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पश्चिमी घाटों के लिए खतरा

Lokesh Pal August 06, 2024 03:54 121 0

संदर्भ

हाल ही में सरकार ने छह राज्यों में पश्चिमी घाट के 56,800 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area- ESA) घोषित करने के लिए एक मसौदा अधिसूचना जारी की है। 

  • यह घटनाक्रम केरल के वायनाड में भारी भूस्खलन के कारण मची तबाही के बीच हुआ है, जिसमें 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई है।

प्रस्तावित मसौदे पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि

इस मसौदे का उद्देश्य इसमें शामिल छह राज्यों: महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गोवा, केरल, कर्नाटक और गुजरात के बीच सहमति बनाना है। यह मुद्दा वर्ष 2011 से ही चर्चा में है।

  • प्रस्ताव में शामिल
    • क्षेत्र: छह राज्यों के 56,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को कवर किया जाएगा।
      • इसमें केरल के वायनाड के 13 गाँव शामिल हैं, जहाँ हाल ही में भयंकर भूस्खलन हुआ था।
    • प्रतिबंध: खनन, उत्खनन और रेत खनन पर प्रतिबंध रहेगा। बड़ी निर्माण परियोजनाओं पर भी प्रतिबंध रहेगा।
    • अपवाद: पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में मौजूदा घरों की मरम्मत या विस्तार किया जा सकता है अथवा मौजूदा आवासीय घरों का नवीनीकरण किया जा सकता है, लेकिन नई बड़ी इमारतों की अनुमति नहीं है।
      • अधिसूचना में मौजूदा खदानों को ‘अंतिम अधिसूचना जारी होने की तिथि से या मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर, जो भी पहले हो’ पाँच वर्षों के भीतर चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का भी प्रस्ताव है।
  • मसौदे की पृष्ठभूमि: केंद्र द्वारा वर्ष 2012 में गठित उच्च स्तरीय कार्य समूह (High-Level Working Group- HLWG) की सिफारिश पर पहला मसौदा मार्च 2014 में जारी किया गया था।
    • सुझावों की पुनः जाँच: अप्रैल 2022 में, केंद्र ने छह राज्यों की सिफारिशों की जाँच के लिए एक और पैनल की स्थापना की।
      • इस पैनल ने क्षेत्र की संरक्षण संबंधी चिंताओं और विकासात्मक आकांक्षाओं दोनों पर विचार किया।
    • पिछला मसौदा: यह मसौदा 6 जुलाई, 2022 को जारी किया गया था। ESA की सीमा पर केंद्र और छह राज्यों के बीच आम सहमति के बिना इसकी समयसीमा समाप्त हो गई।

पश्चिमी घाट (Western Ghats) के बारे में

हिमालय पर्वत से भी पुरानी, ​​पश्चिमी घाट की पर्वत शृंखला अद्वितीय जैव-भौतिकीय और पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं के साथ अत्यधिक महत्त्व की भू-आकृतिक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है।

  • अवस्थिति: भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर 1,600 किमी. (990 मील) तक फैला हुआ है।
  • कवरेज: छह राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु) में 1,60,000 वर्ग किमी. (62,000 वर्ग मील)।

  • स्थानीय नाम 
    • सह्याद्रि: महाराष्ट्र में
    • नीलगिरि पहाड़ियाँ: कर्नाटक और तमिलनाडु में
    • केरल में: अन्नामलाई पहाड़ियाँ और कार्डमम पहाड़ियाँ।
  • संरचना और भू-विज्ञान
    • गठन: जुरासिक काल के अंत और क्रेटेशियस काल के आरंभ में सुपरकॉन्टिनेंट गोंडवाना के विखंडन के दौरान निर्मित।
    • भू-वैज्ञानिक साक्ष्य: ये पहाड़ तब बने जब भारत अफ्रीका से अलग हुआ और पश्चिमी तट के साथ ऊपर उठा।
    • संरचना: दक्कन का पठार बेसाल्ट चट्टानों से बना है, जिसने पश्चिमी घाट के उत्थान को प्रभावित किया।
  • स्थलाकृतिक भिन्नता: पूर्वी घाट की तुलना में ऊँचाई अधिक (औसत ऊँचाई लगभग 1,500 मीटर) और अधिक निरंतर है,  जिसकी ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
  • पश्चिमी घाट में संरक्षित क्षेत्र: संरक्षित क्षेत्रों में दो बायोस्फीयर रिजर्व, 13 राष्ट्रीय उद्यान, कई वन्यजीव अभयारण्य और कई आरक्षित वन शामिल हैं।
    • प्रमुख संरक्षित क्षेत्रों में नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व और साइलेंट वैली नेशनल पार्क शामिल हैं।
  • पश्चिमी घाट में दर्रे
    • थाल घाट दर्रा: मुंबई को नासिक से जोड़ता है।
    • भोर घाट दर्रा: मुंबई को खोपोली के रास्ते पुणे से जोड़ता है।
    • पलक्कड़ गैप (पाल घाट): कोयंबटूर, तमिलनाडु को पलक्कड़, केरल से जोड़ता है।
    • अंबा घाट दर्रा: रत्नागिरी को कोल्हापुर से जोड़ता है।
    • नानेघाट दर्रा: पुणे को जुन्नार शहर से जोड़ता है।
    • अंबोली घाट दर्रा: महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी को कर्नाटक के बेलगाम से जोड़ता है।
  • मान्यता: पश्चिमी घाट को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा वर्ष 2012 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
    • यह विश्व में जैव विविधता के आठ ‘ हॉटस्पॉट‘ में से एक है।

