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पेरू की संपर्कविहीन माश्को पिरो जनजाति

Lokesh Pal July 20, 2024 03:21 154 0

संदर्भ

स्वदेशी अधिकारों के लिए कार्य करने वाले NGO सर्वाइवल इंटरनेशनल ने माश्को पिरो (Mashko Piro) जनजातियों की दुर्लभ तस्वीरें जारी की हैं, जो दुनिया की 100 से अधिक संपर्कविहीन जनजातियों में से एक है।

संबंधित तथ्य

  • तस्वीरों में 50 से अधिक आदिवासी एक नदी के किनारे उस स्थान पर दिखाई दे रहे हैं, जहाँ लकड़ी काटने वाली कंपनियों को रियायतें दी गई हैं।
  • ये अविश्वसनीय तस्वीरें दिखाती हैं कि बहुत बड़ी संख्या में संपर्कविहीन माश्को पिरो लोग उस जगह से कुछ ही मील की दूरी पर रह रहे हैं, जहाँ लकड़हारे अपना कार्य शुरू करने वाले हैं, यह एक मानवीय आपदा है।

माश्को पिरो (Mashko Piro) जनजाति

  • अधिकतम संपर्कविहीन जनजातियाँ अमेजन और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों में रहती हैं। 
  • माना जाता है कि माश्को पिरो जनजाति, जिनकी संख्या संभवतः 750 से अधिक है, इनमें सबसे बड़ी जनजाति है। 
  • ये खानाबदोश शिकारी-संग्राहक पेरू की ब्राजील और बोलीविया की सीमा के निकट ‘माद्रे डी डिओस’ क्षेत्र के अमेजन जंगलों में रहते हैं।
  • पेरू की सरकार ने माश्को पिरो के साथ सभी तरह के संपर्क पर रोक लगा दी है, क्योंकि उन्हें डर है कि आबादी में कोई बीमारी फैल सकती है, जिसके प्रति उनमें कोई प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। 
  • यह जनजाति बहुत ही एकांतप्रिय है, केवल कभी-कभार ही मूल निवासियों से संपर्क करती है, लेकिन ‘यिन’ जनजाति से संपर्क किया। 

वनों में लकड़ी काटना (लॉगिंग)

  • वर्ष 2002 में, पेरू सरकार ने माश्को पिरो के क्षेत्र की रक्षा के लिए ‘माद्रे डी डिओस’ प्रादेशिक रिजर्व का निर्माण किया। 
  • लेकिन उनके पारंपरिक मैदान का बड़ा हिस्सा रिजर्व के बाहर है। 
  • तब से जमीन के बड़े हिस्से को ‘लॉगिंग’ रियायतों के रूप में बेच दिया गया है, जिससे कंपनियों को लकड़ी और अन्य उपज के लिए सदाबहार जंगलों को काटने का अधिकार मिल गया है।
  • पेरू के वन प्रबंधन परिषद (FSC) द्वारा देवदार और महोगनी की कटाई के लिए माद्रे डी डिओस के जंगलों में 53,000 हेक्टेयर का क्षेत्र आवंटित किया गया है। 
  • कैनालेस ताहुआमानू कंपनी ने अपने ‘लॉगिंग’ अधिकारों का आक्रामक रूप से बचाव किया है, और अदालतों में आलोचनात्मक अभिव्यक्ति को दबाया है।
  • अब, जब लकड़ी काटने वाली कंपनियाँ उनके इलाकों में अतिक्रमण कर रही हैं, तो विशेषज्ञों का कहना है कि उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं बची है। 
    • यही कारण है कि हाल के वर्षों में उनके देखे जाने की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसमें माश्को पिरो न केवल भोजन और आपूर्ति खोजने के लिए बल्कि बाहरी लोगों से भागने के लिए भी अपने वनों के आश्रयों से बाहर निकल रहे हैं।

पूर्व घटनाएँ

  • हालाँकि, यह पहली बार नहीं है कि माश्को पिरो क्षेत्र पर आक्रमण किया गया है। 
  • 1880 के दशक में, पेरू के रबर बूम के दौरान,  माश्को पिरो उन कई जनजातियों में से एक थे जिन्हें जबरन उनकी भूमि से विस्थापित कर दिया गया था, गुलाम बना लिया गया था और सामूहिक रूप से मार दिया गया था। 
  • बचे हुए लोग नदी के ऊपर क्षेत्र की ओर चले गए, जहाँ  माश्को पिरो तब से अलग-थलग रह रहे हैं।

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