22 जुलाई, 2024 को केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री ने संसद में ‘आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24’ प्रस्तुत की।
आर्थिक सर्वेक्षण
प्रमुख दस्तावेज: आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय द्वारा एक वार्षिक दस्तावेज है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों और समग्र आर्थिक परिदृश्य का विस्तृत विवरण होता है और आगामी वर्ष के लिए रूपरेखा प्रदान की जाती है।
ऐतिहासिक संदर्भ
भारत का पहला आर्थिक सर्वेक्षण: वर्ष 1950-51
इसे प्रारंभ में वर्ष 1964 तक केंद्रीय बजट के साथ प्रस्तुत किया जाता था। अब इसे बजट पेश होने से एक दिन या कुछ दिन पहले प्रस्तुत किया जाता है।
प्रकाशन: वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार किया गया।
मार्गदर्शन: भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा।
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 का अवलोकन
आर्थिक सर्वेक्षण वित्त वर्ष 2023-24 वैश्विक और राजनीतिक चुनौतियों के मध्य भारत के लचीले विकास की तस्वीर पेश करता है, जिसमें गति को बनाए रखने में निजी क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया है।
रोजगार सृजन, भू-राजनीतिक तनाव और तकनीकी प्रगति को संबोधित करते हुए, सर्वेक्षण एक व्यापक, रणनीतिक दृष्टिकोण का आह्वान करता है।
कृषि और लघु उद्यमों जैसे प्रमुख क्षेत्रों को संरेखित नीतियों और कम नियामक बोझ के माध्यम से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
सरकार की सहायक भूमिका और मानव पूँजी में निजी क्षेत्र का निवेश दीर्घकालिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
सर्वेक्षण में सभी हितधारकों से सहयोग करने और वर्ष 2047 तक समृद्ध, सतत् भविष्य प्राप्त करने के लिए भारत की शक्ति का लाभ उठाने का आग्रह किया गया है।
अध्याय 1: अर्थव्यवस्था की स्थिति – निरंतर आगे बढ़ते हुए
आर्थिक सर्वेक्षण में वास्तविक GDP वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024-25 में 6.5-7% रहने का अनुमान लगाया गया है, जोखिम काफी हद तक संतुलित हैं। भारत की अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 2023 से 2024 तक अपनी आर्थिक गति बनाए रखी, व्यापक आर्थिक स्थिरता के साथ बाहरी चुनौतियों पर नियंत्रण पाया है।
भारत की वास्तविक GDP वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024 में 8.2% रही, वित्त वर्ष 2024 की चार तिमाहियों में से तीन तिमाहियों में विकास दर 8% से अधिक रही।
आपूर्ति के मोर्चे पर सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024 में 7.2% (2011-12 के मूल्यों पर) रही और स्थिर मूल्यों पर शुद्ध कर संग्रह वित्त वर्ष 2024 में 19.1 प्रतिशत बढ़ गया।
खुदरा मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2023 में 6.7% से घटकर 5.4% हो गई।
चालू खाता घाटा (CAD) वित्त वर्ष 2024 के दौरान GDP का 0.7% रहा जो कि वित्त वर्ष 2023 में दर्ज किए गए GDP के 2.0% के CAD से काफी कम है।
महामारी से उबरने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का क्रमबद्ध ढंग से विस्तार हुआ है। वित्त वर्ष 2024 में वास्तविक GDP वित्त वर्ष 2020 के मुकाबले 20 प्रतिशत अधिक रही, यह उपलब्धि केवल कुछ प्रमुख देशों ने ही हासिल की है।
कुल कर संग्रह का 55 प्रतिशत प्रत्यक्ष करों से और शेष 45 प्रतिशत अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त हुआ।
केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 5.6 प्रतिशत हो गया।
वित्त वर्ष 2024 में मौजूदा कीमतों पर कुल GVA में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों की हिस्सेदारी क्रमशः 17.7 प्रतिशत, 27.6 प्रतिशत और 54.7 प्रतिशत थी।
वित्त वर्ष 2024 में विनिर्माण क्षेत्र में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई; वित्त वर्ष 2023 में निजी गैर-वित्तीय निगमों से सकल स्थिर पूँजी निर्माण (Gross fixed capital formation- GFCF) में 19.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो विकास का एक महत्त्वपूर्ण चालक है।
निर्माण गतिविधियों में भी 9.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। शीर्ष आठ शहरों में 4.1 लाख आवासीय इकाइयों की बिक्री के साथ, वर्ष 2023 में रियल एस्टेट में 33 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि देखी गई, जो वर्ष 2013 के बाद से सबसे अधिक है।
वित्त वर्ष 2024 के लिए पूँजीगत व्यय ₹9.5 लाख करोड़ रहा, जो वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 28.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है और वित्त वर्ष 2020 के स्तर से 2.8 गुना अधिक है।
राज्य सरकारों द्वारा खर्च की गुणवत्ता में सुधार हुआ है क्योंकि सकल राजकोषीय घाटा ₹9.1 लाख करोड़ के बजटीय आँकड़े से 8.6 प्रतिशत कम था।
वित्त वर्ष 2024 में भारत का सेवा निर्यात 341.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नए उच्च स्तर पर पहुँच गया।
मार्च 2024 के अंत तक विदेशी मुद्रा भंडार अनुमानित आयात के 11 महीनों को कवर करने के लिए पर्याप्त है।