पश्चिमी घाट का महत्त्व

पश्चिमी घाट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण के लिए अत्यधिक वैश्विक महत्त्व के क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, इसके अलावा इसमें उच्च भू-वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और सौंदर्य मूल्यों वाले क्षेत्र भी शामिल हैं।

  • जल विज्ञान संबंधी कार्य (Hydrological Functions): पश्चिमी घाट महत्त्वपूर्ण जल विज्ञान और जलग्रहण कार्य करते हैं।
    • यह प्रायद्वीपीय भारत की बड़ी संख्या में बारहमासी नदियों को जल प्रदान करता है, जिनमें पूर्व की ओर बहने वाली तीन प्रमुख नदियाँ गोदावरी, कृष्णा और कावेरी शामिल हैं।
    • प्रायद्वीपीय भारतीय राज्य अपनी अधिकांश जल आपूर्ति पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियों से प्राप्त करते हैं।
  • जलवायु संबंधी भूमिका: पश्चिमी घाट के पहाड़ और उनके विशिष्ट पर्वतीय वन पारिस्थितिकी तंत्र भारतीय मानसून मौसम पैटर्न को प्रभावित करते हैं, जो इस क्षेत्र की गर्म उष्णकटिबंधीय जलवायु को नियंत्रित करते हैं, जो ग्रह पर उष्णकटिबंधीय मानसून प्रणाली के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक प्रस्तुत करता है।
    • घाट एक प्रमुख अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं, जो गर्मियों के अंत में दक्षिण-पश्चिम से आने वाली वर्षा-युक्त मानसूनी हवाओं को रोकते हैं।
    • पश्चिमी घाट में उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वनों से लेकर पर्वतीय घास के मैदानों तक की विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं। इनमें अद्वितीय शोला पारिस्थितिकी तंत्र भी शामिल है, जिसमें सदाबहार वन क्षेत्रों के बीच-बीच में पर्वतीय घास के मैदान शामिल हैं।
    • पश्चिमी घाट वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करने में एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी कार्य करते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि वे प्रत्येक वर्ष लगभग 4 मिलियन टन कार्बन का अवशोषण करते हैं, जो कि सभी भारतीय वनों द्वारा अवशोषित किए गए उत्सर्जन का लगभग 10% है।
    • सबसे गर्म हॉटस्पॉट: पश्चिमी घाट में असाधारण रूप से उच्च जैविक विविधता और स्थानिकता है, जो इसे दुनिया के आठ सबसे गर्म जैव विविधता वाले स्थानों में से एक बनाता है।
  • उच्च जैव विविधता और स्थानिकता: पश्चिमी घाट, श्रीलंका के आर्द्र क्षेत्र में अपने भौगोलिक विस्तार के साथ, अब जैव विविधता के आठ सबसे गर्म स्थानों में से एक माना जाता है।
    • इस स्थल के वनों में गैर-भूमध्यरेखीय उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों के सर्वोत्तम प्रतिनिधि शामिल हैं तथा ये कम-से-कम 325 वैश्विक रूप से संकटग्रस्त वनस्पतियों, जीवों, पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की प्रजातियों का आवास हैं।
    • पश्चिमी घाट में स्थानिकता का स्तर बहुत ऊँचा है, जिसका अर्थ है कि पर्वतों के एकदम उत्तर से लेकर 1,600 किमी. दक्षिण तक प्रजातियों की संरचना में बहुत भिन्नता है।
    • इस क्षेत्र में अनेक प्रमुख स्तनधारी जीव पाए जाते हैं, जिनमें एशियाई हाथी, गौर और बाघ जैसी विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों की सबसे बड़ी आबादी के कुछ हिस्से भी शामिल हैं।
    • लायन टेल्ड मकाक, नीलगिरि तहर और नीलगिरि लंगूर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियाँ इस क्षेत्र की विशिष्ट प्रजातियाँ हैं।
  • आर्थिक महत्त्व: पश्चिमी घाट लौह, मैंगनीज और बॉक्साइट अयस्कों से समृद्ध हैं।
    • इसके वन लकड़ी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और कागज, प्लाईवुड, पॉली-फाइबर और माचिस जैसे बड़ी संख्या में वन आधारित उद्योगों को सहायता प्रदान करते हैं।
    • पश्चिमी घाट के सदाबहार वनों में पाई जाने वाली काली मिर्च और इलायची को उनके कुछ भागों में बड़े पैमाने पर बागान फसलों के रूप में उगाया गया है।
    • अन्य बड़े पैमाने के बागानों में चाय, कॉफी, तेल पाम और रबर शामिल हैं।
    • यहाँ कई पर्यटन केंद्र भी हैं, जैसे ऊटी, थेक्कडी वन्यजीव अभयारण्य आदि। यहाँ महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल भी हैं, जैसे केरल में सबरीमाला, महाराष्ट्र में महाबलेश्वर आदि।
  • देशज जनजातियों का घर: पश्चिमी घाट के देशज लोग, जिनमें विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह शामिल हैं, कर्नाटक की 6.95% जनजातीय आबादी का 44.2% हिस्सा हैं।
    • उदाहरण: गौलिस (Gowlis), कुनबिस (Kunbis), हलाक्की वक्कला (Halakki Vakkala), करे वक्कला (Kare Vakkala), कुनबी (Kunbi) और कुलवाड़ी मराठी (Kulvadi Marathi)।

