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शहरी परिवर्तन द्वारा बेहतर भविष्य का निर्माण

Lokesh Pal July 27, 2024 01:50 98 0

संदर्भ

केंद्रीय बजट, 2024-25 का एक प्रमुख केंद्र बिंदु ‘शहरी विकास’ है, जिसे आवास, किराये की सुविधाओं, शहर नियोजन, जल आपूर्ति, स्वच्छता और स्ट्रीट वेंडर्स के लिए सहायता में सुधार के उद्देश्य से विभिन्न पहलों के माध्यम से संबोधित किया जाता है।

  • केंद्रीय बजट, 2024-25 देश को मजबूत विकास और व्यापक समृद्धि की ओर ले जाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर देता है।

बजट में शहरी परिवर्तन हेतु रणनीतियाँ

बजट में शहरी विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो शहरी और ग्रामीण आबादी को आवास, किराये की सुविधाएँ और आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। पर्याप्त निवेश और रणनीतिक पहलों के माध्यम से, बजट का उद्देश्य पूरे देश में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, जीवन स्तर में सुधार करना और सतत् शहरीकरण को बढ़ावा देना है।

  • शहरी आवास: बजट में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को कवर करते हुए प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत तीन करोड़ अतिरिक्त घरों के निर्माण के लिए आवंटन की घोषणा की गई है।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी 2.0 के तहत ₹10 लाख करोड़ के निवेश से 1 करोड़ शहरी गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों की आवास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा।
    • कार्यान्वयन रणनीति: इसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
      • केंद्रीय सहायता: अगले 5 वर्षों में 2.2 लाख करोड़ रुपये।
      • ब्याज सब्सिडी: किफायती दरों पर ऋण की सुविधा प्रदान करना।
      • सक्षम नीतियाँ तथा विनियमन: बेहतर उपलब्धता के साथ कुशल और पारदर्शी आवास बाजार (किराये हेतु) के लिए।

    • प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): शहरी क्षेत्रों के लिए वर्ष 2015 में तथा  ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वर्ष 2016 में अपनी शुरुआत के बाद से, PMAY ने घरेलू शौचालय, LPG कनेक्शन, विद्युत और कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन जैसी आवश्यक सुविधाओं के साथ पक्के घर उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित किया है।

