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विकसित भारत के लिए व्यापार नीति

Lokesh Pal August 09, 2024 02:59 93 0

संदर्भ

केंद्रीय बजट में वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के दीर्घकालिक लक्ष्य को विशेष स्थान दिया गया साथ ही इसका भी उल्लेख किया गया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई क्षेत्रों में सुधार (विशेष रूप से व्यापार नीति में) की आवश्यकता होगी।

  • मेक इन इंडिया’ (Make in India) के प्रमुख कार्यक्रम और वित्त वर्ष 2025-26 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के विजन के साथ, यह केंद्रीय बजट इस विजन को कार्यान्वयन योग्य नीतियों एवं निवेशों में बदलने की आधारशिला प्रतीत होता है।

‘विकसित भारत 2047’ के बारे में

  • विकसित भारत, 2047 का लक्ष्य भारत को वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र में बदलना है।
  • विजन: इसमें वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए विकास के विभिन्न पहलुओं, जैसे आर्थिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक प्रगति एवं सुशासन को शामिल किया गया है।
  • आधार: विकसित भारत के चार मुख्य आधार हैं- युवा (Youth), गरीब (Poor), महिलाएँ (Women) और अन्नदाता (Farmers)।
  • विकसित भारत के लिए लक्ष्य
    • सकल घरेलू उत्पाद (GDP): प्रस्तावित उपायों से भारत की GDP वर्ष 2030 तक 6.69 ट्रिलियन डॉलर, वर्ष 2040 तक 16.13 ट्रिलियन डॉलर और वर्ष 2047 तक 29.02 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगी।
    • प्रति व्यक्ति आय: मौजूदा कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय का अनुमान वर्ष 2030 तक 4,418 डॉलर, वर्ष 2040 तक 10,021 डॉलर और वर्ष 2047 तक 17,590 डॉलर है।
      • इसका अर्थ यह है कि वर्तमान प्रति व्यक्ति आय लगभग 2 लाख रुपये है जो वर्ष 2047 तक लगभग 14.9 लाख रुपये हो जाएगी।
    • निर्यात: निर्यात लक्ष्य वर्ष 2030 तक मूल्य के हिसाब से 1.58 ट्रिलियन डॉलर, वर्ष 2040 तक 4.56 ट्रिलियन डॉलर तथा वर्ष 2047 तक 8.67 ट्रिलियन डॉलर है।
  • वर्ष 2047 में विकसित भारत के विभिन्न पहलू इस प्रकार होने चाहिए:
    • आर्थिक विकास: एक विकसित भारत के पास एक लचीली तथा मजबूत अर्थव्यवस्था होनी चाहिए, जो अपने सभी नागरिकों के लिए अवसर तथा उच्च जीवन स्तर प्रदान कर सके।
    • पर्यावरणीय स्थिरता: एक विकसित भारत के पास भारत की जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए स्वच्छ एवं हरा-भरा वातावरण होना चाहिए।
    • सामाजिक प्रगति: एक विकसित भारत के पास एक समावेशी तथा सामंजस्यपूर्ण समाज होना चाहिए, जो अपने सभी नागरिकों की गरिमा एवं कल्याण सुनिश्चित करता हो।

‘व्यापार नीति’ के बारे में 

  • व्यापार नीति से तात्पर्य किसी देश की प्रथाओं, कानूनों, विनियमों और समझौतों के औपचारिक समूह से है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रथाओं या विदेशी देशों के लिए आयात और निर्यात को नियंत्रित करते हैं।
  • व्यापार नीति राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं के अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान के प्रबंधन पर आधारित होती है। इसमें आयात को विनियमित करना और निर्यात को प्रबंधित करना शामिल है, जिसमें निर्यात संवर्द्धन एवं निर्यात नियंत्रण शामिल हैं।
  • उद्देश्य: व्यापार नीतियों का उद्देश्य घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है।
    • नीतियों को विशिष्ट लक्ष्यों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए और इस संबंध में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य वर्ष 2023-24 में 775 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर किया जाना चाहिए।
  • सरकार की भूमिका: व्यापार नीति अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर भारत सरकार का दृष्टिकोण है या कानूनों एवं प्रथाओं का एक संयोजन है, जो आयात और निर्यात को प्रभावित करता है।
    • व्यापार नीतियों में विनियमन, शुल्क और कोटा शामिल हो सकते हैं।
    • कुछ राष्ट्र व्यापार को अधिक प्रोत्साहित करना चाहते हैं तथा कुछ अन्य राष्ट्रों के साथ खुली व्यापार नीतियों को अपनाना चाहते हैं, जबकि अन्य व्यापार को प्रतिबंधित करना चाहते हैं एवं संरक्षणवाद को बढ़ावा देना चाहते हैं।
    • व्यापार नीतियों से अनेक लाभ हो सकते हैं, जिनमें आर्थिक विकास या वस्तुओं की कम लागत शामिल है।

