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कार्बन कैप्चर, उपयोग एवं भंडारण के लिए राष्ट्रीय मिशन

Lokesh Pal August 12, 2024 03:14 76 0

संदर्भ

नेट-जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्बन कैप्चर, उपयोग एवं भंडारण (Carbon Capture,Utilization And Storage- CCUS) प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु एक राष्ट्रीय मिशन पर केंद्र सरकार विचार कर रही है।

  • इस निर्णय की घोषणा नई दिल्ली में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन इंडिया (AMCHAM इंडिया) की 32वीं वार्षिक आम बैठक के अवसर पर की गई। 
  • संबंधित मंत्रालय/विभाग: केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय, नीति आयोग एवं प्रधानमंत्री कार्यालय (PMOs) के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार का कार्यालय इस मिशन के लिए मुख्य कार्य समूह का गठन करेगा।

मिशन की विशेषताएँ

  • प्रस्तावित वित्तीय तंत्र: CCUS मिशन में कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (BGF), कार्बन मूल्य निर्धारण एवं कर प्रणाली, कार्बन ट्रेडिंग और PLI के संदर्भ में सब्सिडी को शामिल करने का प्रस्ताव है।
    • टैक्स क्रेडिट के रूप में सरकारी सहायता की आवश्यकता का आकलन प्राथमिकता आधार पर किया जा सकता है।
  • सहयोग: सरकार उद्योग एवं शिक्षा जगत के साथ मिलकर भारत-विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र तथा भारत-विशिष्ट CCUS प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए एक रोडमैप तैयार करेगी।
  • परिनियोजन: मिशन उन पायलट संयंत्रों की स्थापना का समर्थन करेगा, जो प्रति दिन 500 टन CO2 संग्रहण कर सकते हैं।

कार्बन कैप्चर, उपयोग एवं भंडारण (CCUS)

  • CCUS में 3 घटक शामिल हैं। 
    • कार्बन कैप्चर: CO2 को विद्युत उत्पादन या औद्योगिक सुविधाओं जैसे बड़े बिंदु स्रोतों से कैप्चर किया जाता है, जो ईंधन के रूप में जीवाश्म ईंधन या बायोमास का उपयोग करते हैं।
      • कार्बन कैप्चर अकेले ही शुद्ध CCUS लागत का लगभग 75% हिस्सा है।
    • उपयोग: प्राप्त कार्बन का उपयोग संबंधित स्थल पर किया जा सकता है या इसे संपीडित करके पाइपलाइन, जहाज, रेल या ट्रक द्वारा परिवहन किया जा सकता है, ताकि संबंधित स्थल के बाहर विभिन्न अनुप्रयोगों में इसका उपयोग किया जा सके।
    • भंडारण: C02 को भविष्य में उपयोग के लिए गहरी भू-वैज्ञानिक संरचनाओं जैसे समाप्त हो चुके तेल एवं गैस भंडारों या खारे जलभृतों में इंजेक्ट करके भी संगृहीत किया जा सकता है।

स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में CCUS की भूमिका 

  • आसान परिनियोजन: CCUS को मौजूदा विद्युत एवं औद्योगिक संयंत्रों में दोबारा लगाया जा सकता है, जिससे उनका संचालन जारी रखा जा सकता है।
  • अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों में उत्सर्जन में कमी: यह उन क्षेत्रों में उत्सर्जन से निपट सकता है, जिन्हें कम करना मुश्किल है, विशेष रूप से सीमेंट, स्टील या रसायन जैसे भारी उद्योगों में। 
  • डीकार्बोनाइजेशन: CCUS न्यूनतम लागत वाले निम्न-कार्बन हाइड्रोजन उत्पादन को सक्षम बनाता है तथा इस्पात, सीमेंट, तेल एवं गैस, पेट्रोकेमिकल्स एवं रसायन, तथा उर्वरक जैसे विद्युतीकरण तथा CO2 प्रधान क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज करने के लिए एकमात्र ज्ञात प्रौद्योगिकी प्रदान करता है।
    • CO2 सांद्रता को संतुलित करना: अंत में, CCUS उत्सर्जन को संतुलित करने के लिए वायु से CO2 को हटा सकता है, जो अपरिहार्य या तकनीकी रूप से कम करना मुश्किल है।

प्रौद्योगिकी

  • कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज के साथ बायोएनर्जी (Bioenergy with Carbon Capture and Storage- BECCS): इसमें उन प्रक्रियाओं से CO2 को कैप्चर करना एवं स्थायी रूप से संगृहीत करना शामिल है जहाँ बायोमास को ईंधन में परिवर्तित किया जाता है या ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से जलाया जाता है। चूँकि पौधे बड़े होने पर CO2 को अवशोषित करते हैं, यह वातावरण से CO2 को हटाने का एक तरीका है।
  • डायरेक्ट एयर कैप्चर (Direct Air Capture- DAC): यह किसी भी स्थान पर वायुमंडल से सीधे CO2 निकालता है, कार्बन कैप्चर के विपरीत जो आमतौर पर उत्सर्जन के बिंदु पर किया जाता है। CO2 को गहरे भू-वैज्ञानिक संरचनाओं में स्थायी रूप से संगृहीत किया जा सकता है या विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • कार्बन कैप्चर एवं उपयोग: यह अनुप्रयोगों की एक शृंखला को संदर्भित करता है, जिसके माध्यम से CO2 को कैप्चर किया जाता है तथा विभिन्न उत्पादों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से (यानी परिवर्तित) उपयोग किया जाता है।
    • CO2 का उपयोग मुख्य रूप से उर्वरक उद्योग और उन्नत तेल रिकवरी के लिए किया जाता है। CO2 आधारित सिंथेटिक ईंधन, रसायन एवं बिल्डिंग समुच्चय का उत्पादन जैसे नए उपयोग गति पकड़ रहे हैं।
  • वैश्विक बाजार का आकार: वर्ष 2022 तक, वैश्विक CCUS बाजार का आकार $2.49 बिलियन था, एवं वर्ष 2022-2030 के दौरान 13.3% की वार्षिक वृद्धि दर की उम्मीद है।
    • वैश्विक स्तर पर लगभग 361 मिलियन टन प्रति वर्ष (mtpa) की CO2 ग्रहण क्षमता विकसित की जा रही है। 
    • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार हाल के वर्षों में CCUS मूल्य शृंखला में 500 से अधिक CCUS परियोजनाएँ विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
  • क्षेत्रीय क्षमता: वर्ष 2030-2050 के दौरान भारत में क्षेत्रवार CO2 भंडारण क्षमता निम्न होगी,
    • पश्चिमी क्षेत्र: 388.9 GT 
    • दक्षिणी क्षेत्र: 80.58 GT
    • पूर्वी क्षेत्र: 76.3 GT
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र: 47.2 GT
    • उत्तरी क्षेत्र: 7.65 GT।

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