    • इस योजना में यह भी अनिवार्य है कि परिवार की महिला मुखिया घर की मालिक या सह-मालिक हो, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) और निम्न-आय समूहों (LIG) के बीच महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है।
  • किराये के आवास: बजट में PPP मोड के माध्यम से औद्योगिक श्रमिकों के लिए छात्रावास-प्रकार के आवास के साथ किराये के आवास की सुविधा पर प्रकाश डाला गया है, जिसे व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) और प्रमुख उद्योगों की प्रतिबद्धता द्वारा समर्थित किया गया है।
  • विकास केंद्र के रूप में शहर: राज्यों के सहयोग से, केंद्र सरकार ‘विकास केंद्र के रूप में शहरों’ के विकास को सुगम बनाएगी।
    • उपलब्धि रणनीति: ‘विकास केंद्रों के रूप में शहरों का विकास’ आर्थिक और पारगमन योजना तथा नगर नियोजन योजनाओं का उपयोग करते हुए शहरी-परिक्षेत्रों के व्यवस्थित विकास के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
  • शहरों का रचनात्मक पुनर्विकास: परिवर्तनकारी प्रभाव के साथ मौजूदा शहरों के रचनात्मक ब्राउनफील्ड पुनर्विकास के लिए, सरकार सक्षम नीतियों, बाजार-आधारित तंत्र और विनियमन के लिए एक रूपरेखा तैयार करेगी।
  • पारगमन उन्मुख विकास: 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 बड़े शहरों के लिए यह विकास योजना कार्यान्वयन और वित्तपोषण रणनीति के साथ तैयार की जाएगी।
  • जल आपूर्ति एवं स्वच्छता: केंद्र सरकार बैंक योग्य परियोजनाओं के माध्यम से 100 बड़े शहरों के लिए जल आपूर्ति, सीवेज उपचार और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं तथा सेवाओं को बढ़ावा देगी।
    • इन परियोजनाओं में सिंचाई के लिए उपचारित जल के उपयोग तथा आस-पास के क्षेत्रों में टैंकों को भरने की भी परिकल्पना की जाएगी।
    • कार्यान्वयन: राज्य सरकारों तथा बहुपक्षीय विकास बैंकों की साझेदारी में केंद्र सरकार द्वारा।
  • साप्ताहिक ‘हाट’: स्ट्रीट वेंडर्स के जीवन में बदलाव लाने में प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना की सफलता के आधार पर, सरकार ने अगले पाँच वर्षों में प्रत्येक वर्ष चुनिंदा शहरों में 100 साप्ताहिक ‘हाट’ या स्ट्रीट फूड हब के विकास को समर्थन देने की योजना बनाई है।
  • स्टाम्प ड्यूटी: उन राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाएगा जो सभी के लिए दरों को कम करने के लिए उच्च स्टाम्प ड्यूटी वसूलना जारी रखते हैं और महिलाओं द्वारा खरीदी गई संपत्तियों के लिए शुल्क को और कम करने पर भी विचार करते हैं।
    • इस सुधार को शहरी विकास योजनाओं का अनिवार्य घटक बनाया जाएगा।
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY):  PMGSY का चरण IV 25,000 ग्रामीण बस्तियों को सभी मौसमों के लिए कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए शुरू किया जाएगा, जो उनकी जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए पात्र हो गए हैं।
  • अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत): केंद्रीय वित्त मंत्री ने VGF विंडो की उपलब्धता की घोषणा की है, बशर्ते कि परियोजना को PPP मोड में वाणिज्यिक उद्यम के रूप में लिया जाए।
    • इसमें जल आपूर्ति, स्वच्छता, सड़क और सीवरेज प्रणाली जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे के लिए 8,000 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए हैं।
  • भारी निवेश: बजट में बुनियादी ढाँचे में पूँजीगत व्यय के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये के भारी निवेश का उल्लेख किया गया है, जिसमें राजमार्ग और शहरी बुनियादी ढाँचा शामिल है। इसमें राज्यों को बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 1.50 लाख करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त ऋण भी दिया गया है।
    • नगर पालिकाओं को सामान्य ‘वित्त आयोग अनुदान’ के रूप में 25,653 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके अलावा, नए शहरों के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
  • राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM): यह एक नई शुरुआत है, जिसे इस बजट में लाया गया है, जिसमें 1,150 करोड़ रुपये का प्रावधान है, जिसमें GIS मैपिंग के साथ संपत्ति और कर रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण तथा उनके प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इससे शहरी स्थानीय निकायों को अपने वित्त का बेहतर प्रबंधन करने में मदद मिलेगी और संपत्ति मालिकों को भी मदद मिलेगी।
  • केंद्र सरकार द्वारा अवसंरचना निवेश: बजट में अन्य प्राथमिकताओं और राजकोषीय समेकन की अनिवार्यताओं के साथ, अगले 5 वर्षों में अवसंरचना के लिए मजबूत राजकोषीय समर्थन बनाए रखने के लिए पूँजीगत व्यय के लिए 11,11,111 करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं।
    • यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% होगा
  • राज्य सरकारों द्वारा बुनियादी ढाँचे में निवेश: राज्यों को संसाधन आवंटन में सहायता देने के लिए इस वर्ष भी दीर्घकालिक ब्याज मुक्त ऋण के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
    • केंद्र सरकार राज्यों को उनकी विकास प्राथमिकताओं के अधीन, बुनियादी ढाँचे के लिए समान स्तर का समर्थन प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
  • बुनियादी ढाँचे में निजी निवेश: निजी क्षेत्र द्वारा बुनियादी ढाँचे में निवेश को व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण तथा सक्षम नीतियों और विनियमों के माध्यम से बढ़ावा दिया जाएगा।
    • बाजार आधारित वित्तपोषण ढाँचा लाया जाएगा।
  • अन्य: सरकार द्वारा शहरी स्तर पर कई योजनाओं के तहत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ शुरू की जा रही हैं। इन प्रयासों को जारी रखते हुए, बजट से शहरों को सार्वजनिक बस परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक वाहन, गैर-मोटर चालित परिवहन अवसंरचना विकसित करने, हरित क्षेत्र बढ़ाने, शहरी वनों का विकास करने, ऊर्जा तथा जल संरक्षण जैसे सतत् और जलवायु अनुकूल अवसंरचना विकसित करने के लिए वित्तपोषण किया जा सकता है।