व्यापार नीति का महत्त्व 

व्यापार नीति उन कारकों में से एक है जो मजबूत निर्यात प्रदर्शन को दर्शाती है। अन्य पहल, जैसे कि मजबूत बुनियादी ढाँचा विकसित करना, रसद लागत कम करना, मानव कौशल का विकास तथा ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में सुधार करना, भी महत्त्वपूर्ण हैं। ये कारक न केवल निर्यात के लिए, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए प्रासंगिक हैं।

  • श्रमबल का उचित वितरण: व्यापार नीति के साथ, भारत विश्वव्यापी मंच पर विशेषज्ञता तथा  कौशल को बढ़ावा दे सकता है।
    • भारत की व्यापार नीति कम इनपुट लागत पर उत्पादन करने में सहायता कर सकती है।
    • भारत के पास विशाल प्राकृतिक संसाधन हैं, उसके पास पर्याप्त श्रमबल है, वह कुछ कच्चे माल का आयात कर सकता है और तैयार माल को देशों को निर्यात कर सकता है। इस प्रकार, यह उत्पादन की कुल लागत को कम करता है।
  • स्थिर मूल्य निर्धारण: विदेश व्यापार नीति की सहायता से भारत स्थिर माँग और आपूर्ति परिदृश्य की गारंटी के लिए मूल्य निर्धारण में समानता ला सकता है।
    • भारत की विदेश व्यापार नीति भी प्राकृतिक आपदा के समय कुछ उत्पादों के आयात की अनुमति देती है, जब माँग बहुत अधिक होती है। इसका मतलब है कि उपभोक्ता पर कर लगाए बिना कमी को पूरा किया जाता है।
  • उपभोक्ता लाभ: बेहतर गुणवत्ता तथा मात्रा में सामान उपलब्ध होने से उपभोक्ता को लाभ होता है।
    • यह विशेष रूप से अविकसित क्षेत्रों में जीवन स्तर को ऊपर उठाने में भी सहायता करता है।

चुनौतियाँ 

विकसित भारत, 2047 के लक्ष्य एवं सपने को हासिल करने के लिए भारत को निम्नलिखित विभिन्न चुनौतियों से निपटना होगा:

  • द्विपक्षीय निवेश संधियाँ (BIT)
    • हाल ही में भारत ने सभी मौजूदा BIT को एकतरफा रद्द कर दिया और भागीदार देशों से उम्मीद जताई है कि वे भारत के नए मॉडल BIT को स्वीकार करें। 
    •  यह मॉडल भारत की धीमी कानूनी प्रणाली के कारण विवादास्पद है।
  • मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) के लिए संकीर्ण आधार: भारत ने संयुक्त अरब अमीरात और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ FTA पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन यह देशों का एक बहुत छोटा समूह है।
    • भारत ने आस्ट्रेलिया के साथ सीमित ‘अर्ली हार्वेस्ट FTA’ पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन इसका दायरा सीमित है।
    • भारत, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ FTA पर वार्ता कर रहा है। दोनों महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन इस दिशा में प्रगति भारत द्वारा अन्य मानकों के बीच सामंजस्य बिठाने पर अधिक लचीला रुख अपनाने पर निर्भर करेगी
  • निवारण प्रक्रिया: महत्त्वपूर्ण उद्योगों के विकास एवं तकनीकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निवेशक अन्य देशों की तरह त्वरित निवारण न होने के कारण निवेश से बच सकते हैं।
  • अन्य
    • यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM): यूरोपीय संघ का CBAM भारत के लिए समस्या उत्पन्न करता है, क्योंकि यह इस्पात और सीमेंट जैसे निर्यातों को प्रभावित कर सकता है।
      • CBAM  शुरू में कुछ क्षेत्रों को प्रभावित करेगा, लेकिन भविष्य में अन्य क्षेत्रों में भी इसका विस्तार हो सकता है, जैसे कि परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, फार्मा औषधियाँ, आदि जो यूरोपीय संघ द्वारा भारत से आयात की जाने वाली शीर्ष 20 वस्तुओं में से हैं।
      • चूँकि भारत में कोई घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण योजना नहीं है, इसलिए यह निर्यात प्रतिस्पर्द्धा के लिए अधिक जोखिम उत्पन्न करता है। भारत को FTA के बाहर अलग से इससे निपटना पड़ सकता है।
    • अमेरिका के साथ FTA पर हस्ताक्षर: अमेरिका भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, लेकिन उसने संकेत दिया है कि वह किसी और FTA पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव नहीं रखता है।
      • हालाँकि, भारत को शायद अमेरिका द्वारा प्रायोजित इंडो-पैसिफिक आर्थिक ढाँचे के ‘व्यापारिक पहलू’ में शामिल न होने की अपनी स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। 

CBAM यूरोपीय संघ में आयातित स्टील, सीमेंट और कुछ बिजली जैसे कार्बन गहन उत्पादों पर कार्बन टैरिफ है। ‘यूरोपीय ग्रीन डील’ के हिस्से के रूप में कानून बनाया गया, यह वर्ष 2026 में प्रभावी होगा।

आगे की राह

पिछले वर्षो में, भारत ने व्यापार नीतियों के प्रति अपने दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव किया है, जो विनियामक सुधारों, तकनीकी प्रगति तथा गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर बढ़ते जोर के संयोजन से प्रेरित है।

  • फोकस में बदलाव: इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को जिस व्यापार नीति की आवश्यकता है, उसमें कुछ आंतरिक मतभेदों को हल करने के साथ-साथ वैश्विक परिवेश को सँभालने के लिए एक नया दृष्टिकोण विकसित करने की भी आवश्यकता है।

आंतरिक मतभेदों का समाधान 

  • मुख्य अंतर कुछ क्षेत्रों में इस धारणा से उत्पन्न होता है कि ‘आत्मनिर्भरता’ का अर्थ आयात को कम करने के लिए घरेलू उत्पादन हेतु अधिक संरक्षण है। 
    • सरकार द्वारा संरक्षणवाद का समर्थन करने की धारणा वर्ष 2017 में सामने आई थी, जब कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया गया था और बाद के वर्षों में शुल्क बढ़ाए जाने पर यह धारणा एवं मजबूत हो गई थी। 
    • लेकिन, इस वर्ष का बजट घरेलू उत्पादन को और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के प्रयास में कई वस्तुओं पर आयात शुल्क को कम करके एक नया संकेत प्रदान करता है।

व्यापक आंतरिक समीक्षा

  • हाल ही में वित्त मंत्री ने भारत के टैरिफ ढाँचे की अगले छह महीनों में व्यापक आंतरिक समीक्षा की घोषणा की है।
  • यह प्रस्ताव पहले नीति आयोग के प्रथम उपाध्यक्ष और 16वें वित्त आयोग के वर्तमान अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया द्वारा रखा गया था।