वर्ष 2013 में इसकी स्थापना के बाद से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से 36.9 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किए गए।
महिला श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई, जिसका मुख्य कारण ग्रामीण महिलाओं की बढ़ती भागीदारी है।
सरकार 81.4 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मुहैया कराने में सक्षम रही है। पूँजीगत खर्च के लिए आवंटित कुल व्यय में लगातार वृद्धि की गई है।
अध्याय-2 : मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता–स्थिरता ही मूलमंत्र
भारत के बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों ने वित्त वर्ष 2024 में बेहतर प्रदर्शन किया है।
नीतिगत दर: कुल मिलाकर महंगाई दर के नियंत्रण में रहने के परिणामस्वरूप RBI ने पूरे वित्त वर्ष के दौरान नीतिगत दर को यथावत रखा।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने वित्त वर्ष 2024 में पॉलिसी रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर यथावत् रखा। विकास की गति तेज करने के साथ-साथ महंगाई दर को धीरे-धीरे तय लक्ष्य के अनुरूप किया गया।
ऋण वितरण: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) का ऋण वितरण मार्च 2024 के आखिर में 20.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 164.3 लाख करोड़ रुपये रहा।
धन की आपूर्ति: HDFC बैंक में, HDFC के विलय के प्रभाव को छोड़कर ब्रॉड मनी (M3) की वृद्धि दर 22 मार्च, 2024 को 11.2 प्रतिशत थी (सालाना आधार पर), जबकि एक वर्ष पूर्व यह वृद्धि दर 9 प्रतिशत ही थी।
परिसंपत्तियों की गुणवत्ता: बैंक ऋण में दहाई अंकों में वृद्धि हुई है, जो कि काफी व्यापक रहे, सकल एवं शुद्ध गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (NPA) अर्थात् फँसे ऋण कई वर्षों के न्यूनतम स्तर पर रहे, बैंक परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में वृद्धि यह दर्शाती है कि सरकार मजबूत एवं स्थिर बैंकिंग क्षेत्र को लेकर प्रतिबद्ध है।
SCBs के सकल गैर-निष्पादित आस्तियों (GNPA) अनुपात में गिरावट का रुख जारी रहा, जो वित्त वर्ष 2018 के 11.2 प्रतिशत के शिखर से बढ़कर मार्च 2024 के अंत में 12 वर्ष के निम्नतम स्तर 2.8 प्रतिशत पर पहुँच गया।
ऋण में वृद्धि अब भी अधिक है, सेवाओं के लिए दिए गए ऋणों और पर्सनल लोन का इसमें मुख्य योगदान रहा है।
कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों को प्राप्त हुए ऋण, कर्ज वित्त वर्ष 2024 के दौरान दहाई अंकों में बढ़ गए।
औद्योगिक ऋणों की वृद्धि दर 8.5 प्रतिशत रही, जबकि एक वर्ष पूर्व यह वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत ही थी।
आपातकालीन ऋण लिंक्ड गारंटी योजना (Emergency Credit Linked Guarantee Scheme- ECLGS) के तहत 100 प्रतिशत ऋण गारंटी के साथ संपार्श्विक-मुक्त ऋण की उपलब्धता से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ऋण वितरण में वृद्धि को समर्थन मिला है।
दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) को पिछले 8 वर्षों में ट्विन बैलेंस शीट समस्या का प्रभावकारी समाधान माना गया है। मार्च 2024 तक 13.9 लाख करोड़ रुपये के मूल्य वाले 31,394 कॉरपोरेट कर्जदारों के मामले निपटाए गए।
SARFAESI अधिनियम के तहत विनियमित परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ (Asset Reconstruction Companies- ARCs) FPI सहित निवेशकों के लिए बैंकों द्वारा धारित NPA/संकटग्रस्त परिसंपत्तियों तक पहुँचने के लिए एक वैकल्पिक चैनल के रूप में उभर रही हैं।
प्राथमिक पूँजी बाजारों में वित्त वर्ष 2024 के दौरान 10.9 लाख करोड़ रुपये का पूँजी सृजन हुआ। (यह वित्त वर्ष 2023 के दौरान निजी और सरकारी कंपनियों के सकल स्थिर पूँजी सृजन का लगभग 29 प्रतिशत है।)
भारतीय शेयर बाजार का, बाजार पूँजीकरण काफी अधिक बढ़ गया है, बाजार पूँजीकरण–GDP अनुपात पूरी दुनिया में पाँचवें सर्वाधिक स्तर पर रहा है।
वित्तीय समावेश केवल एक लक्ष्य नहीं है बल्कि सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने, असमानता में कमी करने और गरीबी उन्मूलन में भी मददगार है।
अगली बड़ी चुनौती डिजिटल वित्तीय समावेश (DFI) है।
डिजिटल वित्तीय समावेशन (DFI) में वर्तमान में वित्तीय रूप से वंचित और अयोग्य नागरिकों तक उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप औपचारिक वित्तीय सेवाओं की एक शृंखला पहुँचाने के लिए लागत प्रभावी डिजिटल साधनों की व्यवस्था करना शामिल है।
DFI के घटक
‘ग्राहकों को भुगतान करने या प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए डिजिटल लेनदेन प्लेटफॉर्म की उपलब्धता और ऐसे लेनदेन को सक्षम करने के लिए डिवाइस।
इन खुदरा एजेंटों के पास डिजिटल लेनदेन प्लेटफॉर्म के माध्यम से डिजिटल डिवाइस और अतिरिक्त वित्तीय सेवाएँ होती हैं।
भारत का माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र, चीन के बाद दुनिया में दूसरे सबसे बड़े माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के रूप में उभरा है।
भारतीय पूँजी बाजार में रुझान
प्राथमिक पूँजी बाजारों ने वित्त वर्ष 2024 के दौरान ₹10.9 लाख करोड़ का पूँजी निर्माण किया (वित्त वर्ष 2023 के दौरान निजी और सार्वजनिक निगमों के सकल स्थिर पूँजी निर्माण का लगभग 29 प्रतिशत)।
