100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

कर्नाटक मंत्रिमंडल का निर्णय :निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों को आरक्षण विधेयक को मंजूरी

Lokesh Pal July 17, 2024 05:45 111 0

संदर्भ:

हाल ही में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में कर्नाटक राज्य उद्योग, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार विधेयक, 2024 को मंजूरी प्रदान कर दी गई।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : सरोजिनी महिषी रिपोर्ट, एलपीजी सुधार, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19, स्वैच्छिक आचार संहिता (वीसीसी), आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : स्थानीय आरक्षण की मांग के कारण, निजी क्षेत्र में आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्क आदि।

कर्नाटक का स्थानीय रोजगार विधेयक:

  •     प्रबंधन पद: उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों को 50% प्रबंधन पदों पर स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करना होगा।
  •     गैर-प्रबंधन पद: 70% गैर-प्रबंधन पद स्थानीय उम्मीदवारों द्वारा भरे जाने होंगे।

योग्य उम्मीदवार कौन है?

  • जन्म और निवास: कर्नाटक राज्य में जन्मे,  15 वर्षों की अवधि से राज्य में निवास कर रहे हों।
  • भाषा प्रवीणता: कन्नड़ भाषा को स्पष्ट रूप से बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम। नोडल एजेंसी द्वारा आयोजित आवश्यक परीक्षा उत्तीर्ण की हो।
  • शैक्षिक आवश्यकता: कन्नड़ भाषा के साथ माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र। वैकल्पिक रूप से, सरकार द्वारा अधिसूचित नोडल एजेंसी द्वारा निर्दिष्ट कन्नड़ प्रवीणता परीक्षा उत्तीर्ण करें।
  • स्थानीय अभ्यर्थियों के लिए प्रशिक्षण: उद्योगों और प्रतिष्ठानों को सरकार के सहयोग से तीन वर्षों के भीतर स्थानीय अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित करना चाहिए।
  • यदि पर्याप्त स्थानीय अभ्यर्थी उपलब्ध न हों: उद्योग या प्रतिष्ठान अधिनियम के प्रावधानों में छूट के लिए सरकार से आवेदन कर सकते हैं।
    • उचित जाँच के बाद सरकार उचित आदेश पारित कर सकती है। सरकार द्वारा पारित आदेश अंतिम होंगे।
  • अनुपालन और दंड:
    • प्रबंधन पद: स्थानीय उम्मीदवारों का प्रतिशत 25% से कम नहीं होना चाहिए।
    • गैर-प्रबंधन पद: स्थानीय उम्मीदवारों का प्रतिशत 50% से कम नहीं होना चाहिए।
    • दंड की सीमा: अनुपालन न करने पर ₹10,000 से ₹25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

दीर्घकालीन लंबित माँग:

  • 100% आरक्षण की माँग: कन्नड़ लोगों के लिए नौकरियों में 100% आरक्षण की माँग के बीच इस विधेयक को मंजूरी दी गई है।
  • कन्नड़ संगठनों की रैलियाँ: जुलाई में कन्नड़ संगठनों ने पूरे राज्य में रैलियाँ और प्रदर्शन आयोजित कीं। सरोजिनी महिषी रिपोर्ट को तत्काल लागू करने की माँग की।
  • सरोजिनी महिषी रिपोर्ट (1984) की सिफारिशें: कर्नाटक में कार्यरत केंद्र सरकार के विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में ग्रुप सी और डी की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 100% आरक्षण का सुझाव दिया गया था।

स्थानीय आरक्षण क्या है?

