हाल ही में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के पालन-पोषण और गोद लेने के दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है।
भारत में पालन-पोषण देखभाल प्रणाली
पालन-पोषण की परिभाषा: पालन-पोषण एक अस्थायी व्यवस्था है, जहाँ बच्चा विस्तारित परिवार या असंबंधित व्यक्तियों के साथ रहता है।
पालन-पोषण के लिए पात्र बच्चों की आयु छह वर्ष से अधिक होनी चाहिए, वे बाल देखभाल संस्थानों में रह रहे हों, या ‘स्थान देना कठिन’ (Hard to Place) श्रेणी में वर्गीकृत हों या उनकी विशेष आवश्यकताएँ हों।
पालक माता-पिता के लिए पात्रता मानदंड (Eligibility Criteria for Foster Parents): पालक माता-पिता के लिए आयु मानदंड 6 से 12 वर्ष की आयु के बच्चों को पालने वाले एकल व्यक्तियों के लिए 35 से 55 वर्ष, तथा 12 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 35 से 60 वर्ष निर्धारित किया गया है।
ऑनलाइन पंजीकरण: भावी पालक माता-पिता अब बाल दत्तक ग्रहण संसाधन सूचना एवं मार्गदर्शन प्रणाली (Child Adoption Resource Information and Guidance System- CARINGS) के माध्यम से ऑनलाइन पंजीकरण कर सकते हैं, जिससे जिला बाल संरक्षण इकाइयों के लिए प्रक्रिया सरल हो जाएगी।
बाल दत्तक ग्रहण संसाधन सूचना एवं मार्गदर्शन प्रणाली (CARINGS) एक ऑनलाइन मंच है, जो एक प्रभावी वेब-आधारित प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से दोनों पक्षों के मध्य संपर्क स्थापित करता है, जिसे दत्तक ग्रहण प्रणाली में पारदर्शिता लाने और विभिन्न स्तरों पर देरी को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority- CARA) महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (भारत सरकार) का एक वैधानिक निकाय है।
यह भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिए नोडल निकाय के रूप में कार्य करता है।
इसका कार्य देश के अंदर और बाहर दत्तक ग्रहण की निगरानी और विनियमन करना है।
विश्व भर में पालन-पोषण देखभाल प्रणाली
संयुक्त राज्य अमेरिका
स्थानीय क्षेत्राधिकार: पालन-पोषण देखभाल प्रणाली का प्रबंधन राज्य स्तर पर किया जाता है तथा प्रत्येक राज्य के अपने नियम, नीतियाँ और प्रक्रियाएँ होती हैं।
संघीय पर्यवेक्षण (Federal Oversight): संघीय दिशा-निर्देश और वित्तीय सहायता, लेकिन राज्यों को अपनी स्वयं की प्रणालियाँ लागू करने की स्वायत्तता है।
प्लेसमेंट
पुनर्मिलन: प्राथमिक लक्ष्य बच्चों को उनके जैविक परिवारों के साथ पुनर्मिलन कराना है, बशर्ते यह सुरक्षित हो और बच्चे के सर्वोत्तम हित में हो।
दत्तक ग्रहण: यदि पुनर्मिलन संभव न हो, तो वैकल्पिक स्थायी योजना के रूप में दत्तक ग्रहण का प्रयास किया जाता है।
संरक्षकता: कुछ मामलों में, यदि गोद लेना संभव न हो तो दीर्घकालिक संरक्षकता की व्यवस्था की जाती है।
पालक माता-पिता की आवश्यकताएँ
पात्रता: भावी पालक माता-पिता को राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करना होगा, जिसमें पृष्ठभूमि जाँच, गृह अध्ययन एवं प्रशिक्षण शामिल है। उन्हें राज्य द्वारा निर्दिष्ट प्रशिक्षण से गुजरना होगा।
फ्राँस
केंद्रीकृत प्रणाली: फ्राँसीसी पालन-पोषण देखभाल प्रणाली का प्रबंधन स्थानीय बाल कल्याण सेवाओं के समन्वय से, एकजुटता और स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रीय सरकार द्वारा किया जाता है।
कानूनी आवश्यकता (Legal Requirement): फ्राँस में, कानून के अनुसार बच्चे के परिवार को सहायता प्रदान की जानी चाहिए और उन्हें यथासंभव बच्चे की देखभाल करनी चाहिए, भले ही बच्चा अस्थायी रूप से घर से बाहर हो।
व्यावसायिक पालन-पोषण देखभाल मॉडल: फ्राँस व्यावसायिक पालन-पोषण देखभाल को सेवा प्रावधान के एक विशिष्ट मॉडल के रूप में विकसित कर रहा है, जिसमें वेतनभोगी पेशेवरों और बहु-विषयक टीमों के सदस्यों के रूप में कॅरियर को मान्यता दी गई है।
