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राजस्थान की जनजातियों के सतत् समाधानों की संयुक्त राष्ट्र मंच द्वारा प्रशंसा

Lokesh Pal July 23, 2024 01:09 105 0

संदर्भ 

हाल ही में न्यूयॉर्क में सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम (HLPF) का आयोजन किया गया।

उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच 

  • HLPF  सतत् विकास से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की नीतियों की देखरेख और मार्गदर्शन के लिए एक प्रमुख निकाय है।
  • स्थापना: इसका गठन वर्ष 2013 में हुआ था।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 के एजेंडे पर प्रगति की समीक्षा करना है।

सतत् विकास पर उच्च स्तरीय राजनीतिक फोरम (HLPF) के मुख्य निष्कर्ष

  • स्वदेशी समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना
    • स्वदेशी योगदान: फोरम ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस तरह राजस्थान, भारत में स्वदेशी समुदाय, जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों के लिए मूल्यवान समाधान प्रदान करते हैं।
    • वैश्विक जुड़ाव: विशेषज्ञों ने सतत् विकास रणनीतियों को बनाने में स्वदेशी समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
    • पारंपरिक प्रथाएँ: राजस्थान के एक प्रतिनिधि ने साझा किया कि कैसे आदिवासी परंपराएँ पर्यावरण की रक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्यों के लिए कार्रवाई का आह्वान (SDGs)
    • फोरम थीम: थीम थी “2030 एजेंडा को सुदृढ़ बनाना और संकटों के समय में गरीबी को मिटाना।” 
    • मंत्रिस्तरीय घोषणा: सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नए सिरे से प्रयास करने का आह्वान, जो गरीबी, असमानता और पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने पर केंद्रित है। 
    • समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता: संयुक्त राष्ट्र ने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया कि सतत् विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में कोई भी पीछे न छूटे। 
    • सफल अभ्यासों के उदाहरण
      • बीज संरक्षण: राजस्थान में जनजातियों ने स्वदेशी बीज किस्मों को बनाए रखा है, जिससे जैव विविधता और जलवायु लचीलापन बढ़ा है।
      • कृषि तकनीक: मिश्रित फसल और बिना खेती वाले खाद्य पदार्थों का उपयोग करने जैसी प्रथाएँ खाद्य सुरक्षा और आत्मनिर्भरता में सुधार करती हैं।
      • सामुदायिक सशक्तीकरण: ये विधियाँ समुदायों को कठिन समय के दौरान लचीला बने रहने में मदद करती हैं।
      • जल संरक्षण: स्रोत पर जल को संरक्षित करने की तकनीकें।
  • समग्र संदेश
    • स्वदेशी ज्ञान: इस फोरम ने वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने और सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करने के लिए स्वदेशी प्रथाओं की क्षमता को प्रदर्शित किया। 
    • सहयोग की आवश्यकता: स्थायी भविष्य के लिए स्वदेशी समुदायों के बीच अधिक सहयोग और मान्यता आवश्यक है।

स्वदेशी प्रथाएँ

  • स्वदेशी प्रथाओं में ज्ञान, कौशल और तकनीकें शामिल होती हैं, जो किसी विशिष्ट समुदाय या संस्कृति के भीतर पीढ़ियों से हस्तांतरित होती रही हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध: ये प्रथाएँ स्थानीय पर्यावरण और संसाधनों से गहराई से जुड़ी हुई हैं।

प्रभाव और लाभ

  • संकट प्रतिक्रिया: स्वदेशी प्रथाएँ जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता और पर्यावरण क्षरण जैसे वैश्विक संकटों को दूर करने में मदद करती हैं।
  • संधारणीय समाधान: संप्रभुता के सिद्धांतों पर आधारित जनजातीय पद्धतियाँ आत्मनिर्भरता, बेहतर कृषि पद्धतियों और बढ़ी हुई खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा में योगदान करती हैं।
  • सशक्तीकरण: बीज संप्रभुता, मृदा संप्रभुता और जल संरक्षण पर पहल ने जनजातीय समुदायों को सामूहिक रूप से महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से निपटने के लिए सशक्त बनाया है।
  • लैंगिक समानता और मानवाधिकार: जब मानवाधिकारों के साथ संरेखित किया जाता है, तो स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाएँ और मूल्य लैंगिक समानता एवं मानवाधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ावा दे सकते हैं।

भारत में जनजातीय समुदायों की स्थिति

जनसांख्यिकीय स्थिति

  • जनसंख्या में हिस्सेदारी: जनजातीय समुदाय भारत की आबादी का लगभग 8.9% हिस्सा बनाते हैं।
  • विशेष रूप से कमजोर समूह: लगभग 2.6 मिलियन (2.5%) लोग “विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों” (PVTGs) का हिस्सा हैं, जिन्हें आदिम जनजातियाँ भी कहा जाता है, जो अनुसूचित जनजातियों में सबसे अधिक वंचित हैं।
  • भौगोलिक वितरण: जनजातियाँ विभिन्न राज्यों में फैली हुई हैं, जिनकी महत्त्वपूर्ण आबादी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) और अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में है।

सांस्कृतिक स्थिति

  • समृद्ध विरासत: जनजातीय समुदायों की संस्कृति, भाषाएँ और परंपराएँ अद्वितीय हैं।
  • प्रकृति से जुड़ाव: वे अपनी आजीविका के लिए वनों और पहाड़ियों पर निर्भर हैं और प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हैं।
  • विशिष्ट प्रथाएँ: स्वास्थ्य, शिक्षा, धर्म और शासन से संबंधित उनकी अपनी मान्यताएँ और प्रथाएँ हैं।

संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान

  • मान्यता: कुछ आदिवासी समुदायों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-342 के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है।
  • विशेष प्रावधान: उन्हें अपने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक विकास के लिए विशेष सुरक्षा और प्रावधान प्राप्त हैं।
  • कानूनी सुरक्षा: उनके अधिकारों को 5वें और 6वें अनुसूचित क्षेत्र, वन अधिकार अधिनियम 2006 और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA) 1996 जैसे कानूनों द्वारा संरक्षित किया जाता है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: उनके पास संसद और राज्य विधानसभाओं में आरक्षित सीटें हैं।
    • ऐतिहासिक उपलब्धि: द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं।

विकासात्मक स्थिति

  • चुनौतियाँ: जनजातीय समुदाय गरीबी, निरक्षरता, कुपोषण, खराब स्वास्थ्य और सीमित रोजगार अवसरों सहित महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करते हैं।
  • विकास अंतराल: वे आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और लैंगिक समानता, जैसे क्षेत्रों में राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं।
  • भेदभाव और शोषण: उन्हें अक्सर भेदभाव, शोषण, विस्थापन और हिंसा का सामना करना पड़ता है, साथ ही उन्हें सशक्तीकरण के लिए संसाधनों और अवसरों तक सीमित पहुँच भी मिलती है।

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