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भारत के खुले पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पेड़ों का असामान्य खतरा

Lokesh Pal August 01, 2024 05:16 90 0

संदर्भ

हालाँकि वृक्षावरण में वृद्धि को आमतौर पर जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण के लिए एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाता है, लेकिन यदि इसे ऐतिहासिक रूप से भिन्न आवासों वाले क्षेत्रों, जैसे घास के मैदानों और सवाना में लागू किया जाए, तो इसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।

हालिया निष्कर्ष

  • ‘ग्लोबल चेंज बायोलॉजी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि सवाना एवं घास के मैदानों जैसे खुले पारिस्थितिकी तंत्रों में वृक्षों के बढ़ते आवरण के कारण स्थानीय घास के मैदानों में रहने वाले पक्षियों की संख्या में काफी कमी आई है।
  • विशेष रूप से, अफ्रीकी सवाना में, ऐतिहासिक रूप से खुले आवासों में वृक्षों के प्रसार के कारण घासस्थल में पक्षियों की जनसंख्या में 20% से अधिक की गिरावट आई है।

ओपन इकोसिस्टम नेटवर्क (Open Ecosystems Network- OpEN) 

  • ओपन इकोसिस्टम नेटवर्क के बारे में: ओपन इकोसिस्टम नेटवर्क (OpEN) एक सहयोगात्मक पहल है, जो सवाना, झाड़ीदार भूमि और घास के मैदानों के पर्यावरणीय और सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व को संप्रेषित करती है।
    • OpEN का उद्देश्य नीति निर्माताओं और आम जनता के बीच पृथ्वी प्रणाली, वैश्विक जैव विविधता, समुदायों और संस्कृतियों में खुले पारिस्थितिकी तंत्र के अभिन्न योगदान के बारे में समझ को बढ़ावा देना है।
    • इसमें 100 से अधिक संबद्ध वैज्ञानिक शामिल हैं, जो खुले पारिस्थितिकी तंत्र में काम करते हैं और चिकित्सकों और नीति निर्माताओं के साथ जुड़ते हैं।

खुले पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में

  • खुले पारिस्थितिकी तंत्र: खुले पारिस्थितिकी तंत्र सवाना, घास के मैदान और झाड़ीदार भूमि जैसे वातावरण हैं, जिनकी विशेषता घास की एक सतत् जमीनी परत है, जिसमें न्यूनतम या कम पेड़ होते हैं। कुछ क्षेत्रों में, पेड़, जड़ी-बूटियाँ और झाड़ियाँ एक साथ रह सकती हैं।
    • इन पारिस्थितिकी तंत्रों में वनस्पति की संरचना एवं संघटन व्यापक पर्यावरणीय परिस्थितियों से निकटता से जुड़ी हुई है।
  • स्थान: सवाना और घास के मैदान पृथ्वी के आधे से अधिक भू-भाग पर फैले हुए हैं, जो उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
    • घास के मैदान और सवाना दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
    • वे पृथ्वी के कुल भू-भाग का लगभग 40% हिस्सा कवर करते हैं।
  • खुले पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ: घास के मैदान तथा सवाना जैसे खुले पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषता घास की निचली परत तथा देशी वृक्ष प्रजातियों का बिखराव है। इन आवासों को आम तौर पर विशिष्ट प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों द्वारा बनाए रखा जाता है।
  • खुले पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्व
    • जैव विविधता: खुले पारिस्थितिकी तंत्र विशिष्ट और प्राचीन जैव विविधता का घर हैं, जो पृथ्वी की पारिस्थितिकी समृद्धि में योगदान देते हैं।
      • पौधों एवं जानवरों की कई स्थानिक और खतरे में पड़ी प्रजातियों का निवास स्थल।
      • अफ्रीका तथा एशिया में हाथी, गैंडे और भैंस जैसे बड़े शाकाहारी जीवों का निवास स्थल।
      • हिमालयी घास के मैदानों और अमेरिकी मैदानों में बस्टर्ड, फ्लोरिकन और ग्रूज़ जैसे घास के मैदानों के पक्षियों का समर्थन करता है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ
      • जलवायु विनियमन: इन पारिस्थितिकी तंत्रों में वनस्पति पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
      • जल प्रबंधन: वे पानी की मात्रा और गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद करते हैं।
      • कार्बन भंडारण: खुले पारिस्थितिकी तंत्र जमीन के नीचे और ऊपर दोनों जगह कार्बन का भंडारण करते हैं।
      • संसाधन प्रावधान: वे भोजन और ईंधन जैसे आवश्यक संसाधन प्रदान करते हैं।
    • सांस्कृतिक एवं आर्थिक मूल्य
      • ऐतिहासिक महत्त्व: मानव सर्वप्रथम अफ्रीका के घास के मैदानों और सवाना में विकसित हुआ, और मूल निवासियों ने अग्नि और पशु प्रबंधन जैसी प्रथाओं के माध्यम से इन पारिस्थितिकी प्रणालियों को आकार दिया।
  • वर्तमान खतरे: इन खुले पारिस्थितिकी तंत्रों का तेजी से विनाश विश्व स्तर पर हो रहा है।
    • प्राथमिक खतरे: चरागाहों का अन्य भूमि उपयोगों में परिवर्तन, गहन कृषि, कटाव के कारण हानि, बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएँ तथा अत्यधिक चराई।
    • असामान्य खतरे: वुडी अतिक्रमण (Woody Encroachment) एक असामान्य खतरा है।