द्वितीयक बाजार: भारतीय शेयर बाजार के बाजार पूँजीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, बाजार पूँजीकरण से GDP अनुपात (वित्त वर्ष 2024 में 124 प्रतिशत) दुनिया में पाँचवाँ सबसे बड़ा है।
ऋण के लिए बैंकिंग समर्थन का प्रभुत्व लगातार कम हो रहा है और पूँजी बाजारों की भूमिका बढ़ रही है। जैसे-जैसे भारत का वित्तीय क्षेत्र महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुजर रहा है, उसे संभावित चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए।
भारत आने वाले दशक में सबसे तेजी से बढ़ते बीमा बाजारों में से एक के रूप में उभरने के लिए तैयार है।
कुल बीमा घनत्व वित्त वर्ष 2022 में 91 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 92 अमेरिकी डॉलर हो गया।
अध्याय-3 : कीमतें और मुद्रास्फीति- नियंत्रण में
मुद्रास्फीति प्रबंधन: केंद्र सरकार द्वारा समय पर उठाए गए नीतिगत कदमों और भारतीय रिजर्व बैंक के मूल्य स्थिरता संबंधी उपायों से खुदरा महंगाई दर को 5.4 प्रतिशत पर बरकरार रखने में मदद मिली, जो कि महामारी से लेकर अब तक की अवधि में न्यूनतम स्तर है।
भारत की नीति कई चुनौतियों से सफलतापूर्वक गुजरी जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित हुई।
कोर सेवाओं की महंगाई दर घटकर वित्त वर्ष 2024 में पिछले नौ वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गई, इसके साथ ही कोर वस्तुओं की महंगाई दर भी घटकर पिछले चार वर्षों के न्यूनतम स्तर पर आ गई।
उद्योगों को प्रमुख इनपुट सामग्री की आपूर्ति बेहतर होने से वित्त वर्ष 2024 में प्रमुख उपभोक्ता उपकरणों की महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई।
मौसमी प्रभावों, जलाशयों के जलस्तर में कमी तथा फसलों के नुकसान के कारण कृषि क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनसे कृषि उपज और खाद्यानों की कीमत पर असर पड़ा।
खाद्य महंगाई दर: वित्त वर्ष 2023 में खाद्य महंगाई दर 6.6 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई।
सरकार ने उपयुक्त प्रशासनिक कार्रवाई की, जिनमें स्टॉक प्रबंधन, खुला बाजार संचालन, आवश्यक खाद्य वस्तुओं के लिए सब्सिडी का प्रावधान और व्यापार नीति उपाय शामिल हैं। इनसे खाद्य महंगाई दर को कम करने में मदद मिली।
29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने वित्त वर्ष 2024 में महंगाई दर 6 प्रतिशत से कम रही।
इसके अलावा उच्च महंगाई दर वाले राज्यों में ग्रामीण-शहरी महंगाई दर अंतर अधिक रहा, जहाँ ग्रामीण महंगाई दर शहरी महंगाई दर से अधिक रही।
भारत का मुद्रास्फीति परिदृश्य
रिजर्व बैंक ने वित्त-वर्ष 2025 और 2026 में महंगाई दर कम होकर क्रमशः 4.5 और 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। यह माना गया है कि मानसून सामान्य रहेगा और कोई बाहरी या नीतिगत बाधाएँ नहीं आएँगी।
IMF ने भारत के लिए महंगाई दर को वर्ष 2024 में 4.6 प्रतिशत और वर्ष 2025 में 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है।
वैश्विक पण्य कीमतें (Global Commodity Prices)
विश्व बैंक ने वर्ष 2024 और 2025 में वैश्विक कमोडिटी कीमतों में गिरावट की भविष्यवाणी की है।
ऊर्जा, खाद्य और उर्वरक की कम कीमतों से भारत में घरेलू मुद्रास्फीति कम हो सकती है।
अध्याय-4 बाह्य क्षेत्र- समृद्धि के बीच स्थिरता
मुद्रास्फीति तथा भू-राजनीतिक बाधाओं के बावजूद भारत के बाह्य क्षेत्र में मजबूती बनी रही है।
दुनिया के 139 देशों में भारत की स्थिति विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक में छह पायदान बेहतर हुई। भारत की स्थिति वर्ष 2018 के 44वें स्थान से बेहतर होकर 2023 में 38वें पायदान पर पहुँच गई।
व्यापारिक आयात में कमी और सेवा निर्यात वृद्धि ने चालू खाता घाटे में सुधार किया है, जो वित्त वर्ष 2024 में घटकर 0.7% रह गया है।
वैश्विक वस्तु एवं सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ रही है। वैश्विक वस्तु निर्यात में देश की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2024 में 1.8% रही, जबकि वित्त वर्ष 2016 से 2020 के दौरान यह हिस्सेदारी औसतन 1.7 प्रतिशत रही थी।
भारत के सेवा निर्यात में 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो वित्त वर्ष 2024 में 341.1 बिलियन डॉलर रही। इस वृद्धि का कारण मुख्य रूप से IT/सॉफ्टवेयर तथा अन्य व्यापार सेवाएँ थीं।
भारत वैश्विक स्तर पर विदेशों से सबसे अधिक धन प्रेषण प्राप्त करने वाला देश रहा, जो वर्ष 2023 में 120 बिलियन डॉलर की सीमा को पार कर गया।
भारत का बाहरी ऋण पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहा है, मार्च 2030 के अंत में GDP अनुपात में बाहरी ऋण 18.7 प्रतिशत था।
वित्त वर्ष 2024 के दौरान भारत के FER में 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई, जो प्रमुख विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाले देशों में सबसे अधिक वृद्धि है।
21 जून, 2024 को FER 653.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो वित्त वर्ष 2025 के लिए अनुमानित 10 महीने से अधिक के आयात और मार्च 2024 के अंत में बकाया कुल बाहरी ऋण के 98 प्रतिशत से अधिक को कवर करने के लिए पर्याप्त है।
