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आंध्र और तेलंगाना में ST को 100% आरक्षण देने संबंधी पुनर्विचार याचिकाएँ उच्चतम न्यायालय द्वारा खारिज

Lokesh Pal August 02, 2024 04:21 163 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्र में शिक्षक पदों के लिए स्थानीय अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes- ST) को 100 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के प्रस्ताव को रद्द करने के अपने अप्रैल 2020 के निर्णय पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। 

  • तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों सरकारों के साथ-साथ कुछ आदिवासी समूहों द्वारा भी समीक्षा याचिकाएँ दायर की गईं।

मुकदमे की पृष्ठभूमि

  • प्रारंभिक सरकारी आदेश: संयुक्त आंध्र प्रदेश के राज्यपाल ने संविधान की पाँचवीं अनुसूची के पैरा 5(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए वर्ष 1986 में एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत अनुसूचित क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षण पदों को केवल अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किया गया था। 
  • इस आदेश को प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Administrative Tribunal) ने वर्ष 1989 में रद्द कर दिया।
  • एक समानांतर मुकदमा
    • इसके बाद सरकार ने एक और आदेश जारी किया, जिसमें गैर-आदिवासियों को तब तक शिक्षक के पद पर बने रहने की अनुमति दी गई, जब तक कि योग्य स्थानीय आदिवासी उपलब्ध नहीं हो जाते। 
    • इस आदेश को गैर-आदिवासी शिक्षकों द्वारा एक रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी, जब वर्ष 1993 में उनकी सेवाएँ समाप्त कर दी गई थीं।  
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने वर्ष 1996 में इस आदेश को रद्द कर दिया। 
    • वर्ष 1997 में सरकार द्वारा दायर रिट अपील में डिवीजन बेंच ने सरकारी आदेश को बरकरार रखा था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1998 में गैर-आदिवासी नियुक्तियों के पक्ष में इसे फिर से रद्द कर दिया।  
  • नई अधिसूचना (Fresh Notification): आंध्र प्रदेश सरकार ने वर्ष 2000 में पाँचवीं अनुसूची के पैरा 5(1) के तहत फिर से अधिसूचना जारी की, जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षण पदों के लिए स्थानीय अनुसूचित जनजातियों को 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम आदेश: वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने इस आदेश को रद्द कर दिया, जबकि पहले से की गई आदिवासी शिक्षक नियुक्तियों पर रोक लगा दी, साथ ही दोनों राज्य सरकारों को भविष्य में इसी तरह की प्रक्रिया का प्रयास न करने की चेतावनी दी।
    • निर्णय के कुछ अंश
      • पाँचवीं अनुसूची के पैरा 5(1) के तहत राज्यपाल की शक्ति केवल संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों को संशोधित करने तक सीमित है।
      • यह शक्ति राज्य में व्यक्तियों की भर्ती और सार्वजनिक सेवाओं की स्थिति के संबंध में संविधान के अनुच्छेद-309 द्वारा कवर किए गए अधीनस्थ विधानों तक विस्तारित नहीं होती है। 
      • राज्यपाल की शक्ति की सीमाएँ: राज्यपाल संविधान के भाग III या राष्ट्रपति के आदेश अनुच्छेद-371D के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को रद्द नहीं कर सकते हैं, जो स्थानीय उम्मीदवारों के लिए सीधी भर्ती में आरक्षण प्रदान करता है। 
      • 100% आरक्षण की अवैधता: स्थानीय आदिवासियों के लिए नौकरियों में 100 प्रतिशत आरक्षण अस्वीकार्य है क्योंकि आरक्षण की बाहरी सीमा 50 प्रतिशत है जैसा कि इंद्रा साहनी मामले, 1992 में निर्दिष्ट किया गया है। 

निर्णय का प्रभाव

  • पूर्ववर्ती के तौर पर कार्य किया: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से छत्तीसगढ़ राज्य (नंदकुमार गुप्ता बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2022) और झारखंड राज्य (सत्यजीत कुमार बनाम झारखंड राज्य, अगस्त 2022 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा) में अनुसूचित जनजातियों को लाभ पहुँचाने के लिए बनाए गए आरक्षण नियम को पलट दिया गया। 
  • जनजातीय अलगाव: इस निर्णय से जनजातीय भूमि और संसाधन अलगाव की समस्या और बढ़ सकती है, क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि संयुक्त आंध्र प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्र में पहले से ही 50 प्रतिशत से अधिक भूमि गैर-जनजातीय लोगों के पास है। 
    • तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों राज्यों में जनजातीय संरक्षण भूमि हस्तांतरण विनियमन (Land Transfer Regulations) (70 में से 1) अनुसूचित क्षेत्र में गैर-आदिवासियों के पक्ष में भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाता है, चाहे वह आदिवासियों से हो या गैर-आदिवासियों से। 
    • जनसांख्यिकीय परिवर्तन को बढ़ावा: यह निर्णय अनुसूचित क्षेत्र में जनजातीय और गैर-जनजातीय आबादी में आमूलचूल जनसांख्यिकीय परिवर्तन ला सकता है, जिससे क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र से बाहर करने की माँग उठेगी, जिससे अनुसूचित जनजातियाँ अपनी ही भूमि पर असुरक्षित हो जाएँगी।
  • कानून के उद्देश्य की अनदेखी: आदेश के पीछे का उद्देश्य शिक्षकों की अनुपस्थिति की समस्या पर नियंत्रण पाना और स्थानीय जनजातीय शिक्षकों को उपलब्ध कराकर अनुसूचित जनजातियों के साक्षरता स्तर में सुधार करना है, जो स्थानीय परंपराओं और सांस्कृतिक संदर्भ के साथ तालमेल बिठाते हुए बच्चों को उनकी ज्ञात भाषा और मुहावरों में पढ़ाएँगे। 
  • सामाजिक-आर्थिक प्रगति में रुकावट: यह स्थिति अनुसूचित जनजातियों के लिए अन्य सामाजिक-आर्थिक विकास योजनाओं के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न कर सकती है, जिससे अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 