वुडी अतिक्रमण (Woody Encroachment) के बारे में 

  • वुडी अतिक्रमण एक ऐसी घटना है, जिसमें घास के मैदानों, सवाना और अन्य खुले पारिस्थितिकी तंत्रों में वुडी पौधों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जाती है।
  • यह बदलाव तब होता है, जब ये वुडी पौधे घास और अन्य शाकाहारी वनस्पतियों का अतिक्रमण करते जाते हैं और उनकी जगह ले लेते हैं।
  • समय के साथ, यह प्रक्रिया खुले, घास वाले परिदृश्यों को अधिक बंद, घनी वनस्पति वाले क्षेत्रों में बदल देती है।

वुडी अतिक्रमण के कारण: खुले पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा

  • अशांत शासन में गड़बड़ी: अशांत शासन प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियाँ हैं, जो खुले पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बनाए रखती हैं।
    • इनमें शाकाहारी जानवरों द्वारा चराई शामिल है, जो पेड़ों की वृद्धि को सीमित करती है, तथा समय-समय पर आग लगाना, जो पेड़ों को बढ़ने से रोकता है।
    • जब इस पारिस्थतिकी व्यवस्था में व्यवधान होता है, तो पेड़ खुद को अधिक आसानी से स्थापित कर सकते हैं।
      • यह व्यवधान ‘वुडी’ अतिक्रमण की प्रक्रिया को तेज करता है, जिससे विविध, बहुस्तरीय पारिस्थितिकी तंत्र ‘वुडी’ पौधों की एकसमान परतों में परिवर्तित हो जाते हैं।
      • यह बदलाव खुले पारिस्थितिकी तंत्रों की जैव विविधता और पारिस्थितिकी स्वास्थ्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न करता है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक वुडी प्रजातियों के आने से अतिक्रमण बढ़ सकता है, जिससे देशज घास और फॉर्ब्स की प्रतिस्पर्द्धा बढ़ सकती है। भारत के उदाहरणों में शामिल हैं:
    • प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis juliflora): इसे वर्ष 1961 में गुजरात वन विभाग द्वारा बन्नी घास के मैदानों में मरुस्थलीकरण से निपटने तथा ईंधन के लिए लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए लगाया गया था, जिसके बाद से इसने बड़े क्षेत्रों को ‘प्रोसोपिस’ वनों में बदल दिया है।
    • नीलगिरी और मालाबार रेशम-कपास: शोला घास के मैदानों में नीलगिरी के बागानों का विस्तार तेजी से हुआ है, जबकि मालाबार रेशम-कपास के वृक्ष हिमालय के गीले तराई घास के मैदानों में फल-फूल रहे हैं।
  • वुडी अतिक्रमण के वैश्विक संचालक
    • वुडी अतिक्रमण दुनिया भर में व्यापक है। कई अध्ययनों ने विभिन्न महाद्वीपों में अतिक्रमण के विभिन्न कारणों के साक्ष्य खोजे हैं।
    • दक्षिण अमेरिका: आग बुझाने का कार्य तथा आवास विखंडन वुडी अतिक्रमण के मुख्य कारण हैं।
    • ऑस्ट्रेलिया तथा अफ्रीका: CO2 का बढ़ता स्तर तथा वर्षा में भिन्नता वुडी अतिक्रमण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। वुडी अतिक्रमण पर CO2 की वृद्धि के प्रभाव इस प्रकार हैं:
      • कार्बन डाइऑक्साइड प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण, वातावरण में CO2 का उच्च स्तर घास के मैदानों में गहरी जड़ों वाले लकड़ी के पौधों के प्रसार को प्रोत्साहित करता है।
      • प्रकाश संश्लेषक पथ (Photosynthetic Pathway): पेड़, जो C3 प्रकाश संश्लेषक मार्ग का उपयोग करते हैं, बढ़ी हुई CO2 से लाभान्वित होते हैं, जिससे घासों पर उनका प्रभुत्व होता है।
      • घासों का दमन: एक बार जब पेड़ प्रमुख हो जाते हैं, तो वे छाया और आग की आवृत्ति को कम करके घासों को और दबा सकते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र तथा जैव विविधता पर वुडी अतिक्रमण के प्रभाव