अध्याय-5 मध्यम अवधि परिदृश्य- नए भारत के लिए विकास दृष्टि
मध्यम अवधि में, भारतीय अर्थव्यवस्था निरंतर आधार पर 7 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ सकती है, यदि हम पिछले दशक में किए गए संरचनात्मक सुधारों पर कार्य कर सकें। इसके लिए प्रमुख नीतिगत फोकस के क्षेत्रों की पहचान की गई है और साथ ही इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छह-आयामी विकास रणनीति प्रस्तुत की गई है।
अल्प से मध्यम अवधि में नीतिगत फोकस के प्रमुख क्षेत्र –
उत्पादक रोजगार उत्पन्न करना
कौशल-अंतर की चुनौती का समाधान करना
कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन करना
MSME की बाधाओं का समाधान करना
भारत के हरित परिवर्तन का प्रबंधन करना
चीन की कूटनीति से कुशलता पूर्वक निपटना
कॉर्पोरेट बॉण्ड बाजार को मजबूत करना
असमानता से निपटना
हमारी युवा आबादी के स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार करना।
भारतीय अर्थव्यवस्था को 7 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ने के लिए, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते की आवश्यकता है।
अध्याय-6 जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण: समझौताकारी सामंजस्य
अंतरराष्ट्रीय मान्यता: अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम की एक रिपोर्ट में जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में भारत के प्रयासों का उल्लेख किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत G-20 समूह का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ 2 डिग्री सेंटीग्रेड ताप वृद्धि की संभावना है।
भारत ने प्रथम राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDC) के अधिकांश लक्ष्य काफी पहले ही हासिल कर लिए।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति: 31 मई, 2024 तक स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी 45.4 हो गई है।
उत्सर्जन तीव्रता में कमी: देश ने अपने GDP की उत्सर्जन तीव्रता को कम किया है, जिसमें वर्ष 2005 के स्तर पर वर्ष 2019 में 33 प्रतिशत की कमी आई है।
भारत की GDP वर्ष 2005 से वर्ष 2019 के बीच लगभग 7 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ी है, जबकि उत्सर्जन की वृद्धि 4 प्रतिशत के CHGR से बढ़ी है।
सरकारी पहल: सरकार ने कई स्वच्छ कोयला पहलों की शुरुआत की है, जिसमें कोयला गैसीकरण मिशन भी शामिल है।
ऊर्जा बचत और लागत में कमी: 51 मिलियन टन तेल के बराबर कुल वार्षिक ऊर्जा बचत सालाना 1,94,320 करोड़ रुपये की बचत के समान है और इससे करीब 306 मिलियन टन उत्सर्जन में कमी आएगी।
नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन विस्तार से भूमि और जल की माँग बढ़ेगी।
वित्तीय उपाय: सरकार ने जनवरी-फरवरी 2023 में 16,000 करोड़ रुपये और उसके बाद अक्टूबर-दिसंबर 2023 में 20,000 हजार करोड़ रुपये के सॉवरेन हरित बॉंण्ड जारी किए।
RBI ने देश में हरित वित्त पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए विनियमित संस्थाओं के लिए हरित जमा की स्वीकृति के लिए रूपरेखा लागू की है।
इसके अतिरिक्त, RBI अपने प्राथमिकता क्षेत्रक ऋण (PSL) नियमों के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देता है।
सरकार ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) जैसी स्वैच्छिक पर्यावरणीय कार्रवाइयों का भी समर्थन करती है।
भविष्य की चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन के विस्तार से भूमि और जल की माँग बढ़ेगी।
ऊर्जा दक्षता उपाय: सरकार द्वारा की गई कई पहलों में शामिल हैं:
इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC)।
मानक और लेबलिंग (S&L) तथा उपकरणों के लिए स्टार-रेटेड कार्यक्रम।
स्थायी जीवनशैली अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE) पहल।
औद्योगिक क्षेत्र के लिए प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना।
परिवहन क्षेत्र के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर।
जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने में अंतरराष्ट्रीय पहल में भारत अग्रणी
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)।
एक विश्व, एक सूर्य, एक ग्रिड (OSOWOG)।
आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (CDRI)।
द्वीपीय राज्यों के लिए लचीली अवसंरचना (IRIS))।
उद्योग परिवर्तन के लिए नेतृत्व समूह (LeadIT)।
अध्याय-7: सामाजिक क्षेत्र: कल्याण जो सशक्त करे
नए कल्याणकारी दृष्टिकोण : नए कल्याणकारी दृष्टिकोण खर्च होने वाले प्रत्येक रुपये का प्रभाव बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
डिजिटलीकरण और दक्षता:स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और सुशासन का डिजिटलीकरण कल्याणकारी कार्यक्रम पर खर्च होने वाले प्रत्येक रुपये का प्रभाव कई गुना बढ़ाने वाला है।
ई-ग्राम स्वराज, स्वामित्व योजना, भू-आधार जैसी पहलों से ग्रामीण प्रशासन में सुधार हुआ है।