भारत में शहरी नियोजन और विकास की पृष्ठभूमि

भारत में शहरी नियोजन और विकास में वर्ष 1957 से मास्टर प्लान तैयार करने से लेकर बड़े पैमाने पर शहरी परिवर्तन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन तक का बड़ा बदलाव देखा गया है, जैसे:-

  • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण (JNNURM)
  • स्मार्ट सिटीज मिशन (SCM)
  • अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT)
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBMU)
  • दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन 
  • प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, आदि।
  • शहरी स्थानीय निकायों की स्थापना: 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संविधान में एक नया भाग IX-A जोड़ा गया तथा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के रूप में नगर निगमों सहित शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की स्थापना का प्रावधान किया गया।

भारत में शहरी नियोजन और विकास की आवश्यकता

आज वैश्विक स्तर पर 50% से ज्यादा आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। वर्ष 2045 तक दुनिया की शहरी आबादी 1.5 गुना बढ़कर 6 बिलियन हो जाएगी। शहरी नीति निर्धारकों को विकास की योजना बनाने और अपनी बढ़ती आबादी की जरूरतों के हिसाब से बुनियादी सेवाएँ, बुनियादी ढाँचा और किफायती आवास उपलब्ध कराने के लिए तेजी से कार्य करना चाहिए।

  • उच्च जनसंख्या निर्भरता: संयुक्त राष्ट्र विश्व शहरीकरण संभावना, 2018 के अनुसार, वर्ष 2050 में भारत की 50% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करेगी, जबकि वर्ष 2011 में यह संख्या 31% थी।
    • शहरों में लगभग 50 करोड़ लोग रहते हैं, जो भारत की कुल आबादी का लगभग 36% है। शहरी आबादी सालाना 2% से 2.5% की स्थिर दर से बढ़ रही है। भारत में शहरीकरण की निरंतर बढ़ती गति के लिए निरंतर निवेश, दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है।
  • आर्थिक योगदान: भारत की शहरी क्षेत्र भूमि, देश की भूमि के केवल 3% है, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 60% का योगदान करते हैं (संयुक्त राष्ट्र के वर्ष 2018 के विश्व शहरीकरण संभावनाओं के संशोधन और नीति आयोग एवं एशियाई विकास बैंक द्वारा ‘विकास के इंजन के रूप में शहर’)।
    • भारतीय शहर आर्थिक गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे और देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होंगे।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटना: जलवायु परिवर्तन से निपटने में शहरों की भूमिका लगातार महत्त्वपूर्ण होती जा रही है, क्योंकि जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, जलवायु और आपदा जोखिम के प्रति उनका जोखिम भी बढ़ता जाता है।
    • वैश्विक स्तर पर 1.81 बिलियन लोग उच्च जोखिम वाले बाढ़ क्षेत्रों में रहते हैं। विकासशील देशों में घनी आबादी वाले और तेजी से शहरीकरण वाले नदी के मैदानों और तटीय क्षेत्रों में जोखिम विशेष रूप से अधिक (लगभग 89%) है।
  • महामारी से निपटना: कोविड-19 महामारी शहरों और उनके नागरिकों, अमीर और गरीब दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती थी। इसका प्रभाव और वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों का गरीबों, हाशिए पर रहने वाले एवं संवेदनशील लोगों पर असंगत प्रभाव पड़ा, जिससे शहरों की आर्थिक संरचना और ऐसे संकट के लिए तैयारियों में खामियाँ उजागर हुईं।
  • पर्यावरणीय स्थिरता के लिए: शहरी नियोजन यह सुनिश्चित करता है कि शहरों को हरित स्थानों, ऊर्जा-कुशल इमारतों और सतत् परिवहन विकल्पों जैसे उपायों के माध्यम से पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • भारतीय शहर वर्ष 2070 तक ‘नेट जीरो’ लक्ष्य हासिल करने की राष्ट्र की प्रतिबद्धता (ग्लासगो, COP26) और SDG के तहत की गई प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के अंतर्गत सतत् आवास के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMSH) का उद्देश्य भवनों में ऊर्जा दक्षता में सुधार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन एवं सार्वजनिक परिवहन को अपनाकर भारतीय शहरों को सतत् बनाना है।

