को प्रेरित किया और पारंपरिक राजतंत्रों को चुनौती दी, जिसके परिणामस्वरूप अंततः नेपोलियन का उदय हुआ और संघर्ष तथा परिवर्तन का दौर शुरू हुआ।

भारतीय संविधान सभा और भारत पर फ्राँसीसी क्रांति का प्रभाव (Influence of the French Revolution on Indian Constituent Assembly and India)

भारत सहित कई अन्य देश जो उपनिवेशवाद से मुक्त हुए, वे फ्राँसीसी क्रांति से प्रेरित थे।

  • टीपू सुल्तान द्वारा स्वतंत्रता का वृक्ष (Tree of Liberty): 18वीं शताब्दी के अंत में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम् में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाने और स्वयं को ‘नागरिक टीपू’ (Citizen Tipoo) कहलाने के लिए प्रसिद्ध हुए थे।  
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना: भारतीय संविधान सभा ने फ्राँसीसी क्रांति से भारत के संविधान की प्रस्तावना की पहली कुछ पंक्तियों को अपनाया। 
    • प्रस्तावना विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, (अपने नागरिकों को) स्थिति और अवसर की समानता प्रदान करती है तथा उन सभी के बीच व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता का आश्वासन देते हुए बंधुत्व (Fraternity) को बढ़ावा देती है। 
  • गणतंत्र का विचार (Idea of Republic): गणतंत्र का अर्थ है राज्य के सर्वोच्च पद को निर्वाचित प्रतिनिधि के लिए सुरक्षित रखना, जो लोगों द्वारा स्वयं शासन का प्रतीक है। फ्राँस ने अपनी राजशाही को उखाड़ फेंककर दुनिया भर में राजशाही की अजेयता के मिथक को तोड़ दिया। 
    • संविधान सभा ने प्रस्तावना पर अपनी बहस अक्टूबर 1949 में शुरू की थी। इस समय तक समानता का विचार पहले से ही संहिताबद्ध हो चुका था।
    • उदाहरण: भारत ने उपाधियों को समाप्त कर दिया (अनुच्छेद-18), सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (अनुच्छेद-326) की शुरुआत की तथा नागरिकों के मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद-14, 15) और कई अन्य के रूप में समता के सिद्धांतों के साथ समानता की वकालत की। 
  • धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व (Secularism and Fraternity): भारतीय संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व के विचार के संदर्भ में फ्राँस से एक और सबक लिया। हालाँकि, भारत और फ्राँस में धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म का अभाव नहीं है।
    • फ्राँसीसी क्रांति के बाद, नेपोलियन बोनापार्ट ने पोप के साथ ‘कॉनकॉर्डैट’ (Concordat) नामक एक समझौता किया, जिसके तहत चर्च के मामलों पर राज्य की शक्ति की निगरानी की अनुमति दी गई। 
      • यह एक समझौता था जो नेपोलियन ने राज्य के भीतर धर्म को बनाए रखने के लिए किया था।
    • भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म का पूर्णतः अभाव नहीं है, बल्कि सभी संप्रदायों और धर्मों की समान रूप से उपस्थिति है।
      • इसलिए, राज्य सभी धार्मिक संप्रदायों को अनुदान प्रदान करता है। (अनुच्छेद-25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता प्रदान करता है तथा अनुच्छेद-26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।) 

भारत में फ्राँसीसियों का इतिहास

फ्राँसीसी व्यापारी के रूप में भारत पहुँचने वाले अंतिम यूरोपीय थे, उनके बाद पुर्तगाली, फिर ब्रिटिश, फिर डच, फिर डेनिश और फिर फ्राँसीसी आए।