  • स्थानीय आरक्षण की अवधारणा नौकरियों की कमी और सरकारों विशेष रूप से राज्य सरकारों द्वारा अपने स्थानीय मतदाताओं को संतुष्ट करने की आवश्यकता के बारे में चिंताओं से पैदा हुई थी।
  • इस अवधारणा का मानना है कि किसी राज्य में सृजित नौकरियों में सबसे पहले उस राज्य के लोगों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

स्थानीय आरक्षण की मांग के कारण:

  • अवसरों की कमी: विनिर्माण क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार के अवसरों की कमी के कारण अधिशेष कृषि श्रमिकों के लिए वैकल्पिक रोजगार ढूंढना मुश्किल हो गया है।
    • इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, जिससे स्थानीय आरक्षण की माँग और बढ़ गई है।
  • रोजगार की स्थिति: कोविड-19 लॉकडाउन और महामारी के आर्थिक प्रभाव ने बेरोजगारी के संकट को बढ़ा दिया, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों के बीच।
  • लोकलुभावन नीति और युवा समर्थन: स्थानीय आरक्षण उपायों को लागू करना अक्सर मतदाताओं को खुश करने के लिए एक लोकलुभावन नीति के रूप में देखा जाता है।
    • सीएसडीएस और लोकनीति द्वारा वर्ष 2017 में किये गए राष्ट्रीय सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग दो-तिहाई युवा स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण का समर्थन करते हैं।
    • झारखंड, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित कई राज्यों ने निजी क्षेत्र में स्थानीय आरक्षण नीतियां लागू की हैं।
  • एलपीजी सुधार और बेरोजगारी वृद्धि: 1990 के दशक के प्रारंभ में भारत में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों, जिन्हें एलपीजी सुधार के रूप में जाना जाता है, की बेरोजगारी वृद्धि में योगदान देने के लिए आलोचना की गई है।
  • कृषि संकट: वर्षों से कृषि से कम लाभ, खंडित भूमि जोत और अपर्याप्त गैर-कृषि आय ने स्थानीय आरक्षण की मांग को बढ़ावा दिया है।
  • चुनावों में  हार का भय: यह केवल भारत या भारतीय राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि सार्वभौमिक है। चुनावों में  हार का भय या अपने प्रदर्शन को सुधारने के लिए ऐसे तरीकों का उपयोग किया जाता रहा है। 
    • ब्रेक्सिट मतदान में यह स्पष्ट रूप से प्रकट हुआ, जब ब्रिटेनवासियों ने सोचा कि विदेशी लोग स्थानीय नौकरियां छीन रहे हैं, और इसलिए उन्होंने यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए मतदान किया।
    • अमेरिका में भी हाल के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान आप्रवासी विरोधी भावना का फायदा उठाया गया।

निजी क्षेत्र में आरक्षण के खिलाफ तर्क:

  • मौलिक अधिकारों और राज्य के हस्तक्षेप में संतुलन: राज्य सरकार द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त व्यवसाय और व्यापार को जारी रखने के नियोक्ताओं के मौलिक अधिकारों में अभूतपूर्व हस्तक्षेप को दर्शाता है।
  • कम वेतन वाले श्रमिकों का पलायन: कम वेतन वाले श्रमिकों का पलायन होगा, क्योंकि वे तब तक काम नहीं पा सकेंगे, जब तक कि उनके मूल राज्य उन्हें पर्याप्त रोजगार के अवसर प्रदान नहीं करते।
  • राज्य अधिवास कोटा और भारत में समान नागरिकता का क्षरण: विचाराधीन कानून द्वारा विभिन्न राज्यों में निवास करने वाले व्यक्तियों के मध्य एक मौलिक समस्या को उजागर करने का प्रयास किया गया है, जो भारत के संविधान में प्रदत्त समान नागरिकता की अवधारणा के विपरीत है।
    • राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण बनाम क्षेत्रीय रोजगार की दुविधा: निजी क्षेत्र में आरक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था के एक इकाई के रूप में मूल विचार पर है।
  • निजी क्षेत्र में योग्यता आधारित तंत्र की मूल संरचना पर प्रहार: निजी क्षेत्र में आरक्षण, योग्यता के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है, जिसके आधार पर निजी क्षेत्र संचालित होता है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के विपरीत, जहाँ सरकारें अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए पुराने दोषपूर्ण आरक्षण प्रणाली के आधार पर नियुक्तियाँ जारी रखती हैं।]
    • 70 प्रतिशत या उससे अधिक आरक्षण की व्यवस्था करना, योग्यता को बनाए रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा के विरुद्ध है।