भारत में शहरी नियोजन और विकास की चुनौतियाँ

शहरीकरण की गति और पैमाने के कारण कई चुनौतियाँ सामने आती हैं, जैसे कि किफायती आवास, परिवहन प्रणाली, बुनियादी सेवाओं और रोजगार सहित व्यवहार्य बुनियादी ढाँचे की बढ़ती माँग को पूरा करना, विशेष तौर पर अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले लगभग 1 बिलियन शहरी गरीबों के लिए। विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते संघर्ष शहरों पर दबाव बढ़ाते हैं क्योंकि जबरन विस्थापित किए गए 50% से अधिक लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।

  • संसाधनों पर उच्च दबाव: शहरी भूमि उपभोग का विस्तार जनसंख्या वृद्धि की तुलना में 50% अधिक है, जिसके कारण वर्ष 2030 तक विश्व में 1.2 मिलियन वर्ग किमी. नया शहरी निर्मित क्षेत्र जुड़ने की उम्मीद है। इससे भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, जिसके परिणामस्वरूप अवांछनीय परिणाम सामने आते हैं।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: शहर वैश्विक ऊर्जा खपत का दो-तिहाई हिस्सा दर्शाते हैं तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 70% से अधिक योगदान देते हैं।
  • असमान शहरीकरण: देश भर में शहरी केंद्रों का असमान वितरण है और शहरीकरण की गति में एकरूपता का अभाव है। बिहार, ओडिशा, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य शहरीकरण की दर में पिछड़ रहे हैं, जबकि कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्य आगे हैं, जिससे शहरी नियोजन और विकास के लिए एक समान नीति लागू करना मुश्किल हो जाता है।
  • कोई प्रभावी ‘मास्टर प्लान’ न होना: नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 50% ‘वैधानिक शहर’ अपने विकास और बुनियादी ढाँचे के मार्गदर्शन के लिए किसी मास्टर प्लान के बिना विस्तार कर रहे हैं।
    • वैधानिक शहर वह होता है जिसमें नगर पालिका, निगम, छावनी बोर्ड या अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति होती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 4,041 वैधानिक शहर हैं।
  • स्थानीय सरकारों की क्षमता का अभाव: स्थानीय सरकार के पास नियोजित शहरी अवसंरचना विकास एवं सेवा वितरण के लिए धन, कार्य और कार्यक्षमता का अभाव है।
  • झुग्गी-झोपड़ियों में अधिक जनसंख्या: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल शहरी आबादी का लगभग 17.3% झुग्गी-झोपड़ियों में रह रहा है। किफायती आवास की कमी झुग्गियों के निर्माण एवं विस्तार में योगदान दे रही है।
  • नगरपालिका संरचना का कमजोर होना: मुंबई में प्रति 1,00,000 लोगों पर 938 नगरपालिका कर्मचारी हैं, जबकि बंगलूरू में सिर्फ 317 हैं। इसकी तुलना में न्यूयॉर्क में 5,906 और लंदन में 2,936 कर्मचारी हैं। 