  • पारिस्थितिकी तंत्रों का समरूपीकरण: वृक्षों और झाड़ियों के आवरण में वृद्धि के कारण खुले आवास अधिक वृक्ष/झाड़ियों के घनत्व वाले आवासों में परिवर्तित हो रहे हैं।
    • इससे पारिस्थितिकी तंत्र में समरूपता आती है, तथा विविध, बहुस्तरीय आवास काष्ठीय पौधों की एकसमान परतों में बदल जाते हैं।
  • चरागाह पक्षियों की संख्या में कमी
    • दक्षिणी अफ्रीका में अध्ययन: दक्षिण अफ्रीका, एस्वातिनी और लेसोथो में, ‘दक्षिण अफ्रीकी पक्षी एटलस परियोजना 2’ के आँकड़ों से पता चला है कि खुले पारिस्थितिकी तंत्र के पक्षियों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • निष्कर्ष: वर्ष 2007 तथा 2016 के बीच विश्लेषण की गई 191 प्रजातियों में से 121 में जनसंख्या में गिरावट देखी गई।
      • उल्लेखनीय रूप से, 34 प्रजातियों की गिरावट का संबंध वुडी अतिक्रमण से था।
  • मृदा एवं वनस्पति पर प्रभाव
    • मृदा परिवर्तन: लकड़ी की प्रजातियों के अनुक्रमण से मृदा की स्थिति बदल जाती है। 
    • घास की प्रजातियाँ: मृदा की स्थिति में परिवर्तन से घास की प्रजातियों की संरचना प्रभावित होती है।
  • जीव-जंतुओं पर प्रभाव
    • पक्षी: वुडी प्रजातियाँ शिकार के जोखिम को बढ़ाती हैं, विशेष रूप से विशेषज्ञ पक्षियों के घोंसलों को प्रभावित करती हैं।
    • कृंतक: कच्छ के बन्नी घास के मैदानों में, वुडी अतिक्रमण ने घास के मैदान विशेषज्ञ कृंतकों की आबादी को कम कर दिया है।
      • इन प्रजातियों को शिकार का खतरा बढ़ गया तथा वृक्षों पर अतिक्रमण के कारण उन्हें भोजन की तलाश करने की बजाय सतर्कता बरतने में अधिक समय व्यतीत करना पड़ा।

खुले पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अन्य खतरे

  • यूरोकेंद्रित और वन-केंद्रित दृष्टिकोण (Eurocentric and Forest-Centric Perspectives)
    • ऐतिहासिक संदर्भ
      • औपनिवेशिक नीतियाँ: औपनिवेशिक अधिकारी खुले पारिस्थितिकी तंत्रों को ‘बंजर भूमि’ के रूप में देखते थे, जिन्हें इमारती लकड़ी उत्पन्न करने वाले पेड़ों से बदला जाना चाहिए।
      • इसके अलावा यूरोकेंद्रित दृष्टिकोण का भी प्रचलन है, जो घने वृक्षावरण को प्राथमिकता देता है, जिसके कारण यह गलत धारणा बनती है कि इसके बिना खुले पारिस्थितिकी तंत्र ‘क्षरित’ हो जाते हैं।
  • भूमि परिवर्तन: भूमि परिवर्तन गतिविधियों से बढ़ते दबाव खुले पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण खतरे पैदा करते हैं। वन नीतियों ने घास के मैदानों को बागानों में बदल दिया और चराई तथा आग प्रबंधन जैसी पारंपरिक प्रथाओं को अपराध बना दिया।
  • जलवायु परिवर्तन पर ध्यान
    • कार्बन पृथक्करण: आज, कार्बन पृथक्करण के स्रोत के रूप में वृक्षों पर जोर दिया जा रहा है, जबकि खुले पारिस्थितिकी तंत्र को अक्सर इस लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा के रूप में देखा जाता है।
      • वृक्षों के संवर्द्धन पर ध्यान: कई समकालीन पुनरुद्धार परियोजनाओं में वृक्षों के संवर्द्धन को प्राथमिकता दी जाती है, जो घास के मैदानों तथा सवाना की पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो सकते हैं।
  • अपर्याप्त पुनर्स्थापना दृष्टिकोण
    • आवश्यक विशेषताएँ और प्रक्रियाएँ : खुले पारिस्थितिकी तंत्रों के प्रभावी पुनर्स्थापन के लिए प्रमुख विशेषताओं और प्रक्रियाओं, जैसे अग्नि और पशु अंतःक्रियाओं को बनाए रखना आवश्यक है, जो उनके संयोजन, कार्यप्रणाली और प्रावधान के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