पश्चिमी घाटों के लिए खतरे

पश्चिमी घाट में पौधों और जानवरों की विविधता और स्थानिकता का असाधारण स्तर है, जो महाद्वीपीय क्षेत्र के लिए बहुत अधिक है। हालाँकि, पश्चिमी घाट को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ा है।

  • भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता: अद्वितीय भौतिक-जलवायु-भू-वैज्ञानिक परिस्थितियाँ पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों को लगातार और व्यापक भूस्खलन की घटना के लिए अतिसंवेदनशील बनाती हैं।
  • खनन: खनन गतिविधियाँ विशेष रूप से गोवा में तेजी से बढ़ी हैं और अक्सर सभी कानूनों का उल्लंघन किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर पर्यावरणीय क्षति और सामाजिक व्यवधान होता है।
    • असंवहनीय खनन के कारण भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है, जल स्रोतों और कृषि को नुकसान पहुँचा है तथा वहाँ रहने वाले लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है।
    • केरल में रेत खनन एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है।
  • पशुधन चराई: संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और सीमावर्ती क्षेत्रों में अत्यधिक पशुधन चराई एक गंभीर समस्या है, जो पश्चिमी घाट में आवास क्षरण का कारण बन रही है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: पश्चिमी घाट एक गहन मानव-प्रधान परिदृश्य में मौजूद है, मानव-वन्यजीव संघर्ष एक सामान्य घटना है।
    • उदाहरण: कर्नाटक में भद्रा वन्यजीव अभयारण्य के निकट रहने वाले ग्रामीणों को हाथियों के हमले के कारण प्रतिवर्ष अपने वार्षिक अनाज उत्पादन का लगभग 11% हिस्सा खोना पड़ता है।
  • वन उपज का निष्कर्षण: पश्चिमी घाट में संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और आस-पास रहने वाले मानव समुदाय अक्सर अपनी जीविका और व्यावसायिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वन उपज पर निर्भर रहते हैं।
    • बढ़ती जनसंख्या और बदलते उपभोग पैटर्न के साथ, यह एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है।
  • वृक्षारोपण: पिछले कुछ वर्षों में नकदी फसलों के रोपण ने पश्चिमी घाटों में प्राकृतिक वनों के बड़े हिस्से को विस्थापित कर दिया है और अक्सर आसपास के वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण भी किया जाता है।
    • पश्चिमी घाट में निजी व्यक्तियों और कॉरपोरेट क्षेत्र के स्वामित्व वाले बागानों का विकास जारी है, जिसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आवास का विखंडन हो रहा है।
  • मानव बस्तियों द्वारा अतिक्रमण: जनसंख्या में वृद्धि के साथ, संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और बाहर मानव बस्तियाँ एक महत्त्वपूर्ण खतरा प्रस्तुत करती हैं।
  • प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन: कृषि रसायनों के अप्रतिबंधित उपयोग से जलीय और वन पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान हो रहा है।
    • भूमि उपयोग में परिवर्तन और वनों की कटाई के कारण जलवायु पैटर्न में परिवर्तन आया है और हाल के दिनों में इसे कई क्षेत्रों में बाढ़ का कारण माना गया है।
    • वन भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित करना या पर्यटन जैसे वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए लकड़ी की अवैध कटाई का पश्चिमी घाट पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
  • जलविद्युत परियोजनाओं और बड़े बाँधों का विकास: पश्चिमी घाट में बड़ी बाँध परियोजनाओं का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और सामाजिक विघटन भी होता है।