  • स्थापना: 1664 ईसवी में फ्राँसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी ‘कॉम्पेग्नी डेस इंडेस ओरिएंटेल्स’ (Compagnie des Indes Orientales) की नींव लुई XIV के दरबार में मंत्री जीन-बैप्टिस्ट कोलबर्ट (Jean-Baptiste Colbert) ने रखी थी।
  • संयुक्त उद्यम कंपनी (Joint Venture Company): फ्राँसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी एक संयुक्त स्टॉक कंपनी थी, जिसकी स्थापना पूर्व के साथ व्यापार के संबंध में अंग्रेजी और डच कंपनी के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए की गई थी।
    • कंपनी को भारतीय और प्रशांत महासागर में फ्राँसीसी व्यापार पर 50 वर्ष का एकाधिकार प्रदान किया गया।
  • पहला कारखाना: सूरत में पहला फ्राँसीसी कारखाना 1668 ईसवी में फ्रेंकोइस कैरन (Francois Caron) द्वारा स्थापित की गई थी।
  • सत्ता का मुख्य केंद्र: पांडिचेरी (पुद्दुचेरी) फ्राँसीसी शक्ति का मुख्य केंद्र बन गया।
    • 1673 ईसवी में, वलिकंदपुरम (Valikandapuram) में बीजापुर सुल्तान के गवर्नर शेर खान लोदी ने फ्राँसीसी गवर्नर फ्रेंकोइस मार्टिन (Francois Martin) को पांडिचेरी में एक कारखाना स्थापित करने की अनुमति दी। 
    • फ्राँसीसियों ने 1725 ईसवी में माहे (मालाबार तट) और 1738 ईसवी में कराईकल पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। 
  • शुरुआती असफलताएँ: डचों ने (अंग्रेजों के साथ गठबंधन करके) 1693 ईसवी में फ्राँसीसियों से पांडिचेरी पर अधिकार कर लिया।
    • लेकिन रीजविक की संधि (Treaty of Ryswick) ने पांडिचेरी को फ्रांसीसियों को वापस दे दिया। 
  • शक्ति का ह्रास: सैन्य पराजयों और क्षेत्रीय क्षतियों के कारण भारत में फ्राँसीसी शक्ति का ह्रास हुआ।
    • स्वाली की लड़ाई (Battle of Swally): इसे सुवाली की लड़ाई (Battle of Suvali) के नाम से भी जाना जाता है। 
      • एक नौसैनिक युद्ध: यह युद्ध नवंबर 1612 में भारत के गुजरात में सूरत शहर के पास सुवाली गाँव के तट पर लड़ा गया था। 
        • यह युद्ध कैप्टन थॉमस बेस्ट (Captain Thomas Best) के नेतृत्व वाली ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं और पुर्तगालियों के बीच लड़ा गया था। 
      • परिणाम: इसका समापन पुर्तगालियों पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत के साथ हुआ और इसने भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की उपस्थिति के उदय की शुरुआत की। 

पांडिचेरी (अब पुडुचेरी) का फ्राँसीसी कनेक्शन

‘ला कम्पैनिये फ्रांसेइस डेस इंडेस ओरिएंटेल्स’ (La Compagnie française des Indes orientales) की स्थापना 1673 ईसवी में पांडिचेरी (अब पुडुचेरी) में की गई थी। 