आर्थिक विकास: वित्त वर्ष 2018 और वित्त वर्ष 2024 के बीच बाजार मूल्य आधारित GDP करीब 9.5% की संचित वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ी है,
कल्याणकारी व्यय: कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च 12.8 प्रतिशत संचित वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ा है।
असमानता में कमी: गिनी कोइफिशियंट,
ग्रामीण क्षेत्र में 0.283 से घटकर 0.266
शहरी क्षेत्र में 0.363 से 0.314
स्वास्थ्य देखभाल पहल: 34.7 करोड़ से अधिक आयुष्मान भारत कार्ड बनाए गए और योजना के तहत अस्पतालों में भर्ती 7.37 करोड़ मरीजों को कवर किया गया।
मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की चुनौती आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
आयुष्मान भारत, PM-JAY स्वास्थ्य बीमा के तहत 22 मानसिक बीमारियों को कवर किया गया।
पहल: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में वृद्धि, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, आदि।
महिला स्वास्थ्य: राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय लिंगानुपात (SRB) 918 (2014-15) से सुधरकर 930 (2023-24, अनंतिम) हो गया है और मातृ मृत्यु दर वर्ष 2014-16 में 130/लाख जीवित जन्म से घटकर वर्ष 2018-20 में 97/लाख जीवित जन्म हो गई है।
शिक्षा पहल: ‘पोषण भी पढाई भी’ कार्यक्रम का उद्देश्य आंगनवाड़ी केंद्रों पर एक सार्वभौमिक, उच्च गुणवत्ता वाला प्रीस्कूल नेटवर्क विकसित करना है।
पहल: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत घोषित राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCRF), APAAR (Automated Permanent Academic Account Registry) आदि।
शिक्षा में सामुदायिक सहभागिता: विद्यांजलि पहल ने सामुदायिक सहभागिता और स्वयंसेवी योगदान के माध्यम से 1.44 करोड़ से अधिक छात्रों के लिए शैक्षिक अनुभवों को बढ़ाया।
उच्च शिक्षा नामांकन: वित्त वर्ष 2012 में 4.14 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2012 में लगभग 4.33 करोड़ हो गया। SC, ST, OBC द्वारा नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि और महिला नामांकन में तेजी से वृद्धि हुई।
वित्तीय वर्ष 2015 से महिला नामांकन में 31.6% की वृद्धि।
अनुसंधान और विकास: वित्त वर्ष 2024 में करीब एक लाख पेटेंट प्रदान किए जाने के साथ भारत में अनुसंधान एवं विकास में तीव्र प्रगति हो रही है। इससे पहले वित्त वर्ष 2020 में 25,000 से भी कम पेटेंट प्रदान किए गए थे।
भारत ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संचालित ‘अनुसंधान’ नामक अपना स्वयं का राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन शुरू किया है।
सामाजिक सुरक्षा: पहलों में अटल पेंशन योजना (APY) आदि शामिल हैं।
सरकारी प्रावधान और बुनियादी ढाँचा
सरकार ने वित्त वर्ष 2025 में 3.10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया जो कि वित्त वर्ष 2014 (बजट अनुमान) की तुलना में 218.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
PM-आवास-ग्रामीण के तहत पिछले नौ वर्ष में (10 जुलाई, 2024 की स्थिति के अनुसार) गरीबों के लिए 2.63 करोड़ आवासों का निर्माण किया गया।
ग्राम सड़क योजना के तहत वर्ष 2014-15 से (10 जुलाई 2024 की स्थिति के अनुसार) 15.14 लाख किलोमीटर सड़क निर्माण कार्य पूरा किया गया।
अध्याय-8: रोजगार और कौशल विकास: गुणवत्ता की ओर
बेरोजगारी दर: वर्ष 2022-23 में बेरोजगारी दर घटकर 3.2 प्रतिशत पर आने से भारतीय श्रमिक बाजार संकेतक में पिछले छह वर्ष के दौरान सुधार आया है।
मार्च 2024 की अंतिम तिमाही में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए तिमाही शहरी बेरोजगारी दर, पिछले वर्ष की इसी तिमाही में 6.8 प्रतिशत से घटकर 6.7 प्रतिशत हो गई।
क्षेत्रीय रोजगार वितरण (PLFS डेटा)
45 प्रतिशत से अधिक कार्यबल कृषि क्षेत्र में
11.4 प्रतिशत विनिर्माण क्षेत्र में
28.9 प्रतिशत सेवा क्षेत्र में और
13.0 प्रतिशत निर्माण क्षेत्र में
मनरेगा में लीकेज को समाप्त करना: मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) में कार्य शुरू होने से पहले, कार्य के दौरान और कार्य पूरा होने के बाद जियोटैगिंग की जाती है और 99.9 प्रतिशत भुगतान राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से किया जाता है।
ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देना: दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM), लखपति दीदी पहल और दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY) जैसी योजनाओं और कार्यक्रमों ने आजीविका सृजन को बढ़ाया है।
युवा रोजगार (PLFS डाटा): युवा (आयु 15-29) की बेरोजगारी दर 17.8% (2017-18) से घटकर 10% (2022-23) हो गई।
नए EPFO पेरोल सब्सक्राइबरों में से लगभग दो-तिहाई 18-28 आयु वर्ग के हैं।
लैंगिक परिप्रेक्ष्य: महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) वर्ष 2017-2018 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-2023 में 37 प्रतिशत हो गई।
