हाल ही में यूनाइटेड किंगडम में आम चुनावों में ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ के लिए 263 महिला सांसद (40%) चुनी गईं।
दक्षिण अफ्रीकी नेशनल असेंबली में लगभग 45% महिला प्रतिनिधित्व है, जबकि अमेरिकी ‘हाउस ऑफ रिप्रजेंटेशन’ में 29% महिला प्रतिनिधित्व है।
स्वतंत्र भारत में महिला प्रतिनिधि
एक संप्रभु गणराज्य के रूप में भारत ने वर्ष 1952 में पहले आम चुनाव से ही देश की सभी महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्रदान किया।
यद्यपि संविधान लागू होने के बाद से सभी महिलाओं को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया, फिर भी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व संतोषजनक नहीं रहा है।
लोकसभा: वर्ष 2004 तक लोकसभा में महिला सांसदों का प्रतिशत 5% से 10% के बीच बहुत कम था।
वर्ष 2014 में यह मामूली रूप से बढ़कर 12% हो गया एवं वर्तमान में 18वीं लोकसभा में 14% है।
17वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या अब तक की सबसे अधिक 78 थी, लेकिन 18वीं लोकसभा में घटकर यह संख्या 74 रह गई।
राज्यसभा: महिलाओं सांसदों का प्रतिशत 11% है।
विधानसभाएँ: हमारे राज्यों की विधानसभाओं में लगभग 9 प्रतिशत महिला विधायक ही हैं।
विधान परिषदें: विधान परिषदों के मामले में महिला विधायकों की संख्याबहुत कम है, जहाँ लगभग 5 प्रतिशत महिलाएँ हैं।
राजनीतिक दलों के आधार पर महिला प्रतिनिधित्व : वर्तमान लोकसभा में महिला सांसदों का अनुपात सर्वाधिक 38% तृणमूल कांग्रेस में है।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी एवं मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी के पास लगभग 13% महिला प्रतिनिधित्व हैं।
तमिलनाडु का एक राज्य स्तरीय दल, तमिलर काची, पिछले तीन आम चुनावों में महिला उम्मीदवारों के लिए 50% के स्वैच्छिक कोटा का पालन कर रहा है।
विश्व में कार्यकारी सरकारी पदों पर महिलाएँ
1 जून, 2024 तक, 27 देश ऐसे हैं जहाँ 28 महिलाएँ सरकार की प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं।
वर्तमान दर पर, अगले 130 वर्षों तक सत्ता के सर्वोच्च पदों पर लैंगिक समानता हासिल नहीं की जा सकेगी।
केवल 18 देशों में महिला राष्ट्राध्यक्ष (Head of State) हैं तथा 15 देशों में महिला शासनाध्यक्ष (Head of Government) हैं।
संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी, 2024 तक नीति क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले मंत्रालयों के कैबिनेट सदस्यों में 23.3 प्रतिशत महिलाएँ हैं।
केवल 15 देश ऐसे हैं, जिनमें नीतिगत क्षेत्रों में नेतृत्व करने वाले कैबिनेट मंत्रियों के 50 प्रतिशत या उससे अधिक पदों पर महिलाएँ हैं।
महिला कैबिनेट मंत्रियों द्वारा सँभाले जाने वाले पांच सबसे आम विभाग हैं, महिला एवं लैंगिक समानता, परिवार एवं बाल मामले, सामाजिक समावेशन एवं विकास, सामाजिक संरक्षण एवं सामाजिक सुरक्षा, तथा स्वदेशी एवं अल्पसंख्यक मामले।
राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व का महत्त्व
विविध परिप्रेक्ष्य: महिलाएँ अलग-अलग दृष्टिकोण एवं अनुभव लेकर आती हैं, जिससे अधिक व्यापक तथा समावेशी निर्णय लेने में मदद मिलती है।
लोकतंत्र को मजबूत बनाना: महिलाओं की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है, कि राजनीतिक संस्थाएँ जनसंख्या का अधिक प्रतिनिधित्व करती हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की वैधता में वृद्धि होती है।
सार्वजनिक विश्वास: विविध एवं समावेशी राजनीतिक प्रतिनिधित्व राजनीतिक संस्थानों तथा प्रक्रियाओं में जनता का विश्वास बढ़ाता है।
सामाजिक मुद्दों को प्राथमिकता: महिला प्रतिनिधि अक्सर स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं सामाजिक कल्याण, समुदायों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं।
एस्थर डुफ्लो ने भारत में राघबेंद्र चट्टोपाध्याय के साथ अपने कार्य के बारे में बात की, जहाँ स्थानीय स्तर पर राजनीति में महिलाओं के लिए सकारात्मक कार्रवाई की नीति है।
इससे न केवल सार्वजनिक वस्तुओं के प्रावधान में वृद्धि हुई, जिससे महिलाओं एवं बच्चों को अधिक लाभ हुआ है।
एक महिला प्रतिनिधि के संपर्क में आने से लड़कियों की स्नातक दर में वृद्धि हुई, लड़कों एवं लड़कियों के बीच माता-पिता की आकांक्षाओं का अंतर कम हुआ तथा किशोरों की अपने जीवन एवं कॅरियर के प्रति आकांक्षाओं में वृद्धि हुई।
उदाहरण के लिए
छवि राजावत: अक्सर ग्रामीण राजस्थान के बदलते परिदृश्य के रूप में पहचानी जाने वाली छवि ने वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र के 11वें सूचना गरीबी विश्व सम्मेलन में प्रतिनिधियों को भी संबोधित किया था।
लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देती है एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है।
छह देशों की संसद में एकल या निचले सदनों में 50 प्रतिशत या अधिक महिलाएँ हैं: रवांडा (61 प्रतिशत), क्यूबा (56 प्रतिशत), निकारागुआ (54 प्रतिशत), अंडोरा (50 प्रतिशत), मेक्सिको (50 प्रतिशत), न्यूजीलैंड (50 प्रतिशत), एवं संयुक्त अरब अमीरात (50 प्रतिशत)।
संघर्ष समाधान: शांति निर्माण प्रयासों में महिलाओं की भागीदारी जटिल सामाजिक चुनौतियों के अधिक सतत् समाधान में योगदान कर सकती है।
उदाहरण के लिए: लाइबेरिया की शांति कार्यकर्ता लेमाह गॉबी ने शांति प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने दूसरे लाइबेरिया गृहयुद्ध को समाप्त किया।
भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाना: महिला राजनीतिक नेता रोल मॉडल के रूप में कार्य करती हैं, अन्य महिलाओं एवं लड़कियों को विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती हैं।
भारत की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने युवा लड़कियों एवं महिलाओं को राजनीति तथा सार्वजनिक सेवा में नेतृत्व के लिए प्रेरित किया है।
भारत के चुनावी परिदृश्य में महिलाओं की भागीदारी में चुनौतियाँ
संरचनात्मक मानदंड एवं लैंगिक भेदभाव: महिलाओं की सीमित राजनीतिक स्थिति एवं प्रतिनिधित्व लंबे समय से चले आ रहे संरचनात्मक मानदंडों तथा भारतीय समाज में मौजूद गहरे लैंगिक भेदभाव की उपज है।
ये सामाजिक मानदंड महिलाओं के लिए राजनीतिक क्षेत्र में भाग लेने में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
सामाजिक पूर्वाग्रह एवं राजनीतिक दल प्रथाएँ: महिलाओं के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह राजनीतिक दलों के भीतर भी कायम हैं।
ये पूर्वाग्रह राजनीतिक दलों के भीतर सीटों के आवंटन एवं पदानुक्रम को प्रभावित करते हैं, जिससे प्रमुख पदों तक महिलाओं की पहुँच तथा चुनाव लड़ने के अवसर सीमित हो जाते हैं।
अधिकार एवं प्रभाव का अभाव: महिलाओं में अक्सर राजनीतिक नेटवर्क में अधिकार एवं प्रभाव वाले पदों का अभाव होता है। प्रभाव की यह कमी नीतिगत निर्णयों को आकार देने तथा राजनीतिक क्षेत्र में सार्थक प्रभाव डालने की उनकी क्षमता को कम कर देती है।
वंशवादी एवं सेलिब्रिटी पृष्ठभूमि: वंशवादी एवं सेलिब्रिटी पृष्ठभूमि की महिलाओं की राजनीति में भूमिका एवं मान्यता अधिक हो सकती है, जिससे उन्हें अन्य महिलाओं की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त होता है।
सरपंच-पतिवाद: हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर चिंता जताई कि निर्वाचित महिलाओं के पीछे वास्तविक शक्ति का संचालन अक्सर पुरुष ही करते हैं, जो जमीनी स्तर की राजनीति में ‘गैर पहचान योग्य प्रतिनिधित्व’ की भूमिका निभा रही हैं।
सरकारी पहल
संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023
यह लोकसभा, राज्य विधानसभाओं एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिसमें SCs और STs के लिए आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।
इससे विधायिकाओं में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा जिससे संसदीय प्रक्रियाओं एवं कानून में लैंगिक संवेदनशीलता बढ़ेगी।
इससे केंद्र एवं राज्यों में महिला मंत्रियों की संख्या बढ़ने की भी उम्मीद है।
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण
वर्ष 1992-1993 में संविधान के 73वें एवं 74वें संशोधन में पंचायतों एवं नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान किया गया।
संविधान के अनुच्छेद 243-D का खंड (3) प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरी जाने वाली कुल सीटों में से महिलाओं के लिए कम-से-कम एक-तिहाई आरक्षण और पंचायतों के अध्यक्षों के कई पदों को अनिवार्य बनाकर पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
क्षमता निर्माण: राष्ट्रीय ग्रामीण स्वराज योजना (Rashtriya Gramin Swaraj Yojana- RGSY), पंचायत महिला एवं युवा शक्ति अभियान (Panchayat Mahila Evam Yuva Shakti Abhiyan- PMEYSA), राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण अभियान (Rajiv Gandhi Panchayat Sashaktikaran Abhiyan- RGPSA), एवं हाल ही में लॉन्च किए गए राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (Rashtriya Gramme Swaraj Abhiyan- RGSA) सहित कई कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं की क्षमता निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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