भारत में बच्चा गोद लेने के कानून
शासकीय अधिनियम
हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956: यह अधिनियम हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों पर लागू होता है।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ अधिनियम): यह अधिनियम गोद लेने की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है तथा इसका प्रबंधन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
गैर-हिंदू दत्तक ग्रहण
संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1980: यह गैर-हिंदुओं के लिए अभिभावक बनने का साधन था, न कि दत्तक माता-पिता बनने का। GWA के तहत अभिभावकत्व तब समाप्त हो जाता है जब वह 21 वर्ष का हो जाता है, क्योंकि यह पूर्ण अभिभावकीय अधिकार प्रदान नहीं करता है।
संशोधित पालक देखभाल दिशा-निर्देश (2024)
एकल व्यक्ति भी अब पात्र: महिला एवं बाल विकास (Women and Child Development- WCD) मंत्रालय ने पात्रता का विस्तार किया है, जिसके तहत 35 से 60 वर्ष की आयु के एकल व्यक्तियों (अविवाहित, विधवा, तलाकशुदा, कानूनी रूप से अलग हुए) को बच्चे को पालने की अनुमति दी गई है।
एकल महिलाएँ किसी भी लिंग के बच्चों का पालन-पोषण और गोद ले सकती हैं, जबकि एकल पुरुषों को केवल लड़के (बच्चों) का पालन-पोषण और गोद लेने तक ही सीमित रखा गया है।
दो वर्ष के बाद गोद लेना: पालक माता-पिता अब दो वर्ष के पालन-पोषण के बाद बच्चे को गोद ले सकते हैं।
इससे पहले, पालन-पोषण करने वाले माता-पिता द्वारा बच्चे को गोद लेने के लिए पाँच वर्ष की आवश्यकता थी।
विवाहित जोड़ों के लिए पात्रता: पालन-पोषण के लिए पात्र होने हेतु विवाहित जोड़ों के बीच कम-से-कम दो वर्षों का स्थिर वैवाहिक संबंध होना चाहिए।
दिशा-निर्देशों में दंपतियों के लिए न्यूनतम 70 वर्ष की समग्र आयु सीमा निर्धारित की गई है।
संशोधित दिशा-निर्देशों का संभावित प्रभाव
स्पष्टीकरण और विसंगतियाँ: संशोधित दिशा-निर्देश पिछली विसंगतियों को संबोधित करते हैं, जहाँ एकल व्यक्ति गोद तो ले सकते थे, लेकिन पालन-पोषण नहीं कर सकते थे। यह परिवर्तन पालन-पोषण की पात्रता को गोद लेने के कानूनों के साथ संरेखित करता है।
सीमित जागरूकता और भागीदारी: इन परिवर्तनों के बावजूद, गोद लेने की तुलना में पालन-पोषण देखभाल कम ज्ञात और आम है, मार्च 2024 तक केवल 1,653 बच्चे ही पालन-पोषण देखभाल में हैं।
पालन-पोषण संबंधी आवेदनों में संभावित वृद्धि: ये परिवर्तन अधिक व्यक्तियों को पालन-पोषण संबंधी आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, लेकिन पालन-पोषण की अस्थायी प्रकृति को स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है।
बाल कल्याण पर ध्यान: दिशा-निर्देशों में इस बात पर जोर दिया गया है कि पालन-पोषण का उद्देश्य अस्थायी देखभाल प्रदान करना है, जब तक कि बच्चे का जैविक परिवार देखभाल पुनः शुरू करने में सक्षम नहीं हो जाता।
पालन-पोषण बनाम गोद लेना: (मुख्य अंतर)
उद्देश्य
पालन-पोषण: अस्थायी देखभाल जब तक कि बच्चा अपने जैविक परिवार में वापस नहीं आ जाता या उसे गोद नहीं ले लिया जाता।
दत्तक ग्रहण: स्थायी कानूनी पितृत्व।
कानूनी स्थिति
पालन-पोषण: संरक्षकता राज्य या जैविक माता-पिता के पास रहती है।
दत्तक ग्रहण: दत्तक माता-पिता को पूर्ण अभिभावकीय अधिकार हस्तांतरित हो जाते हैं।
प्रत्यावर्तन (Reversibility)
पालन-पोषण: प्रतिवर्ती; बच्चा अपने जैविक परिवार में वापस लौट सकता है।
दत्तक ग्रहण: स्थायी एवं कानूनी रूप से बाध्यकारी।
माता-पिता के अधिकार
पालन-पोषण: जैविक माता-पिता के अधिकार बरकरार रहते हैं।
दत्तक ग्रहण: जैविक माता-पिता के अधिकार समाप्त हो जाते हैं।
वित्तीय सहायता
पालन-पोषण: इसमें राज्य की वित्तीय सहायता शामिल हो सकती है।
दत्तक ग्रहण: दत्तक माता-पिता पूर्ण वित्तीय जिम्मेदारी लेते हैं।
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