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नागरिकता कानून का मानवीयकरण: उच्चतम न्यायालय का फैसला

Lokesh Pal July 17, 2024 03:09 137 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने असम निवासियों के विरुद्ध नागरिकता कार्यवाही शुरू करने के तरीके की निंदा की। 

नागरिकता कार्यवाही के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का रुख

  • साक्ष्यों का बोझ (Burden of Proof)
    • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विदेशी अधिनियम, 1946 (Foreigners Act, 1946) की धारा 9, कथित विदेशी पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का बोझ डालती है तथा इससे आरोप के लिए आधार प्रदान करने की राज्य की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती है। 
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्य को आरोपी पर आरोप साबित करने का भार डालने से पहले उस सामग्री को साझा करना होगा जिस पर आरोप आधारित है। 
      • यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन करता है – ‘ऑडी अल्टरम पार्टम’ (Audi Alteram Partem) अर्थात् ‘किसी को भी बिना सुने दोषी नहीं ठहराया जाएगा’। 
    • यहाँ तक ​​कि साक्ष्य के भार को उलट देने के बावजूद, न्यायालय ने पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए, राज्य द्वारा अपने प्रारंभिक भार को पूरा करने की आवश्यकता पर बल दिया। 

  • दस्तावेजों में विसंगतियाँ (Discrepancies in Documents)
    • निर्णय में यह स्वीकार किया गया कि मतदाता सूची जैसे दस्तावेजों में नाम और तारीखों में मामूली विसंगतियाँ आम बात है और इसे किसी को विदेशी घोषित करने का एकमात्र आधार नहीं होना चाहिए। 
  • विदेशियों के न्यायाधिकरण (Foreigners’ Tribunals)
    • इस निर्णय ने भारतीय संविधान से पहले के औपनिवेशिक कानून के तहत स्थापित विदेशी न्यायाधिकरणों (Foreigners’ Tribunals-FT) की वैधता पर चिंताएँ उठाईं। 
    • न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि विदेशी न्यायाधिकरण, दर्ज विदेशियों के लिए थे, न कि भारतीय नागरिकों की नागरिकता निर्धारित करने के लिए। 
    • निर्णय में FT कार्यवाही में पारदर्शिता की कमी की आलोचना की गई, जहाँ नोटिस में अक्सर आरोपों के आधार को छिपा दिया जाता है। 

नागरिकता को कैसे परिभाषित किया जाता है?

  • नागरिकता से तात्पर्य किसी व्यक्ति की किसी संप्रभु राज्य या देश के सदस्य के रूप में कानूनी स्थिति से है। 
  • यह अवधारणा व्यक्ति को राजनीतिक और नागरिक अधिकार और एकल नागरिकता प्रदान करती है।
  • इसे संघ सूची में सूचीबद्ध किया गया है। 
  • नागरिकता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-5: संविधान के प्रारंभ में नागरिकता 
      • इस संविधान की शुरुआत (26 नवंबर, 1949 को) पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका अधिवास भारत के राज्यक्षेत्र में है और— 
        • जो भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा हो।
        • जिनके माता-पिता में से कोई एक भारत के राज्य क्षेत्र में पैदा हुआ हो।
        • संविधान लागू होने के बाद कम-से-कम 5 वर्षों तक साधारण निवासी
    • अनुच्छेद-6: पाकिस्तानी प्रवासियों के लिए नागरिकता के अधिकार
    • अनुच्छेद-7: पाकिस्तान में प्रवासियों के लिए नागरिकता के अधिकार (अनुच्छेद-5 और 6 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत के राज्यक्षेत्र से उस राज्यक्षेत्र में प्रवास कर गया है, जो अब पाकिस्तान में सम्मिलित है, भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा)।
      • यह नियम ऐसे व्यक्तियों पर लागू नहीं होता जो भारत वापस लौटे हैं। 
        • पाकिस्तान में प्रवास के बाद किसी भी कानून के प्राधिकारी द्वारा जारी पुनर्वास या स्थायी वापसी परमिट।
    • अनुच्छेद-8: भारत से बाहर रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों के लिए नागरिकता अधिकार 
      • वर्तमान में भारत के बाहर किसी भी देश में रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति भारतीय नागरिकता के लिए पात्र हैं।
    • अनुच्छेद-9: विदेशी नागरिकता का स्वैच्छिक अधिग्रहण
      • निषेध: कोई भी नागरिक अनुच्छेद-5, 6 या अनुच्छेद-8 के तहत भारतीय नागरिकता का दावा नहीं कर सकता है, यदि उसने स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर ली हो। 
    • अनुच्छेद-10: नागरिकता के अधिकारों की निरंतरता 
      • अधिकार संरक्षण (Rights Preservation): इस भाग के पूर्वोक्त प्रावधानों के तहत भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता प्राप्त कोई भी व्यक्ति संसद द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून के अधीन अपनी नागरिकता, स्थिति बरकरार रखेगा। 
    • अनुच्छेद-11: नागरिकता पर संसदीय प्राधिकार
      • संसद को नागरिकता के अधिग्रहण, समाप्ति और उससे संबंधित अन्य पहलुओं से संबंधित कानून बनाने का अधिकार है।

