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राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा के अधिकार को कमजोर करना

Lokesh Pal August 19, 2024 05:30 58 0

संदर्भ : 

हाल ही में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर 1 किलोमीटर की दूरी पर कोई सरकारी स्कूल है, तो निजी स्कूलों को इस प्रावधान को लागू करने की आवश्यकता नहीं है। पंजाब सरकार द्वारा इसी तरह के एक नियम में कहा गया था कि कोई अभिभावक निजी स्कूलों में EWS कोटे का दावा तभी कर सकता है, जब उसका बच्चा सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं ले पाता। राज्य सरकारों द्वारा किए गए ऐसे प्रयास शिक्षा के अधिकार (RTE) के कार्यान्वयन के पीछे के दर्शन को कमजोर करते हैं और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25% सीटों के आरक्षण को दरकिनार करने का प्रयास करते हैं।

शिक्षा के अधिकार के महत्वपूर्ण प्रावधान :

  • मौलिक अधिकार: भारत में शिक्षा का अधिकार (RTE) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत एक मौलिक अधिकार है, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
  • 86वां संशोधन अधिनियम (2002) : यह अधिकार 2002 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया था और इसे बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के माध्यम से लागू किया गया था, जिसे आमतौर पर RTE अधिनियम के रूप में जाना जाता है।

शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के मुख्य प्रावधान संक्षेप में:

  1. निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा: 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है।
  2. 25% आरक्षण: निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
  3. नो डिटेंशन पॉलिसी: कक्षा 8 तक के छात्रों को उसी कक्षा में रोकना या फेल नहीं किया जा सकता, इससे वार्षिक परीक्षाओं के बजाय सतत मूल्यांकन और सहायक शिक्षण वातावरण को बढ़ावा मिलता है।
  4. आयु-उपयुक्त प्रवेश: जो बच्चे कभी स्कूल नहीं गए हैं या जिन्होंने पढ़ाई छोड़ दी है, उन्हें उनकी आयु के अनुरूप कक्षा में नामांकित किया जाना चाहिए, ताकि समय पर शिक्षा सुनिश्चित हो सके। छात्रों की मदद के लिए विशेष सत्र प्रदान किए जाने चाहिए।
  5. बाल-केंद्रित शिक्षा: शिक्षा बाल-अनुकूल होनी चाहिए और बच्चे के समग्र विकास पर केंद्रित होनी चाहिए।
  6. स्कूल मानक: स्कूलों को कुछ बुनियादी ढांचे और शिक्षक गुणवत्ता मानकों को पूरा करना चाहिए।
  7. स्कूल प्रबंधन समितियाँ (एसएमसी): एसएमसी में निर्वाचित प्रतिनिधि, शिक्षक, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता (जिनमें 50% महिलाएँ होंगी) और स्कूल के कामकाज की देखरेख करने के लिए स्थानीय प्राधिकरण के सदस्य अनिवार्य रूप से शामिल होने चाहिए।

प्रत्येक बच्चे को स्कूल जाने का अधिकार देने का विचार लंबे समय से लंबित है। गोपाल कृष्ण गोखले ने 1911 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव असेंबली में इसके लिए मंजूरी लेने की कोशिश की थी। इस प्रकार, जब आरटीई को आखिरकार लागू किया गया, तो उम्मीद थी कि यह लोगों की चेतना को जगाने का काम करेगा परंतु वर्तमान संदर्भ में इसे पूर्णतः सफल और पूर्णतः असफल कहना संभव नहीं है। 

शिक्षा के अधिकार को कमजोर करने के कारण:

  • पूर्ण अधिकार के रूप में अनदेखी : शिक्षा के अधिकार को पूर्ण अधिकार के रूप में नहीं देखा जाता है।
  • निजी स्कूलों का प्रतिरोध: निजी स्कूलों ने शिक्षा के अधिकार को अपने अधिकार और कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप के रूप में देखा।
  • सरकारी कार्रवाई : निजी स्कूलों और राजनेताओं के बीच सांठ-गांठ ने कानूनी खामियों के माध्यम से प्रावधान को दरकिनार करने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र और पंजाब सरकारों के आदेश।
  • राज्य सरकारों पर व्यय: महाराष्ट्र सरकार के अनुसार, यह आदेश संसाधन व्यय के दोहराव से बचने के लिए था। सरकार को गरीब छात्रों के नामांकन की लागत के लिए निजी स्कूल को प्रतिपूर्ति करनी होती है और निजी स्कूलों का रखरखाव भी करना होता है।
  • स्कूलों के भीतर भेदभाव : कुछ निजी स्कूलों ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों को दूसरों के साथ पढ़ने की अनुमति देने के बजाय उनके लिए अलग सेक्शन या सत्र बनाकर भेदभाव व अलगाव को बढ़ाया।
  • अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण: केवल एक गुणवत्ता युक्त प्रशिक्षण शैली से प्रशिक्षित और योग्य शिक्षक ही विविध पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ कक्षा को अधिक प्रभावी ढंग से संचालित कर सकता है, अक्सर प्रशिक्षण का अभाव देखा जाता है।

आगे की राह:

  • जे.एस. वर्मा आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन: विविध कक्षाओं को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार करना।
  • जागरूकता बढ़ाना: व्यापक स्वीकृति और बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा के अधिकार के महत्व के बारे में समाज को शिक्षित करना।

निष्कर्ष:

आधुनिक शैक्षणिक सिद्धांत के अनुसार, अलग-अलग पृष्ठभूमि के बच्चों को समान कक्षाओं में समावेशित करने से शिक्षा समृद्ध होती है। इसमें जमीनी स्तर पर सामाजिक व्यवस्था में दीर्घकालिक पुल बनाने की क्षमता है। इसलिए, शिक्षा का अधिकार अधिनियम अक्षरशः लागू किया जाना चाहिए।

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