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निर्माण कार्यों के कारण सतलुज नदी का संकुचन

Lokesh Pal July 18, 2024 02:26 107 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा है कि सतलुज पर बाँधों के निर्माण ने ट्रांस-हिमालयी नदी को एक छोटी नदी में परिवर्तित कर दिया है, जिससे संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और पारिस्थितिकी शृंखला बदल गई है। 

  • उन्होंने भारत के कृषि क्षेत्र और नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र के बीच महत्त्वपूर्ण संबंध पर जोर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि जलवायु परिवर्तन किस तरह से कृषि को नुकसान पहुँचा रहा है। 

सतलुज नदी

  • उद्गम: सतलुज नदी तिब्बत में 4,555 मीटर की ऊँचाई पर मानसरोवर के पास राकस झील से निकलती है, जहाँ इसे लॉन्गचेन खंबाब (Langchen Khambab) के नाम से जाना जाता है।

  • नदी का मार्ग
    • यह नदी हिमाचल प्रदेश में शिपकी ला दर्रे (Shipki La Pass) से होकर 6,608 मीटर की ऊँचाई पर पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में बहते हुए भारत में प्रवेश करती है। 
    • इसके बाद यह नदी पंजाब से होकर नांगल के पास बहती हुई ब्यास नदी (Beas River) से मिलती है। 
    • इन दोनों नदियों के मिलने से भारत-पाकिस्तान सीमा का 105 किलोमीटर लंबा जल क्षेत्र बनता है। 
    • यह नदी चिनाब नदी में मिलने से पहले 350 किलोमीटर तक बहती रहती है।
    • सतलुज और चिनाब नदियों के संयोजन से पंजनद नदी बनती है, जो अंततः सिंधु नदी में मिल जाती है। 
  • लंबाई: नदी की कुल लंबाई लगभग 1,550 किमी. है, जिसमें से 529 किमी. पाकिस्तान में है।
  • सहायक नदियाँ: सतलुज नदी की कई सहायक नदियाँ हैं, जिनमें बस्पा, ब्यास, नोगली खाड, सोन और स्पीति शामिल हैं।
  • महत्त्व: यह सिंधु नदी की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है और यह भाखड़ा नांगल परियोजना की नहर प्रणाली को जल उपलब्ध कराती है।
  • वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि के अनुसार, सतलुज नदी का जल भारत को आवंटित किया गया है।
  • नदी पर विभिन्न जलविद्युत और सिंचाई परियोजनाएँ हैं जैसे कोल बाँध, भाखड़ा नांगल बाँध, बस्पा जलविद्युत परियोजना और नाथपा झाकड़ी परियोजना। 

कृषि में नदियों का महत्त्व

  • सिंचाई का प्राथमिक स्रोत
    • सतही जल: नदियाँ सिंचाई के लिए सतही जल का प्रत्यक्ष स्रोत प्रदान करती हैं, जो चावल, गेहूँ और गन्ना जैसी फसलों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • भूजल पुनर्भरण: नदियाँ भूजल भंडारों को पुनर्भरित करने में मदद करती हैं, जिनका सिंचाई के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ सतही जल अपर्याप्त है।
  • पोषक तत्त्वों से भरपूर तलछट
    • मृदा उर्वरता: नदियाँ बाढ़ के दौरान कृषि भूमि पर पोषक तत्त्वों से भरपूर तलछट जमा करती हैं, जिससे मृदा की उर्वरता और फसल की पैदावार बढ़ती है।
  • सूक्ष्म जलवायु विनियमन
    • आर्द्रता और तापमान नियंत्रण: नदियाँ स्थानीय सूक्ष्म जलवायु को बनाए रखने में मदद करती हैं, आर्द्रता और तापमान को नियंत्रित करती हैं, जो फसल की वृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। 

कृषि को प्रभावित करने वाली नदी पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी चुनौतियाँ

  • जलवायु परिवर्तन
    • अनियमित वर्षा पैटर्न: अप्रत्याशित मानसून और परिवर्तित वर्षा पैटर्न नदी के प्रवाह को बाधित करते हैं, जिससे सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता प्रभावित होती है। 
    • तापमान वृद्धि: उच्च तापमान से वाष्पीकरण दर बढ़ जाती है, जिससे नदी का जल स्तर कम हो जाता है और फसलों के लिए जल की आवश्यकता बढ़ जाती है।
  • मानवीय गतिविधियाँ
    • अत्यधिक निकासी: कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए नदी के पानी की अत्यधिक निकासी से नदी का प्रवाह कम हो जाता है।
    • प्रदूषण: औद्योगिक उत्सर्जन, कृषि अपवाह और अनुपचारित सीवेज नदियों को प्रदूषित करते हैं, जल की गुणवत्ता को खराब करते हैं और मिट्टी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं। 
    • बाँध और डायवर्सन (Dams and Diversions): बाँधों और डायवर्सन परियोजनाओं के निर्माण से नदी का प्राकृतिक प्रवाह बदल जाता है, जिससे नीचे की ओर जल की उपलब्धता प्रभावित होती है। 
  • मृदा निम्नीकरण और कटाव
    • वनों की कटाई (Deforestation): कृषि के लिए वनों की कटाई से मृदा निम्नीकरण होता है, जिससे भूमि की जल धारण करने की क्षमता कम हो जाती है। 
    • नदी तट पर अतिक्रमण (Riverbank Encroachment): नदी तटों पर शहरीकरण और निर्माण से प्राकृतिक जल प्रवाह तथा अवसादन प्रक्रिया बाधित होती है।

आगे की राह

  • पर्यावरण कानूनों, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और समकालीन प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना वर्तमान की जरूरत है। 
  • समस्या का व्यापक समाधान विकसित करने के लिए केंद्रीय थिंक टैंक नीति आयोग के समान भारत में एक स्थायी आयोग की स्थापना की जानी चाहिए।
  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा देना और भूजल पुनर्भरण और मृदा संरक्षण को बढ़ाने के लिए वाटरशेड प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना। 
  • नदी पुनरुद्धार परियोजनाएँ (River Restoration Projects)
    • पुनर्वनीकरण और वनरोपण (Reforestation and Afforestation): मिट्टी के कटाव को रोकने और जल धारण क्षमता को बढ़ाने के लिए नदी के किनारों पर पेड़ लगाना। 
    • आर्द्रभूमि संरक्षण (Wetland Conservation): जल की गुणवत्ता में सुधार और जैव विविधता को समर्थन देने के लिए आर्द्रभूमियों का संरक्षण और पुनर्स्थापन। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy): सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर नदी के प्रवाह को बदलने वाली जलविद्युत परियोजनाओं पर निर्भरता कम करना।

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