महिला सशक्तीकरण के लिए पहल: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), दीनदयाल अंत्योदय योजना- NRLM, स्वयं सहायता समूह (SHGs) कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY), प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA), मिशन सक्षम आंगनवाड़ी, पोषण 2.0 कार्यक्रम, विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्र में महिलाएँ-किरण (WISE KIRAN) कार्यक्रम आदि।
संगठित विनिर्माण क्षेत्र (ASI 2021-22): रोजगार महामारी से पहले के स्तर से ऊपर पहुँच गया है। प्रति फैक्टरी रोजगार महामारी से पूर्व की तरह ही बढ़ रहा है।
100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाली फैक्टरियों की संख्या में 11.8% (वित्त वर्ष 18-वित्त वर्ष 22) की वृद्धि हुई।
छोटी फैक्टरियों की तुलना में बड़ी फैक्टरियों (100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाली) में रोजगार में अधिक वृद्धि हो रही है।
वेतन वृद्धि (वित्त वर्ष 2015-2022)
ग्रामीण क्षेत्र: प्रति कर्मचारी वेतन 6.9% CAGR की दर से बढ़ा।
शहरी क्षेत्र: प्रति कर्मचारी वेतन 6.1% CAGR की दर से बढ़ा।
EPFO डेटा: वार्षिक शुद्ध पेरोल वृद्धि 61.1 लाख (वित्त वर्ष 2019) से दोगुनी होकर 131.5 लाख (वित्त वर्ष 2024) हो गई।
EPFO सदस्यता संख्या में 8.4% CAGR (वित्त वर्ष 15-वित्त वर्ष 24) की दर से वृद्धि हुई।
भविष्य के अनुमान एवं जरूरतें: वर्ष 2029-30 तक गिग वर्कफोर्स के 2.35 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है।
भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्ष 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में वार्षिक लगभग 78.5 लाख नौकरियाँ उत्पन्न करने की आवश्यकता है।
वर्ष 2022 में 50.7 करोड़ लोगों की तुलना में, देश को वर्ष 2050 में 64.7 करोड़ लोगों की देखभाल करने की जरूरत होगी।
विनिर्माण पर AI का प्रभाव: विनिर्माण क्षेत्र AI से कम प्रभावित है क्योंकि औद्योगिक रोबोट न तो उतने फुर्तीले हैं और न ही मानव श्रम की तरह लागत प्रभावी हैं।
रोजगार सृजन की संभावना: सकल घरेलू उत्पाद के 2% के बराबर प्रत्यक्ष सार्वजनिक निवेश से 11 मिलियन रोजगार सृजित हो सकते हैं, जिनमें से लगभग 70% महिलाओं को मिलेंगे।
अध्याय-9: कृषि और खाद्य प्रबंधन: यदि हम सही कर लें तो कृषि में बढ़ोतरी अवश्य है
कृषि क्षेत्र: भारतीय कृषि क्षेत्र लगभग 42.3 प्रतिशत आबादी को आजीविका सहायता प्रदान करता है और वर्तमान मूल्यों पर देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी 18.2 प्रतिशत है।
कृषि विकास: कृषि और संबद्ध क्षेत्र ने पिछले पाँच वर्षों में स्थिर मूल्यों पर 4.18 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर्ज की है।
भारत दुग्ध का सबसे बड़ा उत्पादक तथा फलों, सब्जियों और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
भारतीय कृषि के संबद्ध क्षेत्र लगातार मजबूत विकास केंद्रों और कृषि आय में सुधार के लिए आशाजनक स्रोतों के रूप में उभर रहे हैं।
पशुधन क्षेत्र: कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में कुल GVA (स्थिर मूल्यों पर) में पशुधन का योगदान वर्ष 2014-15 में 24.32 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 30.38 प्रतिशत हो गया।
मत्स्यपालन क्षेत्र: वर्ष 2022-23 में, भारत ने 17.54 मिलियन टन का रिकॉर्ड मत्स्य उत्पादन हासिल किया, जो वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर रहा और वैश्विक उत्पादन का 8 प्रतिशत हिस्सा रहा।
पहल: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY), मत्स्यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (FIDF), आदि।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात का हिस्सा वित्त-वर्ष 2017-18 में 14.9 प्रतिशत से बढ़कर वित्त-वर्ष 2022-23 में 23.4 प्रतिशत हो गया।
संबद्ध क्षेत्र: कृषि आय में सुधार के लिए मजबूत विकास केंद्र और आशाजनक स्रोत के रूप में उभर रहे हैं।
कृषि ऋण: 31 जनवरी, 2024 तक कुल कृषि भुगतान 22.84 लाख करोड़ था।
किसान क्रेडिट कार्ड (KCC): 31 जनवरी, 2024 तक बैंकों ने 9.4 लाख करोड़ के 7.5 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए।
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) ने अनुदान सहायता के माध्यम से ऋण-लिंक्ड वित्तीय सहायता शुरू की।
कृषि अवसंरचना कोष (AIF) मध्यम अवधि के ऋण वित्तपोषण प्रदान करता है।
सूक्ष्म सिंचाई: वर्ष 2015-16 से 2023-24 के दौरान न्यूनतम जल अधिकतम फसल (PDMC) के तहत देश में सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल किया गया है।
कृषि अनुसंधान निवेश: यह अनुमान लगाया गया है कि कृषि अनुसंधान (शिक्षा सहित) में निवेश किए गए प्रत्येक रुपए पर ₹ 13.85 का लाभ मिलता है।
प्रमुख पहल: ई-नाम योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP ), प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PMKMY), मातृ पृथ्वी के पुनरुद्धार, जागरूकता सृजन, पोषण और सुधार के लिए प्रधानमंत्री कार्यक्रम (PM -प्रणाम), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), आदि।
अध्याय-10: उद्योगः मध्यम एवं लघु दोनों अपरिहार्य
आर्थिक विकास: वित्त-वर्ष 2024 में 8.2 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि को 9.5 प्रतिशत की औद्योगिक विकास दर से समर्थन प्राप्त हुआ।