विश्व के घास के मैदान

घास के मैदानों को अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है।

  • उष्णकटिबंधीय घास के मैदान (Tropical Grasslands)
    • पूर्वी अफ्रीका: सवाना
    • ब्राजील: कैम्पोस
    • वेनेजुएला: लानोस
  • शीतोष्ण घास के मैदान (Temperate Grasslands)
    • अर्जेंटीना: पम्पास
    • उत्तरी अमेरिका: प्रेयरी
    • दक्षिण अफ्रीका: वेल्ड
    • मध्य एशिया: स्टेपी
    • ऑस्ट्रेलिया: डाउन

पूरे भारत में घास के मैदान

  • घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में: घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र एक बायोम है, जिसकी विशेषता घास, जड़ी-बूटियों तथा कभी-कभी कुछ बिखरे हुए पेड़ों या झाड़ियों के विशाल विस्तार से होती है। घास के मैदान अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर पाए जाते हैं तथा जलवायु, भूगोल और प्रजातियों की संरचना के मामले में काफी भिन्न हो सकते हैं।
  • विविध जलवायु व्यवस्थाएँ
    • शुष्क घास के मैदान: पश्चिमी भारत में पाए जाते हैं।
    • बाढ़ के मैदानी घास के मैदान: हिमालयी परिदृश्य में स्थित हैं।
    • शोला घास के मैदान: पश्चिमी घाट में उच्च ऊँचाई वाले घास के मैदान।
  • हिमालय की तलहटी में जैव विविधता
    • प्रतिष्ठित प्रजातियाँ: इसमें भारतीय एक सींग वाले गैंडे, दलदली हिरण, बंगाल फ्लोरिकन, दलदली घास वाले बैबलर और अन्य स्थानिक प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • घास के मैदानों के लिए खतरा
    • विखंडन: ऐतिहासिक क्षति ने इन घास के मैदानों को खंडित टुकड़ों में तोड़ दिया है।
    • बढ़ी हुई भेद्यता: विखंडन इन टुकड़ों को आस-पास के जंगलों, कृषि और अन्य मानवीय गतिविधियों से होने वाले खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
    • वुडी अतिक्रमण: भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Science Education and Research- IISER), कोलकाता के अध्ययन के अनुसार: आज के अधिकांश गीले घास के मैदान राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों के अंदर पाए जाते हैं। फिर भी इन पार्कों के अंदर वुडी अतिक्रमण भी बड़े पैमाने पर है।
      • इन स्थानों पर घास के मैदानों का आवरण 34% तक कम हो गया था, जबकि वृक्ष आवरण 8.7% तक बढ़ गया था।

खुले पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए सुझाव

  • वुडी अतिक्रमण पर अधिक साक्ष्य विकसित करना: खुले पारिस्थितिकी तंत्रों, विशेषकर घास के मैदानों की जैव विविधता पर वुडी अतिक्रमण के प्रतिकूल प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए व्यापक अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
  • दीर्घकालिक पारिस्थितिक निगरानी को कार्यान्वित करना: घास के मैदानों के प्रबंधन के संबंध में सूचित कार्रवाई तथा नीतिगत परिवर्तनों का मार्गदर्शन करने के लिए एकत्रित और उपलब्ध आँकड़ों का उपयोग करना।
  • शब्दावली संबंधी मुद्दों को संबोधित करना
    • शब्दावली का पुनर्निर्धारण: ‘बंजर भूमि‘ जैसे औपनिवेशिक युग के शब्दों से दूर जाने की आवश्यकता है, जो खुले पारिस्थितिकी तंत्रों को गलत वर्गीकृत करते हैं तथा उनका कम मूल्यांकन करते हैं।
    • सटीक वर्गीकरण को बढ़ावा: ऐसी शब्दावली अपनाएँ जो घास के मैदानों जैसे खुले पारिस्थितिकी तंत्र के वास्तविक पारिस्थितिकी मूल्य और महत्त्व को दर्शाती हैं, उनके संरक्षण और उचित उपयोग का समर्थन करती हैं।

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