प्रारंभिक परीक्षा संबंधी विषय : ओलंपिक खेल, खेल संस्कृति आदि।
मुख्य परीक्षा संबंधी विषय : ओलंपिक खेलों में भारत का प्रदर्शन, समावेशी खेल संस्कृति आदि।
संदर्भ :
पेरिस ओलंपिक, 2024 के समापन पर भारत ने छह पदक (एक रजत और पाँच कांस्य) जीते और पदक तालिका में 71वाँ स्थान प्राप्त किया, जो वास्तव में भारत की खराब स्थिति को दर्शाता है| परिणामस्वरूप क्रिकेट से परे एक मजबूत खेल संस्कृति की आवश्यकता पर चर्चा शुरू हो गई है।
प्रमुख बिंदु
हालाँकि इस वर्ष भारत का ओलंपिक प्रदर्शन पिछले साल के समान ही रहा, जिसमें पदकों की संख्या लगभग समान ही रही, लेकिन आलोचना का स्तर बढ़ गया है। यह आलोचना दर्शाती है, कि भारत एक राष्ट्र के रूप में विकसित हो रहा है और यथास्थिति बनाए रखने से संतुष्ट नहीं है।
यह आलोचना इस विश्वास को दर्शाती है, कि भारत अधिक हासिल करने में सक्षम है और बेहतर का हकदार है। सरकार और खिलाड़ी अब देश के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के दबाव में हैं।
साथ ही, भारतीय एथलीटों ने ओलंपिक में अधिक प्रयास किया, जिसमें कई एथलीट चौथे स्थान पर रहे और पदक से चूक गए। हालाँकि यह ज्यादा तो नहीं किंतु संभावित सुधार दर्शाता है।
भारत के ओलंपिक प्रदर्शन की आलोचना को सकारात्मक रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह एथलीटों और प्रशासकों दोनों को बेहतर परिणामों के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
बेहतर परिणामों के लिए बढ़ती अधीरता के बावजूद, प्रगति को स्वीकार करना तथा अमेरिका और चीन जैसे देशों के साथ सीधी तुलना से बचना महत्त्वपूर्ण है। भारत सही मार्ग पर है और समय के साथ अपनी स्थिति में सुधार करेगा।
अमेरिका और चीन से तुलना
भारत के खेल प्रदर्शन की तुलना सीधे अमेरिका से करना अभी उचित नहीं है, जिसका खेलों में 100 साल से ज़्यादा का इतिहास है। एडोल्फ़ हिटलर के समय में अमेरिकी एथलीट जेसी ओवेन्स की ओलंपिक सफलता इस दीर्घकालिक संस्कृति का एक उदाहरण है।
साथ ही चीन, जिसने 1988 के ओलंपिक में सिर्फ पाँच पदक जीते थे, खेल संस्कृति के निर्माण पर जानबूझकर ध्यान केंद्रित करने के कारण अमेरिका को चुनौती देने के लिए आगे आया है। चीन की सफलता का श्रेय विभिन्न खेलों में प्रतिभाओं की शुरुआती पहचान और पोषण को दिया जाता है।
भारत ने पिछले 8-10 वर्षों में ही कई खेलों को वित्तपोषित करना और विकसित करना शुरू किया है| जबकि परिणाम धीरे-धीरे सुधर रहे हैं, वैश्विक खेल शक्तियों के स्तर तक पहुँचने के लिए अभी और समय की आवश्यकता है।
वर्तमान परिदृश्य
बुनियादी ढाँचा और प्रतिभा पहचान : प्रतिभा पहचान और समर्थन में सुधार के कारण भारत अब विभिन्न खेलों में 7-8 ओलंपिक पदक जीतता है। बुनियादी ढाँचा और खेल विज्ञान पहले की तुलना में बहुत बेहतर है| खेलो इंडिया जैसी सरकारी पहलों ने उम्मीद जगाई है, हालाँकि बेहतर परिणाम आने में अभी समय लगेगा।
खेल पारिस्थितिक तंत्र : लंदन (2012) और रियो (2016) ओलंपिक के बाद से खेल पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। हालाँकि एक ऐसी संस्कृति बनाने में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, जो लगातार विभिन्न खेलों में प्रतिभाओं का समर्थन और पोषण करे।
खेलों में सीमित भागीदारी : वर्तमान में भारत ओलंपिक में लगभग 16 खेलों में भाग लेता है, जो अपने पदक तालिका को बढ़ाने के लिए अधिक विषयों में व्यापक भागीदारी और प्रतिभा विकास की आवश्यकता को दर्शाता है।
क्या हम एक-खेल राष्ट्र हैं?