विनिर्माण क्षेत्र: विनिर्माण मूल्य शृंखलाओं में अनेक बाधाओं के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र ने पिछले दशक में 5.2 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर हासिल की।
विनिर्माण क्षेत्र में प्रमुख विकास चालक
रसायन,
लकड़ी के उत्पाद
फर्नीचर, परिवहन उपकरण,
फार्मास्यूटिकल्स,
मशीनरी और उपकरण
प्रमुख उद्योग अंतर्दृष्टि
कोयला उत्पादन: पिछले पाँच वर्षों में कोयला के उत्पादन में तेजी आई है, जिससे आयात निर्भरता में कमी हुई है।
फार्मास्यूटिकल: भारत का फार्मास्यूटिकल बाजार, जिसका वर्तमान मूल्य 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, अपनी मात्रा के अनुसार दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है।
टेक्सटाइल: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल विनिर्माता देश है और विश्व के शीर्ष पाँच निर्यातक देशों में से एक है।
इलेक्ट्रॉनिकी विनिर्माण: भारत के इलेक्ट्रॉनिकी विनिर्माण क्षेत्र की वित्त वर्ष 2022 में वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का अनुमानित 3.7 प्रतिशत है।
सूचना प्रौद्योगिकी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता: सरकार ने भारत AI कार्यक्रम की परिकल्पना की है, और भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक साझेदारी (GPAI) का संस्थापक सदस्य है।
सरकारी पहल और उद्योग सहयोग
उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ: भारत के ‘आत्मनिर्भर’ बनने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, मई 2024 तक 1.28 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश दर्ज किया गया, जिसके परिणामस्वरूप PLI योजना के अंतर्गत 10.8 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन / बिक्री और 8.5 लाख रुपये से अधिक का रोजगार सृजन (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) हुआ।
अनुसंधान एवं विकास और नवाचार: उद्योगों को अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को प्रोत्साहित करने तथा कार्यबल के सभी स्तरों पर सुधार को उद्योग तथा अकादमी के बीच सक्रिय सहयोग के माध्यम से प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
अध्याय-11 सेवाएँ: विकास के अवसरों को बढ़ावा देना
सेवा क्षेत्र का अवलोकन: सेवा क्षेत्र भारत की प्रगति में निरंतर महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है, जो वित्त वर्ष 2024 में अर्थव्यवस्था के कुल आकार का लगभग 55% है।
भारत के सेवा क्षेत्र को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
संपर्क-गहन (भौतिक संपर्क आधारित सेवाएँ): इसमें व्यापार, आतिथ्य, परिवहन, रियल एस्टेट, सामाजिक, सामुदायिक और व्यक्तिगत सेवाएँ शामिल हैं।
गैर-संपर्क गहन सेवाएँ (सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ, तकनीकी स्टार्ट-अप और वैश्विक क्षमता केंद्र): इसमें वित्तीय, सूचना प्रौद्योगिकी, पेशेवर, संचार, प्रसारण और भंडारण सेवाएँ शामिल हैं।
सक्रिय कंपनियाँ: सेवा क्षेत्र में सर्वोच्च संख्या में सक्रिय कंपनियाँ (65 प्रतिशत) हैं, 31 मार्च, 2024 तक भारत में कुल 16,91,495 सक्रिय कंपनियाँ थीं।
सेवा निर्यात: वैश्विक स्तर पर, भारत का सेवा निर्यात वर्ष 2022 में दुनिया के वाणिज्यिक सेवा निर्यात का 4.4 प्रतिशत था।
भारत के सेवा निर्यात में कंप्यूटर सेवा और व्यापार सेवा निर्यात का हिस्सा 73 प्रतिशत, वित्त वर्ष 24 में इसमें 9.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
डिजिटल माध्यम से दी जाने वाली सेवाओं के निर्यात में वैश्विक स्तर पर भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2019 के 4.4 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023 में 6 प्रतिशत हो गई।
सड़क मार्ग: भारत के माल का एक बड़ा हिस्सा सड़क मार्ग से परिवहन किया जाता है।
टोल डिजिटलीकरण ने टोल प्लाजा पर प्रतीक्षा समय को काफी कम कर दिया है, जो वर्ष 2014 में 734 सेकंड से घटकर वर्ष 2024 में 47 सेकंड हो गया है।
नेटवर्क नियोजन और भीड़भाड़ अनुमानों के लिए पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान पोर्टल का उपयोग।
रेलवे: भारतीय रेल में यात्री यातायात पिछले वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 2024 में लगभग 5.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
राजस्व अर्जन मालभाड़ा ने (कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड को छोड़कर) पिछले वर्ष की तुलना में, वित्त वर्ष 24 में 5.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
रेलवे ने 6,108 स्टेशनों पर वाई-फाई सुविधाएँ शुरू की हैं।
बंदरगाह, जलमार्ग और शिपिंग: बंदरगाह क्षेत्र दैनिक पोत और कार्गो परिचालन को सुव्यवस्थित करने के लिए सागर सेतु एप्लीकेशन का लाभ उठा रहा है।
राष्ट्रीय जलमार्गों पर नदी क्रूज पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है।
विमानन क्षेत्र: वित्त वर्ष 2024 में भारतीय हवाई यात्रियों की संख्या में सालाना आधार पर 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ भारत के विमानन क्षेत्र में अच्छी प्रगति दर्ज की है।