पश्चिमी घाट के संरक्षण के प्रयास

  • सरकार ने संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क, बाघ अभयारण्यों और बायोस्फीयर रिजर्वों की स्थापना के साथ जैव विविधता के संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10% हिस्सा वर्तमान में संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आता है।
    • सरकार ने पर्यावरण अनुकूल और सामाजिक रूप से समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESA) का सीमांकन करने की भी पहल की है।
    • माधव गाडगिल समिति (2011)
      • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) का वर्गीकरण: रिपोर्ट में छह राज्यों में फैले पश्चिमी घाट के 64 प्रतिशत हिस्से को तीन श्रेणियों (ESZ 1, ESZ 2 और ESZ 3) में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव दिया गया है।
      • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area- ESA): संपूर्ण पश्चिमी घाट क्षेत्र को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में नामित करने की सिफारिश की गई थी।
      • विकासात्मक गतिविधियाँ: रिपोर्ट में ESZ 1 में खनन, ताप विद्युत संयंत्रों और बाँधों के निर्माण जैसी लगभग सभी विकासात्मक गतिविधियों को रोकने का आह्वान किया गया।
      • प्रतिबंध: आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, प्लास्टिक की थैलियाँ, विशेष आर्थिक क्षेत्र, नए हिल स्टेशन और कृषि भूमि से गैर-कृषि भूमि में भूमि उपयोग में परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाया जाना था।
        • क्षेत्र की पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए नदियों की दिशा मोड़ने तथा सार्वजनिक भूमि को निजी भूमि में बदलने को भी हतोत्साहित किया गया।
      • ‘बॉटम टू टॉप’ शासन: रिपोर्ट में स्थानीय अधिकारियों को अधिक शक्ति प्रदान करते हुए शासन के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया है।
        • इसने क्षेत्र की पारिस्थितिकी के प्रबंधन और सतत् विकास को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की।
      • एकल वाणिज्यिक फसलों पर प्रतिबंध: रिपोर्ट में पश्चिमी घाट में चाय, कॉफी, इलायची, रबर, केला और अनानास जैसी एकल वाणिज्यिक फसलों को उगाने पर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई है, क्योंकि इनका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • डॉ. के. कस्तूरीरंगन समिति (2013)
      • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र में कमी: इसने पश्चिमी घाट के केवल 37% हिस्से को पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घोषित किया है, जो गाडगिल पैनल द्वारा सुझाए गए 64% से काफी कम है।
      • क्षेत्रों का वर्गीकरण: पैनल ने पश्चिमी घाट को दो श्रेणियों में विभाजित किया- सांस्कृतिक क्षेत्र (मानव बस्तियाँ) और प्राकृतिक क्षेत्र (गैर-मानव बस्तियाँ)।
        • इसमें सांस्कृतिक भूमि को पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में नामित करने का प्रस्ताव किया गया।
      • गतिविधियों का वर्गीकरण: रिपोर्ट में गतिविधियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है – लाल, नारंगी और हरा।
        • लाल श्रेणी: खनन, पत्थर उत्खनन जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई।
        • नारंगी श्रेणी: गतिविधियों को विनियमित किया जाएगा और उचित शर्तों के साथ अनुमति दी जाएगी।
        • हरी श्रेणी: सभी कृषि, बागवानी और कुछ वाणिज्यिक गतिविधियों की अनुमति दी गई।

