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Lokesh Pal
July 18, 2024 02:53
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हाल ही में विद्युत की कमी, जो कि पिछले दशक में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में असंतुलित वृद्धि के कारण हुई है, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर बेहतर संसाधन नियोजन की आवश्यकता को दर्शाती है।
भारत में आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए विद्युत एवं ऊर्जा दो आवश्यक इनपुट हैं।
देश में विद्युत की माँग तेजी से बढ़ी है और आने वाले वर्षों में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। देश में विद्युत की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए स्थापित उत्पादन क्षमता में भारी वृद्धि की आवश्यकता है।
पिछले दशक के दौरान, भारत के ऊर्जा क्षेत्र ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और राजनीतिक अर्थव्यवस्था के विवादास्पद मुद्दों का सावधानीपूर्वक सामना किया है तथा वर्ष 2047 तक औद्योगिक देश बनने के लिए आवश्यक ऊर्जा माँग को पूरा करने की आवश्यकता को नजरअंदाज नहीं किया है।
चालू दशक (2020-29) में, भारतीय विद्युत क्षेत्र में माँग वृद्धि, ऊर्जा मिश्रण और बाजार परिचालन के संबंध में बड़े परिवर्तन होने की संभावना है।
जलवायु कार्रवाई की बढ़ती आवश्यकता के साथ, ‘आधार भार’ (Base Load) आपूर्ति सुरक्षा के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धात्मकता के दृष्टिकोण से, नवीकरणीय ऊर्जा का दोहन किया जाना आवश्यक है।
ऊर्जा शुल्क और सब्सिडी को कम करने, ऊर्जा क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने तथा समग्र लागत को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों में निवेश करने हेतु नीतियों को लागू करना समय की माँग है।
वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ की यात्रा पर अग्रसर एक विकासशील देश के रूप में, ‘न्यायसंगत’ परिवर्तन सरकारी नीति का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो उचित मूल्य निर्धारण और बड़े पैमाने पर उपभोग वाले उत्पादों की उपलब्धता को सक्षम बनाता है।
भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सभी को हर समय पर्याप्त विद्युत उपलब्ध हो, साथ ही जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करके तथा अधिक पर्यावरण अनुकूल, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ते हुए स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाना चाहता है।
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