जापान ने अपने वाणिज्यिक व्हेलिंग का विस्तार करते हुए इसमें ‘फिन व्हेल’ को भी शामिल कर लिया है, जो कि पृथ्वी पर दूसरी सबसे बड़ी प्रजाति है।
फिन व्हेल (Fin whale)
‘फिन व्हेल’, जिसका वैज्ञानिक नाम बैलेनोप्टेरा फिसालस (Balaenoptera physalus) है, एक समुद्री स्तनपायी है जो कि बलीन (Baleen) व्हेल परिवार से संबंधित है।
विशेषताएँ: इन व्हेलों की पहचान उनकी बलीन प्लेटों से होती है, जिनका उपयोग वे फिल्टर फीडिंग के लिए करती हैं।
आकार और आकृति: फिन व्हेल पृथ्वी पर सबसे बड़े जीवों में से एक हैं, जिनकी लंबाई 85 फीट (26 मीटर) तक होती है।
इनका शरीर लंबा, सुव्यवस्थित होता है, सिर संकीर्ण, नुकीला होता है तथा पृष्ठीय पंख उनकी पीठ पर लगभग दो-तिहाई भाग पर स्थित होता है।
अनुकूलन: अन्य बेलेन व्हेल की तरह फिन व्हेल के मुँह में भी बलीन प्लेटें होती हैं, जो जल से छोटे शिकार को फिल्टर करने का कार्य करती हैं।
इनका गला बड़ा और फैलने योग्य होता है, जो भोजन करते समय काफी मात्रा में जल धारण कर सकता है।
उनका सुव्यवस्थित शरीर और मजबूत पूँछ उन्हें तेज गति से तैरने में सक्षम बनाती है।
स्थिति: फिन व्हेल को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
प्रजनन: फिन व्हेल भोजन और प्रजनन स्थलों के बीच लंबी दूरी तय करती हैं, अक्सर हजारों मील की यात्रा करती हैं। वे शीत ऋतु में कम अक्षांश वाले क्षेत्रों में प्रजनन करती हैं।
रेबीज का प्रकोप
दक्षिण अफ्रीकी अधिकारी समुद्री स्तनपायी आबादी में रेबीज के पहले प्रकोप के मद्देनजर ‘केप फर सील’ के लिए परीक्षण टीकाकरण का सहारा लेंगे।
रेबीज (Rabies)
रेबीज एक जूनोटिक वायरल रोग है, जो रेबीज वायरस (Rabies Virus-RABV) के कारण होता है।
यह मुख्य रूप से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को लक्षित करता है, यदि लक्षण प्रकट होने से पहले उपचार नहीं किया जाता है, तो गंभीर मस्तिष्क रोग और मृत्यु हो सकती है।
संचरण: लगभग 99% मामलों में घरेलू कुत्ते मनुष्यों में रेबीज वायरस संचारित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, हालाँकि घरेलू एवं जंगली दोनों जानवरों से यह फैल सकता है।
रेबीज लार के माध्यम से फैलता है, आमतौर पर काटने, खरोंचने या श्लेष्म झिल्ली (जैसे आँख, मुँह या खुले घाव) के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से।
वैश्विक उपस्थिति: रेबीज वायरस अंटार्कटिका को छोड़कर प्रत्येक महाद्वीप पर पाया जाता है और इससे 95% से अधिक मानवीय मृत्यु एशिया और अफ्रीका में होती हैं।
इसे एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो मुख्य रूप से वंचित, गरीब और कमजोर जनसंख्या को प्रभावित करता है।
गर्भावस्थाजन्य मधुमेह (Gestational Diabetes)
18वें वार्षिक DIPSD सम्मेलन में जारी ‘दिल्ली घोषणा-पत्र’ में गर्भावस्थाजन्य मधुमेह (Gestational Diabetes) की रोकथाम के लिए रणनीतियों की रूपरेखा दी गई है।
गर्भावस्थाजन्य मधुमेह (Gestational Diabetes)
जेस्टेश्नल डायबीटीज मेलिटस (Gestational Diabetes Mellitus- GDM) ग्लूकोज असहिष्णुता का एक रूप है, जो गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है तथा रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करता है।
जोखिम कारक: जोखिम कारकों में मोटापा, अधिक आयु की माता, मधुमेह का पारिवारिक इतिहास और कुछ वंशीय पृष्ठभूमि शामिल हैं।
निदान: GDM का निदान आमतौर पर गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के बीच किए जाने वाले ग्लूकोज स्क्रीनिंग परीक्षणों के माध्यम से किया जाता है।
प्रबंधन: प्रबंधन में रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी, आहार में परिवर्तन करना और संभवतः इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग करना शामिल है।
जटिलताएँ: GDM के कारण जन्म के समय शिशु का वजन बढ़ सकता है, समय से पहले प्रसव हो सकता है, तथा माँ और बच्चे दोनों में ‘टाइप 2’ मधुमेह विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है।
रोकथाम: निवारक उपायों में गर्भावस्था से पहले स्वस्थ वजन बनाए रखना, नियमित व्यायाम करना और संतुलित आहार का पालन करना शामिल है।
वर्तमान आवश्यकता: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, एक सार्वभौमिक, सरल और लागत प्रभावी स्क्रीनिंग पद्धति की आवश्यकता है।
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