आगे की राह

पश्चिमी घाट को आने वाले खतरों से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं:

  • एकीकृत प्रबंधन योजनाएँ: सरकार को एकीकृत प्रबंधन योजनाएँ विकसित और कार्यान्वित करनी चाहिए, जो क्षेत्र की विकासात्मक आवश्यकताओं के साथ पारिस्थितिकी संरक्षण को संतुलित करती हों।
  • निगरानी तंत्र को मजबूत करना: निगरानी तंत्र को बढ़ाकर और मौजूदा पर्यावरण कानूनों को और अधिक सख्ती से लागू करके नियामक ढाँचे को मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • बेहतर समझ: पश्चिमी घाटों के संरक्षण के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों और संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में जैव विविधता की भूमिका की बेहतर समझ की आवश्यकता है।
    • जैव विविधता संरक्षण को बनाए रखने और बेहतर बनाने के लिए मानव परिवर्तित परिदृश्यों का प्रबंधन किस प्रकार किया जाना चाहिए, इसकी समझ में भी सुधार की आवश्यकता है।
  • उपयुक्त नीति की आवश्यकता: ऐसे नीतिगत बदलावों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जो मानव-वन्यजीव संघर्ष को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकें, जैव विविधता के अनुकूल प्रथाओं को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर सकें तथा पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान जैसी अन्य प्रोत्साहन योजनाएँ प्रदान कर सकें।
  • अवैध प्रथाओं पर प्रतिबंध: यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अवैध वनों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, पशु-मानव संघर्ष से निपटने के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए और जैव विविधता को प्रभावित करने वाली अन्य मानवीय गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए।
  • सहयोगात्मक दृष्टिकोण: पश्चिमी घाट की जैव विविधता को बनाए रखने के लिए विभिन्न हितधारकों के सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • संरक्षण प्रयासों और विकास के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिए तथा संबंधित राज्य सरकारों को पश्चिमी घाट में ESA के कार्यान्वयन के लिए आम सहमति बनानी चाहिए।

पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) के बारे में

  • ESZs या EFAs भारत में संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास नामित क्षेत्र हैं।
  • इसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (EFA) के रूप में भी जाना जाता है,
  • उद्देश्य
    • बफर जोन: ESZ मानवीय गतिविधियों के प्रभाव को कम करके महत्त्वपूर्ण आवासों की रक्षा करने में मदद करते हैं।
    • शॉक एब्जॉर्बर: वे नुकसान को कम करने के लिए संरक्षित क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों का प्रबंधन और नियंत्रण करते हैं।
  • कार्य: उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करना।
  • विनियमन
    • प्राधिकरण: भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा विनियमित।
  • विस्तार
    • 10 किलोमीटर नियम: आमतौर पर, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के 10 किलोमीटर के भीतर की भूमि को ESZ के रूप में नामित किया जाता है।
    • विविधताएँ: यदि क्षेत्र पारिस्थितिकी रूप से महत्त्वपूर्ण है तो ESZ 10 किलोमीटर से आगे तक विस्तारित हो सकता है।

वैधानिक समर्थन

  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: इसमें स्पष्ट रूप से ESZ का उल्लेख नहीं है, लेकिन संवेदनशील क्षेत्रों में उद्योगों और संचालन पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति है।
  • धारा 3(2)(v): केंद्र सरकार को कुछ क्षेत्रों में उद्योगों और प्रक्रियाओं को प्रतिबंधित या विनियमित करने की अनुमति देता है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 का नियम 5(1): सरकार को जैव विविधता, प्रदूषण सीमा और संरक्षित क्षेत्रों से निकटता के आधार पर औद्योगिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की अनुमति देता है।

पर्यावरण संरक्षण पर संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-48A: इसमें कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा। इसे 42वें संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया था और यह राज्य पर पर्यावरण और वन्यजीवों की रक्षा करने का दायित्व डालता है।
  • अनुच्छेद-51-A (g): इसमें कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे और उसका संवर्द्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखे।
  • अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-14 स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
    • स्वच्छ पर्यावरण के बिना, जो स्थिर हो और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अप्रभावित हो, जीवन के अधिकार को पूरी तरह से साकार नहीं किया जा सकता।
    • अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है और स्वास्थ्य का अधिकार इसका महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • अनुच्छेद-14 इंगित करता है कि सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों का समान संरक्षण प्राप्त होगा।

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