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109 उच्च उपज देने वाली बीज की किस्में

Lokesh Pal August 12, 2024 05:40 115 0

संदर्भ 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने 109 नई बीज की किस्मों को प्रस्तुत किया है, जो उच्च उपज देने वाली, जलवायु-सहिष्णु और जैव-संवर्द्धित/बायोफोर्टिफाइड (Biofortified) हैं।

इन बीजों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित किया गया है तथा इनका उद्देश्य कृषि उत्पादकता में सुधार लाना एवं किसानों की आय में वृद्धि करना है।

नए बीज की किस्में

श्रेणी फसलें 
फिल्ड क्रॉप/फसलें  जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा (पर्ल मिलेट), रागी (फिंगर मिलेट)
दालें  चना, अरहर, मसूर, मूँग
तिलहन कुसुम, सोयाबीन, मूँगफली, तिल
चारा फसलें चारा बाजरा, बरसीम, जई, चारा मक्का, चारा ज्वार
विशिष्ट फसलें गन्ना, कपास, जूट, कुट्टू, अमरैंथ, विंग्ड बीन, अडजुकी बीन, पिल्लिपेसरा, कलिंगडा, पेरिला
बागवानी फसलें फल, सब्जियाँ, मसाले, कंद फसलें, बागानी फसलें, फूल, औषधीय पौधे 

विविध फसल कवरेज

बीज की 109 किस्में 61 फसलों से संबंधित हैं।

  • जैव-संवर्द्धित फसलों को बढ़ावा देना
    • सरकार ने लगातार जैव-संवर्द्धित या बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्मों को बढ़ावा दिया है तथा उन्हें मध्याह्न भोजन योजना और आँगनवाड़ी सेवाओं जैसी सरकारी पहलों से जोड़ा है।
      • इन पहलों का उद्देश्य कृषि के माध्यम से अधिक पौष्टिक भोजन का विकल्प प्रदान कर भारत में कुपोषण की समस्या का समाधान प्रस्तुत करना  है।

जैव-संवर्द्धित फसलों के बारे में

  • ये संशोधित फसलें होती हैं।
  • इसमें कुछ विशिष्ट गुण होते हैं, जो पारंपरिक प्रजनन या ब्रीडिंग प्रोसेस  में संभव नहीं हैं।

बायोफोर्टिफिकेशन (Biofortification) क्या है?

  • बायोफोर्टिफिकेशन खाद्य फसलों की पोषण सामग्री में सुधार करने की प्रक्रिया है।
    • ऐसा फसलों में आवश्यक विटामिन और खनिजों के स्तर को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
  • बायोफोर्टिफिकेशन  मुख्य रूप से चावल जैसी प्रमुख फसलों को लक्षित करता है, ताकि आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्व उपलब्ध कराए जा सकें, विशेष रूप से उन लोगों को जिनकी विविध आहार तक सीमित पहुँच है।
  • बायोफोर्टिफिकेशन की प्रणालियाँ
    • कृषि-संबंधी पद्धतियाँ: फसलों में पोषक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए विशिष्ट कृषि तकनीकों का उपयोग करना।
    • पारंपरिक प्रजनन: अधिक पौष्टिक फसल किस्मों का उत्पादन करने के लिए उच्च पोषक तत्त्वों वाले पौधों का चयन और उनमें क्रॉसब्रीडिंग करना।
    • जैव प्रौद्योगिकी दृष्टिकोण: बेहतर पोषण के लिए फसलों की आनुवंशिक संरचना को सीधे संशोधित करने के लिए आनुवंशिक इंजीनियरिंग और जीन एडिटिंग जैसी उन्नत विधियों का उपयोग किया जाता है।

बायोफोर्टिफिकेशन से हानि 

  • उच्च लागत: जैव-संवर्द्धित (Biofortified)  फसलों को विकसित करने हेतु जैव-प्रौद्योगिकी में उच्च अनुसंधान और निवेश की आवश्यकता होती है।
  • सीमित उपलब्धता: जैव-संवर्द्धित (Biofortified)  फसलें सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, जिससे इसके लाभ सीमित हो जाते हैं। 
  • आनुवंशिक विविधता में कमी: जैव-संवर्द्धित (Biofortified)  किस्मों को अक्सर विशिष्ट गुणों के लिए चुना जाता है, जिससे इस किस्म का व्यापक उपयोग किया जा सकता है।
    • इस प्रथा से फसलों में विद्यमान आनुवंशिक विविधता में कमी हो सकती है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: जैव-संवर्द्धित (Biofortified) फसलों को जब गैर-जैव संवर्द्धित फसलों के साथ संकरित किया जाता है, तो संकर (Hybrid) पौधे विकसित होते हैं, जिनके पारिस्थितिकी तंत्र पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता है।

उच्च उपज देने वाली बीज की किस्मों से किसानों को लाभ

  • फसल उत्पादकता में वृद्धि: उच्च उपज देने वाली बीज किस्मों से प्रति हेक्टेयर अधिक फसल उत्पादन होता है, जिससे किसान एक ही भूमि क्षेत्र से अधिक फसल काट पाते हैं।
  • बढ़ी हुई आय: उच्च उत्पादकता का अर्थ है विपणन योग्य अधिशेष में वृद्धि, जिससे किसान अधिक उपज बेच पाते हैं और अधिक आय अर्जित कर पाते हैं।
  • लागत दक्षता: बेहतर बीज किस्मों के लिए अक्सर पानी, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे कम लागत की आवश्यकता होती है, जिससे कुल खेती की लागत कम हो जाती है।
  • बाजार प्रतिस्पर्द्धात्मकता: बेहतर बीज किस्मों तक पहुँच वाले किसान बेहतर गुणवत्ता वाली फसलें पैदा कर सकते हैं, जिससे उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलती है और संभावित रूप से बेहतर कीमतें मिलती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन: जलवायु-लचीली बीज किस्में प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण फसल की विफलता के जोखिम को कम करती हैं, जिससे किसानों के लिए अधिक स्थिर और अनुमानित आय सुनिश्चित होती है।
  • दीर्घकालिक स्थिरता: जैव-सशक्त और जलवायु-लचीले बीजों का उपयोग स्थायी कृषि पद्धतियों में योगदान देता है, जो लगातार पैदावार और बाहरी लागत पर कम निर्भरता के माध्यम से किसानों के आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करता है।

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