नहीं, भारत सिर्फ क्रिकेट पर ही केंद्रित नहीं है;अन्यथा अन्य खेलों को न तो ध्यान दिया जाता और न ही उन्हें धन दिया जाता। क्रिकेट अपनी लोकप्रियता के कारण हावी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य खेलों की उपेक्षा की जाती है। उदाहरण के लिए बैडमिंटन, जिसमें पी.वी. सिंधु, पारुपल्ली कश्यप और साइना नेहवाल जैसे सितारे हैं, को काफी लोकप्रियता प्राप्त है। हालाँकि अभी भी कई खेलों के बुनियादी नियमों के बारे में सामान्य जागरूकता की कमी है।
किंतु यह बात भी पूरी तरह सत्य है, कि अन्य खेलों के एथलीटों को सीमित सार्वजनिक रुचि और जागरूकता के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एथलीटों को अनुचित दबाव और जाँच का भी सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे ओलंपिक जैसे बड़े आयोजनों में पदक जीतने से चूक जाते हैं।
उपाय एवं समाधान
खेल संस्कृति का निर्माण : एक खेल राष्ट्र बनने के लिए भारत को विभिन्न खेलों के लिए पूरे साल रुचि और समर्थन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, न कि केवल प्रमुख आयोजनों के दौरान। यदि उचित प्रोत्साहन, बेहतर वित्तीय संभावनाएँ, वैज्ञानिक प्रशिक्षण और सहायक बुनियादी ढाँचा प्रदान किया जाए, तो देश में कई खेलों में उत्कृष्टता हासिल करने की क्षमता है।
खेलो इंडिया और जमीनी स्तर पर विकास : खेलो इंडिया जैसी पहलें आवश्यक हैं, क्योंकि ये जमीनी स्तर पर प्रतिभा की पहचान करती हैं। वित्तीय सहायता प्रदान करने में सरकार की विशिष्ट भूमिका है, ऐसे में व्यवस्था को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जाना चाहिए। प्रतिभा को निखारने में निजी अकादमियों की भी भूमिका आवश्यक है।
दीर्घकालिक दृष्टिकोण : छोटे-छोटे संस्थानों से खेल संस्कृति विकसित की जानी चाहिए, जहाँ बच्चों को छोटी उम्र से ही खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इससे न केवल बेहतरीन एथलीट तैयार करने में मदद मिलती है, बल्कि समाज में समग्र स्वास्थ्य और खुशहाली को भी बढ़ावा मिलता है।
क्रिकेट की सफलता से सबक : भारत में क्रिकेट की सफलता एक अच्छी तरह से स्थापित बुनियादी ढाँचे, निरंतर निवेश और खेल को बढ़ावा देने वाली संस्कृति के कारण है। इसी प्रकार यदि अन्य खेलों के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचे का निर्माण, सर्वोत्तम प्रशिक्षण तथा रिकवरी सुविधाएँ प्रदान की जाए, तो बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
विवाद का मुद्दा : क्या सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी ही बच्चों को खेलों की ओर आकर्षित करने का एकमात्र तरीका है? क्या इससे खेल संस्कृति के विकास में बाधा आती है?
इस बात पर बहस जारी है, कि क्या खेलों को सरकारी नौकरियों का रास्ता बनाया जाना चाहिए। कुछ लोग तर्क देते हैं कि प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए स्थिर नौकरियों जैसे वित्तीय प्रोत्साहन आवश्यक हैं, जबकि अन्य का मानना है कि खेलों को जुनून के लिए आगे बढ़ाया जाना चाहिए, न कि नौकरी की गारंटी के रूप में (यूएस मॉडल)।
स्पष्ट है, कि एक संतुलन बनाने की आवश्यकता है, जहाँ एथलीटों को वित्तीय रूप से समर्थन भी दिया जाए और साथ ही उन्हें शिक्षा तथा अन्य करियर विकल्पों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
निष्कर्ष
भारत भले ही अभी तक सही मायनों में खेल राष्ट्र नहीं बन पाया है, लेकिन इसमें एक खेल राष्ट्र बनने की पूरी क्षमता है। इस यात्रा के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और समाज के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि विविधतापूर्ण खेल संस्कृति को बढ़ावा दिया जा सके एवं उसे अक्षुण्ण बनाए रखा जा सके।
मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न
भारत में क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के सीमित विकास में योगदान देने वाले कारकों का विश्लेषण कीजिए। विभिन्न विषयों में अधिक समावेशी खेल संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कौन-से अतिरिक्त उपाय लागू किए जा सकते हैं?
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