वित्त वर्ष 2024 में भारतीय हवाई अड्डों पर एयर कार्गो का रखरखाव सालाना आधार पर 7% की बढ़ोतरी के साथ 33.7 लाख टन के स्तर पर पहुँच गया।
पहल: डिजी यात्रा, ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (UDAN) योजना, आदि।
पर्यटन: विश्व आर्थिक मंच के यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक (TTDI) वर्ष 2024 में भारत 39वें स्थान पर है।
पर्यटन उद्योग ने वर्ष दर वर्ष 43.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए, वर्ष 2023 में 92 लाख विदेशी पर्यटक भारत में पर्यटन हेतु आए।
स्वदेश दर्शन 2.0: एकीकृत पर्यटन स्थल विकास पर केंद्रित।
रियल स्टेट: वर्ष 2023 में आवासीय रियल स्टेट देश में बिक्री, वर्ष दरवर्ष 33 प्रतिशत वृद्धि दर्ज करते हुए वर्ष 2013 के बाद से सबसे ज्यादा थी और शीर्ष के आठ नगरों में कुल 4.1 लाख मकानों की बिक्री हुई।
यह वृद्धि कई प्रमुख कारकों के कारण हुई है, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U), नीतिगत सुधार जैसे वस्तु एवं सेवा कर, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, और दिवाला एवं दिवालियापन (SWAMIH), पीएमएवाई (U)-क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना ब्याज अनुदान।
वैश्विक क्षमता केंद्र: भारत में वैश्विक क्षमता केंद्रों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है और यह वित्त वर्ष 2015 में एक हजार केंद्रों से वित्त वर्ष 2023 तक 1,580 केंद्रों से भी अधिक हो गए हैं।
ई-वाणिज्य: भारत के ई-वाणिज्य उद्योग का वर्ष 2030 तक 350 अरब अमेरिकी डॉलर पार कर जाने की उम्मीद है।
दूरसंचार: कुल टेली-डेंसिटी (100 लोगों की आबादी पर टेलीफोनों की संख्या) देश में मार्च 2014 में 75.2 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2024 में 85.7 प्रतिशत हो गई है। इंटरनेट डेनसिटी भी मार्च 2024 में 68.2 प्रतिशत तक बढ़ गई।
ऑप्टिकल फाइबर केवल (OFC): 31 मार्च, 2024 तक 6,83,175 किलोमीटर के ऑप्टिकल फाइबर केवल (OFC) बिछाए गए हैं, जिसने भारतनेट चरण-1 और चरण-2 में कुल 2,06,709 ग्राम पंचायतों को जोड़ दिया है।
सेवा क्षेत्र में परिवर्तन: दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन भारत के सेवा परिदृश्य को नया आकार दे रहे हैं: घरेलू सेवा वितरण में तीव्र प्रौद्योगिकी संचालित परिवर्तन और भारत के सेवा निर्यात का विविधीकरण।
अध्याय-12 : अवसंरचना – संभावित वृद्धि को प्रोत्साहन
सड़क निर्माण: हाल के वर्षों में बड़े पैमाने की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण में सार्वजनिक क्षेत्र के बढ़ते निवेश की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की औसत गति वित्त वर्ष 2014 में 11.7 किलोमीटर प्रतिदिन करीब 3 गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2024 तक प्रतिदिन करीब 34 किलोमीटर हो गई।
रेलवे: रेलवे संबंधी पूँजीगत व्यय पिछले 5 वर्षों में, नई रेल लाइनों के गेज परिवर्तन और रेल लाइनों के दोहरीकरण के निर्माण में निवेश के साथ, 77 प्रतिशत बढ़ गया है।
भारतीय रेल वित्त वर्ष 2025 में वंदे मेट्रो ट्रेनसेट कोच शुरु करेगी।
विमानन:वित्त वर्ष 2024 में 21 हवाई अड्डों पर नए टर्मिनल भवनों का संचालन शुरू किया गया है।
जिससे प्रति वर्ष लगभग 62 मिलियन यात्रियों की यात्री हैंडलिंग क्षमता में समग्र वृद्धि हुई है।
अंतरराष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन:भारत का दर्जा विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स कार्य निष्पादन सूचकांक के अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट कैटगरी में वर्ष 2014 में 44वें स्थान से वर्ष 2023 में 22वें स्थान पर हो गया है।
स्वच्छ ऊर्जा: भारत में स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में वर्ष 2014 और 2023 के मध्य 8.5 लाख करोड़ (102.4 अरब अमेरिकी डॉलर) का नया निवेश हुआ है।
अध्याय-13 : जलवायु परिवर्तन और भारत : हमें इस समस्या को अपने नजरिए से क्यों देखना चाहिए
वैश्विक रणनीतियों में कमियाँ: जलवायु परिवर्तन के लिए वर्तमान वैश्विक रणनीतियाँ त्रुटिपूर्ण हैं और सार्वभौमिक रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं।
पश्चिमी दृष्टिकोण समस्या की जड़, अर्थात् अति उपभोग को संबोधित करने का प्रयास नहीं करता, बल्कि अति उपभोग को प्राप्त करने के साधनों को प्रतिस्थापित करने का प्रयास करता है।
अनुकूलित दृष्टिकोण की आवश्यकता: सभी देशों के लिए एक ही दृष्टिकोण कारगर नहीं होगा।
विकासशील देशों को जलवायु संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए अपने स्वयं का मार्ग चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
भारत का लोकाचार और दृष्टिकोण: भारतीय लोकाचार प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों पर जोर देते हैं, इसके विपरीत विकसित देशों में अत्यधिक खपत की संस्कृति को प्राथमिकता दी जाती है।
मिशन लाइफ: ‘मिशन लाइफ’ अत्यधिक खपत की तुलना में सावधानी के साथ खपत को बढ़ावा देने के मानवीय स्वभाव पर जोर देती है। अत्याधिक खपत वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की समस्या की जड़ है।
Latest Comments