नागरिकता कार्यवाही (Citizenship Proceedings) क्या है?

नागरिकता कार्यवाही किसी व्यक्ति की नागरिकता की स्थिति निर्धारित करने में शामिल कानूनी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक कार्रवाइयों को संदर्भित करती है। ये कार्यवाही देश के आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन इनमें आम तौर पर निम्नलिखित शामिल होते हैं:- 

भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के तरीके

नागरिकता अधिनियम में बताए गए कई तरीकों से भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। यहाँ मुख्य तरीके दिए गए हैं: –

नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955)

  • जन्म से नागरिकता
    • 26 जनवरी, 1950 और 1 जुलाई, 1987 के बीच जन्मे: इस अवधि के दौरान भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारतीय नागरिक है।
    • 1 जुलाई, 1987 और 3 दिसंबर, 2004 के बीच जन्मे: भारत में जन्मा व्यक्ति नागरिक है, यदि जन्म के समय उसके माता-पिता में से कम-से-कम एक भारतीय नागरिक था।
    • 3 दिसंबर, 2004 के बाद जन्मे: भारत में जन्मा व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हों या यदि माता-पिता में से एक भारतीय नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो।
    • अपवाद: जन्म से नागरिकता विदेशी राजनयिक कार्मिकों या शत्रु विदेशियों के बच्चों पर लागू नहीं होती। 
  • वंश द्वारा नागरिकता (Citizenship by Descent)
    • भारत के बाहर जन्मा व्यक्ति भारतीय नागरिक है यदि:
      • 10 दिसंबर, 1992 से पहले: पिता भारतीय नागरिक हो।
      • 10 दिसंबर, 1992 के बाद: माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो।
      • 3 दिसंबर, 2004 के बाद: जन्म का पंजीकरण एक वर्ष के भीतर भारतीय वाणिज्य दूतावास में कराया जाना चाहिए अथवा विलंबित पंजीकरण के लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी।
  • पंजीकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by Registration)
    • पात्र समूहों में शामिल हैं:-
      • भारतीय मूल के व्यक्ति जो सात वर्षों से भारत में रह रहे हों।
      • वे व्यक्ति जो भारतीय नागरिकों से विवाहित हैं और सात वर्षों से भारत में रह रहे हैं।
      • भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
      • अधिनियम में निर्दिष्ट अन्य श्रेणियाँ।
  • देशीयकरण द्वारा नागरिकता (Citizenship by Naturalization)
    • विदेशी नागरिक देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं, यदि वे भारत में 12 वर्षों तक रह चुके हों (आवेदन तिथि से ठीक पहले के 12 महीने और उन 12 महीनों से पहले के 14 वर्षों में से 11 वर्ष सहित) और अन्य निर्दिष्ट योग्यताएँ पूरी करते हों। 
  • क्षेत्र के समावेश द्वारा नागरिकता (Citizenship by Incorporation of Territory)
    • यदि कोई नया क्षेत्र भारत का हिस्सा बन जाता है, तो सरकार उस क्षेत्र के लोगों को भारतीय नागरिक घोषित कर सकती है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act- CAA), 2019 