आगे की राह

शहरी परिवर्तन भारत के विकास को सक्षम करने वाला एक प्रमुख फोकस क्षेत्र बना रहेगा। शहरी विकास पर निरंतर ध्यान देने से न केवल शहरों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि अधिक निवेश आकर्षित करने के साथ-साथ अधिक नौकरियाँ उत्पन्न करने में भी मदद मिलेगी।

  • सहयोगात्मक दृष्टिकोण: ऐसे शहरों का निर्माण करना जो ‘कामकाजी’ (हरित, लचीले और समावेशी) हों, इसके लिए गहन नीति समन्वय और निवेश विकल्पों की आवश्यकता होती है। राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों को अभी कार्य करने, अपने विकास के भविष्य को आकार देने और सभी के लिए अवसर उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
    • नीति आयोग ने शहरी नियोजन की प्रक्रिया को अधिक समावेशी और सुलभ बनाने के लिए ‘नागरिक संपर्क अभियान’ की सिफारिश की है।
    • साथ ही, शहरी नियोजन और विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाया जाना चाहिए, जैसे निजी क्षेत्र की परामर्शदाताओं को शामिल करना।
    • स्थानीय निकायों को धन, कार्यों और कार्यात्मकताओं के उचित हस्तांतरण द्वारा सशक्त बनाया जाना चाहिए।
      • वर्ष 2050 तक भारतीय शहरों में 800 मिलियन से अधिक लोगों के रहने की संभावना है और बढ़ते नागरिक बोझ से निपटने के लिए मजबूत नगर निकायों की आवश्यकता होगी।
  • साक्ष्य-आधारित नियोजन को सक्षम करना: स्मार्ट सिटीज मिशन, के हिस्से के रूप में, भारत भर के 100 शहरों ने ‘कमांड कंट्रोल सेंटर’ को एकीकृत करने सहित कई डिजिटल समाधानों को लागू किया है/कर रहे हैं। ये डिजिटल समाधान बड़ी मात्रा में डेटा भी एकत्र कर रहे हैं। ऐसे डेटा का लाभ उठाते हुए, राज्यों/शहरों को साक्ष्य-आधारित नीतियाँ/दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जो बेहतर शहरी विकास को सक्षम करेंगे।
  • कार्यक्रमगत हस्तक्षेप: नीति आयोग ने भारतीय शहरों के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए 5 वर्ष की अवधि हेतु एक केंद्रीय क्षेत्र योजना ‘500 स्वस्थ शहर कार्यक्रम’ की सिफारिश की है।
    • प्रस्तावित ‘स्वस्थ शहर कार्यक्रम’ के अंतर्गत सभी शहरों/कस्बों को नियोजन क्षेत्र की दक्षता को अधिकतम करने के लिए विनियमों को मजबूत करना चाहिए। नगर एवं ग्राम नियोजन या शहरी एवं क्षेत्रीय विकास अधिनियमों की नियमित समीक्षा होनी चाहिए।
  • प्रकृति आधारित समाधान अपनाना: जल निकायों और हरित स्थानों को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने सहित सतत् शहरी नियोजन को शामिल करने की आवश्यकता है।
    • जल और सीवेज प्रबंधन में जलवायु और वर्षा पैटर्न के विचारों को एकीकृत किया जाए ताकि दक्षता और लचीलापन बढ़ाया जा सके। 
    • बीमारियों के बोझ को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए जल, स्वच्छता और स्वच्छता के बुनियादी ढाँचे में सुधार को प्राथमिकता देने की भी आवश्यकता है।

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