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पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों पर ड्राफ्ट नोटिफिकेशन

Lokesh Pal August 05, 2024 04:52 94 0

संदर्भ

केंद्र ने छह राज्यों के पश्चिमी घाट के 56,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area-ESA) घोषित करने के लिए एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है। 

मसौदे की पृष्ठभूमि 

  • प्रारंभिक ड्राफ्ट और सिफारिश (Initial Draft and Recommendation): केंद्र द्वारा वर्ष 2012 में गठित उच्च स्तरीय कार्य समूह (High-Level Working Group-HLWG) की सिफारिश पर पहला ड्राफ्ट मार्च 2014 में जारी किया गया था। 
  • सुझावों की पुनः जाँच (Re-examination of Suggestions): अप्रैल 2022 में, केंद्र ने छह राज्यों की सिफारिशों की जाँच के लिए एक और पैनल की स्थापना की। 
    • इस पैनल ने क्षेत्र की संरक्षण संबंधी चिंताओं और विकासात्मक आकांक्षाओं दोनों पर विचार किया। 
  • पिछला ड्राफ्ट: यह ड्राफ्ट 6 जुलाई, 2022 को जारी किया गया था। ESA की सीमा पर केंद्र और छह राज्यों के बीच आम सहमति के बिना ही इसकी समयसीमा समाप्त हो गई। 

ड्राफ्ट की मुख्य विशेषताएँ 

  • आम सहमति: इस ड्राफ्ट का उद्देश्य इसमें शामिल छह राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गोवा, केरल, कर्नाटक और गुजरात के मध्य सहमति बनाना है। इस मुद्दे पर वर्ष 2011 से ही चर्चा चल रही है। 
  • प्रस्ताव समावेशन
    • क्षेत्रफल: छह राज्यों में 56,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को कवर किया जाएगा। 
      • इसमें केरल के वायनाड के 13 गाँव शामिल हैं, जहाँ हाल ही में भयंकर भूस्खलन हुआ था। 
    • प्रतिबंध: खनन, उत्खनन और रेत खनन पर प्रतिबंध लगाया गया। वृहद निर्माण परियोजनाओं पर भी प्रतिबंध रहेगा। 
    • अपवाद: मौजूदा घरों की मरम्मत या विस्तार किया जा सकता है या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में मौजूदा आवासीय घरों का नवीनीकरण किया जा सकता है, लेकिन नई बड़ी इमारतों के निर्माण की अनुमति नहीं है।
      • अधिसूचना में मौजूदा खदानों को ‘अंतिम अधिसूचना जारी होने की तिथि से या मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर, जो भी पहले हो’ पाँच वर्षों के भीतर चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का भी प्रस्ताव है। 

पश्चिमी घाट संरक्षण पर पिछली समितियाँ

  • माधव गाडगिल समिति (Madhav Gadgil Committee -2011)
    • उद्देश्य: पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिए अनुशंसित उपाय।
    • मुख्य सिफारिश: सुझाव दिया गया कि, पश्चिमी घाट के 64% भाग को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में वर्गीकृत किया जाए। 

  • डॉ. के. कस्तूरीरंगन समिति (2013)
    • उद्देश्य: पश्चिमी घाट की सुरक्षा के लिए समीक्षा और सिफारिशें प्रदान करने के लिए गठित समिति। 
    • मुख्य सिफारिश: पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र को घटाकर 37% करने का प्रस्ताव। 

