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RBI द्वारा वित्तीय धोखाधड़ी के प्रबंधन के लिए नियमों में संशोधन

Lokesh Pal July 16, 2024 02:59 100 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों सहित वाणिज्यिक बैंकों; शहरी, राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों; और गैर-बैंकिंग वित्त फर्मों और आवास वित्त कंपनियों जैसे विनियमित संस्थाओं के लिए धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन पर तीन संशोधित निर्देश जारी किए।

संबंधित तथ्य

  • ये निर्देश, पूर्व निर्देशों, परिपत्र और उभरते मुद्दों की व्यापक समीक्षा के आधार पर तैयार किए गए हैं। 
  • ये निर्देश विनियमित संस्थाओं (REs) में धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन के समग्र शासन और निगरानी में बोर्ड की भूमिका को मजबूत करते हैं।
  • ये निर्देश REs में मजबूत आंतरिक लेखा परीक्षा और नियंत्रण ढाँचे को स्थापित करने की आवश्यकता पर भी जोर देते हैं।

निर्देश

  • निर्देशों में विनियमित संस्थाओं को व्यक्तियों/संस्थाओं को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले समयबद्ध तरीके से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें भारतीय स्टेट बैंक बनाम राजेश अग्रवाल मामले में मार्च 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में रखा गया है।

भारतीय स्टेट बैंक बनाम राजेश अग्रवाल मामला

  • भारतीय स्टेट बैंक बनाम राजेश अग्रवाल मामले में, मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने किसी खाते को धोखाधड़ी की श्रेणी में डालने से पहले कर्ज लेने वाले की बातों को सुने जाने के उसके अधिकारों की वकालत की।

  • REs में धोखाधड़ी का जल्द पता लगाने और रोकथाम तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों एवं पर्यवेक्षकों को समय पर रिपोर्ट करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी संकेतों व खातों की रेड फ्लैगिंग पर ढाँचे को मजबूत किया गया है। 
  • इसके अलावा, जोखिम प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने के लिए डेटा एनालिटिक्स और मार्केट इंटेलिजेंस यूनिट की आवश्यकता को अनिवार्य किया गया है।
  • नियमों को युक्तिसंगत बनाने और अनुपालन बोझ को कम करने के लिए RBI ने संशोधनों के बाद इस विषय पर 36 मौजूदा परिपत्रों को वापस ले लिया।
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के तहत कर्जदारों को नोटिस दिया जाना चाहिए।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत

  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत कानूनी सिद्धांतों का एक समूह है, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक और कानूनी कार्यवाही में निष्पक्ष और न्यायपूर्ण निर्णय लेना सुनिश्चित करना है।
  • इन्हें दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है : मूल और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता।
  • वास्तविक निष्पक्षता से तात्पर्य उस आवश्यकता से है, जिसमें प्रशासनिक निर्णय वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर आधारित हों तथा निर्णयकर्ता निर्णय लेने से पहले सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करे।
  • दूसरी ओर, प्रक्रियात्मक निष्पक्षता से तात्पर्य उस आवश्यकता से है, जिसमें प्रशासनिक निर्णय पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रियाओं का उपयोग करके लिए जाएँ।


  • फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के निष्कर्षों को समझाने का अवसर दिया जाना चाहिए और उनके खाते को मास्टर निर्देशों के तहत धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले संबंधित बैंकों को उन्हें अपना पक्ष रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।

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