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सरकार की पहल : विधायी और नीतिगत मुद्दे

Lokesh Pal July 31, 2024 05:30 72 0

संदर्भ: 

वर्तमान सरकार की विधायी और नीतिगत पहलों से राष्ट्रीय और सामाजिक महत्व के अनेक कानूनी मुद्दे जैसे: चुनावी बॉन्ड योजना, बॉन्ड दाताओं की निजता के अधिकार और मतदाताओं के सूचना के अधिकार के बीच संतुलन, हिट-एंड-रन प्रावधानों को लेकर ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल और भारतीय विधि आयोग जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्दे उभरे हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: चुनावी बांड योजना, निजता का अधिकार, सूचना का अधिकार, भारतीय न्याय संहिता (2023), भारतीय विधि आयोग (एलसीआई), आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कानूनी सलाहकार परिषद (एलएसी), आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) आदि की स्थापना की आवश्यकता।

हाल के कानूनी मुद्दे:

  • उदाहरण के लिए, चुनावी बॉन्ड योजना को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक करार दिया था। 
  • परिणामस्वरूप इस योजना को चुनौती मिलना स्वाभाविक था।
  • यदि चुनावी बॉन्ड योजना का गंभीरता से आनुपातिकता का परीक्षण किया गया होता (जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया था, ताकि योजना के लागू होने से पहले बॉन्ड दाताओं की निजता के अधिकार और मतदाताओं के सूचना के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके) तो योजना की संवैधानिकता और न्यायालय के फैसले को चुनौती दिए जाने से बचा जा सकता था।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 106(2) के तहत हिट-एंड-रन प्रावधानों को लेकर ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल भी इसका एक उदाहरण है। 
  • इस प्रावधान के अनुसार, अगर दुर्घटना में शामिल कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट किए बिना भाग जाता है तो 10 साल तक की कैद की सज़ा का प्रावधान है। 
  • इससे ट्रांसपोर्टरों में यह चिंता पैदा हो गई कि वास्तविक परिस्थितियों की परवाह किए बिना यह कानून उनके विरुद्ध असंगत रूप से लागू होगा।
  • यद्यपि राष्ट्रव्यापी हड़ताल इस शर्त पर समाप्त की गई, जब सरकार ने इस प्रावधान को तब तक अधिसूचित नहीं करने पर सहमति जताई जब तक कि इसमें उचित संशोधन नहीं किया जाता।
  • चूंकि, कानूनी व्यवहार्यता और प्रभाव आकलन के संदर्भ में पर्याप्त जांच की कमी के कारण ऐसे कई मुद्दे उत्पन्न हुए हैं, इसलिए इस कमी को पूरा करना विवेकपूर्ण हो जाता है। 
  • गैर-पक्षपाती सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों के रूप में, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, विशेष रूप से, संवैधानिक रूप से व्यवहार्य और सामाजिक रूप से स्वीकार्य कानून बनाने में केंद्र और राज्य सरकारों की सहायता करने के लिए अपेक्षित विशेषज्ञता, ज्ञान और संसाधनों से युक्त है।
  • हालांकि यह उन प्राथमिक उद्देश्यों में से एक था जिसके लिए उन्हें स्थापित किया गया था। 
  • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली अधिनियम, 2008 में “कानून, विधान और न्यायिक संस्थानों से सम्बन्धित अध्ययन और प्रशिक्षण परियोजनाओं” को एक उद्देश्य के रूप में बताया गया है।
  • राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों द्वारा केन्द्र और राज्य सरकारों को प्रस्तावित विधायी क्षेत्रों में नियमित अनुसंधान संदर्भ, इन सरकारों को शैक्षणिक संस्थानों में अपने निवेश और उनकी विशेषज्ञता का पूर्ण उपयोग करने में सक्षम बनाएगा।
  • गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली में आपराधिक कानूनों में सुधार के लिए समिति की स्थापना, तथा मरम्मत के अधिकार पर एक रूपरेखा के विकास के लिए उपभोक्ता मामले विभाग की समिति में एक लेखक को नामित करना इस सम्बन्ध में एक प्रमुख उदाहरण है।