निजी क्षेत्र में आरक्षण के पक्ष में तर्क:

  • भेदभावपूर्ण मानव संसाधन नीतियाँ: अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2019 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि एससी/एसटी समुदाय कम वेतन वाली नौकरियों में “अधिक प्रतिनिधित्व” रखते हैं और उच्च वेतन वाली नौकरियों में “कम प्रतिनिधित्व” रखते हैं।
  • निजीकरण की चिंताओं के बीच निजी क्षेत्र में सामाजिक न्याय को कायम रखना: सामाजिक न्याय आंदोलनों में यह आशंका बढ़ती जा रही है कि बढ़ते निजीकरण से ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े जाति समूहों के लिए अवसरों में पूरी तरह से गिरावट आ सकती है।
  • वैश्विक मिसालें: यहाँ तक ​​कि अमेरिका में भी जनरल मोटर्स और फोर्ड जैसी कंपनियों ने अफ्रीकी-अमेरिकी, एशियाई आदि लोगों को रोजगार देने की व्यवस्था बना रखी है।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के मध्य सामाजिक प्रतिबद्धताओं में समानता : मिश्रित अर्थव्यवस्था में, जब सार्वजनिक क्षेत्र को नौकरियों में आरक्षण के माध्यम से अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता का निर्वहन करने के लिए कहा जा रहा है, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि समान शर्तें निजी क्षेत्र पर लागू न हों, जिसे औद्योगिक विकास को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा अधिक मात्रा में रियायतें दी गई हैं।
  • निजी क्षेत्र में हितधारकों के लिए रोजगार समानता: हमारा निजी क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों से अधिक मात्र में वित्त ग्रहण करता है, इसकी वजह से ऋण चुकौती और करों में भारी चूक होती है।
    • जिनकी भूमि, श्रम और पूँजी तथा राष्ट्रीय संसाधनों  का उपयोग भारतीय उद्यमी वर्ग द्वारा किया जा रहा है, वे निश्चित रूप से नौकरी वितरण में कुछ हद तक समानता की माँग कर सकते हैं।

आगे की राह :

  • स्वैच्छिक आचार संहिता (वीसीसी): इंडिया इंक (India Inc.) ने घोषणा की कि वे स्वैच्छिक आचार संहिता (वीसीसी) अपनाएंगे, जिसके अनुसार, वे अपने संगठनों में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए उपाय करेंगे।
  • मानव विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए: सरकार को श्रमिकों को प्रशिक्षित करना चाहिए तथा औद्योगिक क्षेत्र द्वारा “नौकरी पर रखो और निकाल दो (hire and fire)” के आधार पर अनुबंध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा दीर्घकालिक अनुबंधों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सरकार का ध्यान रोजगार गारंटी से हटकर असमानता कम करने पर केंद्रित होना चाहिए: सरकारों को अपनी नीतियों के माध्यम से ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जिससे आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करने में मदद मिल सके। इसलिए, सरकार को रोजगार की गारंटी देने के बजाय अपनी भूमिका पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • नीति निर्माण में मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी नीतिगत निर्णय भारत के संविधान के अनुरूप हो, नागरिकों के मौलिक अधिकारों को बनाए रखा जाए और उनके किसी भी उल्लंघन से बचा जाए।”

निष्कर्ष

नौकरी उपलब्ध कराने के लिए आरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सरकार को कौशल वृद्धि और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय आरक्षण  “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की भावना के खिलाफ है, जो देश के भीतर एक एकीकृत और गतिशील श्रम बाजार की मांग करता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न: भारत में निजी क्षेत्र में राज्य द्वारा लागू किए गए अधिवास आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का आकलन करें। इन मुद्दों पर विचार करते समय नीति निर्माताओं को किन प्रमुख बातों पर ध्यान देना चाहिए? (15 अंक, 250 शब्द)

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.