श्रद्धानंद और गदाधर बेहरा जैसे अंतरराष्ट्रीय कलाकारों ने ओडिशा की गोटीपुआ (Gotipua) नृत्य परंपरा को बढ़ावा दिया है।
गोटीपुआ नृत्य के बारे में
गोटीपुआ ओडिशा का एक पारंपरिक नृत्य है, जिसमें केवल लड़के भाग लेते हैं।
ओडिशा भाषा में, ‘गोटी’ का अर्थ है ‘अविवाहित’ और ‘पुआ’ का अर्थ है ‘लड़का’।
उत्पत्ति: इसकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी में शास्त्रीय ओडिसी नृत्य के अग्रदूत के रूप में हुई थी।
इस नृत्य शैली में लड़कों को गुरुकुलों या अखाड़ों में गायन, नृत्य, योग और कलाबाजी का प्रशिक्षण दिया जाता है।
वे त्योहारों और धार्मिक समारोहों में प्रदर्शन करने के लिए लड़कियों की तरह कपड़े पहनते हैं।
पोशाक: कंचुला (चमकीला ब्लाउज) और कमर के चारों ओर कढ़ाई किया हुआ रेशमी कपड़ा (निबिबंध)।
इसमें वंदना (ईश्वर या गुरु से प्रार्थना), अभिनय (गीत का मंचन) और बंध नृत्य (कलाबाजी की लय) शामिल हैं।
कलाकार भगवान जगन्नाथ और कृष्ण की स्तुति करते हैं।
इस नृत्य में कलाबाजियाँ युक्त योगिक गतिविधियाँ शामिल हैं, जो राधा और कृष्ण के जीवन से प्रेरित हैं।
स्थान: पुरी के निकट रघुराजपुर, गोटीपुआ मंडलियों के लिए प्रसिद्ध है।
इस नृत्य में पारंपरिक ओडिसी संगीत के साथ मर्दला तालवाद्य भी बजाया जाता है।
गोटीपुआ परंपरा का पतन
शिक्षा में व्यवधान: गोटीपुआ नृत्य के कठोर प्रशिक्षण के कारण अक्सर लड़कों की औपचारिक शिक्षा बाधित होती है, जिसके परिणामस्वरूप नृत्य सीखने के बाद अन्य कॅरियर के लिए आवश्यक कौशल की कमी हो जाती है।
ओडिसी में सीमित परिवर्तन: केवल कुछ ही गोटीपुआ नर्तक ओडिसी में आगे बढ़ते हैं।
ओडिसी एक शास्त्रीय नृत्य शैली है, जो शहरों में अधिक प्रचलित है और मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है।
सरकारी और सांस्कृतिक सहायता
ओडिशा सरकार ने नृत्य समूहों को यात्रा और प्रदर्शन से संबंधित खर्चों में सहायता देने के लिए सांस्कृतिक दल प्रबंधन प्रणाली (Cultural Troupe Management System- CTMS) लागू की है।
सिफारिश: गोटीपुआ संघ, किशोर न्याय अधिनियम के तहत कानूनी मुद्दों सहित गोटीपुआ नर्तकों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए जागरूकता बढ़ाने और सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए कार्य कर रहा है।
वित्तीय सहायता: मुख्यमंत्री कलाकार सहायता योजना (Mukhyamantri Kalakar Sahayata Yojana- MKSY) 50 वर्ष की आयु पूरी कर चुके कलाकारों को पेंशन प्रदान करती है।
गुरुकुलों के लिए चुनौतियाँ
स्थायित्व संबंधी मुद्दे: अपर्याप्त सरकारी सहायता और वित्तीय संसाधनों के कारण गुरुओं को अपने गुरुकुलों को चालू रखना कठिन हो जाता है।
ऐतिहासिक समर्थन बनाम आधुनिक संघर्ष: कभी राजाओं और जमींदारों द्वारा वित्त पोषित गोटीपुआ गुरुकुल अब मंच प्रदर्शनों से होने वाली आय पर निर्भर हैं, जो परंपरा को बनाए रखने के लिए अक्सर अपर्याप्त होती है।
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