चुनौतियाँ : 

  • सरकार और एल.सी.आई. के बीच अपर्याप्त स्तर की सहभागिता और गहन शोध और विश्लेषण की आवश्यकता वाले कानूनी मुद्दों की अधिकता के कारण, भारत सरकार के संदर्भ में 22वें विधि आयोग द्वारा 2020 और 2024 के बीच केवल चार रिपोर्ट तैयार की गईं।
  • एक ऐसे गतिशील निकाय की आवश्यकता है जो जटिल और विविध कानूनी परिदृश्य को अपेक्षाकृत शीघ्रता और सहजता से संचालित करने में सक्षम हो सके।
  • एल.सी.आई. की अप्रभावी होने के कारण भी आलोचना होती रही है, क्योंकि आज तक उनकी केवल 50% सिफारिशों को ही क्रियान्वित किया गया है।
  • न्याय प्रणाली में कानूनी समस्याएं व्यापक, दबावपूर्ण और विविध होने के बावजूद, एल.सी.आई. ने अपनी स्थापना की तिथि से प्रति वर्ष औसतन केवल 4.19 रिपोर्टें ही तैयार की हैं।

आगे की राह : 

  • कानूनी चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने और आवश्यक प्रतिक्रिया देने के लिए एक अन्य विचार यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की सहायता के लिए ईएसी की तर्ज पर एक एलएसी का गठन किया जाए।
  • कानूनी सलाहकार परिषद अर्थात एलएसी के विचारार्थ विषयों में भारत सरकार द्वारा संदर्भित मुद्दों का कानूनी विश्लेषण, प्रधानमंत्री द्वारा संदर्भित किसी भी विचारित कानून के संभावित प्रभावों और परिणामों का विश्लेषण; तथा समसामयिक महत्व के मुद्दों पर स्वप्रेरणा से कानूनी अनुसंधान और विश्लेषण शामिल हो सकते हैं।
  • एलएसी में कानूनी दिग्गज, प्रख्यात न्यायविद, प्रमुख शिक्षाविद और शोधकर्ता शामिल हो सकते हैं, जिनके पास विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता हो, जैसे कि आपराधिक कानून, व्यापार कानून, अंतर्राष्ट्रीय कानून, व्यवसाय कानून और कराधान कानून, जिन पर सरकारें अक्सर कानून बनाती हैं।
  • ऐसा निकाय भारतीय विधि आयोग (एल.सी.आई.) से भिन्न होगा। 
  • एल.सी.आई. जहां विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, वहीं एल.ए.सी. प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) के साथ मिलकर काम करेगा।
  • एल.सी.आई. मुख्य रूप से मौजूदा कानूनों में सुधारों की सिफारिश करता है, जिससे इसकी भूमिका प्रतिक्रियात्मक हो जाती है, जबकि एल.ए.सी. आगामी कानूनों के प्रभाव, चुनौतियों और खामियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए कार्य करेगा, जिन पर सरकार विचार-विमर्श कर रही है या कानून या नीतियों को अंतिम रूप दे रही है।
  • राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों की शैक्षिक क्षमता का लाभ उठाना तथा एल.ए.सी. का गठन करना, यद्यपि एकमात्र समाधान नहीं है, फिर भी इससे सरकार को कानूनी चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष:

एक कानूनी सलाहकार परिषद (एलएसी) की स्थापना और राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों की विशेषज्ञता का उपयोग कानूनी चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान कर सकता है, जिससे समग्र, संवैधानिक रूप से व्यवहार्य कानून सुनिश्चित हो सके।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न: 

प्रश्न: आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) के समान प्रधानमंत्री के लिए एक कानूनी सलाहकार परिषद (एलएसी) की स्थापना की आवश्यकता पर चर्चा करें। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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