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पंजाब की अनुसूचित जाति आरक्षण नीति

Lokesh Pal August 02, 2024 05:00 137 0

संदर्भ:

वर्ष 1975 के दौरान पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति के तकरीबन 25% आरक्षण को दो श्रेणियों में विभाजित किया।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: आरक्षण, समानता का अधिकार, अनुच्छेद 341, अनुसूचित जाति, आदि। 

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, सामाजिक न्याय पर इस निर्णय के प्रभाव, आदि।

पंजाब की अनुसूचित जाति आरक्षण नीति की पृष्ठभूमि:

  • प्रथम श्रेणी: बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों के लिए आरक्षित। इन समुदायों को शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में पहली प्राथमिकता दी गई। 
  • द्वितीय श्रेणी: इसमें बाकी अनुसूचित जाति समुदाय शामिल थे। 
  • यह अधिसूचना करीब 30 वर्षों तक के लिए लागू रही।

उप-वर्गीकरण की कानूनी चुनौतियाँ:

  • वर्ष 2004: सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश (ई.वी. चिन्नैया वाद) में इसी तरह के कानून को रद्द कर दिया।
  • न्यायालय ने माना कि उप-वर्गीकरण समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • अनुसूचति जाति सूची को एकल, समरूप समूह के रूप में माना जाना चाहिए।
  • अनुच्छेद 341: राष्ट्रपति के पास अनुसूचति जाति सूची बनाने का अधिकार है, राज्य इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
  • पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने वर्ष 1975 की पंजाब अधिसूचना को रद्द कर दिया।

पंजाब में उपवर्गीकरण पुनः लागू करने का प्रयास:

  • अक्टूबर 2006: पंजाब ने अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम पारित किया।
  • अधिनियम ने बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों के लिए पहली वरीयता फिर से शुरू की।
  • वर्ष 2010: उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को फिर से रद्द कर दिया।
  • पंजाब सरकार ने वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
  • वर्ष 2014: मामला पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ (दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य) को भेजा गया।

ई.वी. चिन्नैया फैसले पर पुनर्विचार:

  • वर्ष 2020: संविधान पीठ ने इस बात का उल्लेख किया कि वर्ष 2004 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
  • न्यायालय  ने “अनुसूचित जातियों की सूची में असमानों” को मान्यता दी।
  • अनुसूचित जाति आरक्षण में “क्रीमी लेयर” की अवधारणा पेश की गई (जरनैल सिंह वाद, वर्ष 2018)।
  • राज्यों का तर्क है कि उप-वर्गीकरण क्रीमी लेयर फॉर्मूले का अनुप्रयोग है।
  • सात न्यायाधीशों की पीठ ने अब फैसला सुनाया।

उप-वर्गीकरण रणनीति का प्रभाव:

  • पंजाब में बाल्मीकि और मजहबी सिखों पर असर। 
  • आंध्र प्रदेश में मडिगा समुदाय पर असर। 
  • बिहार में पासवान प्रभावित होंगे। 
  • उत्तर प्रदेश में जाटवों पर विचार किया जा रहा है। 
  • तमिलनाडु में अरुंधतिआर भी प्रभावित होंगे।

उप-वर्गीकरण के पक्ष में तर्क:

  • पंजाब महाधिवक्ता: राज्य अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति सूची से छेड़छाड़ कर सकते हैं। 
  • अनुच्छेद 16(4) “अपर्याप्त” प्रतिनिधित्व वाले वर्गों के लिए आरक्षण की अनुमति देता है। 
  • अनुच्छेद 342 क  राज्यों को अलग पिछड़े वर्गों की सूची बनाए रखने का अधिकार देता है। 
  • पूर्व महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल: सर्वाधिक उपेक्षित वर्गों की मदद के लिए उप-वर्गीकरण आवश्यक है। 
    • इसके बिना आरक्षण का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क:

  • वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े: सभी अनुसूचित जाति समुदाय अस्पृश्यता से पीड़ित थे।
  • संविधान सभा ने पीड़ा की मात्रा की तुलना न करने का निर्णय लिया।
  • उप-वर्गीकरण अनुसूचित जाति श्रेणी के भीतर समुदायों के साथ अलग-अलग व्यवहार करेगा।
  • अनुसूचित जाति सूची को एकल, समरूप समूह के रूप में मानने के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
  • अनुच्छेद 341 के संवैधानिक जनादेश को चुनौती देता है।

अन्य संबंधित तथ्य :

  • 6:1 के ऐतिहासिक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण में अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण की अनुमति दी। 
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने उप-वर्गीकरण की अनुमति पर निर्णय सुनाया। 
  • यह निर्णय अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (SC) के भीतर कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के लिए व्यापक सुरक्षा की अनुमति देता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि “ऐतिहासिक और अनुभवजन्य साक्ष्य संकेत देते हैं कि अनुसूचित जातियाँ एक समरूप वर्ग नहीं हैं”। 
  • पीठ ने जाँच की कि क्या ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य वाद में, वर्ष 2004 के निर्णय पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।
  • वर्ष 2004 के निर्णय में अनुसूचित जातियों को एक समरूप समूह माना गया, जिससे उप-विभाजन की अनुमति नहीं दी गई।

निष्कर्ष :

इस निर्णय का उन राज्यों के लिए महत्त्वपूर्ण परिणाम होगा जो कम प्रतिनिधित्व वाली जातियों को व्यापक सुरक्षा देना चाहते हैं। यह निर्णय प्रमुख अनुसूचित जातियों और अत्यधिक कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के मध्य अंतर करने की अनुमति देता है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न:

अनुसूचित जाति (एस.सी.) और अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय का भारत की आरक्षण नीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। न्यायालय द्वारा दिए गए इस प्रमुख निर्णय का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए और सामाजिक न्याय तथा सर्वाधिक उपेक्षित समुदायों के प्रतिनिधित्व पर इस फैसले के संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

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