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संपादकीय 2: स्वतंत्रता दिवस पर भाषण और उससे आगे

Lokesh Pal August 16, 2024 05:30 48 0

संदर्भ : 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने तीसरे कार्यकाल का यह पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण है हालांकि यह वर्ष 2014 के बाद से उनका ग्यारहवाँ महत्वपूर्ण भाषण था, जो निरंतरता और अधिकार का संकेत देता है क्योंकि अब वे एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। अपने भाषण के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला और उन्हें संबोधित करने के तरीके सुझाए।

प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस भाषण में उठाए गए प्रमुख मुद्दे:

  1. समान नागरिक संहिता (यूसीसी): प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन का आह्वान किया, इसे धार्मिक आस्थाओं से परे एक धर्मनिरपेक्ष उपाय बताया।
  2. एक राष्ट्र, एक चुनाव: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा प्रस्तावित की गई, जिसका उद्देश्य शासन को सुव्यवस्थित करने और लागत कम करने के लिए देश भर में लोकसभा व विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करने का प्रस्ताव है।
  3. महिला सुरक्षा: कोलकाता में एक ऑन-ड्यूटी डॉक्टर के साथ यौन उत्पीड़न और हत्या सहित हाल की घटनाओं के मद्देनजर, प्रधानमंत्री ने महिलाओं के लिए सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।
  4. आर्थिक स्थिरता और सेबी के आरोप: प्रधानमंत्री ने देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने के प्रयासों के बारे में चिंता जताई, उन्होंने यू.एस.-आधारित हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें सेबी के प्रमुख पर हितों के टकराव का आरोप लगाया गया था।
  5. वंशवादी राजनीति के स्थान पर युवा भागीदारी को प्रोत्साहन : वंशवादी राजनीति की आलोचना करते हुए, प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि पहली पीढ़ी के एक लाख युवा नेताओं को विभिन्न स्तरों पर चुनावी राजनीति में प्रवेश करना चाहिए।
  6. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा: प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश में शांति की उम्मीद जताई और वहां हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा के बारे में चिंता जताई।
  7. विनिर्माण और भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में उपलब्धियां: अपने दो कार्यकालों की समीक्षा करते हुए, प्रधानमंत्री ने विनिर्माण में भारत की प्रगति और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर प्रकाश डाला, साथ ही मौजूदा चुनौतियों को भी स्वीकार किया।

मुख्य बिंदुओं का विश्लेषण:

  1. समान नागरिक संहिता (यूसीसी): समान नागरिक संहिता की वांछनीयता पर सवाल नहीं है, लेकिन इसके कार्यान्वयन के प्रति सरकार का दृष्टिकोण विवादास्पद है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लिए आम सहमति बनाने की आवश्यकता है, और इसका उपयोग विशिष्ट समुदायों को लक्षित करने के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
  2. एक राष्ट्र, एक चुनाव: जबकि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार शासन को सुव्यवस्थित कर सकता है, यह संवैधानिक संशोधनों और व्यापक राजनीतिक आम सहमति की आवश्यकता सहित महत्वपूर्ण व्यावहारिक चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकता है।
  3. महिलाओं की सुरक्षा: महिलाओं की सुरक्षा पर जोर देना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके लिए केवल भाषणों व प्रचार-प्रसार से अधिक आवश्यकता सक्रिय दृष्टिकोण की है। महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए ठोस कार्रवाई और कानूनों का कठोर प्रवर्तन आवश्यक है।
  4. आर्थिक स्थिरता और सेबी के आरोप: आर्थिक आलोचनाओं और सेबी जैसे प्रमुख निकाय पर लगे आरोपों, के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। आलोचना को राष्ट्र को अस्थिर करने के प्रयासों के बराबर मानना सही नहीं है। चूंकि सरकार की आलोचना करना राष्ट्र की आलोचना करने के बराबर नहीं है, इसलिए इस पर सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए।

निष्कर्ष :

स्वतंत्रता दिवस की 78वीं वर्षगांठ, एक ऐसे शासन दृष्टिकोण की आवश्यकता की याद दिलाता है जो समावेशिता और परामर्श के साथ निरंतरता को संतुलित करता है। जबकि प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अधिक संतुलित और परामर्शी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकार को समान नागरिक संहिता जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आम सहमति बनाने की दिशा में काम करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आलोचना और जवाबदेही को स्थिरता के लिए खतरे के बजाय लोकतंत्र के मूलभूत पहलुओं के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि स्वतंत्रता का असली सार एक सहभागी राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से सरकार को जवाबदेह बनाए रखने में निहित है।

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