  • एन्क्लेव पर पकड़: पांडिचेरी में कई परिक्षेत्र शामिल थे, जैसे कराईकल, माहे और यनम्, चंद्रनगर आदि। 
    • ये सभी क्षेत्र ब्रिटिश व्यापारियों के साथ निरंतर संघर्ष में थे।
  • कर्नाटक युद्ध (Carnatic Wars): अंग्रेजों के साथ तीन कर्नाटक युद्ध (1740-63) लड़ने के बाद, फ्राँसीसी अंग्रेजों के अधीन भारत में संरक्षित राज्यों में सिमट गए। इसलिए, भारत और फ्राँस के बीच संबंध भारत और ब्रिटेन के बीच संबंधों से थोड़े अलग थे। 
    • भारतीयों और फ्राँसीसियों के बीच सबसे पहली मित्रता 1857 ईसवी के संघर्ष में सामने आई।
  • स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सुरक्षित आश्रय (Safe haven for Freedom Fighters): पांडिचेरी उन अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बन गया जो ब्रिटिश कानूनों के विरुद्ध संघर्ष करने आए थे।
    • सुब्रमण्य भारती (Subramania Bharati) पर अपने संपादित अखबार इंडिया में राष्ट्रवादी कविताएँ लिखने का आरोप लगा। उन्होंने पांडिचेरी में शरण माँगी। 
    • लाला लाजपत राय, वी. ओ. चिदंबरम् पिल्लई और सी. राजाजी ने भी इसका अनुसरण किया और अपने कॅरियर में फ्राँसीसी उपनिवेशों को बचाव बिंदु बनाया।
    • अरबिंदो (Aurobindo) ने इस फ्राँसीसी क्षेत्र को अपना आध्यात्मिक केंद्र भी बनाया। 
    • डेविड अन्नौसामी ने अपनी पुस्तक L’Intermède français en Inde: Secousses politiques etmutations juridiques में उल्लेख किया है कि पांडिचेरी के कम-से-कम 440 भारतीय निवासियों ने गवर्नर को पत्र लिखकर फ्राँसीसी कमान के प्रति अपनी वफादारी और विश्वास व्यक्त किया था। 
  • पांडिचेरी का एकीकरण और भारतीय संविधान पर इसका प्रभाव: पांडिचेरी का एकीकरण स्वतंत्र भारत में अन्य ब्रिटिश-नियंत्रित क्षेत्रों के समान नहीं था।
    • जयपुर का कांग्रेस प्रस्ताव, 1948: इसमें भारत में गैर-ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा शासित क्षेत्रों के शांतिपूर्ण एकीकरण का तर्क दिया गया।
      • यह पुर्तगाली-नियंत्रित गोवा, दमन-दीव, दादरा नगर हवेली और फ्राँसीसी नियंत्रित पांडिचेरी के क्षेत्रों के लिए एक सीधा संदेश था। 
    • सत्ता के अंत की संधि या सत्ता के हस्तांतरण की वास्तविक संधि (Treaty of Cessation or De facto treaty of Transfer of Power): इस समझौते पर भारत सरकार और फ्राँस सरकार के बीच अक्टूबर 1954 में हस्ताक्षर किए गए थे।
      • 1 नवंबर, 1954 से भारत सरकार ने भारत में फ्राँसीसी क्षेत्रों पर भौतिक नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
    • विशिष्ट प्रावधान
      • 14वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1962: इसने पांडिचेरी को राज्य विधानसभा के साथ एक केंद्र शासित प्रदेश का अलग दर्जा दिया। 
      • संघ राज्य क्षेत्र अधिनियम  1963: इसने राज्य विधानसभा को फ्राँसीसी वाणिज्य दूतावास और फ्राँसीसी भाषा को आधिकारिक श्रेणी सूची में बनाए रखने की अनुमति दी। 

भारत में फ्राँसीसी उपस्थिति के स्थायी परिणाम

फ्राँसीसी उपस्थिति ने भारतीय और फ्राँसीसी समाजों के बीच सांस्कृतिक एवं बौद्धिक आदान-प्रदान को सुगम बनाया। 

  • सांस्कृतिक प्रभाव: फ्राँसीसी लोग अपने साथ अपनी भाषा, वास्तुकला और रीति-रिवाज लेकर आए, तथा पांडिचेरी जैसे क्षेत्रों में अपना स्थायी सांस्कृतिक प्रभाव छोड़ा।
  • व्यापार एवं वाणिज्य: फ्राँसीसी व्यापारिक चौकियों और कारखानों ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया।
  • शहरी विकास: फ्राँसीसी बस्तियों में शहरी विकास हुआ, जिसमें किलों और सार्वजनिक भवनों का निर्माण भी शामिल था।
    • उदाहरण: पांडिचेरी में फ्रेंच क्वार्टर
  • राजनीतिक और सैन्य प्रतिद्वंद्विता: एंग्लो-फ्रेंच प्रतिद्वंद्विता ने औपनिवेशिक भारत की राजनीतिक गतिशीलता को आकार दिया।
  • समुद्री युद्ध: फ्राँसीसी नौसैनिक क्षमताओं ने क्षेत्र में समुद्री संघर्षों में योगदान दिया।

भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण बाह्य स्रोत

भारतीय संविधान को कई स्रोतों से तैयार किया गया था। भारत सरकार अधिनियम, 1935 जैसे पिछले अनुभवी विधानों के अलावा भारतीय संविधान के प्रमुख बाहरी स्रोत निम्नलिखित हैं:-

  • ब्रिटिश संविधान: संसदीय शासन प्रणाली, कानून का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, कैबिनेट प्रणाली, रिट, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदनीयता, फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) पद्धति, तथा संस्था के रूप में अध्यक्ष एवं उसकी भूमिका।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान: प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, सरकार का संघीय ढाँचा, निर्वाचक मंडल, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति पर महाभियोग, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना और उपराष्ट्रपति का पद तथा कानून के तहत समान संरक्षण।
  • आयरिश संविधान: राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत, राज्य सभा के सदस्यों का नामांकन और राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति।
  • कनाडा का संविधान: एक मजबूत केंद्र के साथ संघ, केंद्र में अवशिष्ट शक्तियों का निहित होना, केंद्र द्वारा राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति, और सर्वोच्च न्यायालय का सलाहकार क्षेत्राधिकार।
  • ऑस्ट्रेलियाई संविधान: समवर्ती सूची, व्यापार की स्वतंत्रता, संविधान, वाणिज्य और अंतर्संबंध तथा संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
  • वाइमर संविधान (जर्मनी): आपातकाल के दौरान जर्मनी के मौलिक अधिकारों का निलंबन, तथा संघ द्वारा प्राप्त की जाने वाली आपातकालीन शक्तियाँ
  • सोवियत संविधान (USSR- अब रूस): मौलिक कर्तव्य एवं आदर्श तथा प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक)
  • फ्रांसीसी संविधान: गणतंत्र और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श
  • दक्षिण अफ्रीकी संविधान: संविधान संशोधन और राज्य सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया
  • जापानी संविधान: विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।

बास्तील दिवस (Bastille Day) के बारे में 

  • बास्तील दिवस, फ्राँस में फ्राँसीसी क्रांति की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है, जिसमें निरंकुश बोरबोन राजशाही (Bourbon Monarchy) की पुरानी व्यवस्था को गणतंत्रवाद के पक्ष में उखाड़ फेंका गया था। 
  • राजशाही का अंत: 14 जुलाई, 1789 को पेरिस के लोगों ने बास्तील जेल की दीवारें तोड़कर कैदियों को आजाद कर दिया। इसे राजशाही की सत्ता के अंतिम अंत के रूप में देखा गया।
  • सहयोग: फ्राँस के सैन्स-कुलोट्स (Sans-culottes), किसानों और मछुआरों तथा पेरिस की महिलाओं ने मिलकर इस दिन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को आकार दिया। 
  • फ्रांसीसी क्रांति के आदर्श: बाद में, अगस्त में, एक राष्ट्रीय सभा की स्थापना की गई जिसने मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा की। यहीं पर हमने पहली बार फ्राँसीसी गणराज्य के आदर्शों को सुना और देखा- ‘लिबर्टे, इगैलिटी, फ्रेटरनिटे’ (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व)।

निष्कर्ष

शीतयुद्ध के बाद, भारत और फ्राँस ने वर्ष 1998 में सामरिक साझेदारी की। पोखरण परीक्षण के बाद जब भारत अलग-थलग पड़ गया था, तब फ्राँस उन कुछ यूरोपीय देशों में से एक था, जिन्होंने भारत की मदद की थी, और हमें यह भी नहीं  भूलना चाहिए कि यह भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला यूरोपीय देश था।

  • वर्तमान में भारत और फ्राँस के बीच रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग और असैन्य परमाणु सहयोग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत संबंध हैं, जो सामरिक साझेदारी के प्रमुख स्तंभ हैं।

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