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Lokesh Pal
August 08, 2024 04:32
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भारत में लगभग 50% महिलाएँ घरेलू हिंसा का सामना करती हैं तथा तीन में से दो दलित महिलाएँ अपने जीवनकाल में यौन हिंसा का सामना करती हैं। फिर भी इन मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
लिंग आधारित हिंसा (Gender-based violence- GBV) किसी व्यक्ति के विरुद्ध लैंगिक आधार पर की जाने वाली हिंसा है। इसमें किसी अन्य व्यक्ति को हिंसा, दबाव, धमकी, धोखे, सांस्कृतिक अपेक्षाओं या आर्थिक साधनों के माध्यम से उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ करने के लिए मजबूर किया जाता है।
यह पारस्परिक हिंसा का एक स्थापित रूप है, जो पुलिस और जेल जैसी संस्थाओं के अस्तित्व तथा दमनकारी न्याय की प्रथाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है।
हिंसा का पीड़ितों और उनके परिवारों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। इसका प्रभाव शारीरिक क्षति से लेकर दीर्घकालिक भावनात्मक संकट और मृत्यु तक हो सकता है।
18 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 30% महिलाओं ने 15 वर्ष की आयु से शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है, जबकि 6% ने अपने जीवनकाल में यौन हिंसा का अनुभव किया है और केवल 14% महिलाओं ने किसी के द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है।
महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन और महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के उन्मूलन पर वर्ष 1993 के संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों द्वारा हिंसा से मुक्त रहने के महिला के अधिकार को बरकरार रखा गया है। सामूहिक कार्रवाई के साथ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच बढ़ाने के लिए निवेश की तत्काल आवश्यकता है।
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