राज्य सरकारों के पास उपलब्ध उपाय

  • उपचारात्मक याचिका (Curative Petition): सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिकाओं के खारिज करने के बावजूद उपचारात्मक याचिका अंतिम कानूनी सहारा है। 
  • विधायी मार्ग: संविधान की पाँचवीं अनुसूची की धारा 5(2) को निरस्त करने वाले एक नए कानून की आवश्यकता है, जिससे राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्र में शांति और सुशासन बनाए रखने के लिए विनियमन लागू करने का अधिकार मिल सके तथा स्थानीय अनुसूचित जनजातियों को नौकरियों में 100 प्रतिशत कोटा प्रदान करने के लिए भारत के राष्ट्रपति की सहमति भी आवश्यक है। 
    • आंध्र प्रदेश में जनजाति सलाहकार परिषद ने वर्ष 2020 और 2022 के बीच आयोजित अपनी 111वीं, 112वीं और 113वीं बैठकों में पहले ही प्रस्ताव पारित कर आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए पाँचवीं अनुसूची की धारा 5(2) के तहत एक नया कानून लाने की सिफारिश की है।
  • अनुच्छेद-371D में संशोधन: आंध्र प्रदेश सरकार ने अपने जनजातीय कल्याण विभाग के अनुरोध पर राज्य के अनुसूचित क्षेत्र में स्थानीय जनजातियों के लिए विशेष आरक्षण प्रदान करने हेतु संविधान के अनुच्छेद-371D में संशोधन करने के लिए एक नया विनियमन और एक राष्ट्रपति अधिसूचना का मसौदा तैयार किया।

भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची

  • यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम (जो अनुसूची 6 के अंतर्गत आते हैं) को छोड़कर भारत भर के राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं शासन से संबंधित है।
  • उद्देश्य: यह अनुसूची निर्दिष्ट क्षेत्रों के भीतर अनुसूचित जनजातियों के कल्याण, स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण को सुनिश्चित करने में विभिन्न सरकारी निकायों की शक्तियों और जिम्मेदारियों को रेखांकित करती है। 
  • देश में अनुसूचित क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति
    • पाँचवीं अनुसूची केवल 10 राज्यों में मौजूद हैं, अर्थात् आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना।
    • जनजातीय आवासों का बहिष्कार: केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और जम्मू और कश्मीर राज्यों में जनजातीय आवासों को पाँचवीं या छठी अनुसूची के अंतर्गत नहीं लाया गया है।
  • अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा
    • राष्ट्रपति को किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार है।
    • क्षेत्र परिवर्तन: राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल के परामर्श से किसी क्षेत्र और सीमा में परिवर्तन कर सकते हैं, ऐसे नामकरण को रद्द कर सकते हैं या ऐसे पुन: नामकरण के लिए नए आदेश जारी कर सकते हैं।
  • कार्यकारिणी शक्ति
    • अनुसूचित क्षेत्रों के संबंध में राज्यपाल की विशेष जिम्मेदारी होती है। राज्यपाल ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करता है तथा केंद्र ऐसे क्षेत्रों के लिए राज्यों को निर्देश दे सकता है। 
  • प्रशासनिक संरचना
    • जनजाति सलाहकार परिषद (Tribes Advisory Council- TAC): अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य को कल्याणकारी उपायों पर सलाह देने के लिए 20 सदस्यों वाली एक TAC स्थापित करनी होगी (जिनमें से 3/4 राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होंगे)। 
    • राज्यपाल TAC को निर्धारित या विनियमित करने के लिए नियम बना सकते हैं।
      •  परिषद के सदस्यों की संख्या, उनकी नियुक्ति का तरीका तथा परिषद के अध्यक्ष और उसके अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति।
      • बैठकों का संचालन और सामान्यतः इसकी प्रक्रिया।
    • यदि राष्ट्रपति ऐसा निर्देश दें तो ऐसी ही परिषद अनुसूचित जनजातियों वाले राज्य में भी स्थापित की जा सकती है, जहाँ अनुसूचित क्षेत्रों का अभाव है।
  • अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू कानून
    • धारा 5(1): राज्यपाल को यह निर्देश देने का अधिकार है कि क्या कोई केंद्रीय या राज्य अधिनियम ऐसे क्षेत्रों पर लागू होता है अथवा किसी संशोधन के साथ लागू होता है।
    • धारा 5(2): राज्यपाल TAC से परामर्श के बाद दक्षिणी राज्यों में शांति एवं सुशासन के लिए नियम बना सकते हैं।
      • ऐसे विनियमन अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा या उनके बीच भूमि हस्तांतरण को प्रतिबंधित कर सकते हैं।
      • ऐसे क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को धन उधार देने वाले व्यक्तियों द्वारा साहूकारी के रूप में व्यवसाय चलाने को विनियमित करना।

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