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है, जो धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर गए थे। 
  • आवेदक को भारत में पाँच वर्ष तक रहना होगा, जबकि नागरिकता प्राप्त करने के लिए सामान्यतः 11 वर्ष का समय आवश्यक होता है।

भारतीय नागरिकता की समाप्ति

नागरिकता अधिनियम के अनुसार भारतीय नागरिकता तीन तरीकों से समाप्त की जा सकती है:

  • त्याग (Renunciation)
    • प्रक्रिया: कोई भारतीय नागरिक जो किसी अन्य देश का नागरिक भी है, औपचारिक घोषणा करके अपनी भारतीय नागरिकता त्याग सकता है। 
    • परिवार पर प्रभाव: जब कोई पुरुष नागरिक अपनी भारतीय नागरिकता त्यागता है, तो उसके नाबालिग बच्चे भी अपनी भारतीय नागरिकता खो देते हैं। हालाँकि, ये बच्चे वयस्क होने के एक वर्ष के भीतर नागरिकता फिर से शुरू करने का इरादा घोषित करके अपनी भारतीय नागरिकता पुनः प्राप्त कर सकते हैं। 
  • समापन
    • मानदंड: यदि कोई नागरिक जानबूझकर या स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाती है।
  • हानि
    • सरकारी प्राधिकार (Government Authority): भारत सरकार विशिष्ट परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को उसकी नागरिकता से वंचित कर सकती है।
    • प्रयोज्यता: यह केवल उन व्यक्तियों पर लागू होता है जिन्होंने पंजीकरण, देशीयकरण या संविधान के अनुच्छेद-5 खंड (C) के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त की है (जो उन लोगों से संबंधित है, जो भारत में अधिवासित थे और संविधान लागू होने से पहले कम-से-कम पाँच साल तक निवासी थे)। 

विदेशी अधिनियम (Foreigners Act), 1946

  • विदेशी अधिनियम, 1946, इंपीरियल लेजिस्लेटिव असेंबली द्वारा भारत की अंतरिम सरकार को देश में विदेशियों के संबंध में कुछ अधिकार देने के लिए अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम भारत को स्वतंत्रता मिलने से पहले पारित किया गया था। 

प्रमुख प्रावधान 

  • विदेशी की परिभाषा : विदेशी को “ऐसा व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है” के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • सिद्ध करने का भार: धारा 9 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता स्पष्ट नहीं है, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की है कि वह विदेशी है या नहीं। 
  • रिपोर्ट करने का दायित्व: विदेशी (पुलिस को रिपोर्ट करना) आदेश, 2001 के अनुसार, यदि किसी को लगता है कि कोई विदेशी बिना वैध दस्तावेजों के भारत में प्रवेश कर गया है या निर्धारित समय से अधिक समय तक भारत में रुका है, तो उसे 24 घंटे के भीतर निकटतम पुलिस स्टेशन को सूचित करना होगा। 
  • हिरासत और निर्वासन (Detention and Deportation): यह अधिनियम भारत सरकार को व्यक्तियों को तब तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है, जब तक कि उन्हें उनके मूल देश वापस नहीं भेज दिया जाता। 

यह कानून सरकार को भारत में विदेशियों की उपस्थिति और आवाजाही को विनियमित करने, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और आव्रजन कानूनों के अनुपालन का अधिकार देता है। 

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