पश्चिमी घाट के बारे में

  • पश्चिमी घाट एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। 
  • यह विश्व में जैव विविधता के आठ ‘प्रमुख  हॉटस्पॉट’ में से एक है। 
  • इसे सह्याद्रि के नाम से भी जाना जाता है।
  • अवस्थिति: भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर 1,600 किमी. (990 मील) तक विस्तृत है। 
  • विस्तार: छह राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु) में 1,60,000 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। 
  • सबसे ऊँची चोटी: अनाइमुडी, एराविकुलम् राष्ट्रीय उद्यान और डोड्डाबेट्टा। 
  • दक्षिणी भाग: कन्याकुमारी जिले में स्वामीथोप्पे तक विस्तार है। 
  • मिलन बिंदु: पश्चिमी घाट, नीलगिरी पहाड़ियों में पूर्वी घाट से मिलती है।
  • संरचना और भू-विज्ञान
    • निर्माण: इसका निर्माण जुरासिक काल के अंत और क्रेटेशियस काल के आरंभ में सुपरमहाद्वीप गोंडवाना के विखंडन के दौरान हुआ। 
    • भू-वैज्ञानिक साक्ष्य: इन पर्वत का निर्माण भारत-अफ्रीका से अलग होने और पश्चिमी तट पर वलन के परिणामस्वरूप हुआ था। 
    • संरचना: दक्कन का पठार बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है, जिसने पश्चिमी घाट के उत्थान को प्रभावित किया है। 
  • पश्चिमी घाट की नदियाँ 
    • पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ
      • प्रमुख नदियाँ: पेरियार, भरतप्पुझा, नेत्रावती, शरावती, मांडोवी।
      • विशेषताएँ: ये नदियाँ अपने छोटे मार्ग और तीव्र ढाल के कारण तेज गति से प्रवाहित होती हैं।
    • पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ
      • प्रमुख नदियाँ: गोदावरी, कृष्णा, कावेरी। 
      • छोटी नदियाँ: तुंगा, भद्रा, भीमा, मालाप्रभा, घटप्रभा, हेमवती, काबिनी। 
      • विशेषताएँ: ये नदियाँ धीमी गति से प्रवाहित होती हैं और अंततः कावेरी और कृष्णा जैसी बड़ी नदियों में मिल जाती हैं।
  • जलवायु और वनस्पति
    • जंगल
      • प्रकार: यहाँ उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पाए जाते हैं और इनमें विविध प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव-जंतु शामिल हैं। 
      • जैव विविधता: कम-से-कम 325 वैश्विक रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों का निवास स्थान, जिनमें पौधे, पशु, पक्षी, उभयचर, सरीसृप और मछलियाँ शामिल हैं। 
    • जलवायु प्रभाव
      • मानसून: पश्चिमी घाट दक्षिण-पश्चिम से आने वाली वर्षा युक्त हवाओं को रोककर भारतीय मानसून को प्रभावित करते हैं, जिससे पश्चिमी ढलानों पर पर्याप्त वर्षा होती है। 
    • वनस्पति
      • पश्चिमी ढलान: उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय नम चौड़ी पत्ती वाले वनों से आच्छादित, जिसमें रोजवुड, महोगनी और देवदार जैसे वृक्ष हैं। ये ढलानें पूरे वर्ष सदाबहार रहती हैं। 
      • पूर्वी ढलान: शुष्क और नम पर्णपाती वनों का आवास, जिनमें सागौन, साल, शीशम और चंदन जैसे वृक्ष पाए जाते हैं। 
  • वन्यजीव
    • छोटे मांसाहारी: नीलगिरि नेवला, भूरा पाम सिवेट, धारीदार गर्दन वाला नेवला, स्माल इंडियन सिवेट और तेंदुआ आदि। 
    • स्थानिक प्रजातियाँ: नीलगिरि तहर और लायन-टेल्ड मकाॅक (Lion-tailed Macaque)।
    • वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियाँ: इसमें 229 पादप प्रजातियाँ, 31 स्तनपायी प्रजातियाँ, 15 पक्षी प्रजातियाँ, 43 उभयचर प्रजातियाँ, 5 सरीसृप प्रजातियाँ और 1 मछली प्रजाति शामिल हैं। 
  • पश्चिमी घाट में संरक्षित क्षेत्र 
    • संरक्षित क्षेत्रों में दो जैवमंडल रिजर्व, 13 राष्ट्रीय उद्यान, कई वन्यजीव अभयारण्य और कई आरक्षित वन शामिल हैं। 
    • प्रमुख संरक्षित क्षेत्र
      • नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व
        • विवरण: पश्चिमी घाट में सबसे बड़ा सन्निहित संरक्षित क्षेत्र।
        • घटक: इसमें नागरहोल के सदाबहार वन, बाँदीपुर राष्ट्रीय उद्यान और कर्नाटक के नुगु के पर्णपाती वन शामिल हैं। केरल और तमिलनाडु में वायनाड तथा मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान भी शामिल हैं। 
      • साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान
        • विवरण: भारत में बचे हुए अंतिम उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों में से एक है।
        • अवस्थिति: केरल में स्थित है।

पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (Eco-Sensitive Zones-ESZ) 

  • ESZ या EFA भारत में संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास नामित क्षेत्र हैं।
  • इसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Fragile Areas-EFA) के रूप में भी जाना जाता है। 
  • उद्देश्य
    • बफर जोन: ESZ मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को कम करके महत्त्वपूर्ण आवासों की रक्षा करने में मदद करते हैं। 
    • आघात अवशोषक (Shock Absorbers): वे नुकसान को न्यूनतम करने के लिए संरक्षित क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों का प्रबंधन और नियंत्रण करते हैं। 
  • कार्य: उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करना। 
  • विनियमन
    • प्राधिकरण: भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change-MoEFCC) द्वारा विनियमित। 
  • क्षेत्र
    • 10 किलोमीटर नियम: आमतौर पर, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के 10 किलोमीटर के भीतर की भूमि को ESZ के रूप में नामित किया जाता है। 
    • विविधताएँ: यदि क्षेत्र पारिस्थितिकी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है तो ESZ का विस्तार 10 किमी. से अधिक भी किया जा सकता है। 

वैधानिक समर्थन (Statutory Backing)

  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इसमें स्पष्ट रूप से ESZ का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन संवेदनशील क्षेत्रों में उद्योगों और परिचालनों पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी गई है। 
  • धारा 3(2)(v): केंद्र सरकार को कुछ क्षेत्रों में उद्योगों और प्रक्रियाओं को प्रतिबंधित या विनियमित करने की अनुमति देता है। 
  • पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 का नियम 5(1): सरकार को जैव विविधता, प्रदूषण सीमा और संरक्षित क्षेत्रों की निकटता के आधार पर औद्योगिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है। 

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