    • इस बदलाव के तहत, व्यापार नीति ने अपना ध्यान विदेशी मुद्रा आय से हटाकर भारत में मूल्य वर्द्धित विनिर्माण के लिए निवेश को बढ़ावा देने पर केंद्रित कर दिया है।
      • उदाहरण: भारत ने इस दिशा में कुछ पहल की हैं, जैसे कि इस वर्ष के बजट में घरेलू उत्पादन के लिए अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिए कई वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करना और भारत के टैरिफ ढाँचे के लिए एक व्यापक आंतरिक समीक्षा की घोषणा करना।
  • व्यापार नीति को प्रभावित करने वाले बाह्य घटनाक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना: सीमा शुल्कों के पुनर्गठन के अतिरिक्त, व्यापार नीति को वैश्विक व्यापार में दो नए घटनाक्रमों [FTA एवं वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC)] से निपटना होगा।
    • इन घटनाक्रमों का तात्पर्य यह है कि यदि भारत चाहता है कि निर्यात को GVC से लाभ मिले, तो उसे:-
      • बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करना जो उन पर हावी हैं, ताकि वे भारत में अपनी उत्पादन सुविधाओं का एक हिस्सा स्थापित करना।
      • FTA में शामिल होना जो GVC के कार्य करने के लिए आवश्यक भागों और घटकों के लिए निर्बाध शुल्क-मुक्त पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • भू-राजनीतिक घटनाक्रम: भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस की जा रही है। पश्चिमी देशों और चीन-रूस साझेदारी के बीच तनाव बढ़ रहा है। 
    • इसके अलावा, IMF ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वैश्विक विकास और विश्व व्यापार को नुकसान पहुँचेगा, जिसमें भारत भी शामिल है।
    • भारत की एक भेदभावपूर्ण व्यापार नीति है, जिसका उद्देश्य ‘री-शोरिंग’ (Re- shoring), ‘नियर-शोरिंग’ (Near-shoring) या ‘फ्रेंड शोरिंग’ (friend shoring) है। चीन और रूस के खिलाफ भेदभावपूर्ण व्यापार उपायों का सभी पक्षों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • हालाँकि, चीन से व्यापार को कम करने का प्रयास भारत को एक अवसर भी प्रदान करता है। GVC वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ ‘चीन प्लस वन नीति’ विकसित करना चाहेंगी और भारत इससे लाभ उठाने के लिए विशेष रूप से अच्छी स्थिति में है।
  • विभिन्न व्यापार समझौते
    • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP): यह दुनिया की सबसे बड़ी क्षेत्रीय व्यापार व्यवस्था है, जिसमें चीन सहित पूरा पूर्वी एशिया शामिल है। भारत नवंबर 2016 में इसमें शामिल होना चाहता था, लेकिन आखिरी समय में पीछे हट गया।
      • ऐसा कथित तौर पर इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय उद्योग समूह चीन को शुल्क मुक्त व्यापार की अनुमति देने को लेकर चिंतित थे।
    • यदि चीन ही RCEP से बाहर निकलने का एकमात्र कारण था, तो भारत को ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौते में शामिल होने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
      • ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौता (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP) में वर्तमान में जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और आसियान के कुछ देशों सहित 11 देश शामिल हैं। चीन ने CPTPP में शामिल होने के लिए आवेदन किया है, लेकिन अभी तक उसे स्वीकार नहीं किया गया है। यदि भारत आवेदन करता है तो चीन को बाहर रखने वाली भू-राजनीति भारत के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
    • दृष्टिकोण पर पुनर्विचार का समय: वास्तविक समस्या यह है कि इसमें शामिल होने के लिए उच्च पर्यावरणीय और श्रम मानकों को स्वीकार करना होगा, जिसका भारत पारंपरिक रूप से इस आधार पर विरोध करता रहा है कि यह हमारे ‘नीतिगत दायरे’ को सीमित करता है। इस दृष्टिकोण पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
  • गांधीवादी दृष्टिकोण का समय: अपने गाँवों तथा कस्बों में समुदायों द्वारा सहयोगात्मक रूप से विकसित स्थानीय प्रणाली समाधान, जलवायु परिवर्तन एवं असमान आर्थिक विकास की वैश्विक प्रणालीगत समस्याओं को हल करने का तरीका है।
    • ग्रामीण भारत, भारत के नीति निर्माताओं के लिए नई प्रौद्योगिकियों का उचित लाभ उठाते हुए सतत् एवं समावेशी प्रगति के लिए नीतियों में नवाचार करने के लिए एक प्रणाली हो सकता है। इससे भारत प्रगति के एक नए मार्ग पर अग्रणी बन जाएगा, जिसकी भारत एवं दुनिया को तत्काल आवश्यकता है।

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