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राष्ट्रपति द्वारा पंजाब सरकार के विधेयक को नामंजूरी

Lokesh Pal July 18, 2024 02:57 97 0

संदर्भ

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पंजाब सरकार के पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है, जिसमें राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद से हटाने की माँग की गई है।

संबंधित तथ्य

  • राज्य सरकार ने अब कानूनी विकल्प तलाशने का फैसला किया है।
  • संबंधित विधेयक
    • दिसंबर में राष्ट्रपति को भेजा गया यह विधेयक हाल ही में पंजाब राजभवन को लौटा दिया गया। 
    • 10 नवंबर, 2023 को सर्वोच्च न्यायालय के इस पर निर्णय दिया कि राज्यपाल को बिना कोई कार्रवाई किए विधेयक को अनिश्चित काल तक लंबित रखने की स्वतंत्रता नहीं है। निर्णय लेने में विफल रहना और विधिवत पारित विधेयक को अनिश्चित अवधि के लिए लंबित रखना उस अभिव्यक्ति के साथ असंगत कार्रवाई है।
    • इसके बाद राज्यपाल ने तीन लंबित विधेयकों, पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023, सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक, 2023 और पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक, 2023 को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख लिया था। 
      • सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय पिछले वर्ष 10 नवंबर को आप सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल, राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं।
    • पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक, 2023 पुलिस प्रमुख के पद पर चयन और नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र तंत्र लाने का प्रयास करता है, जबकि सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक, 2023 का उद्देश्य गुरवाणी के प्रसारण के अधिकार को प्रदान करना है।
      • ये दो विधेयक अभी भी राष्ट्रपति के पास हैं।
  • पूर्व उदहारण
    • यह पहली बार नहीं है जब पंजाब के राज्यपाल ने राष्ट्रपति को कोई विधेयक भेजा है। 
    • इससे पहले, पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने शहरी किराया नियंत्रण (संशोधन) विधेयक को अपनी मंजूरी दी थी, जो तब एक अधिनियम बन गया। 

विधेयकों पर निर्णय लेने का राज्यपाल का अधिकार

  • परिचय
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-200 राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को दी गई सहमति के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों और राज्यपाल की अन्य शक्तियों जैसे राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आरक्षित करने से संबंधित है।
    • अनुच्छेद-201 ‘विचार के लिए आरक्षित विधेयक’ (Bills Reserved for Consideration) से संबंधित है।
  • राज्यपाल के पास उपलब्ध विकल्प
    • वह राष्ट्रपति के विचार हेतु विधेयक को आरक्षित कर सकता है। आरक्षण अनिवार्य है, जहाँ राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक राज्य उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है। 
    • एक अन्य विकल्प सहमति को रोकना है, लेकिन ऐसा सामान्य रूप से किसी भी राज्यपाल द्वारा नहीं किया जाता है क्योंकि यह एक अत्यंत अलोकप्रिय कार्यवाही होगी।
    • हालाँकि राज्यपाल विधेयक को आरक्षित भी कर सकता है यदि यह निम्नलिखित प्रकृति का हो: 
      • संविधान के प्रावधानों के खिलाफ
      • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का विरोध 
      • देश के व्यापक हित के खिलाफ
      • गंभीर राष्ट्रीय महत्त्व का
      • संविधान के अनुच्छेद-31A के तहत संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण से संबंधित हो।
    • वह सहमति दे सकता है या विधेयक के कुछ प्रावधानों या विधेयक पर स्वयं पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हुए इसे विधानसभा को वापस भेज सकता है।
    • भारत के राज्यपाल को पूर्ण वीटो, निलंबन वीटो (धन विधेयकों को छोड़कर) का अधिकार प्राप्त है, लेकिन पॉकेट वीटो का नहीं।
  • राज्य के विधेयकों पर वीटो
    • राज्यपाल को राष्ट्रपति के विचार के लिए राज्य विधायिका द्वारा पारित कुछ प्रकार के विधेयकों को आरक्षित करने का अधिकार है।
    • फिर विधेयक के अधिनियमन में राज्यपाल की कोई और भूमिका नहीं होगी।
    • राष्ट्रपति ऐसे विधेयकों पर न केवल पहली बार बल्कि दूसरी बार आने पर भी अपनी सहमति को स्थगित कर सकता है। 
    • इस प्रकार राष्ट्रपति को राज्य के बिलों पर पूर्ण वीटो (और निलंबन वीटो नहीं) प्राप्त है।
    • इसके अलावा राष्ट्रपति राज्य विधान के संबंध में भी पॉकेट वीटो का प्रयोग कर सकता है।

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